झारखंड के गोड्डा से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद निशिकांत दुबे ने अपनी एक तस्वीर को लेकर सोशल मीडिया में जमकर ट्रोल हो रहे है। वायरल तस्वीर में सार्वजनिक स्थल पर एक कार्यकर्ता उनका पैर धोकर पानी पी गया. हैरानी की बात तो ये है कि सांसद ने कार्यकर्ता को ना तो ऐसा करने से रोका, बल्कि उस तस्वीर को अपने फेसबुक पेज से शेयर कर दी। तस्वीर पोस्ट होते ही बीजेपी सांसद ट्रोल होने लगे. उनकी जमकर आलोचना हो रही है. विपक्ष ने भी हमला बोला है।
मामला तुल पकड़ता देख बीजेपी सांसद ने सफाई दी है। उन्होंने कहा अगर कार्यकर्ता खुशी का इजहार पैर धोकर कर रहा है, तो क्या गजब हुआ? साथ ही उन्होंने कहा कि पैर धोना तो झारखंड में अतिथि के लिए होता ही रहा है। कार्यक्रम में आदिवासी महिलाएं क्या यह नहीं करती हैं? इसे राजनितिक रंग क्यों दिया जा रहा है?साथ ही उन्होंने कहा कि क्या अतिथि का पैर धोना गलत है? अपने पुरखों से पूछिए, महाभारत में कृष्ण जी ने क्या पैर नहीं धोए थे?
बेशर्मी की भी कोई हद होती है। सांसद डॉ दुबे अपने आपकी भगवान कृष्ण से तुलना उनका अपमान मत करो, भगवान कृष्ण ने अपने मित्र सुदामा के पैर धोए थे, फिर अपने अंगोछे से ही सुदामा के पैर पोंछे थे, लेकिन उस जल को चरणामृत समझ पीया नहीं था। डॉ दुबे सत्ता का दुरूपयोग मत करो। पता नहीं पानी को पीने वाला भाजपा तो क्या किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता नहीं, किसी गुलाम से भी गिरा हुआ है। ऐसी हरकत को किसी गुलाम को भी करते ना ही सुना और ना ही कहीं पढ़ा।
निशिकांत दुबे सितम्बर 16 को कनभारा पुल के शिलान्यास के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। सांसद के सम्मान में कसीदे पढ़ते हुए बीजेपी कार्यकर्ता पंकज साह ने कहा कि पुल का शिलान्यास कर सांसद ने बहुत बड़ा उपकार किया है। इसके लिए उनके चरण धोकर पीने का मन कर रहा है।
संबोधन समाप्त करते हुए उसने मंच पर ही थाली और पानी मंगवाया और निशिकांत दुबे का पैर धोने लगा।निशिकांत दुबे ने भी कार्यकर्ता को रोकने के बजाय बेझिझक पैर आगे कर दिए। पैर धोने के बाद कार्यकर्ता ने गमछा से उनके पैरों को साफ किया। बात यहीं नहीं खत्म होती है. बीजेपी कार्यकर्ता सांसद को खुश करने के लिए उस गंदे पानी को चरणामृत की तरह पी गया।
मामला तुल पकड़ता देख बीजेपी सांसद ने सफाई दी है। उन्होंने कहा अगर कार्यकर्ता खुशी का इजहार पैर धोकर कर रहा है, तो क्या गजब हुआ? साथ ही उन्होंने कहा कि पैर धोना तो झारखंड में अतिथि के लिए होता ही रहा है। कार्यक्रम में आदिवासी महिलाएं क्या यह नहीं करती हैं? इसे राजनितिक रंग क्यों दिया जा रहा है?साथ ही उन्होंने कहा कि क्या अतिथि का पैर धोना गलत है? अपने पुरखों से पूछिए, महाभारत में कृष्ण जी ने क्या पैर नहीं धोए थे?
बेशर्मी की भी कोई हद होती है। सांसद डॉ दुबे अपने आपकी भगवान कृष्ण से तुलना उनका अपमान मत करो, भगवान कृष्ण ने अपने मित्र सुदामा के पैर धोए थे, फिर अपने अंगोछे से ही सुदामा के पैर पोंछे थे, लेकिन उस जल को चरणामृत समझ पीया नहीं था। डॉ दुबे सत्ता का दुरूपयोग मत करो। पता नहीं पानी को पीने वाला भाजपा तो क्या किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता नहीं, किसी गुलाम से भी गिरा हुआ है। ऐसी हरकत को किसी गुलाम को भी करते ना ही सुना और ना ही कहीं पढ़ा।
आज मैंने अपने आप को बहुत छोटा कायकर्ता समझ रहा हूँ ,भाजपा के महान कार्यकर्ता पवन साह जी ने पुल की ख़ुशी में हज़ारों के सामने पैर धोया व उसको अपने वादे पुल की ख़ुशी में शामिल किया,काश यह मौक़ा मुझे माता पिता के बाद एक दिन मिले, मैं भी कार्यकर्ता का चरणामृत पियूँ
जय भाजपा जय भारत
जय भाजपा जय भारत
अपनो में श्रेष्ठता बांटी नही जाती और कार्यकर्ता यदि खुशी का इजहार पैर धोकर कर रहा है तो क्या गजब हुआ?उन्होंने जनता के सामने क़सम खाया था,उनको ठेस ना पहुंचे सम्मान किये।पैर धोना तो झारखंड मेंअतिथि के लिए होता ही है, सारे कार्यक्रम में आदिवासी महिलाएँ क्या यह नहीं करती हैं?इसे राजनितिक रंग क्यूं घस रहे हैःपैर अतिथि का धोना गलत है,अपने पुरखो से पुछीये ,महाभारत में कृष्ण जी ने क्या पैर नहीं धोया था? लानत है घटिया मानसिकता पर
संबोधन समाप्त करते हुए उसने मंच पर ही थाली और पानी मंगवाया और निशिकांत दुबे का पैर धोने लगा।निशिकांत दुबे ने भी कार्यकर्ता को रोकने के बजाय बेझिझक पैर आगे कर दिए। पैर धोने के बाद कार्यकर्ता ने गमछा से उनके पैरों को साफ किया। बात यहीं नहीं खत्म होती है. बीजेपी कार्यकर्ता सांसद को खुश करने के लिए उस गंदे पानी को चरणामृत की तरह पी गया।
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