भारत माता से आज़ादी, कश्मीर से आज़ादी के नारे CAA प्रोटेस्ट में क्यों: अभिषेक सिंघवी, वरिष्ठ नेता कांग्रेस

अभिषेक मनु सिंघवी
कहते हैं 'देर आये दुरुस्त आये', कांग्रेस पर चरितार्थ हो रही है, जो कांग्रेस चहुँ ओर जनता खासकर मुस्लिमों को नागरिकता कानून के विरुद्ध उकसा रही है, भारत के अन्य राज्यों में शाहीन बाग़ बनाने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता प्रदर्शन में लग रहे 'हिन्दुत्व से आज़ादी', 'हमें चाहिए आज़ादी', 'भारत माता से आज़ादी', और 'कश्मीर से आज़ादी' आदि अलगाववादी नारों से प्रदर्शन स्थल को गुंजाया जा रहा है, लगता है, उन्हें आभास हो रहा है कि ये अलगाववादी नारे पार्टी के ही विरुद्ध जा रहे हैं। गोवा आदि कई राज्यों में नेताओं ने पार्टी को छोड़ना शुरू कर भी कर दिया है। दूसरे, जनता में भी गलत सन्देश जा रहा है। तिरंगे की आड़ में अलगाववादी नारे देश को विभाजन की ओर धकेला जा रहा है।  
नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) का मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक जा पहुँचा है। इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में 140 से अधिक याचिकाएँ दायर की गई हैं। इन याचिकाओं पर बुधवार (22 जनवरी) से सुनवाई शुरू हो चुकी है। इस बीच, कॉन्ग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी का एक बड़ा बयान आया है। उनका कहना है कि देश-विरोधी नारे नहीं लगने चाहिए। 
अपनी बात उन्होंने गुरुवार (23 जनवरी) को ट्वीट करते हुए कही। उन्होंने लिखा, “भारत माता से आज़ादी, कश्मीर से आज़ादी एक तरह के अलगाववादी नारे हैं, जिनकी CAA के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इस तरह के नारे देश पर सवाल खड़े करते हैं और CAA के ख़िलाफ़ चल रहे मज़बूत आंदोलन को कमज़ोर करने का काम करते।”

इससे पहले, सिंघवी ने मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दलील देते हुए उन्होंने कहा था कि यूपी में NPR की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और 19 ज़िलों के लोगों को डाउटफुल सिटीजन्स (संदिग्ध नागरिक) के तौर पर चिन्हित किया गया है। उन्होंने दलील दी कि ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट नागरिकता संशोधन क़ानून की प्रक्रिया को नहीं टालेगी तो क्या इससे लोगों के मन में असुरक्षा की भावनी नहीं उत्पन्न होगी? सिंघवी का कहना था कि अगर यह प्रक्रिया पिछले 70 साल से शुरू नहीं हुई तो क्या इसे कुछ महीनों के लिए रोका नहीं जा सकता। 
ग़ौरतलब है कि नागरिकता संशोधन क़ानून संसद में पिछले साल दिसंबर में पास हुआ था। इस क़ानून में पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से सताए जाने के कारण भारत आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान है, जो लोग 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए हैं। लेकिन, इस क़ानून के पास होने के बाद से ही इसके ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शनों की आड़ में देशभर में हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। कॉन्ग्रेस और विपक्ष इस क़ानून के लगातार विरोध में बने हुए हैं।

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