सुरेश राम सेक्स स्कैंडल: कांग्रेस में रहते मेनका गाँधी ने रोका था दलित को प्रधानमंत्री बनने से

सेक्स बहुत गन्दी चीज है, इसके बावजूद आज हम डेढ़ सौ करोड़ तक पहुँच गये है। बच्चों को सेक्स की शिक्षा देना चाहिए, तर्कपूर्ण सहमति है। लेकिन सेक्स की ताकत देखिये और उसका अंतर्विरोध, जब तक गोपनीय है, ग्राह्य है, परम आनंद की पराकाष्ठा है, उघर गया तो आपको समूल नष्ट कर देगा।
जो समाज इस अंतर्द्वंद पर खड़ा है, उसकी भ्रूण हत्या तय है। एक वाक्या सुनिये। बाबू जगजीवन राम बहुत बड़ी शख्सियत थे, उनके बेटे सुरेश राम किसी होटल में अपनी महिला मित्र के साथ नग्न अवस्था में देखे गए। दुनिया में समय से बड़ा बलवान कोई नहीं। एक समय था जब मेनका ने अगस्त, 1978 में मेनका गांधी के संपादन में छपने वाली सूर्या मैगजीन में बाबू जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम का कथित 'सैक्स स्कैंडल' छापा गया। मैगजीन के दो पन्नों में सुरेश राम और दिल्ली विश्वविद्यालय की सत्यवती कॉलेज की छात्रा के अंतरंग पलों को बिना सेंसर किये हुए छापा गया था। खास बात यह है कि सुरेश राम अपने पिता की तरह राजनीति में नहीं थे। आज उसी मेनका गाँधी के पुत्र वरुण के आपत्तिजनक चित्र दूसरी मैगज़ीन प्रकाशित कर रही हैं। वाकई समय बड़ा बलवान है। 
Related imageइस खबर का नकारात्मक असर तब के रक्षा मंत्री और दलित नेता बाबू जगजीवन राम पर पड़ना था और पड़ा भी। यह खबर सिर्फ तत्कालीन रक्षामंत्री और उस समय देश से सबसे बड़े दलित नेता जगजीवन राम को बदनाम करने की साजिश थी। जिसमे इन्ही की पार्टी के के.सी.त्यागी,ओमपाल सिंह और ए,पी. सिंह  अप्रत्यक्ष रूप से लिया जा रहा था। सुरेशराम की आड़ में जगजीवन के राजनैतिक जीवन को धरातल में डालने से यह भी सिद्ध हो गया कि जनता को गुमराह और विभाजित करने में व्यस्त रहते हैं। जिस कांग्रेस ने दलित नेता को प्रधानमंत्री बनने से रोका, आज उसी पार्टी में दलित प्रेम कहाँ से उमड़ आया ? हालांकि जगजीवन राम एक ईमानदार और अच्छी छवि के नेता थे वह जन लोकप्रिय नेता थे. लेकिन उनके बेटे सुरेश राम के एक सेक्स स्कैंडल के सामने आने के कारण राजनैतिक गलियारों में भूचाल आ गया था और इसी वजह से जगजीवन राम के प्रधानमंत्री बनने का सपना चकनाचूर हो गया था। लेकिन संजय गाँधी की मृत्यु उपरान्त यह मैगज़ीन भी मेनका के हाथ से निकल भाजपा की वरिष्ठ नेता विजयराजे सिंधिया के पास चली गयी, जिसका कुछ समय बाद प्रकाशन ही बंद हो गया। मेनका से  मैगज़ीन को लेने में अकबर अहमद "डम्पी" और वसुन्धरा राजे की अहम् भूमिका थी। 
आज इतिहास ने फिर पलटा खाया है। मेनका के सुपुत्र वरुण गांधी उसी तरह लपेटे में आये हैं जैसे सुरेश राम आये थे। फोटो कौन बाँट रहा है। यह तो अँधेरे में है लेकिन इतना तो तय है कि इतिहास आपने आप को दोहरा रहा है वो भी गजब तरीके से। 
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इतना ही नही आज वरुण पर आरोप लग रहा है कि वरुण इस फोटो के बदले देश की सारी गुप्त बातें आर्म्स डीलर को देते रहे। यानी वरुण देश द्रोही हैं। पीएमओ के पास इसका खुलासा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आपातकाल में मेनका गांधी की भूमिका का बदला इस तरह लिया जा रहा है।
जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम के सेक्स स्कैंडल की कहानी ने सियासी गलियारे में ना केवल भूचाल ला दिया था, बल्कि पिता के प्रधानमंत्री बनने का सपना तक चकनाचूर कर दिया था।
पत्रकारों पर सरकारी डंडा चलाने की इच्छा रखने वाली मेनका गांधी का अपना पत्रकारिता का इतिहास ज्यादा उज्ज्वल नहीं है. मेनका गांधी की पत्रिका सूर्या मैगजीन ने अपने समय में जिस तरह की पत्रकारिता की उसे पत्रकारिता के दामन पर काला धब्बा कहा जा सकता है.
इन्दिरा गाँधी की छत्रसाया में रहते मेनका गाँधी ने रोका था जगजीवन राम को प्रधानमन्त्री बनने से 
1977 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी चुनाव हार चुकी थीं. केंद्र में जनता पार्टी के नेतृत्व में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ था. मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री थे और बाबू जगजीवन राम रक्षामंत्री। 
सूर्या मैगजीन में छपी फोटो
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अगस्त, 1978 में मेनका गांधी के संपादन में छपने वाली सूर्या मैगजीन में बाबू जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम का कथित 'सैक्स स्कैंडल' छापा गया. मैगजीन के दो पन्नों में सुरेश राम और दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा सुमन चौधरी (काल्पनिक नाम) के अंतरंग पलों को बिना सेंसर किये हुए छापा गया था. खास बात यह है कि सुरेश राम अपने पिता की तरह राजनीति में नहीं थे.
sureshsex2.jpgराजनीति और पत्रकारिता के इतिहास में ऐसे कम ही मौके आए होंगे जब निहित स्वार्थों के कारण विरोधियों की छवि खराब करने के लिए उसके निजी जीवन और अंतरंग पलों को सार्वजनिक कर दिया गया. 
जिस आधार पर आज मेनका गांधी रॉयटर्स के पत्रकारों की मान्यता रद्द करवाना चाहती हैं उस आधार पर किसी जमाने में मेनका की सूर्या मैगजीन को प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए था। 
इस खबर का नकारात्मक असर बाबू जगजीनवन राम के राजनीतिक जीवन पर पड़ा. आज इस तरह की पत्रकारिता को अपराध की श्रेणी में रखा जाता है और छापने वाले की जगह जेल में हो सकती है. उस समय जिस व्यक्ति ने यह स्टिंग किया वे आज एक नेता और राज्यसभा सदस्य हैं. बाद में उन्होंने कहा था कि यह साफ-साफ एक अपराध है. यह खबर सिर्फ तत्कालीन रक्षामंत्री और उस समय देश से सबसे बड़े दलित नेता जगजीवन राम को बदनाम करने की साजिश थी।  उस समय जगजीवन राम पीएम पद के सबसे बड़े दावेदार माने जा रहे थे। जगजीवन राम बेटे सुरेश राम के सेक्स स्कैंडल में न फंसे होते तो वह देश के पहले दलित प्रधानमन्त्री बन सकते थे।दुर्भाग्यवश 1978 में सूर्या नाम की एक पत्रिका में ऐसी तस्वीरें छपीं, जिसमें जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम को यूपी के बागपत जिले के एक गांव की एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए आपत्तिजनक स्थिति में दिखाया गया। इन तस्वीरों ने सियासी गलियारे में तूफान ला दिया था।
आगे चलकर सुरेश राम ने उससे शादी भी की थी, लेकिन सुरेश की मौत के बाद जगजीवराम के परिवारवालों ने उसका बहिष्कार कर दिया था।
भारत की राजनीति में रुचि रखने वालों लोगों को पता होगा कि इस सेक्स स्कैंडल का खुलासा जगजीवन राम के राजनैतिक करियर को खत्म करने के लिए किया गया था। इसमें उन्हीं के पार्टी के कई नेता शामिल थे। इन नेताओं में केसी त्यागी, ओमपाल सिंह और एपी सिंह का नाम अप्रत्यक्ष रूप से आता है।
इस चर्चित सेक्स स्कैंडल का सूत्रधार खुशवंत सिंह को माना जाता है। वह उस समय कांग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड के प्रधान संपादक और मेनका की पत्रिका सूर्या के कंसल्टिंग एडिटर भी थे। वह बंद लिफाफे में तस्वीरें लेकर पहुंचे. इसके बाद इसे सूर्या पत्रिका ने प्रकाशित किया था। महज 20 साल की उम्र में 'सूर्या' मैगजीन का एडिटर होने का सौभाग्य प्राप्त है.
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स इंडिया के दो पत्रकारों आदित्य कालरा और एंड्रयू मैकेस्किल की पीआइबी मान्यता रद्द करवाने की मांग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से की थी.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार 19 अक्टूबर, 2015 को रॉयटर्स इंडिया ने एक खबर छापी थी जिसमें मेनका गांधी के हवाले से मोदी सरकार की आलोचना की गई थी. ये रहा उस स्टोरी का लिंक.
'India’s budget cuts hurt fight against malnutrition: Maneka Gandhi'
उपरोक्त खबर में मेनका के हवाले से कहा गया था कि उनके मंत्रालय का बजट करीब 50 फीसदी घटाकर 1.6 अरब डॉलर कर दिया गया है. इसकी वजह से कुपोषण के खिलाफ उनकी लड़ाई प्रभावित होगी, क्‍योंकि बजट में दिया गया पैसा 27 लाख स्‍वास्‍थ्‍य कर्मचारियों को जनवरी महीने की तक तनख्‍वाह देने में ही खर्च हो जाएगा.
खबर छपने के तुरंत बाद मेनका के मंत्रालय ने रॉयटर्स की रिपोर्ट को शरारतपूर्ण बताते हुए स्पष्टीकरण जारी किया था. अगले दिन यानि 20 अक्टूबर को रॉयटर्स ने मंत्रालय का खंडन छापते हुए कहा कि संस्थान अपनी खबर की सत्यता पर कायम हैं.
20 अक्टूबर, 2015 को मेनका गांधी के निजी सचिव मनोज के अरोड़ा ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव सुनील अरोड़ा को एक चिट्ठी लिखी. इसमें कहा गया, 'मुझे आपसे कालरा और मैकस्किल की पीआइबी (प्रेस इन्‍फोरमेशन ब्‍यूरो) मान्‍यता रद्द करने का आग्रह करने के लिए निर्देश दिया गया है.'
रॉयटर्स की रिपोर्ट से मेनका गाांधी असहमत हो सकतीं हैं, लेकिन मेनका गांधी ने जो आज से लगभग 40 साल पहले जो किया था वह अपराध की श्रेणी में रखा में जा सकता है. मेनका गांधी को और ज्यादा लोकतांत्रिक और उदारमना होने की जरूरत है. लेकिन सिर पर सास यानि तत्कालीन भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी का हाथ होने के कारण किसी तरह का अंकुश लगा। 
पत्रकारिता में जब किसी भी व्यक्ति या संस्थान को खबर से आपत्ति होती है तो वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) का दरवाजा खटखटाता है या कोर्ट की शरण में जा सकता है
उन्होंने पीसीआई और कोर्ट में अपनी बात रखने की जगह सीधे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के जरिए फरमान जारी कर दिया. एक तरह से उन्होंने सरकारी डंडा फटकारने की कोशिश पत्रकारों के साथ की.

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