अप्रैल 7 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के दौरे पर थे जहां उन्होंने पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया। यह ब्रिज अपने आप में अद्भुत है और वहां से ही चेन्नई के तांबरम के लिए ट्रेन को भी हरी झंडी दिखाई जो तमिलनाडु के लोगों के फायदे के लिए ही है।
लेकिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री MK Stalin ने प्रधानमंत्री के स्वागत की जहमत नहीं की। वह ऊटी छुट्टियों के लिए निकल गए। माना आपको मोदी से नफरत है लेकिन राजनीतिक शिष्टाचार निभाना किसी भी राज्य के मुखिया के लिए जरूरी है। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री का दौरा पहले से तय नहीं था लेकिन स्टालिन उनसे न मिलने का बहाना बना कर छुट्टी पर चले गए। कभी मोदी को देखा है कि किसी मेहमान के आने से पहले कहीं बाहर निकल गए हों या कभी कोई छुट्टी ली हो
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लेखक चर्चित YouTuber |
स्टालिन सितंबर महीने में प्रधानमंत्री मोदी को मिलने दिल्ली आए थे क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री से तमिलनाडु के लिए वित्तीय मदद की गुहार लगानी थी। क्या मोदी ने उनसे मिलने से मना किया और चाहते तो वो भी उन्हें टरका सकते थे कोई भी बहाना बना कर लेकिन वो हर किसी मुख्यमंत्री से मिलते हैं।
ऐसा नहीं है स्टालिन ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जो प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई के लिए नहीं पहुंचे। मोदी 6 बार तेलंगाना के दौरे पर गए थे लेकिन एक बार भी KCR ने न तो उनकी अगुवाई की और न उनसे किसी दौरे पर कोई मुलाकात की।
यह काम ममता बनर्जी भी करती है, वह भी मोदी से नहीं मिलती जब भी वो बंगाल जाते हैं। इतना ही नहीं 8 राज्यों के मुख्यमंत्री कभी नीति आयोग की बैठक में भी नहीं आते जबकि आयोग में राज्यों की आर्थिक जरूरतों पर विचार किया जाता है। केजरीवाल ने तो आयोग की बैठक की मोदी के साथ बातचीत भी लाइव कर दी थी।
देश का ऐसा कोई राज्य नहीं है जिसके लिए मोदी ने विकास योजनाओं में कमी की हो चाहे वे NDA शासित राज्य हों या जहां विपक्षी दलों की सरकार हो। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों को बस पैसा चाहिए लेकिन अपनी रेवड़ी बांटते रहना बंद नहीं करते। आज कर्नाटक और तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश कंगाली के कगार पर हैं।
स्टालिन का तो एक फंडा 50-60 साल से चल रहा है, हिंदी को हम पर न थोपा जाए और तमिलनाडु की जनता इस नारे भरमा कर पूरा साथ देती है।
आजकल स्टालिन ने एक और शोर मचाया हुआ है कि परिसीमन से तमिलनाडु की लोकसभा की सीट कम कर दी जाएगी। एक बार तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश की सीटों को देख तो लो। तमिलनाडु की लोकसभा में 39 सीटें हैं और राज्य की जनसंख्या के अनुसार 18.50 लाख लोगों पर एक सीट है जबकि उत्तर प्रदेश की 80 सीटें हैं और वे 30 लाख लोगों पर एक सीट है।
इसी तरह आंध्र प्रदेश में 25 सीट है। जनसंख्या के अनुसार 15 लाख आबादी पर एक सीट है;
कर्नाटक की 16 लाख आबादी पर एक सीट है और कुल सीटें हैं 28; तेलंगाना में 22 लाख आबादी पर एक सीट है, कुल सीटें हैं 17; और बिहार में 32 लाख आबादी पर एक सीट है, कुल सीट है 40।
इस तरह देखा जाए तो राज्यों की लोकसभा की सीटें जनसंख्या के आधार पर सही अनुपात में नहीं हैं और इसलिए परिसीमन तो होना ही चाहिए। अकेले स्टालिन को परेशानी क्यों हो रही है जो वह मोदी से इतनी नफरत कर रहा है।
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