अपनी संवैधानिक सीमाओं को तो याद रखो अब्दुल्ला और महबूबा

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
देश की नवनिर्वाचित सरकार के प्रधानमन्त्री कार्यालय में पदस्थ राज्य मंत्री और कश्मीर के संवेदनशील क्षेत्र ऊधमपुर से सांसद बनें जितेन्द्र सिंह ने कहा कि कश्मीर में लागू धारा 370 के विषय में देश भर में चर्चा और बहस की आवश्यकता है और इसे हटायें जानें या पूर्ववत रहनें देनें के विषय में देश में व्यापक वायुमंडल तैयार होना चाहिए; इस पर जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा कि-
‘मेरे शब्द याद रखें और यह ट्वीट सेव करके रख लें। जब मोदी सरकार सुदूर अतीत में जा चुकी होगी, तब भी या तो धारा 370 बनी रहेगी या फिर जम्मू−कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रह जाएगा। धारा-370 जम्मू−कश्मीर और भारत के बीच इकलौता सूत्र है। इसे हटाने की बात गैर-ज़िम्मेदाराना है।’

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यही बात की भूतपूर्व मुख्यमंत्री रही महबूबा मुफ़्ती ने भी धमकी भरे लहजे में कहा: 'अगर अनुच्छेद 370 और 35A को छेड़ा तो कोई तिरंगा उठाने वाला नहीं होगा और कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा।' 
वास्तविकता तो यह है कि जिस दिन जम्मू-कश्मीर से इन अनुच्छेदों को समाप्त कर दिया जाएगा, उसी दिन इन लोगों की दुकानदारी ही समाप्त हो जाएगी। दूसरे यह की, क्या दोबारा वापस आने पर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब्दुल्ला परिवार और महबूबा मुफ़्ती आदि पर चुनावों में अनुच्छेद 370 और 35A हटाए जाने पर बोले जा रहे बयानों पर कोई सख्त कार्यवाही करें या फिर चुनावी हथकंडा कहकर बक्श दिया जाएगा? चुनाव आयोग जब हिन्दू-मुसलमान की बात करने का संज्ञान ले सकता है, फिर कश्मीर के इन नेताओं के बयानों का संज्ञान क्यों नहीं लिया जाता?
कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टू. 1947 को अपने राज्य की 36315 व.कि.मी. भूमि का विलय भारतीय गणराज्य में किया था किन्तु आज इस राज्य के पास मात्र 2600 व.कि.मी. भूमि ही क्यों बची है? इस जैसे सैकड़ों प्रश्नों के आलोक में और इस पुरे प्रकरण में ये आठ प्रश्न हैं जो देश भर के मानस में आयेंगे या आनें चाहिए और इनकें उत्तर देशवासी स्वयं ही खोजें यही श्रेयस्कर होगा-
1. नेताओं ने जो कहा उससे क्या हमारें संविधान की कोई धारा प्रत्यक्ष तौर पर या संविधान की आत्मा अप्रत्यक्ष तौर पर आहत होती है?
2. किस नेता के व्यक्तव्य से देश की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती मिली है?
3. जितेन्द्र सिंह, महबूबा और उमर अब्दुल्ला में से किसका अब तक कश्मीर के विषय में जहरीले बयान देनें का ट्रेक रिकार्ड है?
4. कौन सा नेता अपनें व्यक्तव्य पर टिका हुआ है? (यहाँ कश्मीर के स्थानिक और देश के केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह कमजोर न पड़े)
5. कांग्रेस के अधिकृत प्रवक्ता ने इस प्रकरण में जो शब्द कहें हैं उनसे देश और सविंधान की आत्मा, राष्ट्रीय एकता, सांघिक ढांचें, जनभावनाओं, नयें जनादेश और लोकतांत्रिक वातावरण का कितना अनादर हुआ है?
6. आखिर धारा 370 पर बहस में मुफ़्ती और अब्दुल्ला वंश का या उसके साथ आशिकी कर रही कांग्रेस का क्या जाता है? सर्वविदित है कि अलगाववादी नहीं चाहते कि देश में 370 पर चर्चा का वातावरण बनें तो यक्षप्रश्न है कि क्या कांग्रेस, अब्दुल्ला वंश, मुफ़्ती और अलगाववादियों की भावनाएं एक मंच पर आ गई हैं?
7. इस विवाद में अपना अधिकृत बयान जारी कर चुकी कांग्रेस भी क्या उमर अब्दुल्ला और मुफ़्ती के इस कथन को स्वीकारती है कि कश्मीर और शेष भारत के बीच धारा 370 ही एक मात्र सम्बन्ध है?
8. क्या कश्मीर और उसके सूदूर आगे तक के भूभाग से जम्बू द्वीप और भारत का समृद्ध और तथ्यों से अटाटूट भरा पड़ा सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक, आर्थिक, नागरिक और राष्ट्रीय इतिहास कांग्रेस और अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस विस्मृत कर गई है या यह कोई षड्यंत्र है?
इस देश के नागरिक के नातें जो आहत होनें का विषय है, वह है जितेन्द्र सिंह का अपनें बयान से बचते फिरना. यद्दपि आरएसएस की प्रथम पंक्ति की ओर से उमर अब्दुल्ला और मुफ़्ती की सख्त लानत मलामत कर दी गई है और संघ की इस अभिव्यक्ति और नसीहत में सम्पूर्ण देश का स्वर समावेशित समझा जाना चाहिए कि “कश्मीर को उमर अब्दुल्ला और महबूबा अपनी बपौती न समझें! तथापि जितेन्द्र सिंह को एक मंत्री होनें के अतिरिक्त ऊधमपुर, कश्मीर के स्थानीय नागरिक होनें के नातें 56 इंच के सीनें का निस्संकोच प्रदर्शन कर देना चाहिए था! और जो कहा उस पर मीडिया में विस्तृत दृष्टिकोण के साथ और अधिक मुखर होना चाहिए था! जो जनादेश मिला है वह यही कहता है
 आखिर जितेन्द्र सिंह ने जो कहा वह हाल ही में संपन्न चुनावी सभा में नरेन्द्र मोदी द्वारा दिसंबर 2013 में दिए गए भाषण का ही शब्दशः अंश है! और प्रधानमन्त्री बनें नरेन्द्र मोदी ने तब जो कहा वह भी कुछ नया नहीं था वह वर्षों से भाजपा और संघ की भावनाओं का शब्दानुवाद ही तो था। और जितेन्द्र सिंह ने जो कहा वह ही तो गत माह हुए निर्वाचन में भाजपा के घोषणा पत्र में भी लिखा हुआ है देशवासियों को स्मरण होगा कि चुनाव अभियान के दौरान फारूख अब्दुल्ला ने अलोकतांत्रिक चुनौती देते हुए कहा था कि नरेन्द्र मोदी दस बार प्रधानमन्त्री बन जाएँ तो भी कश्मीर से धारा 370 नहीं हटा सकते! फिर इसी दौरान उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमन्त्री बनें तो वे पाकिस्तान चले जायेंगे! ये भाषा और ये शब्द जहर नहीं तो और क्या है? कश्मीर में कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रहे विषैले अब्दुल्ला वंश के सामनें इस देश के सबसे पुरानें किन्तु जर्जर हो गए राजनैतिक दल कांग्रेस को सांप क्यों सूंघ जाता है? अब्दुल्ला और गांधियों के बीच क्या दुरभि संधियाँ पनप रही है? पूरा देश देखेगा कि यह प्रश्न ही आनें वाले समय में कांग्रेस के अस्तित्व को समाप्त कर देनें वाला सिद्ध होगा! कांग्रेस को इस देश की लोकतांत्रिक पूंजी मानतें हुए केवल इतना ही कहना है कि ऐसे अनेकों काले पन्नों की किताब को साथ लेकर चल रहे अब्दुल्ला वंश के साथ कांग्रेस भारत के पवित्र सविंधान को लेकर न चले यही उचित होगा! यदि कांग्रेस का नेतृत्व कश्मीर के विषय में इस छदम अलगाववादी और इतिहास के दोषी मुफ़्ती और अब्दुल्ला वंश के साथ खड़ा रहा तो कांग्रेस का विघटन हो जाएगा
देखिए 2013 में लिखित लेख
धारा 370 और 35A  के अस्थायी होनें के तथ्य की संवैधानिक संस्थापना, पंडित नेहरु की इस धारा के अस्थायी होनें की स्वीकारोक्ति को भूलनें की और जिसमे जवाहर लाल नेहरू से लेकर वर्तमान कांग्रेस तक धरती के स्वर्ग कश्मीर को नर्क बनाने में बहुत योगदान है। भारत में किसी भी पार्टी में सोनिया गाँधी से यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि "आखिर वह कश्मीर विरोधी संस्था की को-प्रेजिडेंट क्यों बनी? इतना ही नहीं, इस कश्मीर-विरोधी संस्था में भारी संख्या में भारतीय पत्रकार भी हैं, जिनके लेख पढ़ अनपढ़ से लेकर शिक्षित भारतीय भारतीय जनसघ उर्फ़ भाजपा को देश में अशान्ति, साम्प्रदायिकता और देश को तोड़ने का आरोप लगाने से नहीं चुकते। कहते हैं जब अपने ही दाँत जीभ को काट दे फिर दोष किसे और को क्या देना। धारा 370 और 35A  के मर्म को न समझ पानें के दर्द को सहते रहनें की आदत छोड़ने के युग में प्रवेश करते हुए हम भारतीय कुछ अधिक नहीं बल्कि पिछले एक वर्ष 2013 की घटनाओं का ही यदि विश्लेषण करें तो पायेंगे कि इस शांत घाटी में युवको की मानसिकता को जहरीला किसने बनाया? किसने इनके हाथों में पुस्तकों की जगह अत्याधुनिक हथियार दिए है? किसने इस घाटी को अशांति और संघर्ष के अनहद तूफ़ान में ठेल दिया है? इस क्रम में हम यह पायेंगे कि कश्मीर घाटी से बेदर्दी से खदेड़े गए कश्मीरी पंडितों के प्रश्नों से पर चुप्पी साधे रहे विषैले महबूबा और अब्दुल्ला वंश ने कश्मीर के सन्दर्भ में कम से कम छः बार देश के संघीय ढांचें और आत्मा को अपनी मुखरता से चोटिल किया है। अलगाववादियों को बढ़ावा देते हुए कश्मीर के युवकों को भारतीय दूतावास द्वारा जारी दस्तावेज पर नहीं बल्कि एक अन्य प्रकार के स्थानीय कागज़ के आधार पर वीजा आदि सुविधाएं देनें जैसे सैकड़ों राष्ट्र विरोधी मुद्दों से मूंह छुपाते रहे। उमर अब्दुल्ला ने गत दिनों विदेश राजदूतों के एक मंडल के सामनें कश्मीर के भारत विलय को अपूर्ण बताया था उन्होंने नवाज शरीफ और भारत के प्रधानमन्त्री की न्यूयार्क में हुई भेंट के समय अलगाववादी बयान दिए थे, उन्होंने उस समय दुर्भावना व्यक्त की थी जब पाकिस्तान ने अचानक अमेरिका से कश्मीर मामलें में मध्यस्थता की मांग की थी।  
आज जबकि भारत के स्पष्ट जनादेश धारी नए प्रधानमन्त्री ने नवाज शरीफ को भारत बुलाकर अपनें गूगली दांव में फंसा लिया था तब यह सही अवसर है कि पुरे देश में धारा 370 पर बहस हो और देश का विपक्ष रचनात्मक भूमिका निभातें हुए कश्मीर से कन्याकुमारी की संवैधानिक भावना को आत्मसात करेंउमर अब्दुल्ला और महबूबा को भी चाहिए कि वे कश्मीर के हित को अपनें सत्ता मोह से ऊपर उठकर देखें और यह विचार करें कि कश्मीर को पाकिस्तान से कितनें अनगिनत घाव मिलें हैं पाकिस्तानी धन बल और मदद से कश्मीर में विध्वंस कर रहे अलगाववादी संगठन अहले हदीस के हुर्रियत और आई.एस.आई. से सम्बन्ध और इसकी 600 मस्जिदों और 120 मदरसो से पूरी घाटी में अलगाव फैलाने जैसे सैकड़ों अन्य तथ्यों को उमर और पूरा देश पूर्व से ही जानता है किन्तु अब जो नया है वह यह कि हम इस दर्द से छूटकारा पानें और कुनैन पीनें की मानसिकता में आते जा रहें हैं
जम्मू-कश्मीर में लागू "एक देश, दो विधान, दो प्रधान" के विरोध में जन्मी भारतीय जनसंघ 
भारतीय जनसंघ वर्तमान भाजपा की जड़ें वास्तव में कांग्रेस से निकली हैं। हालाँकि जनसंघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राजनीतिक इकाई थी। जनसंघ की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में की थी। जनसंघ की स्थापना से पूर्व डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल में केन्द्रीय उद्योग मंत्री थे। देश में लागू "एक देश, दो विधान", यानि जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला और शेष भारत का जवाहर लाल नेहरू, जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और शेष भारत का अलग, जम्मू-कश्मीर में बिना परमिट के प्रवेश निषेध था, जबकि भारत के किसी भी प्रान्त में चाहे जब आने-जाने की कोई पाबन्दी नहीं थी। डॉ मुख़र्जी ने प्रधानमंत्री नेहरू से जब इसका विरोध किया, नेहरू के यह कहने पर कि "नहीं वहाँ ऐसा ही होगा।" डॉ मुख़र्जी ने इसका घोर विरोध किया और संसद से त्यागपत्र देकर, दोनों प्रधानमंत्रियों नेहरू और शेख अब्दुल्ला, को इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए ललकारते हुए, बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर के लिए कूच किया। लेकिन जम्मू प्रवेश तक कोई समस्या नहीं हुई, परन्तु जैसे ही उन्होंने कश्मीर में प्रवेश किया, जम्मू-कश्मीर के प्रधानमन्त्री शेख अब्दुल्ला ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बंद कर मार दिया। डॉ मुखर्जी का ही बलिदान था कि जम्मू-कश्मीर से परमिट सिस्टम समाप्त कर शेख से प्रधानमंत्री पद छीन जेल में बंद कर दिया गया था। डॉ मुख़र्जी के इस बलिदान इतिहास को जनता से छुपाया गया।
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जम्‍मू एवं कश्‍मीर के पूर्व मुख्‍यमंत्री व नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला अक्‍सर 
जनसंघ ने हिन्दू रीति-नीति के अनुरूप भारत को नए सिरे से एकजुट करने पर जोर दिया। 1967 के करीब जनसंघ को हिन्दी पट्टी के राज्यों  में पकड़ बनने लगी। धीरे-धीरे जनसंघ को एक राजनीतिक पार्टी की जरूरत महसूस हुई, और अटल बिहारी वाजपेयी, पंडित दीन दयाल उपाध्याय, प्रेम डोगरा, प्रो बलराज मधोक, लाल कृष्ण आडवाणी,और डॉ मुरली मनोहर जोशी आदि ने जनसंघ को राजनीती के मैदान में   और आगे चलकर अटल बिहारी वाजपेयी ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। इसके बाद भाजपा हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर आगे बढ़ी। हिंदू मूल्यों के अनुरूप भारतीय संस्कृति को परिभाषित करने के लिए इस पर सांप्रदायिक पार्टी होने के आरोप लगे। भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाया। राम मंदिर के मुद्दे ने उसके लिए हिंदू वोटों के ध्रूवीकरण का काम किया और इसका राजनीतिक लाभ भी उसे मिला। राम मुद्दे पर अपनी चुनावी राजनीति को धार देने वाली भाजपा 1991 में लोकसभा की 117 सीटें जीतने में कामयाब रही और चार प्रदेशों में उसकी सरकारें बनीं। 

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