राजस्थान चुनाव 2018: मॉब लिंचिंग पर कांग्रेस ने साधी चुप्पी, ध्रुवीकरण का सता रहा डर

राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होने में अब महज तीन दिन बचे हैं. 7 दिसंबर को होने जा रही वोटिंग से पहले जहां एक ओर राजनीतिक पार्टियों ने स्टार प्रचारकों को मैदान में उतार दिया है, वहीं सोशल मीडिया पर भी लड़ाई जोरों पर है. मगर अपने चुनावी अभियान में राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था पर शोर मचाने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस मॉब लिंचिग पर चुप्पी साधे हुए है. अपने घोषणापत्र से रैलियों, सोशल मीडिया और पोस्टर्स तक में कांग्रेस ने सार्वजनिक सुरक्षा और बढ़ती अपराध दर को मुद्दा बनाया है, लेकिन हिंदू वोट छिटकने के डर से भीड़ की हिंसा पर मौन साध लिया है.
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वी राजस्थान खासकर अलवर में विरोधी दल का कोई भी नेता अपने भाषणों में मॉब लिंचिंग का जिक्र तक नहीं कर रहा है. अलवर जिले की बहरोड़ सीट से नौ उम्मीदवारों में से 8 यादव हैं. 2.2 लाख वोटरों वाली बहरोड़ सीट पर यादव समुदाय का 70 फीसदी वोट बैंक है. बता दें कि पूर्व राजस्थान के अलवर जिले में गौकशी के आरोप में हिंसक भीड़ ने पहलू खान की हत्या कर दी थी. 2017 जुलाई में रामगढ़ चुनाव क्षेत्र से 80 किमी दूर रकबर खान को भी मॉब लिंचिंग का शिकार बनाया गया. उसके बाद नवंबर 2017 में उमर खान की हत्या कथित “गौ रक्षकों” ने हत्या कर दी थी.
ऑडियो क्लिप बनी मुद्दा
निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के बागी नेता बलजीत सिंह यादव ने नवंबर 29 को एक रैली के दौरान इस मुद्दे को उठाया. सोशल मीडिया पर वायरल एक ऑडियो क्लिप का जिक्र करते हुए बलजीत ने दावा किया कि एक मुस्लिम नेता ने कांग्रेस उम्मीदवार आरसी यादव को मॉब लिंचिग की घटना को उठाने के लिए अपना समर्थन दिया. हालांकि, कांग्रेस ने आरोप को खारिज कर दिया. Rajasthan Election 2018: ट्विटर पर फिल्मी डायलॉग्स से लोग कर रहे राजनीतिक दलों पर वार!

कांग्रेस कर रही राजनीति
बलजीत के करीबी एक सूत्र ने कहा, “मासूम यादव समुदाय के लोगों को हिंसा के बाद गिरफ्तार कर लिया गया और कांग्रेस इस पर राजनीतिक करना चाहती है. हमारा इस बारे में कहना है कि निर्दोष लोगों को पहलू खान मामले में जेल में नहीं भेजा जाना था.” बहरोड़ नगर पालिका उपाध्यक्ष राकेश शर्मा की एक शादी में मर्डर के मामले को भी विपक्ष ने उठाया है.

ध्रुवीकरण करेगा मुद्दा
कांग्रेस के प्रभारी सुधांशु जोशी ने कहा, “हमारे लिए पहलू खान के मुद्दे को उठाना फायदेमंद नहीं है. वास्तव में, यह मुद्दा इस चुनाव को ध्रुवीकरण करेगा, जिसे हम बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं. पूरी घटना को कुछ और के रूप में चित्रित किया गया था और बहरोड़ को बदनाम किया गया था. हम इस चुनावी इलाके के प्रचार में कानून व्यवस्था के मुद्दे पर जोर देते हैं.”

हजार से भी कम वोट
कांग्रेस के सूत्रों ने यह भी कहा कि मुसलमानों को बहरोड़ में 1,000 से भी कम वोट हैं. उनके पास वैसे भी कोई विकल्प नहीं है. वे हमारे लिए ही वोट देंगे. एक वरिष्ठ पार्टी कार्यकर्ता ने कहा, हमें यादव समुदाय को यहां नाराज करने की जरूरत नहीं है.

क्राइम रेट बढ़ा
आधिकारिक पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि बहरोड़ में हिंसक अपराध तेजी से बढ़ रहा है. 2015 और 2018 के बीच, यहां क्रमश: 21, 19, 23 और 25 मर्डर केस दर्ज हुए. वहीं, अपहरण के मामले 2016 में 27 से दोगुना होकर 2018 में 53 हो गए.

प्रॉपर्टी के दाम हैं क्राइम की जड़
एक वरिष्ठ पुलिस अफसर के अनुसार, प्रॉपर्टी के रेट तेजी बढ़ने के साथ पिछले कुछ सालों में यहां हिंसक अपराध बढ़ गया है.” दिल्ली मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू हो गई है और इससे अचानक प्रॉपर्टी की कीमतों में इजाफा भी हो गया है. अधिकारी ने कहा कि कई अपराध अब प्रॉपर्टी से जुड़े हुए हैं. राजस्थान पुलिस के रिकॉर्ड से पता चलता है कि 2013 में अलवर में साल हत्या, अपहरण और बलात्कार के ज्यादातर मामले दर्ज किए गए. अकेले 2016 में इस जिले में 111 हत्याएं, बलात्कार के 239 केस और 336 अपहरण के मामले दर्ज किए थे.

रैलियों में नहीं आती भीड़
रामगढ़ चुनावी क्षेत्र में एक कांग्रेस नेता ने अपने एक चुनावी भाषण को लेकर बताया, “एक रैली को संबोधित करते हुए मैंने मॉब लिंचिंग का जिक्र किया और कहा कि लोगों को कानून अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए. अगले ही दिन कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि लोगों ने रैलियों में आने से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि मुस्लिमों के बारे में भूल जाओ, हम हिंसा के बारे में बात तक नहीं कर सकते हैं. हमने फैसला किया कि हम केवल अपराध पर ध्यान केंद्रित करेंगे और लिंचिंग का जिक्र तक नहीं करेंगे.” मजे की बात यह है कि कल जो भाजपा विरोधी #mob lynching, #not in my name, #metoo और  #intolerence आदि से देश का सौहार्द ख़राब कर रहे थे, आज वही लोग इन मुद्दों पर बात करने से कतरा रहे हैं, जो प्रमाणित करता है कि इनका मकसद तुष्टिकरण की सियासत खेल कर जनता को सरकार के विरुद्ध कर अपनी तिजोरियाँ भरना था, जिन्हे जनता समझ चुकी है।    

बीजेपी का पलटवार
इस मामले को लेकर पूर्व अलवर बीजेपी अध्यक्ष धर्मवीर शर्मा ने कहा, ”कांग्रेस का प्रचार निराधार है. बीजेपी सरकार ने पूरे क्षेत्र में अपराध पर लगाम लगा रखी है. कांग्रेस केवल झूठ फैला रही है. उनके पास चुनाव में बात करने के लिए कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए वे ऐसी बातें कर रहे हैं.”

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राजस्थान विधान सभा चुनाव में इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है। सत्तारूढ़ भाजपा के लिए दोबरा सत्ता में वापसी करने आसान नहीं होने वाला है, जबकि अंदरूनी कलह से जूझ रही कांग्रेस लगातार प्रदेश में पार्टी की संभावनाओं को बेहतर करने में जुटी है। प्रदेश के मतदाताओं पर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों की पैनी नजर है। प्रदेश में राजपूत, जाट, एसएसी, एसटी वोटबैंक को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी के रणनीतिकार अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। पिछले बार के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो भाजपा 2013 में प्रदेश की 59 आरक्षित सीटों में से 50 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी, ऐसे में एसएसी और एसटी सीटों पर एक बार फिर से विजय पताका फहराना भाजपा के लिए शीर्ष प्राथमिकता में शामिल है। हालांकि जिस तरह से पिछले कुछ सालों में दलितों के खिलाफ शोषण और मॉब लिंचिंग के मामले सामने आए थे, उसके बीच भाजपा के लिए यह आसान चुनौती नहीं होने वाली है।
कांग्रेस ने जीती थी 34 सीटें 

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने प्रदेश की कुल 200 विधानसभा सीटों में से उन 34 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जोकि एससी और एसटी के लिए आरक्षित थीं। प्रदेश में अगर एससी और एसटी वोटबैंक पर नजर डालें तो 17.8 फीसदी एससी वोटर हैं, जबकि 13.5 फीसदी वोटर एसटी हैं। जोकि कुल मिलाकर तकरीबन 31.3 फीसदी हैं, लिहाजा पिछले दो विधानसभा चुनाव में एससी एसटी मतदाताओं ने सरकार गठन में अहम भूमिका निभाई है।
भाजपा की रणनीति 

एससी वोटर मुख्य रूप से राजस्थान के सात डिवीजन में बंटे हैं, जबकि एसटी वोटर मुख्य रूप से उदयपुर डिवीजन में हैं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपना चुनावी अभियान उदयपुर से ही शुरू किया था, अगस्त माह में उन्होंने यहां के चारभुजा मंदिर से अपने अभियान की शुरुआत की थी। जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान में अपनी पहली जनसभा सागवारा में सितंबर माह में की थी। एक तरफ जहां भाजपा ने अपनी पार्टी ने आदिवासी नेता किरोड़ी लाल मीणा को शामिल किया है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने आदिवासी नेता रघुवीर सिंह मीणा को पार्टी में अहम जिम्मेदारी सौंपी है, उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल किया गया है, जिससे कि ये दोनों नेता आदिवासी मतदाताओं को अपनी ओर खींच सके।
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