
जमीयत के इस फैसले से #metoo, #not in my name, #award vapsi, #intolerance, और #moblynching आदि गैंगों के दुष्प्रचार से जनता को सावधान रहना चाहिए। जब सरकार द्वारा जमीयत के खिलाफ कोई कार्यवाही की जाएगी, ये प्रायोजित गैंग जब अपने बिलों से बाहर निकलें, इनके दुष्प्रचार में आने की बजाए इन गैंगों के विरुद्ध ही मोर्चा खोल इनको बेनकाब करने की जरुरत है। ये बिकाऊ गैंग देश का सौहार्द बिगाड़ने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई, गंगा-यमुना तहजीब की बात करने पर इनसे पूछा जाए : जब एम.एफ. हुसैन हिन्दू देवी-देवताओं के आपत्तिजनक चित्र बना रहा था, जब कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की महिलाओं का बलात्कार हो रहा था, उनका कत्लेआम हो रहा था, बंगाल में हिन्दुओं पर अत्याचार होने पर, दिल्ली में लाल कुआँ स्थित हिन्दू मन्दिर को खण्डित करने और घर में घुसकर हिन्दू महिलाओं को प्रताड़ित करने पर ये नारे कहाँ थे? आखिर कब तक इन भ्रमित नारों से देश को गुमराह किया जाता रहेगा? सरकार को भी इन गैंगों के विरुद्ध कार्यवाही करनी चाहिए।
History repeats. Swami Shraddhanand of Arya Samaj was killed by Abdul Rashid, who walked into Swamiji’s home to ‘discuss a problem’. When Swamiji’s aide went to get water, he took out a revolver and shot Swamiji. Gandhi called him ‘Brother Abdul’ n wanted Hindus to forgive him!— Shefali Vaidya ஷெஃபாலி வைத்யா शेफाली वैद्य (@ShefVaidya) October 19, 2019
जमीयत उलेमा-ए-हिंद देगा कमलेश के हत्यारों को कानूनी मदद, मतलब स्पष्ट है- समुदाय को कोई आपत्ति नहीं!
इस बीच एक और खबर सामने आ रही है, जो कि और भी हैरान करने वाली है। इस तरह की नृशंस हत्या का विरोध करने और हत्यारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की बात करने के बजाय जमीयत उलेमा-ए-हिंद हत्यारों के बचाव में सामने आया है। कमलेश तिवारी हत्याकांड में पुलिस ने अब तक पाँच आरोपितों को गिरफ्तार किया है। तिवारी की पत्नी और माँ ने इनके लिए मृत्युदंड की माँग की है। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि हत्यारों को बचाने में जो भी कानूनी खर्च आएगा, उसे वो वहन करेंगे।
इस्लामी विद्वानों की संस्था जमीयत ने लोगों से अपील की है कि वो हत्यारों की कानूनी लड़ाई लड़ने में उनका साथ दें, क्योंकि वो (हत्यारे) गरीब हैं। बता दें कि आरोपितों की गिरफ्तारी के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने पाँचों आरोपितों के परिवार से मुलाकात की और जब उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ने में असमर्थता जताई तो जमीयत ने अपने खर्चे पर वकील और अन्य सहायता करने का भरोसा दिलाया। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सचिव हकीमुद्दीन काशमी और महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि वो पाँचों आरोपितों की हर संभव मदद करेंगे।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद यह कह कर नहीं बच सकता कि भारतीय संविधान और कानून के तहत हर अपराधी को स्वतंत्र न्याय प्रणाली के तहत अपने बचाव में कानूनी सहायता लेने का अधिकार है। वो तो है ही! वो तो कसाब जैसे मास मर्डरर को भी मिली थी। लेकिन सवाल यह है कि आप खुद क्यों दे रहे कानूनी सहायता? क्योंकि इसी भारतीय कानून के अनुसार तय यह भी है कि अपराधी चाहे जो भी हो, जैसा भी हो और उसने अपराध कैसा भी किया हो, उसे राज्य अपनी ओर से कानूनी सहायता मुहैया (वकील देना) तो कराती ही है। फिर आप बजाय इस नृशंस हत्या के विरोध करने हत्यारों की ‘गरीबी का झुनझुना’ लेके मैदान में क्यों कूद गए? शायद इसलिए क्योंकि आप उसे अपने समुदाय का मानते हैं। ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता’ के नारे लगाने वाले आप ‘हत्यारों का धर्म होता है, और वह हमारे समुदाय से है’ का गाना क्यों गाने लगे?
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के इस कदम ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि वो इस तरह के कुकृत्य और नृशंस हत्या करने वालों के साथ है। इस समुदाय को अभी भी ये हत्यारे सही लग रहे हैं। इस समुदाय के लिए यह एक मौका था, जब इनकी शीर्ष संस्थाएँ सामने आ कर कहतीं कि जो हुआ वो सही नहीं हुआ, मगर जिस तरह से समाज में इसे मौन और मुखर, दोनों तरह से, स्वीकृति मिल रही है, लगता नहीं है कि समुदाय को इससे कोई आपत्ति है।
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