सुभाष चन्द्र
गवई साहब मुंबई कोर्ट के जिस जज द्वारा सरकार के तुर्किश कंपनी पर पाबन्दी लगाने वाले आदेश पर स्टे लगाने वाले जज पर अहमदाबाद विमान दुर्घटना में हुई मौतों का जिम्मेदार मान क्या कार्यवाही का रहे हो। यह न्यायिक आतंकवाद का ताजा मामला है। सोशल मीडिया में इस जज को मृत्यु दंड देने की बात चर्चा रही है। अब अगर सरकार उस जज के स्टे को ही नज़रअंदाज़ कर तुर्किश कंपनी का अनुबंध कैंसिल कर दे फिर मत चीखना-चिल्लाना की सरकार कोर्ट के काम में दखलंदाजी कर रही है।
लंदन के ऑक्सफ़ोर्ड यूनियन में चीफ जस्टिस गवई ने कुछ बातें कहीं है जिन पर विचार करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि :
-न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी लेकिन उसे “न्यायिक आतंकवाद” में नहीं बदलना चाहिए;
-न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल संयम से किया जाना चाहिए और तब ही किया जाना चाहिए, जब कोई कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता हो;
-कभी कभी आप सीमाएं लांघने की कोशिश करते हैं और ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, जहां सामान्यतः न्यायपालिका को प्रवेश नहीं करना चाहिए;
-जब विधायिका या कार्यपालिका नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में अपने कर्तव्यों में विफल रहती हैं तो न्यायपालिका हस्तक्षेप करेगी;
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लेखक चर्चित YouTuber |
चीफ जस्टिस गवई ने ऐसा बयान देकर स्वयं माना है कि “न्यायपालिका” में “न्यायिक आतंकवाद” चल रहा है और बेहतर था वे स्वयं ही बताते कि कौन से ऐसे मामले हैं जो इस श्रेणी में आते हैं या जहां जहां अदालत ने न्यायिक सक्रियता को न्यायिक आतंकवाद में बदला।
Judicial Terrorism शब्द का उपयोग मैंने सबसे पहले अपने 2 जुलाई, 2023 के लेख के शीर्षक में किया था -
“इसे “Judicial Terrorism” कहें
या “Judicial Mafia System”
जब तीस्ता सीतलवाड़ को एक शाम में ही 2 बेंच बना कर बचा लिया गया था और बचाने वाले थे गवई साहेब। यह था आपका “न्यायिक आतंकवाद”।
12 जुलाई, 2023 के लेख में मैंने सुप्रीम कोर्ट की माफियागिरी कहा था और 20 जुलाई, 2023 के लेख में एक बार फिर Judicial Terrorism बताया था। शायद गवई साहेब को मेरा शब्द पसंद आया जो उन्होंने इसका अपने बयान में उल्लेख किया।
Judicial Terrorism के कुछ किस्से बता रहा हूं -
-मोदी काल में सबसे पहले यह आतंकवाद तब दिखाई दिया जब सुप्रीम कोर्ट ने NJAC कानून को खारिज कर दिया जबकि एक Stakeholder/Interested Party होने के नाते कोर्ट को उस पर सुनवाई का अधिकार ही नहीं था;
-कृषि कानूनों पर रोक लगाकर आपने सरकार पर आतंकी हमला किया था और दिल्ली में किसानों के कूच और लाल किले में जो हुआ, वह आपके “न्यायिक आतंकवाद” से हुआ;
-आप बात करते हैं संविधान के मूल ढांचे में बदलाव की जबकि इंदिरा गांधी ने उसे तोड़ मरोड़ कर Secular/Socialist शब्द जोड़ दिए, तब आपकी आंखे बंद थी;
-चंद्रचूड़ की मोदी को मणिपुर पर चुनौती देना क्या था कि सरकार कुछ नहीं करेगी तो हम करेंगे ;
-चंद्रचूड़ का 7 साल बाद Electoral Bonds को चुनाव के समय ख़ारिज करना था न्यायिक आतंकवाद;
-आपने ED डायरेक्टर संजय मिश्रा को हटा दिया। यह था न्यायिक आतंकवाद;
-आपके जजों ने राष्ट्रपति को आदेश देकर “न्यायिक आतंकवाद” की सभी सीमाएं पार कर दी;
-आपके जजों ने कन्हैया लाल का उदयपुर में सर तन से जुदा करने पर नूपुर शर्मा के खिलाफ जो Hate Speech देकर उसे सारे देश में आग लगाने के जिम्मेदार बताया, वह था “न्यायिक आतंकवाद”।
-आपने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में कॉलेजियम बना दिया और चीफ जस्टिस को उसका मेंबर बना दिया।
-आपने जस्टिस वर्मा से पल्ला झाड़ कर अलग तरह का न्यायिक आतंकवाद दिखाया है।
किसी दूसरे के घर में घुसकर छेड़छाड़ की जाए, जबरदस्ती अपनी बात मानने के लिए मजबूर करे, यही तो आतंकवाद है और सरकार का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दखल न की हो।
इसलिए चीफ जस्टिस गवई जब आप मान गए हैं कि न्यायिक आतंकवाद चल रहा है तो इस आतंकवाद को आप ही ख़त्म कीजिए, सरकार करेंगी तो आपको बुरा लगेगा।
आप तो सरकार के हर कानून की समीक्षा के लिए तैयार हो जाते हैं, तो क्या वो सभी कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करते है। जो आरोप आप विधायिका और कार्यपालिका पर लगा रहे हैं नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा न करने का, वह आरोप न्यायपालिका पर भी लग रहा है।
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