सुभाष चन्द्र
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि “आज़ादी के बाद यह पहली बार है कि किसी मुख्य न्यायाधीश ने पारदर्शी, जवाबदेह तरीके से अपने पास मौजूद सभी सामग्री को पब्लिक डोमेन में रखा है और कोर्ट के साथ कुछ भी बिना छिपाए इसे शेयर किया है; यह सही दिशा में उठाया गया कदम है; सीजेआई की तरफ से एक समिति का गठन और उन्होंने जो सतर्कता दिखाई है, वह भी एक ऐसा कारक है जिस पर विचार करने की जरूरत है; न्यायपालिका और विधायिका जैसी संस्थाएं अपने उद्देश्य को सबसे अच्छी तरह से पूरा करती हैं जब उनका इन-हाउस तंत्र प्रभावी, तेज और जनता के विश्वास को बनाए रखता है; हमें समिति की रिपोर्ट का इंतज़ार करना होगा, इसके बाद ही हमें अपने विचार के लिए पूरी चीज़ें मिल पाएंगी”।
![]() |
लेखक चर्चित YouTuber |
मैं चीफ जस्टिस खन्ना को उपराष्ट्रपति द्वारा दिए गए “चरित्र प्रमाण पत्र से सहमत नहीं हूं उसके कुछ कारण हैं, वह बता रहा हूं :-
-जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में आग 14 मार्च, 2025 को रात 11.35 पर लगी और पुलिस आयुक्त ने दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को इसकी सूचना 15 मार्च को सुबह ही दे दी;
-हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने CJI खन्ना को उसी दिन तुरंत सूचित कर दिया; लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और चीफ जस्टिस खन्ना ने मामले को दबाए रखा जब तक 20 मार्च को कुछ अख़बारों ने रिपोर्ट नहीं दे दी;
-मीडिया में रिपोर्ट आने के बाद CJI खन्ना ने कॉलेजियम की बैठक बुला कर वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया;
-22 मार्च को वर्मा से कामकाज वापस लिया गया लेकिन अब भी यह नहीं बताया गया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में उन्हें काम करने की अनुमति होगी या नहीं;
-22 मार्च को ही 3 हाई कोर्ट के जजों की समिति बनाई गई और वह 25 मार्च को वर्मा के घर छानबीन के लिए गई -
-मतलब 14 मार्च से 25 मार्च तक 11 दिन में सबूतों के साथ क्या किया गया होगा, यह ऊपरवाला ही जाने क्योंकि आग लगने के बाद घर को सील नहीं किया गया;
-CJI खन्ना ने आज तक किसी को यह नहीं बताया कि outhouse में मिले अधजले नोटों के अलावा भी कुछ बिना जले नोट मिले या नहीं और यदि मिले तो कितने मिले क्योंकि 11 दिन बाद तो समिति को ख़ाक ही मिली होगी;
-यह भी कहीं नहीं बताया गया कि क्या केवल outhouse में ही आग लगी या घर के मुख्य भाग में भी लगी;
-यदि घर में कुछ नकदी मिली तो किसकी थी क्योंकि वर्मा के पल्ला झाड़ने से तो काम नहीं चलता और Judicial Quest की रिपोर्ट तो कहती है कि उसमे एक दूसरे राज्य की महिला जज समेत कई जजों का और न्यायपालिका से जुड़े लोगों का पैसा था;
संसद में इस विषय में चर्चा के लिए पहले धनखड़ जी ने भाजपा के नड्डा जी और खड़गे जी के साथ मीटिंग की और फिर नड्डा जी को सभी दलों से सलाह करने को कहा कि इस पर चर्चा हो या न हो। ये कैसा मज़ाक है, संसद में हर कोई सांसद चलते फिरते विषयों को ज़ीरो ऑवर में उठा सकता है लेकिन एक कथित भ्रष्ट जज की इतनी अहमियत कि उसके कुकृत्य के लिए चर्चा के भी सहमति बनाई जाएगी।
यदि CJI खन्ना सही में पारदर्शी होते तो इस अभूतपूर्व प्रकरण पर अपने सभी नियमों को ताक पर रख कर मामले की जांच CBI और ED को देने में देर नहीं लगाते।
CJI खन्ना जितनी मर्जी जांच करा लें, न्यायपालिका पर से जनता का विश्वास इस प्रकरण से पूरी तरह ख़त्म हो गया है और जब न्यायपालिका से जनता का विश्वास उठ जाए तो समझ लो कि देश का लोकतंत्र निश्चित रूप से खतरे में है। अब तो लोग यदि अदालतों में जाएंगे तो पहले वकील से पूछेंगे कि उसके केस की सुनवाई करने वाले जजों का रेट क्या है।
No comments:
Post a Comment