मायावती का “गेस्ट हाउस काण्ड”

जब मायावती को बचाने लोगों से भि‍ड़ गया था ये शख्स, ये थी वो घटना
गेस्ट हाउस कांड के दौरान मायावती को
बीजेपी के तत्कालीन विधायक
ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने बचाया था
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
नारी किसी भी जाति अथवा धर्म से हो, अपनी शीलता पर बहुत नाज़ होता है। और जब कोई उसकी शीलता भंग करता है या करने का प्रयास करता है, वह क्षण उस महिला का बहुत ही दुःखद क्षण होता है। जिसे वह अपने जीवन की अंतिम साँस लेने तक नहीं भूल पाती, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती अपने साथ होने वाले सम्भावित बलात्कार को भूल समाजवादी पार्टी से समझौता कर लेती हैं। जो किसी समय माजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के दोबारा साथ आने की संभावनाओं का अंत हो गया था। मायावती ने लखनऊ गेस्टहाउस कांड का याद कर मुलायम से दोस्ती से इनकार कर दिया था। 
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The Chaupal
गेस्ट हाउस कांड की पूरी कहानी...
लखनऊ गेस्टहाउस कांड का हवाला देकर ही वह दोनों नेताओं की दोस्ती के अगुवा लालू प्रसाद यादव पर भी जमकर बरसीं। उन्होंने कहा कि वैसी घटना लालू की बहन-बेटी के साथ हुई होती तो वह गठबंधन की बात कभी नहीं करते। लेकिन अब वही माया कुर्सी की खातिर गेस्टहाउस को अपने आंचल में छुपाकर 23 वर्ष बाद समाजवादी पार्टी से समझौता कर बैठी, और जिस बहुजन समाज पार्टी के लोग बीजेपी पर तीखा हमला महज राजनैतिक कारणों से बोल रहे है उन्हें जरा 2 जून 1995 को हुए गेस्ट हाउस काण्ड की भी समीक्षा कर लेनी चाहिए ! उस दिन मायावती को बलात्कार से बचाने वाला कोई और नहीं आरएसएस का स्वयंसेवक ही था।
शायद यही कारण है कि प्रदेश में हो रही बलात्कार घटनाओं पर मुलायम सिंह ने कहा था, "बच्चों से गलती हो जाती है।"  
माया-मुलायम की अदावत के कारण लखनऊ गेस्टहाउस की यादें फिर ताजा हो गईं हैं। हालांकि अब भी एक बड़े हिस्से के लिए ये कौतुहल ही है कि 2 जून 1995 को लखनऊ के राज्य अतिथि गृह में हुआ क्या था? समाजवादी गुंडों ने किसके कहने पर मायावती की कपडे फाडे और किसी महिला के कपडे किस कारण से फाडे थे? क्या उन गुंडों अथवा पार्टी नेताओं द्वारा मायावती का बलात्कार करने की मंशा थी? 

क्या था “गेस्ट हाउस काण्ड”

2 जून 1995 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ के राज्य अतिथि गृह में जो कुछ घटा उसने पूरे देश को स्तंभित कर दिया था! उस समय उत्तर प्रदेश में एक ऐसा राजनैतिक गठबंधन हुआ था, जिसकी कल्पना अब भविष्य में कही नहीं की जा सकती है! यह गठबंधन हुआ था सपा और बसपा के बीच ! इस गठबंधन ने चुनावों में विजयश्री प्राप्त की और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने ! परन्तु 2 जून 1995 के दिन आपसी रस्साकस्सी और मनमुटाव के चलते बसपा ने गठबंधन से नाता तोड़ समर्थन वापस ले लिया ! जिसके चलते सरकार अल्पमत में आ गयी ! सरकार को बचाने के लिए जोड़ तोड़ प्रारंभ हो गया, परन्तु बात नहीं बनी जिससे गुस्साए सपा कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंचकर कमरा नंबर 1 जहाँ मायावती ठहरी हुई थी, को घेर लिया और कुछ उनके कमरे में घुस गए और कमरा बंद कर लिया ! बताया जाता है कि इन समाजवादियों ने समाजवाद की सारी हदों की सीमाओं को पार करते हुए मायावती को जमकर पीटा बल्कि उनके कपडे तक फाड़ दिए 
उस घटना की जानकारी के लिए ही मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब ‘बहनजी’ का अंश प्रकाशित किया जा रहा है। किताब के हिंदी अनुवाद के पृष्ठ 104 और 105 पर छपा ये अंश गेस्टहाउस में उस दिन घटी घटनाओं का पूरा ब्योरा है।
1995 की बात है लखनऊ का गेस्टहाउस काण्ड
जब समाजवादी पार्टी के गुंडों ने दलित महिला मायावती को कमरे में बंद करके मारा था और उनके कपड़े फाड़ दिए थे …
रेप होने ही वाला था । तब मायावती को अपनी जान पर खेलकर सपाई गुंडों से अकेले भिड़ने वाले बीजेपी विधायक ब्रम्हदत्त द्विवेदी ही थे… उनके पर जान लेवा हमला हुआ फिर भी वो गेस्टहाउस का दरवाजा तोड़कर मायावती जी को सकुशल बचा कर बाहर निकाल कर लाए। ....उत्तर प्रदेश की राजनीती में इस काण्ड को गेस्टहाउस काण्ड कहा जाता है और ये भारत की राजनीती पर कलंक है .. खुद मायावती ने कई बार कहा है की जब मै मुसीबत में थी तब मेरी ही पार्टी के लोग गुंडों से डरकर भाग गये थे लेकिन ब्रम्हदत्त द्विवेदी भाई ने ही अपनी जान की परवाह किये बिना मेरी जान बचाई थी |
मै उन दलित मित्रो को याद दिलाने के लिए लिख रहा हूँ जो कुछ मुस्लिम लोगो के बहकावे में आकर संघ और बीजेपी और हिंदुत्व के बारे में बहुत खराब लिख रहे है .. ब्रम्हदत्त द्विवेदी संघ के संघसेवक थे और उन्हें लाठीबाजी आती थी इसलिए वो एक लाठी लेकर कट्टा राइफल लिए हुए गुंडों से भीड़ गये थे| मायावती ने भी उन्हें हमेशा अपना बड़ा भाई माना और कभी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नही किया ..
मजे की बात ये की पुरे उत्तर प्रदेश में मायावती बीजेपी का विरोध करती थी लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रम्हदत्त जी के लिए प्रचार करती थी … और जब सपाई गुंडों ने बाद में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी तब मायावती उनके घर गयी थी और खूब फुट-फुट कर रोई थी और उनकी विधवा जब चुनाव में खड़ी हुई थी तब मायावती ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार न ही उतारा था और लोगो से अपील की थी की मेरी जान बचाने के लिए दुश्मनी मोल लेकर शहीद होने वाले मेरे भाई की विधवा को वोट दे ..
DainikBhaskar.com ने ब्रह्मदत्त द्विवेदी के बेटे मेजर सुनील दत्त द्व‍िवेदी से बात की और पूरी घटना जानी। ये थी पूरी घटना...
मेजर सुनील दत्त द्व‍िवेदी के मुताबिक, ''2 जून 1995 में मायावती लखनऊ में मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस में थीं। लोगों की भीड़ ने गेस्ट हाउस को घेरकर जमकर हंगामा कर रही थी।''
''भीड़ में सपा से जुड़े कई चेहरे थे, जिनके सामने पुलिस भी मूकदर्शक बनी हुई थी। इस पर मायावती ने खुद को कमरे में बंद कर लिया तो लोगों ने दरवाजा तोड़ने की कोशिश की। मौके पर पहुंचकर मेरे पिता BJP नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने रिस्क लेकर उन्हें बचाया था और अकेले ही भीड़ से भ‍िड़ गए।''
''उस समय मैं फौज में था, जब मैं आया तो उन्होंने मुझे पूरी घटना बताई। इस घटना के बाद वो पिता जी को बहुत सम्मान देने लगी थीं। दिन भर में उनके पास करीब 8-10 फोन आया करते थे।''
इसलिए हुआ था माया पर हमला
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस समय पंचायतों के चुनाव के जरिए मुलायम सूबे में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे।
कांशीराम की इच्छा सत्ता में भागीदारी के सहारे पंचायतों में भी जमीन तलाशने की थी। उस समय कांशीराम काफी बीमार थे तो उन्होंने ये काम मायावती को सौंपा। तभी लखनऊ में जिला पंचायत के चुनाव में दलित वर्ग की एक महिला प्रत्याशी को नामांकन भरने से रोकने का मामला तूल पकड़ गया।
मायावती ने मुलायम को चेतावनी दी, लेकिन मुलायम भी अपनी बात पर अडिग रहे। इस पर बसपा ने मुलायम से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया। इसी के बाद से सपा के लोग मायावती से नाराज थे। 
नहीं खड़ा किया अगेंस्ट में कोई कैंडीडेट
गेस्ट हाउस कांड के दौरान मायावती को आरएसएस से जुड़े और बीजेपी के विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने बचाया था। ब्रह्मदत्त द्विवेदी के इस एहसान को मायावती कभी भूल नहीं पाई। उन्होंने कभी भी ब्रह्मदत्त द्विवेदी के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या के बाद वे उनके घर पहुंची और फूट-फूटकर रोई थीं।
जब ब्रह्मदत्त की पत्नी ने चुनाव लड़ा तो मायावती ने अपील की थी- ''मेरे लिए अपनी जान देने वाले मेरे भाई की पत्नी को वोट दें।''

सुनील दत्त के मुताबिक, ''जब तक पिता जी जिंदा थे, तब तक उनसे संबंध थे। वो मेरी बहन की शादी में भी आई थीं। मां की तबीयत खराब रहती थी, तो उन्हें देखने भी आ जाया करती थीं।''
''जब से मैं फौज से रिटायर होकर भाजपा की धारा से जुड़ा तब से हमारी कोई बातचीत नहीं हुई है। उनकी विचारधारा दूसरी है और हमारी दूसरी।''
मायावती का राजनीतिक करियर
मायावती पहली बार 13 जून 1995 से 18 अक्टूबर 1995 तक मुख्यमंत्री रहीं। वो देश की पहली दलित महिला हैं, जो भारत के किसी राज्य की मुख्यमंत्री बनीं।
उनका दूसरा कार्यकाल 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर 1997 तक रहा। इस दौरान बीजेपी के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई और दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली।
सीएम के रूप में उनका तीसरा कार्यकाल पिछले दोनों कार्यकाल की अपेक्षा लंबा रहा और वे 3 मई 2002 से 29 मई 2003 तक सीएम रहीं।
2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को पूर्ण बहुमत मिल और वे 13 मई 2007 से 7 मार्च 2012 तक पूरे पांच साल तक यूपी की सीएम रहीं।
वीडियो देखिये आज़म खान का, जिसमे बसपा को वोट देने की बजाए भाजपा को वोट देने की अपील कर रहे हैं:-
https://www.facebook.com/BjpKhargoneBarwani/videos/2313836378847052/

डेमो पिक
फर्रुखाबाद के अमृतपुर गांव के रहने वाले और पेशे से वकील ब्रह्मदत्त द्विवेदी भाजपा के कद्दावर नेताओं में थे। कल्याण सिंह सरकार में ऊर्जा व राजस्व विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे। 
द्विवेदी राम जन्मभूमि आंदोलन में भी काफी सक्रिय रहे, 90 के दशक में वह सूबे के बड़े ब्राह्मण राजनेता माने जाने लगे थे। अटल बिहारी वाजपेयी के काफी नजदीकी नेताओं में माने जाने वाले द्विवेदी के बारे में 93-94 में यह चर्चा आम थी कि द्विवेदी भविष्य के मुख्यमंत्री हैं। यह चर्चा यूं ही नहीं थी। उनकी तुलना उस समय के दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव व कल्याण सिंह से होती थी।
लगातार जीत और लोकप्रियता का चढ़ता हुआ यह ग्राफ ही शायद उनका बड़ा दुश्मन बन गया। बसंत पंचमी 9-10 फरवरी 1997 की रात जब वह फर्रुखाबाद में अपने मित्र रामजी अग्रवाल के भतीजे के तिलक समारोह में शामिल होकर बाहर निकले और अपनी कार में बैठने लगे, उसी समय उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग हो गई। 
कैसे बचाया संघी ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने मायावती को
ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी एक स्वयं सेवक थे एवं संघ की शाखा में सिखाई जाने वाली लाठी चलाने में उन्हें महारत हांसिल थी ! ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी ने एक महिला को गुंडों के बीच घिरा हुआ देख अपने उसी शस्त्र (लाठी) को उठाया और हथियारों से लेस समाजवादी गुंडों से भिड गए ! बाद में ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी !
गेस्ट हाउस काण्ड के आरोपी को ही दिया मायावती ने टिकट 
ख़ास बात यह है कि गेस्ट हाउस काण्ड के मुख्य आरोपियों में से एक अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना शुक्ला को आगे चलकर मायावती ने अपनी पार्टी का प्रत्यासी बनाया था ! राजनीति में जो न हो जाए कम है ! आज जो जान के दुश्मन हैं, वे कब जान से प्यारे हो जाएं, इसे कोई नहीं जानता ! समाजवादी पार्टी के साथ सियासी सफर शुरू करने वाले गैंगस्टर एक्ट और रासुका में जेल की हवा खा चुके अन्ना दिसंबर 2008 में माया के हाथी पर सवार हुए ! इस पर मायावती जी का कहना था कि वो सुधर गए हैं और उन्हें मौका दिए जाने की ज़रूरत है ! अब देखना है कि भाजपा से विदा होने वाले दयाशंकर सिंह जी पर मायावती कब मेहरवान होती हैं !
अहसान फरामोश मायावती 
शायद आपको जानकर हैरत होगी कि जब श्री ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी की ह्त्या की गई, उसके बाद मायावती उनके अंतिम दर्शन को भी नहीं गईं ! इतना ही नहीं तो उनकी हत्या के मुख्य आरोपी विजय सिंह को बसपा में भी सम्मिलित कर लिया था, जो निचली अदालत से सजा सुनाई जाने के बाद सपा टिकिट पर फर्रुखाबाद सदर सीट से विधायक बन गया था |
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, मुस्कुराते लोग, लोग खड़े हैं
यह फोटो देखिए इस फोटो में मायावती ने पुरुषों का कुर्ता पहना है आप चौंक गए ना असल में यह फोटो उसी स्टेट गेस्ट हाउस कांड का है जब मुलायम के गुंडों ने मायावती के पूरी तरह से कपड़े फाड़ दिए थे और मायावती के साथ न जाने क्या करने वाले थे तब संघ के स्वंयसेवक और यूपी बीजेपी के महामंत्री स्वर्गीय ब्रम्हदत्त द्विवेदी ने अपनी जान की परवाह किए बगैर मायावती को सकुशल बचाया था और उन्हें अपना कुर्ता पहनने को दिया और उन्हें कमरे से बाहर लेकर आये थे । इस केस में ब्रम्हदत्त द्विवेदी का सर फट गया था लेकिन उन्होंने मायावती की जान और इज्जत दोनों बचाई थी ।
लगता है मायावती 21 साल पहले की घटना भूल गयी है| तभी तो मायावती या उन के भाड़े के ये टट्टू समर्थको ने आज किसी की बहन, बेटी को पेश करने की बात की है, आज से 21 साल पहले 2 जून 1995 को उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो हुआ वह शायद ही कहीं हुआ होगा। मायावती को उस वक्त को जिंदगी भर नहीं भूलना चाहिए। उस दिन को प्रदेश की राजनीति का ‘काला दिन’ कहें तो कुछ भी गलत नहीं होगा। उस दिन एक उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर दलित नेता की आबरू पर हमला करने पर आमादा थी। उस दिन को लेकर तमाम बातें होती रहती हैं लेकिन, यह आज भी एक कौतुहल का ही विषय है कि 2 जून 1995 को लखनऊ के राज्य अतिथि गृह में हुआ क्या था? मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब ‘बहनजी’ में गेस्टहाउस में उस दिन घटी घटना की जानकारी आपको तसल्ली से मिल सकती है
दरअसल, 1993 में हुए चुनाव में सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ था। चुनाव में इस गठबंधन की जीत हुई और मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुखिया बने। लेकिन, आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा कस लिया और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इस वजह से मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई। सरकार को बचाने के लिए जोड़-घटाव किए जाने लगे। ऐसे में अंत में जब बात नहीं बनी तो नाराज सपा के कार्यकर्ता और विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए|….

जहां मायावती कमरा नंबर-1 में ठहरी हुई थीं। बताया जाता है कि, 1995 का गेस्टहाउस काण्ड जब कुछ गुंडों ने बसपा सुप्रीमो को कमरे में बंद करके मारा और उनके कपड़े फाड़ दिए, और जाने वो क्या करने वाले थे कि तभी अपनी जान पर खेलकर उन गुंडों से अकेले भिड़ने वाले बीजेपी विधायक ब्रम्हदत्त द्विवेदी जो संघ के सेवक भी थे और उन्हें लाठी चलानी भी बखूबी आती थी इसलिए वो एक लाठी लेकर हथियारों से लैस गुंडों से भिड़ गये थे, अंत में पुलिस की मदत से गेस्टहाउस का दरवाजा तोड़कर मायावती को सकुशल बचा कर बाहर निकाल लाये थे। यूपी की राजनीती में इस काण्ड को गेस्टहाउस काण्ड कहा जाता है और ये भारत की राजनीती के माथे पर कलंक है खुद मायावती ने कई बार कहा है कि जब मैं मुसीबत में थी तब मेरी ही पार्टी के लोग उन गुंडों से डरकर भाग गये थे लेकिन ब्रम्हदत्त द्विवेदी भाई ने अपनी जान की परवाह किये बिना मेरी जान बचाई थी। कहा जाता है बाद में उन्ही गुंडों ने ब्रम्हदत्त द्विवेदी की गोली मारकर हत्या कर दी थी

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