चुनावों भरा होगा साल 2019, भारत का विकास स्टेट्समैन मोदी के अंदर ही हो सकता है, पॉलिटिशियन मोदी के अंदर नहीं। --न्यू यॉर्क टाइम्स

नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे कठिन अग्निपरीक्षा
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
2019 के इस साल पर कईयों की नजर है। राजनीतिक दृष्टिकोण से भी यह साल काफी खास होने वाला है। क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। इसके अलाव कुछ राज्य भी हैं जहां पर विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में आज हम 2019 में लोकसभा चुनाव के अलावा किन-किन राज्यों में विधान सभा चुनाव होने वाले उसके बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।इनके 
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दिल्ली इकाई ने 2019 के आम चुनाव से पूर्व बूथ स्तर के लगभग 69,000 कार्यकर्ताओं से प्रभावी तरीके से जोड़ने के लिए ‘नमो अगेन’ नाम से एक व्हाट्सएप नंबर आरम्भ किया है.
वहीं उन्होंने सोशल मीडिया एवं आईटी सेल को सभी बूथ संयोजकों, प्रभारियों और पंच प्रमुखों से जुड़ने के लिए मोबाइल नंबर का उपयोग  करने के निर्देश जारी किए हैं. उल्लेखनीय है कि हर मतदान केंद्र पर पंच प्रमुख और बूथस्तर के कार्यकर्ता मतदाताओं के साथ जुड़ने के लिए पार्टी के लिंक के रूप में काम करते हैं. दिल्ली में कुल 13,816 मतदान केंद्र हैं. वहीं भाजपा ने हर मतदान केंद्र पर पांच पंच प्रमुख नियुक्त कर दिए हैं. इस तरह दिल्ली में बूथ स्तर के लगभग 69,000 कार्यकर्ता हैं.
दिल्ली भाजपा के सोशल मीडिया एवं आईटी सेल के वरिष्ठ अधिकारी नीलकंठ बख्शी ने बताया है कि, ”ऐसा पाया गया है कि पार्टी के राष्ट्रीय एवं प्रदेश नेतृत्व के निर्देश बूथस्तर के कार्यकर्ताओं तक समय पर नहीं पहुंच पाते हैं. जिससे सौंपे गये कार्य के पूरा होने में भी देरी हो जाती है. ”बख्शी ने कहा है कि ‘नमो अगेन’ मोबाइल नंबर एक व्हाट्सएप ग्रुप और ब्रॉडकास्ट लिस्ट के जरिए तिवारी और बूथ कार्यकर्ताओं के बीच सीधा संवाद स्थापित करेगा.

नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे कठिन अग्निपरीक्षा

2019 के मध्य में लोकसभा चुनाव होंगे। 3 जून को नरेंद्र मोदी सरकार का कार्यकाल खत्म हो रहा है। ऐसे में उससे पहले ही यानी अप्रैल और मई में ही आम चुनाव हो सकते हैं। ऐसे इस चुनाव को एनडीए और नरेंद्र मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा माना जा रहा है। बता दें कि देश में लोकसभा की कुल 543 सीटें हैं। अब राजनीतिक पार्टियों की बात करें तो अभी से ही चुनाव की तैयारियों में जुट गई हैं। इस चुनाव को इसलिए खास माना जा रहा है क्योंकि एक तरफ एनडीए और मोदी सरकार है तो दूसरी ओर बाकी दल एकजुट होने की कोशिश में लगे हुए हैं। लेकिन आखिरी फैसला देश की जनता ही करेगी कि आखिर सत्ता की गद्दी किस पार्टी को दी जाए और किसको विपक्ष में रखा जाए। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में 282 सीटें आई थी और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का शपथ दिलाया गया था।
ओडिशा में नवीन पटनायक के लिए खास रहेगा साल 2019

ओडिशा में नवीन पटनायक के लिए खास रहेगा साल 2019

2019 में होने वाले विधानसभा चुनावों की बात करें तो सूची में सबसे पहला नाम ओडिशा का है। 2019 में ओडिशा की नवीन पटनायक की सरकार के पांच साल पूरे हो रहे हैं ऐसे में यहां भी विधानसभा चुनाव होंगे। कहा ये भी जा रहा है कि ओडिशा की 147 सीटों वाली विधानसभा चुनाव के परिणाम लोकसभा चुनाव के साथ ही आएंगे। ओडिशा में फिलहाल बीजू जनता दल (बीजद) की सरकार है और नवीन पटनायक यहां के वर्तमान मुख्यमंत्री हैं। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजद को 117 सीटें मिली थी जबकि कांग्रेस को 15, भाजपा को 10 और एसकेआई और सीपीआई को एक-एक सीटें मिली थी। वहीं निर्दलीय के खाते में 2 सीटें आई थीं।
आंध्र प्रदेश में एन चंद्रबाबू नायडू की अग्निपरीक्षाअग्निपरीक्षा 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश का नाम भी है। 
आंध्र प्रदेश में फिलहाल तेलुगू देशम पार्टी पार्टी के एन चंद्रबाबू नायडू की सरकार है। राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी अभी से शुरू हो गई है। 2019 लोकसभा चुनाव और राज्य में विधानसभा चुनाव को देखते हुए चंद्रबाबू नायडू कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुके हैं। गठबंधन की वजह से राज्य की राजनीति में हलचल पैदा हो गई है। बता दें कि साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में चन्द्र बाबू नायडू के नेतृत्व में तेलुगू देशम पार्टी 294 सीटों में से 117 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। इसके बाद चंद्रबाबू नायडू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। आंध्र प्रदेश में भी मई और जून के बीच में चुनाव हो सकते हैं।
महाराष्ट्र में सीएम देवेंद्र फडणवीस के लिए चुनौती भरा रहेगा 
महाराष्ट्र में सीएम देवेंद्र फडणवीस के लिए चुनौती भरा रहेगा 20192019 विधानसभा चुनाव के हिसाब से 2019 का साल देवेंद्र फडणवीस के लिए भी खास होने वाला है। लोकसभा चुनाव के बाद या फिर उसके साथ ही महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। फडणवीस के लिए यह चुनाव इसलिए खास है क्योंकि पिछली बार मोदी लहर थी और राज्य में बीजेपी ने आसानी से जीत हासिल करते हुए सत्ता हासिल कर ली। लेकिन इस बार महाराष्ट्र में राजनीतिक माहौल पिछली बार से काफी अलग नजर आ रहा है। क्योंकि अधिकतर पार्टियां एकजुट होती हुई नजर आ रही हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना का रूख भी कभी बीजेपी के साथ रहता है तो कभी खिलाफ में खड़ी हो जाती है इसलिए यह चुनाव बीजेपी और देवेंद्र फडणवीस के लिए आसान नहीं होने वाला है। बता दें कि 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों के लिए 19 अक्टूबर हुई मतगणना में भारतीय जनता पार्टी 123 सीटें हासिल कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और सत्ता की गद्दी हासिल की। चुनाव परिणाम में कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई।
हरियाणा में खट्टर सरकार के हो रहे पांच साल पूरे 
हरियाणा में खट्टर सरकार के हो रहे पांच साल पूरे2019 में हरियाणा में बीजेपी की मनोहर लाल खट्टर सरकार के भी पांच साल पूरे हो रहे हैं। ऐसे में सितंबर-अक्टूबर के महीने में यहां भी चुनाव हो सकते हैं। खट्टर सरकार और बीजेपी के लिए यह चुनाव काफी अहम है। क्योंकि यहां पर पहले से ही बीजेपी की सत्ता है। ऐसे में बीजेपी चाहेगी कि किसी भी हाल में वो राज्य की गद्दी हासिल करें। दूसरी ओर विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी चुनाव की तैयारियों में अभी से जुट गई है।भ जबकि 2014 में दूसरे नंबर पर रही इंडियन नेशनल लोकदल भी राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार है। बता दें कि 2014 में 90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा में हुए चुनाव में बीजेपी को 47 सीटें प्राप्त हुई थी। इसके अलावा इंडियन नेशनल लोकदल ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी और दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस के खाते में केवल 15 सीटें आईं।
अरुणाचल में भी खत्म हो रहा पेमा खांडू की सरकार का कार्यकाल 
अरुणाचल में भी खत्म हो रहा पेमा खांडू की सरकार का कार्यकालचुनाव के लिहाज से अरुणाचल प्रदेश के लिए भी 2019 का साल काफी खास रहने वाला है। क्योंकि 1 जून 2019 को अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू की सरकार का कार्यकाल खत्म हो रहा है। ऐसे में अरुणाचल प्रदेश में भी चुनाव की गहमा गहमी रहेगी। फिलहाल यह राज्य बीजेपी के कब्जे वाला राज्य है। यहां का विधानसभा चुनाव 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के साथ ही हुआ था। जिसके बाद कांग्रेस बहुमत में आई और सरकार भी बनी। लेकिन 2016 के आखिरी महीनों में कांग्रेस के कई विधायक बीजेपी में शामिल हो गए जिसकी वजह से वर्तमान समय में अरुणाचल में बीजेपी की सरकार है। राज्य में विधानसभा की कुल 60 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 31 सीटों की जरूरत होती है। राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू मुक्तो विधानसभा सीट से विधायक हैं।
सिक्किम में चामलिंग की अग्निपरीक्षा
चुनाव के हिसाब से 2019 का साल सिक्किम के लिए भी खास है। सिक्किम में कुल 32 विधानसभा सीटें हैं। सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग 12 दिसंबर को मुख्यमंत्री के रूप में अपना 20वां साल पूरा कर लिए हैं। चामलिंग के साथ सबसे खास बात ये हैं कि इनकी पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) ने 2009 में हुए विधानसभा चुनाव मेमं 32 सोटों में से 32 पर जीत हासिल करने में सफल रही। ऐसे में यहां पर किसी दूसरे दल को राज्य में पैरा जमाना आसान नहीं होगा। क्योंकि राज्य की जनता का पूरा सपोर्ट चामलिंग को है।
पांच राज्यों के असेम्बली चुनावो के परिणाम के बाद, न्यू यॉर्क टाइम्स ने एक आलेख लिखा, जिसका यथासम्भव हिंदी अनुवाद किया है:--
"भारतीयों द्वारा वोट देने का पैटर्न एक दम साफ है उससे वर्तमान सरकार को सबक सीखना चाहिये...
- भारतीय मतदाता, फिस्कल डेफिसिट नही समझता और उसे, कोई मतलब नही कि ये 2.4% रहे चाहे 3.4%. उन्हें सब्सिडी और फ्री-बी (मुफ्त देने की योजना) की भी समझ नही। उन्हें तो ये भी नही पता कि सब्सिडी और फ्री-बी एक उधार है जिसे एक दिन कोई न कोई चुकायेगा।
भारतीय जनता को GDP रेट से कोई मतलब नही, भले ही पिछले चार सालों में 3.8 से बढ़कर 7.4 हो गया, जो कि अमरीका, ब्रिटेन जापान आदि देशों से आगे है
- भारतीय लोग हमेशा शिकायत करेंगे, सिर्फ प्याज और दाल पर ही नही, डीजल पेट्रोल पर भी। उन्हें चीजे सस्ती भी मिलनी चाहिये और किसानों को भी अच्छी कीमत मिलनी चाहिये।
- भारतीयों के पुरानी आदते सुधारने को मत कहिये, उनकी नजर में ये सरकार का काम है कि हर चीज वही बदले
- भारतीयों को लॉन्ग टर्म मुद्दों से कोई लेना देना नही, उन्हें हर चीज आज ही चाहिये, और आज ही नही, अभी के अभी चाहिये
- भारतीयों की यादाश्त कमजोर और उनका दृष्टिकोण बहुत ही संकीर्ण होता है। वो पिछला भूल जाते है और नेताओं के पिछले कुकर्मो को माफ कर देते है
- वो ढीठई से जातिवाद पर वोट करते है और जातिवाद एक मुख्य शत्रु है जो युवाओं का उत्थान नही करता बल्कि लोगों को बांटकर रख देता है... और चीन और पाक जैसे देश, भारतीयों को ही जातिवाद फैलाने का हथियार बनाते हैं क्योंकि, दोनों ही अपने GDP के लिये भारतीय बाजार पर निर्भर हैं
इंडियन रक्षा तंत्र पिछले पांच सालों में बहुत मजबूत हुआ है पाकिस्तान और गल्फ देशों के बनिस्बत, और ये देश, खुल्लम खुल्ला हिंदुस्तान को शासन का निर्देश नही दे सकते, इसलिये वो विध्वंसकारी संगठनों को अरबो खरबो की फंडिंग करते है कि हिंदुस्तान को बर्बाद करो.....
और मोदी ही, इसे कूटनीतिक युद्ध से जीत सकते हैं और
दुख की बात है कि ये बात, भारतीय ही नही समझते
अगर मि. मोदी, अगले 5 महीनों तक लॉन्ग टर्म प्लान फिक्स करने मे रह जाते हैं तो, वो 2019 खो बैठेंगे फिर एक मृत और गिरा सिपाही देश के लिये कुछ नही कर सकता। उन्हें, अगले 5 साल की सरकार बनाने के लिये हर हाल में कठोर बनकर जिंदा रहना होगा। अब उन्हें बचे 5 महीनों में राजनीतिज्ञ बनना पड़ेगा
अगर पब्लिक सस्ता पेट्रोल डीजल चाहती है, तो दीजिये उसे।
अगर किसान कर्जमाफी चाहते है, तो निराश मत कीजिये उन्हें ...
वे 'सबका साथ सबका विकास नही जानते, वे सिर्फ अपने पॉकेट में आये गांधी को जानते हैं
हम, मोदी को सलाह देंगे कि अगले 5 महीने स्टेट्समैनशिप छोड़िये और पॉलिटिशियन बनिये । 2019 की जीत के बाद ही स्टेट्समैन बनिये, क्योंकि भारत का विकास स्टेट्समैन मोदी के अंदर ही हो सकता है, पॉलिटिशियन मोदी के अंदर नहीं। "
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किसी खोजी पत्रकार तक ने इन सब्ज़ी और दूध
फेंकने वालों की तिजोरियों की जाँच
करवाए जाने की मांग नहीं की, क्यों?
न्यू यॉर्क टाइम्स में प्रकाशित उपरोक्त आलेख समस्त भारतीयों की आँखे खोलने वाला है, लेकिन यहाँ तो "अन्धे की आँख में सुरमा डालने पर रोता है, हाय मेरी आँख फोड़ दी"; दूसरे, मोदी-योगी सरकारों को #metoo, #not in my name, #mob lynching, #intolerence, #dalit appeasement, #casteism आदि षड्यंत्रकारियों से भी सतर्क रहना चाहिए। इन आने वाले चुनावों में ये षड्यंत्रकारी कौन से नए कलेवर के साथ जनता को भ्रमित करेंगे, कहा नहीं जा सकता। 2019 में पुनः सत्ता में आने पर देश के विकास और शौचालय को ताक पर रख इन षड्यंत्रकारियों के पंख काटने चाहिए, जिस दिन से इन षड्यंत्रकारियों के पंख कटने का श्रीगणेश हुआ नहीं, देश भी स्वतः विकास की ओर चल पड़ेगा। 
सड़क पर दूध एवं सब्ज़ी आदि फेंकने वालों के बैंक खातों आदि की गम्भीरता से जाँच करवानी होगी, क्योकि कोई भूखा अथवा क़र्ज़ में डूबा किसान अपने उत्पाद को सड़क पर नहीं फेंकेगा। इतने वर्षों से इन्ही षड्यंत्रकारियों ने देश को खोखला कर दिया।  
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किसानों का क़र्ज़ माफ़ी 
जहाँ तक किसानों के क़र्ज़ माफ़ी की समस्या है, अभी कुछ दिन पूर्व कुछ लोगों से एक बहुत ही गम्भीर एवं षड्यंत्रकारी नीति के बारे में जानकारी मिली कि बड़े-बड़े जमींदार लोगों को पट्टे पर अपनी जमीन दे देते हैं, मोटा धन तो जमींदार को मिल गया, लेकिन पट्टा होने से पूर्व खेतों में कैमिकल डलवा देते हैं, जिससे एक/दो वर्ष तो खूब फसल होती है, परन्तु उसके बाद ज़मीन बंजर होने लगती है। जिस कारण वही किसान अपनी अच्छी फसल के आधार पर बैंक पर क़र्ज़ तो ले लेता है, परन्तु फसल न होने के कारण बैंक का कर्ज़ा नहीं दे पाता। यदि यह बात सच है तो सरकार को कर्ज़ा माफ़ करने से पूर्व इन बारीकियों की भी जाँच करनी चाहिए। 
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क्योकि कुछ दिन पूर्व, एक चैनल पर चर्चा के दौरान, महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री देवेन्द्र से जब महाराष्ट्र में हुए किसान आन्दोलन के विषय में किये गए प्रश्न के उत्तर में उन्होंने स्पष्ट कहा कि "जब मैंने आंदोलनकारी किसानो से बात की, उनका कहना था कि हमारे पास तो खेती के लिए ज़मीन ही नहीं है, हमें तो धन देकर लाया गया है।" मतलब यह की कर्ज़ा ले कोई रहा है और प्रदर्शन कोई और कर रहा है।               

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