पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 13 जनवरी को दिल्ली में होने वाली विपक्षी पार्टियों की बैठक का बहिष्कार कर दिया है। उन्होंने गुरुवार (जनवरी 8, 2020) को आरोप लगाया है कि कांग्रेस और वामदल पश्चिम बंगाल में गंदी राजनीति कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वह अब अकेले नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगी।
गौरतलब है कि इससे पहले दक्षिण परगना में हुई एक सभा में ममता बनर्जी ने भारत बंद बुलाए जाने के लिए लेफ्ट पार्टियों पर सीधा हमला बोला था। उन्होंने लेफ्ट पर निशाना साधते हुए कहा था कि वामपंथ की कोई विचारधारा नहीं है। वे केवल बंद बुलाकर और बसों में बम फेंककर सस्ता प्रचार करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री के मुताबिक लेफ्ट द्वारा राज्य में की गई हिंसा सब ‘दादागिरी’ में आती है न कि आंदोलन में। इससे तो बेहतर है कि उनकी राजनीतिक मौत हो जाए।
कांग्रेस और वामपंथियों की राजनीति की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा था, “वामपंथी पार्टियों की कोई विचारधारा नहीं हैं। रेलवे पटरियों पर बम बिछाना गुंडागर्दी में आता है। आंदोलन के नाम पर रास्ते में चलने वालों को मारा जा रहा है और उन पर पथराव हो रहा है। ये दादागिरी है, न कि आंदोलन। मैं इस भारतबंद की निंदा करती हूँ।”
इसके अलावा उन्होंने दावा किया कि लेफ्ट पार्टियों द्वारा बुलाए बंद को खारिज कर दिया गया है। क्योंकि वे बंद का आह्वान करके और बसों में बम फेंककर सस्ता प्रचार करना चाहते हैं, इस प्रचार को हासिल करने के बजाय राजनीतिक मौत बेहतर है।
लेफ्ट पर हमलावर होते हुए बंगाल मुख्यमंत्री केरल की माकपा की तारीफ़ कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि केरल में माकपा की सरकार है और वह बंगाल में वामपंथियों से बहुत बेहतर है क्योंकि कम से कम वे अपनी विचारधारा में विश्वास करते हैं। वामियों के पास मानवता का मूल्य मात्र शेष नहीं बचा है। कहीं ट्रेन के नीचे बम रख दिया गया, कहीं पत्थर फेंके जा रहे हैं, कहीं ट्रेनें तो कहीं बसें रोकी जा रही हैं तो कहीं बाइक सवारों के साथ मारपीट की गई है। उन्होंने सवाल उठाया कि यह दादागिरी नहीं तो और क्या है? क्या इसे आंदोलन कहा जा सकता है?
इसके बाद उन्होंने सिंगूर आंदोलन की बात उठाई और कहा, “मैंने 26 दिनों तक आंदोलन किया था, लेकिन एक बस तक में किसी ने हाथ नहीं लगाया। आंदोलन एक दिन का नहीं, बल्कि निरंतर चलता है। आंदोलन करना कठिन होता है क्योंकि इसके लिए रास्ते पर पड़े रहना पड़ता है।”
गौरतलब है कि इससे पहले दक्षिण परगना में हुई एक सभा में ममता बनर्जी ने भारत बंद बुलाए जाने के लिए लेफ्ट पार्टियों पर सीधा हमला बोला था। उन्होंने लेफ्ट पर निशाना साधते हुए कहा था कि वामपंथ की कोई विचारधारा नहीं है। वे केवल बंद बुलाकर और बसों में बम फेंककर सस्ता प्रचार करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री के मुताबिक लेफ्ट द्वारा राज्य में की गई हिंसा सब ‘दादागिरी’ में आती है न कि आंदोलन में। इससे तो बेहतर है कि उनकी राजनीतिक मौत हो जाए।
कांग्रेस और वामपंथियों की राजनीति की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा था, “वामपंथी पार्टियों की कोई विचारधारा नहीं हैं। रेलवे पटरियों पर बम बिछाना गुंडागर्दी में आता है। आंदोलन के नाम पर रास्ते में चलने वालों को मारा जा रहा है और उन पर पथराव हो रहा है। ये दादागिरी है, न कि आंदोलन। मैं इस भारतबंद की निंदा करती हूँ।”
West Bengal CM Mamata Banerjee: CPIM has no ideology. Planting bombs on railway tracks is 'gundagardi'. In the name of movement, commuters are being beaten up and stones are being pelted. This is 'dadagiri', not a movement. I condemn this. #BharatBandh pic.twitter.com/wg0Jiac8Nn— ANI (@ANI) January 8, 2020
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 13 जनवरी को दिल्ली में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक का बहिष्कार करते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस और वामपंथी पश्चिम बंगाल में गंदी राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि वो CAA और NRC के खिलाफ अकेले लड़ेंगे। (फ़ाइल तस्वीर) pic.twitter.com/J4LzmsVHay— ANI_HindiNews (@AHindinews) January 9, 2020
इसके अलावा उन्होंने दावा किया कि लेफ्ट पार्टियों द्वारा बुलाए बंद को खारिज कर दिया गया है। क्योंकि वे बंद का आह्वान करके और बसों में बम फेंककर सस्ता प्रचार करना चाहते हैं, इस प्रचार को हासिल करने के बजाय राजनीतिक मौत बेहतर है।
लेफ्ट पर हमलावर होते हुए बंगाल मुख्यमंत्री केरल की माकपा की तारीफ़ कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि केरल में माकपा की सरकार है और वह बंगाल में वामपंथियों से बहुत बेहतर है क्योंकि कम से कम वे अपनी विचारधारा में विश्वास करते हैं। वामियों के पास मानवता का मूल्य मात्र शेष नहीं बचा है। कहीं ट्रेन के नीचे बम रख दिया गया, कहीं पत्थर फेंके जा रहे हैं, कहीं ट्रेनें तो कहीं बसें रोकी जा रही हैं तो कहीं बाइक सवारों के साथ मारपीट की गई है। उन्होंने सवाल उठाया कि यह दादागिरी नहीं तो और क्या है? क्या इसे आंदोलन कहा जा सकता है?
इसके बाद उन्होंने सिंगूर आंदोलन की बात उठाई और कहा, “मैंने 26 दिनों तक आंदोलन किया था, लेकिन एक बस तक में किसी ने हाथ नहीं लगाया। आंदोलन एक दिन का नहीं, बल्कि निरंतर चलता है। आंदोलन करना कठिन होता है क्योंकि इसके लिए रास्ते पर पड़े रहना पड़ता है।”
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