क्या जम्मू-कश्मीर में हिन्दू होगा मुख्यमंत्री?



आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
सेवा निर्वित उपरान्त एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते सितम्बर 2014 में आमुख लेख शीर्षक "कश्मीर में हिन्दू मुख्यमन्त्री?" प्रकाशित होने से पूर्व ही विरोध शुरू हो गया था। पता नहीं किस-किस नाम से अलंकृत किया गया था, लेकिन दीवारों पर  पढ़ना कठिन था। खैर, उस समय पूर्णरूप से नहीं आंशिक रूप में हिन्दू मुख्यमंत्री मिलने पर पाक्षिक का प्रसार में वृद्धि का श्रीगणेश हो गया था। वेस्टर्न उत्तर प्रदेश में आशा के विपरीप वृद्धि हुई। वेस्टर्न उत्तर प्रदेश में "नाथूराम गोडसे ने गाँधी मारा क्यों?" श्रंखला ने चार चाँद लगा दिए थे। 
Image result for नाथूराम गोडसे इस शृंखला से नाथूराम गोडसे के विरोधियों पर प्रहार कर, जनता के सम्मुख गाँधी को मारे का कारण सार्वजनिक करने का प्रयास किया था, जिसे तुष्टिकरण पुजारियों ने आम नागरिकों के सम्मुख गोडसे की नकारात्मक छवि प्रस्तुत कर दी गयी। जिस भाँति 2014 में लिखा मेरा लेख पूर्णरूप से चरितार्थ होने होने को बेताब है, वह दिन भी दूर नहीं होगा, जब गोडसे विरोधी भी गाँधी वध को उचित ठहराएंगे। बस गोडसे विरोधियों से पूछा जाए "अगर नाथूराम गोडसे कसूरवार था, फिर क्यों उनके 150 बयानों को सार्वजानिक होने पर बैन लगाया था? अपने किसी भी एक बयान में माफ़ी मांगने की बजाए हर बयान में गाँधी वध का कारण बताया है। और जो भी गोडसे को आतंकवादी के नाम से बदनाम कर रहे हैं, निश्चित रूप से देश में तुष्टिकरण के पुजारी हैं। 
अब केन्द्र सरकार परिसीमन पर लगी रोक को हटाने में व्यस्त है। जिसका परिणाम शुभ ही होगा यानि जम्मू-कश्मीर में महबूबा और अब्दुल्ला परिवारों के वर्जस्व पर अंकुश, जिस कारण वहाँ किसी हिन्दू का मुख्यमन्त्री बनना असंभव था, और ये दोनों परिवार अपनी मर्जी के अनुसार केन्द्र सरकार को जम्मू-कश्मीर में अपनी मर्जी के अनुसार कानून और राज्य सरकार चलाने के लिए बाध्य करते थे। उपमुख्यमन्त्री भी पहली बार बना। लेकिन अब पूर्णरूप से हिन्दू मुख्यमंत्री बनाने के लिए केन्द्र की मोदी सरकार ने कमर कस ली है। धरती पर स्वर्ग बने कश्मीर इन परिवारों ने पाकिस्तान और अलगाववादियों के साथ मिलकर नर्क बना दिया है, वहाँ से आतंकवाद की अर्थी निकालकर पुनः धरती पर बसे स्वर्ग को वापस लाना होगा। 
स्मरण हो, महबूबा मुफ़्ती की बहन डॉ रुबिया अपहरण काण्ड। यह काण्ड गिरफ्तार अलगाववादियों को रिहा करवाने के इरादे से तत्कालीन प्रधानमन्त्री विश्वनाथ प्रताप सिंह पर दबाव बनाने के लिए किया था और उस समय महबूबा के पिताश्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद केन्द्रीय गृह मंत्री थे। कंधार को सब रोते है, लेकिन डॉ रुबिया अपहरण काण्ड पर सब चुप्पी साधे रहते हैं। इस अपहरण काण्ड पर उस समय खूब चर्चा भी हुई थी, परन्तु तुष्टिकरण पुजारी इस तथाकथित काण्ड पर खामोश हैं।       
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नुमाइंदगी की असमानता दूर करने की तैयारी में है। मिली जानकारी के मुताबिक सरकार इस असमानता को दूर करने के लिए परिसीमन पर लगी रोक को हटाने का फैसला किया है और इस दिशा में वह आगे बढ़ रही है। जम्मू क्षेत्र के लिए परिसीमन आयोग गठित करने के लिए जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक की गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है। जम्मू क्षेत्र में नए परिसीमन पर जारी बैठकों में गृह सचिव और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के प्रमुखों को भी शामिल किया गया है।    

परिसीमन पर लगी रोक हटने का मतलब है कि जम्मू एवं कश्मीर क्षेत्र की विधानसभा सीटों में बदलाव होगा। जम्मू क्षेत्र की मांग के अनुरूप यदि परिसीमन हुआ तो आने वाले समय में उसके हिस्से में विधानसभा की ज्यादा सीटें आ सकती हैं। ऐसा होने पर आने वाले समय में जम्मू क्षेत्र से कोई हिंदू मुख्यमंत्री बन सकता है। अब तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कश्मीर का दबदबा रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में परिसीमन पर लगी रोक हटाने का मन बना चुकी है और इस दिशा में वह आगे बढ़ रही है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक और गृह मंत्री अमित शाह के बीच बैठक के बाद इस दिशा में आगे बढ़ने और परिसीमन आयोग गठित करने के लिए सरकारी स्तर पर बैठकों का दौर चल रहा है। गृह मंत्रालय एवं राज्यपाल दोनों एक-दूसरे के संपर्क में हैं। गृह सचिव और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के प्रमुखों को भी बातचीत में शामिल किया गया है।
जम्मू कश्मीर विधानसभा में प्रतिनिधित्व की असमानता दूर करने के लिए सरकार ने परिसीमन आयोग गठित करने का फैसला किया है। अभी मौजूदा समय में जम्मू क्षेत्र से ज्यादा विधायक कश्मीर क्षेत्र से चुनकर आते हैं। जम्मू क्षेत्र कश्मीर से बड़ा है और इसे देखते हुए इस क्षेत्र में ज्यादा सीटें होनी चाहिए लेकिन पिछले समय में हुए परिसीमन में यहां की जनसंख्या एवं क्षेत्र को नजरंदाज किया गया। जिसके चलते जम्मू क्षेत्र की न्यायसंगत नुमाइंदगी विधानसभा में नहीं हो पाई। जम्मू क्षेत्र के लोग काफी समय से इस असमानता को दूर करने की मांग करते आए हैं।
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है। ऐसे में नए सिरे से परिसीमन के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा की अनुमति की जरूरत नहीं होगी। राज्यपाल की अनुशंसा पर राज्य में नए सिरे से परिसीमन का काम शुरू हो सकता है। 2002 में तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला सरकार ने राज्य में परिसीमन के काम पर रोक लगा दी थी।

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