अहमदाबाद क्रैश में भी इस्लामी कट्टरपंथी ढूंढ लाए गाजा का विक्टिम कार्ड, पीड़ितों के प्रति संवेदना जताने के बजाय चलाया एजेंडा: जिस जज ने स्टे दिया उससे क्यों नहीं सवालों-जवाब किये जाते?

                                      अहमदाबाद प्लेन क्रैश के बाद की भयवह तस्वीरें (साभार- CISF)
गुरुवार (12 जून 2025) को अहमदाबाद में हुए भीषण प्लेन क्रैश में 265 लोगों ने अपनी जान गँवा दी। कई अन्य लोग घायल भी हैं जिनका अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में इलाज चल रहा है। इस दुर्घटना के बाद देश ही नहीं दुनिया भर के लोग शोक व्यक्त कर रहे हैं, पर इसी बीच देश के ‘लिबरल समुदाय’ के कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस आपदा को अपने लिए ‘अवसर’ में तब्दील करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कोशिश भी देश के अंदर के लोगों के लिए नहीं बल्कि गाजा के लोगों के लिए ‘विक्टिम कार्ड’ खेलने की है।
जबकि सोशल मीडिया पर इस दुर्घटना के पीछे तुर्किश कंपनी पर शक किया जा रहा है, जिस पर कोई भी नेशनल चैनल अपना मुंह खोलने को तैयार नहीं, क्यों? जिस जज ने भारत सरकार ने तुर्कीश कंपनी के कॉन्ट्रेक्ट पर स्टे लगाया उस पर कार्यवाही की मांग की जा रही है। जिस जज ने स्टे दिया उससे क्यों नहीं सवालों-जवाब किये जाते? आखिर किस दबाव में आकर उसने स्टे दिया था? केंद्र सरकार और मुख्य न्यायाधीश को गंभीरता से जज से पूछना चाहिए। इस बात की भी जाँच होनी चाहिए कि क्या जज किसी Deep State या टूलकिट का हिस्सा है?      

साभार सोशल मीडिया
आखिर भारत देश के जज, कब तक आतंकियों को स्पेशल ट्रीटमेंट देकर बचाते रहेंगे। पुकार करो, शंखनाद करो कि तुर्की की कंपनी सेलेबी एविएशन (Celebi Aviation) की सहायक कंपनी सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड भारत के 9 हवाई अड्डों पर उच्च सुरक्षा वाले कार्यों में सम्मिलित थी, सूत्रों के अनुसार उन 9 में एक ये अहमदाबाद का हवाई अड्डा भी सम्मिलित है। ऑपरेशन सिंदूर के समय तुर्की द्वारा पाकिस्तान का साथ देने के कारण भारत सरकार ने सेलेबी की सेवाएं समाप्त कर दी थीं... लेकिन माननीय न्यायालय के आदेश के कारण उसकी सेवाएं पुनः स्वीकृत कर दी गईं थी। तो यहां पर सम्पूर्ण दायित्व मान न्यायालय का ही बनता है

इस लिबरल समुदाय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अहमदाबाद प्लेन क्रैश को भी गाजा के लोगों से तुलना करनी शुरू कर दी। मुस्लिम समुदाय के कई लोग लिख रहे हैं कि अगर अहमदाबाद के विमान दुर्घटना पर लोग इतनी संवेदना जाताई रही है तो गाजा के लिए यह संवेदना क्यों नहीं है।

इस ‘विक्टिम कार्ड’ के पैंतरे को खेलने के चक्कर में लोगों ने बॉलीवुड के अभिनेताओं को भी नहीं बख्शा। बॉलीवुड के कई सितारों ने प्लेन क्रैश दुर्घटना पर शोक व्यक्त किया और पीड़ित परिवारों को साहस रखने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पोस्ट साझा की। बॉलीवुड के अभिनेता शाहरुख खान ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपनी संवेदना प्रकट की तो इस पर कुछ यूजर्स गाजा के लिए विक्टिम कार्ड खेलने से नहीं चूके।

यूजर्स ने शाहरुख को इस बात का ताना दिया कि उन्होंने अहमदाबाद प्लेन क्रैश की संवेदना की तरह गाजा के लोगों के लिए कुछ क्यों नहीं लिखा।

इस प्लेन क्रैश में अभिनेता विक्रांत मेसी के चचेरे भाई की भी मौत हुई है। इस घटना पर शाहरुख खान के साथ-साथ सलमान खान, अनुपम खेर, सुनील शेट्टी, आमिर खान के प्रोडक्शन हाउस, अक्षय कुमार, अजय देवगन, अनुष्का शर्मा, रितेश देशमुख, सोनू सूद, परिणीति चोपड़ा, सारा अली खान, अल्लू अर्जुन, सोनाक्षी सिन्हा, करिश्मा कपूर, अभिषेक बच्चन, जूनियर NTR, आलिया भट्ट, करण जौहर समेत कई सितारों ने संवेदना प्रकट की है।

एक पाकिस्तानी नागरिक ने लिखा कि अहमदाबाद की दुर्घटना पर पाकिस्तानियों को दुख है, लेकिन इससे पहले गाजा के विषय पर भारतीयों ने जश्न मनाया था।

असल में तो इस ‘उदारवादी समुदाय’ को अपना प्रोपेगेंडा चलाने के लिए सिर्फ एक सहारे की आवश्यकता होती है। प्लेन क्रैश में मरे किसी भी व्यक्ति की जात-पात धर्म से किसी को कोई मतलब नहीं रहा। अन्य लोगों ने सिर्फ पीड़ितों की मदद और मृतकों के परिवार के लिए दुख जताया, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोगों ने यहाँ पर भी गाजा के लिए विक्टिम कार्ड का पैंतरा खोज ही लिया। एक दुर्घटना को दो देशों के बीच की अनबन से कैसे जोड़ा जा सकता है, यह भला कोई इन जैसे यूजर्स से सीखे।

लोगों की मौत पर हँसने की प्रतिक्रिया

बात यहीं पर खत्म भी नहीं होती, दुर्घटना के बाद जब कई मीडिया हाउसेज ने इस बात की जानकारी अपने सोशल मीडिया पेज पर दी तो वहाँ पर भी सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही जश्न मनाने और हँसने वाली प्रतिक्रियाएँ दीं। इन प्रतिक्रियाओं पर भी लोगों का आक्रोश सामने आया है।

मदद के लिए गायब, बस जवाब माँगना आता है

आतंकी हमला हो, प्राकृतिक आपदा हो या अब विमान दुर्घटना, एक परेशान करने वाला पैटर्न ये है कि जब असल में आम जनता की मदद करने या एकजुटता दिखाने की बात आती है तो इन ‘लिबरल’ वामपंथियों और उनके इस्लामी कट्टरपंथी साथी गायब हो जाते हैं। ये तब अपना फन उठाते हैं जब घटना को अवसर के रूप में इस्तेमाल करना हो- वो भी एकता या सहानुभूति के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए।
इस प्लेन क्रैश के बाद भी इन लिबरल्स ने लोगों की मदद करने नाम पर चुप्पी साध ली। न तो कोई रक्तदान करने के लिए सामने आया, न ही किसी ने पीड़ितों या मृतकों की सुध लेने की कोशिश की, रेस्क्यू के लिए भी इनमें से कोई सामने नहीं दिखा, न ही अस्पताल में परेशान भटक रहे परिजनों को ढाँढस बंधाने के लिए कोई दिखा। लेकिन सरकार से दुर्घटना पर जवाब माँगना ये लिबरल कतई नहीं भूले। सैकड़ों लोग अपनी जान बचाने की जिद्दोजहद कर रहे थे तब मदद के लिए वे लोग सामने आए जिन्हें ये ‘उदारवादी’ समुदाय गालियाँ देता है। ये है- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिन्हें ये लिबरल्स राजनीतिक लाभ के भूखे लगते हैं, वे कार्यकर्ता बिना किसी लाग लपेट के घटना के आधे घंटे के भीतर पीड़ितों की मदद के लिए पहुँच गए।
इस मदद के एवज में RSS कार्यकर्ताओं ने किसी तरह की नुमाइश या स्वयं को महान बताने की चेष्ठा नहीं की, बस चुपचाप लोगों का सहारा बने रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस/RSS) ने अहमदाबाद में ही नहीं बल्कि अपनी स्थापना से बाद से आज तक कई आपदाओं और संकटों के दौरान पीड़ितों की मदद की है। कई सामाजिक सेवा कार्य भी किए हैं, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास शामिल हैं। आरएसएस ने विभिन्न आपदाओं और आपात स्थितियों के दौरान पीड़ितों को आश्रय, भोजन, कपड़े और चिकित्सा सहायता प्रदान की है।

संकटकाल में ढाल बन कर खड़े रहे RSS कार्यकर्ता

देश में आई आपदाओं और संकटकाल के समय RSS कार्यकर्ता जी जान से सेवा में जुटते हैं और लोगों के लिए संकट के सामने ढाल बनकर कड़े रहते हैं। इनमें 1971 का ओडिशा चक्रवात, 1977 का आंध्र प्रदेश चक्रवात, 2004 का हिंद महासागर भूकंप और 2004 का सुमात्रा-अंडमान भूकंप समेत कई अन्य विपदाएँ शामिल हैं।
युद्ध और संघर्षों की बात करें तो आरएसएस ने 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1999 के कारगिल युद्ध के साथ कश्मीर में आतंकवाद के कारण प्रभावित लोगों की कई बार मदद की है। इसके अलावा आरएसएस ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान सिख समुदाय के लोगों की मदद की। 1971 में आए ओडिशा चक्रवात को याद करें तो उस समय आरएसएस कार्यकर्ताओं ने चक्रवात पीड़ितों को भोजन, पानी, कपड़े और चिकित्सा सहायता प्रदान की थी।
इसके बाद 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी में भी कार्यकर्ताओं ने पीड़ितों को चिकित्सा सहायता दिलाई। साथ ही त्रासदी के पीड़ितों के पुनर्वास में भी मदद की। इसके बाद 1999 में कारगिल युद्ध के समय भी आरएसएस ने युद्ध से प्रभावित परिवारों की मदद करने के साथ बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक जरूरतों को पूरा किया।
गुजरात में 2001 में आए विनाशकारी भूकंप में सैकड़ों लोगों की जान गई। इस दौरान भी आरएसएस कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे और भूकंप पीड़ितों को आश्रय, भोजन, कपड़े और चिकित्सा सहायता समेत अन्य जरूरतों का प्रबंधन किया। यही नहीं, 2004 में अंडमान के सुमात्रा में आए भूकंप और सुनामी में भी कार्यकर्ताओं ने पीड़ितों के लिए राहत कार्यों में जी जान से जुटे और उनके भी पुनर्वास में मदद की।
इसके अलावा 2020 में कोरोना महामारी, 2023 में दिल्ली में आई बाढ़ या फिर कोई अन्य परेशानी हो, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी लाठी और मजबूत कंधों के साथ हर पल लोगों की हरसंभव मदद के लिए खड़ा रहा है।
असल में इन लिबरल्स और उदारवादी लोगों को हर मुद्दे पर सिर्फ अपना हित साधना आता है। लोगों की परेशानी से इन्हें कभी कोई मतलब नहीं होता। राजनीतिक लाभ के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। फिर अगर कोई इस समुदाय को बेपर्दा करने की कोशिश करे तो पूरी जमात ‘देशभक्ति’ का दावा ठोकने लगती है। इससे परे किसी विपदा के समय खुद तो कभी मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाते लेकिन दूसरे लोगों की मदद को प्रोपेगेंडा बताने से भी नहीं चूकते।

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