भागवत जी, सेकुलरिज्म एक कोढ़ है, इससे मत लिपटो; आपने मुस्लिम कट्टरपंथियों को खुश किया लेकिन उनके लिए आप एक “काफिर” ही रहेंगे; मन्दिरों के निकलने से भागवत दुःखी

सुभाष चन्द्र

बचपन से संघ की विचारधारा से जुड़े होने की वजह से संघ प्रमुख भागवत जी के विरोध में कुछ कहना उचित नहीं है लेकिन हाल ही में उनके प्रवचन सुनकर ऐसा लगता है कि वे सेकुलरिज्म के कीड़े से लिपट गए है। लगता है वह “एक हैं, सेफ हैं” और “बटोगे तो कटोगे” के नारों के विरोध में हैं

एक समय था जब स्वयंसेवक विजयदशमी पर सरसंघचालक के उदबोधन का साल भर आचरण करते थे, लेकिन वर्तमान सरसंघचालक मोहन भगवत को हर वक्त कुछ न कुछ बोलने की बीमारी लग गयी है। अगर भागवत ने अपनी आदत को नहीं बदला वह दिन भी दूर नहीं होगा जब संघ ही इसे बोझा समझने लगे, कोई कट्टरपंथी या छद्दम धर्म-निरपेक्ष टके के भाव नहीं पूछने वाला। अगर अपने स्वाभिमान की चिंता नहीं हिन्दुओं को अपने स्वाभिमान से जीने से रोकने का तुम्हे कोई हक़ नहीं। उत्तर प्रदेश में जो मन्दिर निकल रहे हैं, ऐसा लगता है कट्टरपंथियों से कहीं ज्यादा दुखी भागवत है। भागवत को अपने तकियाकलाम दो फुट का धैर्य पर खुद अमल करना चाहिए।

       

भागवत जी की बातें सुनकर मुस्लिम मज़हबी गुरुओं में ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं है उनमे खुश होने वाले लोगों में शामिल हैं -

लेखक 
चर्चित YouTuber 
-आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव यासूब अब्बास;

-ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना मुफ़्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी;

-मुस्लिम धर्मगुरु कल्बे सिब्ते नूरी;

-कैराना की सांसद इकरा चौधरी;

-सपा बाहुबली नेता अफजाल अंसारी;

-सपा सांसद मोहिबुल्लाह नदवी आदि आदि 

यह कह रहे हैं एक मंदिर बन गया, अब हर मस्जिद दरगाह के नीचे मंदिर की तलाश बंद होनी चाहिए, हम पहली बार भागवत के बयान से सहमत हैं और मुस्लिमों के बिना भारत विश्व गुरु नहीं बन सकता

भागवत जी ने कुछ मुख्य बातें कही हैं -

-हम लंबे समय से सद्भावना में रह रहे हैं;

-राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नई जगहों पर ऐसे ही मुद्दों को उठाकर हिंदू नेता बन जाएंगे, यह स्वीकार्य नहीं है;

-नफरत और दुश्मनी के कारण कुछ नए स्थलों के बारे में मुद्दे उठाना अस्वीकार्य;

-अगर नेता बनना ही इसका मकसद है तो इस तरह का संघर्ष उचित नहीं है;

-कौन माइनॉरिटी और कौन मेजोरिटी सब एक जैसे ही हैं;

-दूसरों के देवताओं का अपमान करना हमारी संस्कृति नहीं है;

-स्वतंत्र भारत में सब समान, अगर सभी खुद को भारतीय मानते हैं -(लेकिन वो तो दूसरा पाकिस्तान बनाने की बात करते हैं);

-कौन अल्पसंख्यक, कौन बहुसंख्यक? यहां सभी समान हैं, इस देश की परंपरा है कि सभी अपनी अपनी पूजा पद्धति का पालन कर सकते हैं, आवश्यकता केवल सद्भाव से रहने और नियम एवं कानूनों का पालन करने की है

लम्बे समय से हमारे देश में सद्भावना से रह रहे होते तो पाकिस्तान न बनता और आज सद्भावना का यह आलम है कि महाराष्ट्र के चुनाव में AIMPLB के प्रवक्ता सज्जाद नोमानी ने MVA से RSS को बैन करने का वादा लिया था

अगर सभी अपनी पूजा पद्धति अपना सकते हैं तो फिर पिछले कुछ वर्षो से कोई ऐसी हिंदू त्योहारों की शोभायात्रा क्यों नहीं रही जिस पर जिस पर मुस्लिमों ने पत्थरबाजी न की हो जबकि किसी मुस्लिम त्यौहार पर हिंदुओं से कोई छेड़छाड़ नहीं की

आपके विचार से केवल राम मंदिर ही काफी है क्योंकि उसमे हम सबकी आस्था थी तो क्या काशी और मथुरा में हमारी आस्था नहीं है? क्या मुगलों की हिंदुओं पर बर्बरता उचित ठहरा रहे हैं आप?

जो मुग़लों ने बर्बरता की हिंदुओं के साथ और मंदिरों का विध्वंस किया, वह आज भी बांग्लादेश में हो रहा है 

आप किसे कह रहे हैं कि रोज मंदिर मस्जिद प्रकरण निकाल कर कुछ लोग हिंदुओं के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं? क्या आपका इशारा योगी जी की तरफ है? क्या आप फिर साबित कर रहे हैं कि हिंदू एक हो ही नहीं सकता?

यह बेहतर होता यदि आप मुस्लिमों से कहते कि वे यह खुद आकलन करें कि कहां कहां मंदिर दबे हैं और किस किस मंदिर को वे हिंदुओं को स्वेच्छा से सौंपने के लिए तैयार हैं

कहते है मोदी चाहे मुसलमानों के लिए अपना सिर भी काट कर दे देगा, तब भी वह उनका विश्वास नहीं जी सकते और यह भागवत जी के लिए भी कहना उचित होगा कि आप कितना भी “सेकुलरिज्म” का नशा करके मुस्लिमों को खुश कर लो, उनके लिए आप “काफिर” ही रहेंगे

संघ के 95% स्वयंसेवक भागवत जी से सहमत नहीं होंगे!

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