आखिर कब तक हिन्दू त्यौहारों का अपमान होता रहेगा?

हिंदू धर्म के त्योहारों के अपमान का सिलसिला जारी है। इस बार ये जिम्मेदारी संभाली है हिंदी अखबार दैनिक भास्कर ने। अखबार ने सोशल मीडिया पर एक कैंपेन शुरू किया कि ‘मैं राखी नहीं बांधूंगी’। ऐसे जैसे कि राखी बांधना कोई घटिया काम हो। त्योहार के पीछे मकसद चाहे जो हो लेकिन ऐसे वक्त में जब भाई-बहन के प्यार का ये प्रतीक लोग खुशी के साथ मना रहे हों, एक अखबार का ये रवैया बेहद असंवेदनशील लग रहा है। रक्षाबंधन ही नहीं, हिंदुओं के तमाम दूसरे त्यौहारों को भी इसी तरह अपमानित करने की कोशिश अक्सर होती रहती है। दैनिक भास्कर अखबार ही इससे पहले दिवाली, होली और शिवरात्रि जैसे त्यौहारों को लेकर भद्दे अभियान चला चुका है।

रक्षाबंधन को लेकर क्या है ऐतराज

रक्षाबंधन पर बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं। ऐसा कहते हैं कि बदले में भाई उनकी रक्षा का प्रण लेते हैं। हो सकता है कि किसी वक्त के समाज में ऐसा होता रहा हो, लेकिन अब यह बात पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ चुकी हैं। कई महिलाएं अपने भाइयों और पूरे परिवार की देख-रेख भी करती हैं।सांकेतिक तौर पर भाई-बहन के प्यार का दुनिया में यह सबसे अनोखा त्योहार है। सवाल यह है कि जब फ्रेंडशिप डे पर दोस्त एक-दूसरे को बिना किसी कारण फ्रेंडशिप बैंड बांध सकते हैं तो रक्षाबंधन से ऐसा कौन सा पहाड़ टूट जाएगा? रक्षाबंधन की नकल पर अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में पिछले कुछ साल से सिस्टर्स डे मनाया जाता है। यह फेस्टिवल भी अगस्त में ही पड़ता है। 
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--

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SINCE Independence,what is the position of Hindus in India? They are dishonoured. All rules and laws are against Hindus in the name of secu...

अगर रक्षाबंधन से दिक्कत है तो फिर सिस्टर्स और ब्रदर्स डे से क्यों नहीं? रक्षा बंधन का विरोध करने वाले अपने दिमागी दिवालिएपन को प्रमाणित कर रहे हैं, इन पश्चिमी सभ्यता के पूजकों को नहीं मालूम की इन दोनों का अर्थ एक ही होता है। फिर इस विरोधियों को यह भी ज्ञात होना चाहिए कि जब बहन राखी और भाईदूज के दिन अपने भाई के हाथ में कलावा/राखी बांधती है, तो वह अपने भाई की रक्षा और भलाई की अपने इष्ट देवता से कामना करती है। जबकि पश्चिमी सभ्यता के सिस्टर्स और ब्रदर्स डे पर ऐसा कुछ नहीं होता। फिर हिन्दू त्यौहारों को अपमानित करने वाले पश्चिमी सभ्यता के पुजारी यह बताएँ कि "क्या कारण है कि क्रिसमस दिवस पर रात्रि 11 बजे के बाद गैर-ईसाईयों के चर्च में जाने पर क्यों पाबन्दी होती है?" दूसरे, बकरीद पर सडकों और नालियों में बहने वाले टनों खून के विरुद्ध किसी की आवाज़ नहीं निकलती? 

0001246896-10-1-large2हिन्दू धर्म के खिलाफ ‘ग्लैमरस’ प्रचार

हैरत की बात है कि रक्षाबंधन ने इस अभियान का प्रचार एक मॉडल से करवा कर इस दकियानूसी अपील में ग्लैमर जोड़ने की कोशिश की है। यह अखबार इससे पहले होली न मनाने की अपील जारी करता रहा है। अपने एक पोस्टर में तो इन्होंने होली खेलने को अपराध तक बता दिया था। सवाल यह है कि दैनिक भास्कर वाले रोज लाखों लीटर पानी बर्बाद करने वाले वॉटर पार्कों या दूसरे धर्मों के ऐसे दकियानूसी त्यौहारों के खिलाफ अभियान चलाने की हिम्मत क्यों नहीं करता। किसी धर्म के त्यौहार पर इस तरह की भद्दी टिप्पणी करने का दैनिक भास्कर को किसने अधिकार दे दिया। अगर दिवाली, होली, रक्षाबंधन के खिलाफ अखबार ऐसे कमेंट्स कर रहा है तो बकरीद पर वो चुप्पी क्यों साधे रखता है? यही कारण है कि शक होता है कि अखबार के इस अभियान के पीछे किसी ईसाई या जिहादी संगठन की फंडिंग है।

बाकी हिंदू त्योहारों को लेकर भी छींटाकशी

रक्षाबंधन और होली ही नहीं, दिवाली, करवा चौथ और ऐसे तमाम त्यौहारों को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां आम बात हैं। जानी-मानी पत्रकार बरखा दत्त ने कुछ साल पहले ट्विटर पर करवा चौथ को दकियानूसी त्यौहार बताया था। उस वक्त इसे लेकर काफी हंगामा मचा था क्योंकि वो और वैसी कुछ दूसरी महिला पत्रकार बुरखा और बकरीद जैसी बुराइयों को सही ठहराने की कोशिश करती रही हैं। इसी तरह हाल ही में दही-हांडी और जलीकट्टू जैसे हिंदू त्यौहारों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नियम कायदे तय किए हैं। जबकि दूसरे धर्मों के त्योहारों पर अदालतें हाथ डालने से बचती हैं। नागपंचमी के मौके पर पेटा ने एक अजीबोगरीब अभियान चलाया था। जिसमें लोगों से अपील की गई थी कि वो अपने घरों में नाग लाकर उन्हें न मारें। ऐसी कोशिशें हिंदू धर्म के खिलाफ चल रहे दुष्प्रचार की निशानी नहीं तो और क्या हैं।

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