आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सुरक्षा के तमाम कड़े कानूनों के बावजूद आये दिन अत्याचार की दिल हिलाने वाली घटनाएँ सुनने को मिलती रहती हैं। ताजा मामला कर्नाटक के हासन जिले में हुआ है। दलितों पर अत्याचार का ये ऐसा मामला है, जिसकी किसी आज़ाद देश में कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 52 दलितों और आदिवासियों को 3 साल तक बंधक बनाकर रखा गया था। इनमे 16 महिलाएँ और 4 बच्चे शामिल हैं। इन सभी को दिसंबर 16 को छुड़ाया गया है। गुलाम बनाकर रखे गए इन दलितों और आदिवासियों से ईंटों के भट्टे में काम करवाया जाता था। इसके अलावा उनसे बिल्डिंग निर्माण के काम में भी इस्तेमाल किया जाता था। कहीं से भी मजदूरों की अधिक माँग होने पर ठेकेदार ट्रैक्टर पर इनको बैठाकर निर्मित हो रही बिल्डिंग साइट पर ले जाता है। ये लोग इतने डरे हुए होते थे कि किसी से अपनी व्यथा तक नहीं कह पाते थे। इस मामले में कर्नाटक पुलिस भी शक के दायरे में है। स्थानीय लोगो का कहना है कि बिना पुलिस की मदद से इतने दलितों और आदिवासियों को बन्धक नहीं बनाया जा सकता।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एवं अन्य केन्द्रीय मन्त्रियों ने न्याय की गुहार करते हुए ट्वीट किये, लेकिन दलितों, मुस्लिमों और आदिवासियों के लिए मगरमछी आँसू बहाने वाली मायावती, राहुल गाँधी, अरविन्द केजरीवाल, अखिलेश यादव आदि गिरोह के अन्य छद्दम धर्म-निरपेक्षों के अलावा #metoo, #mob lynching, #intolerance, #not in my name, और #award vapsi आदि गैंग को लगता है, साँप सूंघ गया या कोई पीना साँप पी गया। क्योकि गैर-भाजपाई राज्य में इन दलितों को बन्धक बनाए जाने पर किसी ने विधवा विलाप करने का दुस्साहस तक नहीं किया। जो इस बात को प्रमाणित करता है कि गैर-भाजपाइयों को सब खून माफ़ हैं, लेकिन भाजपा शासित राज्य में जरा सा भी कुछ होने पर असहिष्णुता नज़र आने लगती है, संविधान खतरे में दिखता है। देखिए गैर-भाजपाई राज्य कर्नाटक में एक या दो नहीं बल्कि 52 दलितों को बंधक बनाये जाने पर सब सूरदास, और गूंगे बनने के अलावा लगता है कि इनके कानों में सीसा घोलकर डाल दिया गया है। यह भी सम्भव हो सकता है, इस गैंग को षड्यंत्रकारियों ने धन ही न दिया हो।
प्राप्त खबर के अनुसार इनको तीन साल से बंधक बनाकर रख, कम मजदूरी पर 19 घण्टे तक काम करवाया जाता था। जिसका विरोध करने पर चाबुक से पिटाई की जाती थी। उन्हें गुलामों की भाँति रखा जाता था। इनमे अधिकतर दलित और शेष अनुसूचित जनजातियों से हैं। इन लोगों की गरीबी का लाभ उठाकर इन्हे कर्नाटक के रायचूर, चिकमंगरूर, तुमकुरु और चित्रकुरु क्षेत्रों से लाया गया था। इनमे कुछ आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से हैं। छुड़ाई गयीं सभी महिलाओं के साथ यौन-शोषण किया गया है। इन लोगों को एक टीन शेड में बहुत ही अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता था। इस अमानवीय घटना का रहस्योघाटन एक बंधक द्वारा 12 फुट ऊँची दीवार को लाँघ कर भागने पर हुआ। जिसने बाहर आकर कुछ लोगों को अपनी आपबीती सुनाने पर पुलिस की सहायता से बाकी लोगों को छुड़ाया गया। पुलिस ने जानकारी मिले जाने तक 2 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन असली अपराधी को पुलिस बचाने का प्रयास कर रही है, जो साबित करता है कि यह अमानवीय काम पुलिस की मिलीभगत से हो रहा था।
जानवरों से बदतर ज़िन्दगी
अवलोकन करें:--
खामोश मीडिया क्यों?
इसी समाजवादी पार्टी के पदाधिकारी ने दलित को अपना मूत्र पिलाया था। विस्तार से पढ़ने के लिए उपरोक्त लिंक पर क्लिक करें। |
अब प्रश्न यह है कि कांग्रेस अपने राज्यों में दलितों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने में असफल है। लेकिन राहुल गाँधी भी अब तक खामोश हैं।
अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं को हर सम्भव सहायता देने का आग्रह किया है। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस के राज में दलितों और अनुसूचित जनजातियों को बन्धक बनाया जा रहा है और कांग्रेस अपनी सरकार बचाने में लगी हुई है।
No comments:
Post a Comment