
अयोध्या प्रकरण के बाद उत्तर प्रदेश पुनः सुर्खियों में आ रहा है, क्योकि रामजन्मभूमि को तो हमारे वोटों के भूखे नेताओं ने विवादित बनाकर इतने वर्ष खूब अपनी तिजोरियां भरी, लेकिन मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि जिसका निर्णय हमेशा मुसलमानों के विरुद्ध यानि हिन्दुओं के ही पक्ष में रहा, उसके बावजूद श्रीकृष्णा जन्मस्थान से ईदगाह को नहीं हटाया गया। जिस देश में अपने स्वाभिमान की बजाए केवल अपनी कुर्सी और तिजोरी की चिंता करने वाले नेता और पार्टियां मौजूद हो, वहां सौहार्द का रहना असंभव है।
रामजन्मभूमि का विषय आते ही पूरी की पूरी सेकुलर जमात शोर मचाने लगती है की इसका निर्णय न्यायलय करेगा। कांग्रेस, कम्यूनिस्टो से ले कर लालू मुलायम तक सब के सब एक सुर में बोलने लगते है, अयोध्या का फैसला अदालते ही करेंगी। ये इन सेकुलरिस्टो की बहुत सोची समझी साजिश है। क्योंकि हिन्दू समाज उदार है। उसने हमेशा से ही आदालतों का सम्मान किया है। पर किया ये सेकुलरिस्ट अदालतों का सम्मान करते है। हम भूले नहीं है, की कैसे राजीव गाँधी की सरकार ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेशो की धज्जिया उड़ाई थी। क्यों, सिर्फ मुसलमानों को खुश करने के लिए।
वैसे कानून की धज्जियां उड़ाना कांग्रेस के लिए नयी बात नहीं। इंदिरा गाँधी जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनाव याचिका हार गयी और कोर्ट कोर्ट ने प्रधानमंत्री पद छोड़ने को कहा, जवाब में इंदिरा गाँधी ने देश को इमरजेंसी देकर समस्त विपक्षी नेताओं और कमर्ठ कार्यकर्ताओं को जेलों में भर दिया।
It's a good day that the foundation stone for Ram Temple has been laid. A beautiful temple will come up, but there is Kashi Vishwanath & Krishna Janmasthan temples which have to be liberated: K. S. Eshwarappa, Karnataka Minister pic.twitter.com/8AhoaoWhgQ— ANI (@ANI) August 5, 2020
In both these places, when we offer prayers, there are mosques on sides, which say that you are still a slave. It is necessary to liberate these temples: K. S. Eshwarappa, Karnataka Minister https://t.co/7mPMPi24Za— ANI (@ANI) August 5, 2020
अयोध्या झांकी है, काशी मथुरा बाकी है #JaiShreeRam #JaySiyaRam— Krishna Deshmukh (@ImKrishna423) August 5, 2020
मथुरा में जिस स्थान पर कृष्ण जन्म स्थान का मंदिर बना है असल में उसके ठीक बगल में था असली जन्म स्थान जहां पर बनी है ईदगाह मस्जिद। वहां रोज इबादत होती है, लेकिन आप गर्व से कह सकते है की वो कृष्ण जन्म स्थान है जिस पर सबूत के लिए लगी है ASI की पट्टी (पत्थर) जो की साबित करता है की मंदिर तोड़ कार बनाई गई थी ये मस्जिद।
अभी तक किसी भी हिंदूवादी ने इस मुद्दे को नहीं उठाया है यहाँ तक की उत्तर प्रदेश की सियासत के हीरो रहे यादव परिवार ने कभी उफ़ तक नहीं की क्योंकि वो समाजवादी है।
मकसद किसी भी तरह का द्वेष फैलाना नहीं है लेकिन सच को तो सामने लाया ही जाना चाहिए, हालाँकि टीवी डिबेट पर आप सुनते ही होंगे की किसी विवादित स्थान पर या मंदिर तोड़ कर बनाई गई मस्जिद में इबादत करना हराम है....

आचार्य ने आगे कहा कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि की आजादी के लिए अन्य संतों और साधुओं को जोड़ने के लिए जल्द ही एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा, “हस्ताक्षर अभियान के बाद, हम इस मुद्दे पर एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे। हमने फरवरी में अभियान शुरू किया था, लेकिन हम लॉकडाउन के कारण आगे नहीं बढ़े।”
ट्रस्ट में वृंदावन के 11 पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं। इसके अलावा 14 राज्यों के 80 संत, महामंडलेश्वर को जोड़ा गया है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी गई है, जिसमें निर्णय लिया गया है कि ट्रस्ट में वृंदावन के संत और महंतों को जोड़ने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा।
मथुरा में विवादित शाही ईदगाह
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में मुख्य विवाद का विषय शाही ईदगाह है, जो मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के निकट स्थित है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास पहले से ही मस्जिद के बगल में साढ़े चार एकड़ भूमि पर दावा कर रहा है और चाहता है कि इसे और मंदिर के अधिकारियों द्वारा आयोजित धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों के लिए ‘रंग मंच’ के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
अब मथुरा और काशी की बारी
वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद से विश्व हिंदू परिषद (VHP) दावा करती रही है कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर को ‘स्वतंत्र’ करना उसके एजेंडे में है।
मथुरा के शाही ईदगाह को ‘प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ के तहत संवैधानिक प्रोटेक्शन मिलता है। दिसंबर 6, 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद धीरे-धीरे ‘अयोध्या तो एक झाँकी है, काशी-मथुरा बाकी है’ के नारे राजनीतिक परिदृश्यों के चलते काशी और मथुरा ठंडे बस्ते में चले गए थे।
श्री कृष्ण जन्म भूमि की कानूनी स्थिति एवं धर्मनिरपेक्षता वादियों का षड्यंत्र
लेकिन बहुमत के साथ सत्ता में आते ही अयोध्या श्रीराम मंदिर पर केंद्र सरकार ने तत्परता से काम किया है। हालाँकि, इस बारे में अभी बिल्कुल साफ-साफ कहना जल्दबाज़ी होगी कि बीजेपी, काशी और मथुरा के मुद्दों को अयोध्या की तरह प्राथमिकता देगी या नहीं।
विश्व हिंदू परिषद का कहना है कि मथुरा में ठीक मस्जिद के स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और वह मस्जिद नहीं बल्कि हमारी ज़मीन है। विहिप ने कहा था – “वह मस्जिद है ही नहीं, वह हमारी ज़मीन है।” इस मंदिर परिसर के ठीक बाहर मथुरा का सबसे पुराना मंदिर है, जिसका नाम है केशव देव जी महाराज मंदिर!
अयोध्या की भांति, मथुरा हो या काशी, ये सभी तीर्थ तभी स्वतंत्र हो सकते है जब हिन्दू संगठित होंगे। इस देश में कुछ ही प्रतिशत मुसलमानों ने पुरे देश की राजनीती को अपना गुलाम बना रखा है। क्योकि ये संगठित है। जबकि देश में अस्सी प्रतिशत हिन्दुओ के होते हुए भी उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है, क्योकि वे असंगठित है। अगर इस देश की राजनितिक चाल को बदलना है तो इसके लिए राजनीती का हिन्दुकरण और हिन्दुओ का सैनिकीकरण अतिआवश्यक है।
ये अयोध्या के बारे में अदालतों की बात करते है। पर मथुरा के बारे मै क्या कहेंगे। जिसके बारे में अदालते एक बार नही छ: बार निर्णय दे चुकी है और हर बार हिन्दुओ के पक्ष में।
यहाँ इनकी बोलती बंद हो जाती है। यहाँ ये अदालतों के निर्णय की बात क्यों नहीं करते। यहाँ ये कहते है भगवान श्रीकृष्ण तो हुए ही नहीं। जब श्रीकृष्ण नहीं हुए तो उनका मंदिर कहा से आया। ये तो ये भी नकारते है की कभी किसी ने मंदिर तोडा भी था। तो उस पर मस्जिद बनाने की बात कैसे स्वीकारेंगे। इसलिए जरा मथुरा के इतिहास और उसके सबूतों पर नजर डाल ली जाये।
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साभार |
मथुरा में भगवान कृष्ण का अवतार लेना बृज भूमि की सबसे शुभ एवं सुखद घटना है। कृष्ण का जन्म कंस की जेल में हुआ था। समय बीतने के साथ कृष्ण के जन्म लेने की जगह और आस पास के क्षेत्र को “कटरा केशवदेव” के नाम से जाना जाने लगा।
पुरातात्विक एवं एतिहासिक सबूत बताते है की कृष्ण के जन्मस्थान को विभिन्न नामो से जाना जाता था।
पुरातत्वविद और तात्कालिक मथुरा के कलेक्टर श्री फ.स. ग्रौजा के अनुसार केवल कटरा केशवदेव और आस पास के इलाके को ही मथुरा के रूप में जाना जाता जाता था।
ऐतिहासिक साहित्य का अध्ययन करने के बाद इतिहासकार कनिहम इस निष्कर्ष पर पहुचे की वहां एक मधु नाम का राजा हुआ जिसके नाम पर उस जगह का नाम मधुपुर पड़ा, जिसे हम आज महोली के नाम से जानते है। राजा की हार के पश्चात् जेल की आस पास की जगह को जिसे हम आज “भूतेश्वर” के नाम से भी जानते है, को ही मथुरा कहा जाता था। एक अन्य इतिहासकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल ने कटरा केशवदेव को ही कृष्णजन्मभूमि कहा है। इन विभिन्न अध्ययनो एवं सबूतों के आधार पर मथुरा के राजनीतिक संग्रहालय के दुसरे क्यूरेटर श्री कृष्णदत्त वाजपेयी ने स्वीकार किया की कटरा केशवदेव ही कृष्ण की जन्म भूमि है।
पुरातात्विक सबूत एवं हमलों का इतिहास पुरातात्विक विश्लेषणों, पुरातात्विक पत्थरों के टुकडो के अध्ययन एवं विदेशी यात्रियों की लेखनियो से स्पष्ट होता है की इस स्थान पर समय समय पर कई बार भव्य मंदिर बनाये गए। सबूत बताते है की कंस की जेल के स्थान पर पहला मंदिर, जहाँ कृष्ण का जन्म हुआ था, कृष्ण के पडपोते “ब्रजनाभ ” ने बनवाया था।
ब्राह्मी लिपि में पत्थरों पर लिखे गए “महाभाषा षोडश” के अनुसार वासु नाम के एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण के जन्म स्थान पर बलि वेदी का निर्माण करवाया। चन्द्रगुप्त विक्र्मादित्या के शासन के दौरान इस मंदिर का पुनः निर्माण कराया गया। इस दौरान यह स्थान केवल वैदिक धर्म ही नहीं बल्कि जैन एवं बुद्ध धर्म के भी विश्वास की जगह थी। सन 1017 में यह भव्य मंदिर महमूद गजनी द्वारा लुटा एवं तोडा गया। मीर मुंशी अल उताबी, जो की गजनी का सिपहसलार था ने तारीख-इ-यमिनी में लिखा है की:
” शहर के बीचो बीच एक भव्य मंदिर मोजूद है जिसे देखने पर लगता है की इसका निर्माण फरिश्तो ने कराया होगा। इस मंदिर का वर्णन शब्दों एवं चित्रों में करना नामुमकिन है। सुल्तान खुद कहते है की अगर कोई इस भव्य मंदिर को बनाना चाहे तो कम से कम 10 करोड़ दीनार और 200 साल लगेंगे। ”
मीर मुंशी तो महासभाई नहीं था। इस महासभाई की बाते तो तुम्हे इतिहास का भगवाकरण लगता है। मीर मुंशी के लिखे हुए इतिहास को क्या कहोगे?

हालाँकि गजनी ने इस भव्य मंदिर को अपने गुस्से की आग में आकर ध्वस्त कर दिया। स्थानीय निवासियों का कत्ले आम किया और युवतियों को उठाकर साथ ले गया। और मोती लाल का नमूना नेहरु अपनी किताब “भारत की खोज” में गजनी को बहुत बड़ा वास्तु कला का प्रेमी बताता है, जिसने अव्यवस्थित मथुरा को तोड़ कर उसका कलात्मक निर्माण कराया। ये है नेहरु और कांग्रेसियों का सुनहरा इतिहास।
मगर इतिहास बताता है की जिवंत हिन्दू धर्म से प्रेरित होकर “जजजा” नामक एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्म भूमि पर फिर एक मंदिर बनाया तथा 1150 में मथुरा के महाराणा विजयपाल के शासन के दौरान इस मंदिर का पुनः निर्माण किया गया। कटरा केशवदेव के पत्थरों पर संस्कृत भाषा में लिखे गए सबूतों से स्पष्ट होता है की मुस्लिम शासको की नजरो में यह मंदिर तबाही का लक्ष्य बन गया था। सिकंदर लोदी के शासन के दौरान कृष्ण जन्म भूमि मंदिर एक बार पुनः तोडा गया। लगभग 125 वर्षो पश्चात वीर सिंह जूदेव बुंदेला ने 33 लाख रूपये की लागत से पुनः 250 फीट ऊँचा एक भव्य मंदिर बनवाया। मुस्लिम शासको की बुरी नजर से मंदिर की रक्षा करने के लिए इसके आस पास एक ऊँची दिवार बनाने का भी आदेश दिया। जिसके अवशेष हम आज भी मंदिर के आस पास देख सकते है।
औरंगज़ेब द्वारा विशाल मंदिर का ध्वस्त करना
फ्रांस एवं इटली से आये विदेशी यात्रियों ने इस मंदिर की व्याख्या अपनी लेखनियो में सुरुचिपूर्ण और वास्तुशास्त्र के एक अतुल्य एवं अदभुत कीर्तिमान के रूप में की। वो आगे लिखते है कि : “इस मंदिर की बाहरी त्वचा सोने से ढकी हुई थी और यह इतना ऊँचा था की 36 मील दूर आगरा से भी दिखाई देता था। इस मंदिर की हिन्दू समाज में ख्याति देखकर औरंगजेब नाराज हो गया जिसके कारण उसने सन 1669 में इस मंदिर को तुडवा दिया। वह इस मंदिर से इतना चिड़ा हुआ है की उसने मंदिर से प्राप्त अवशेषों से अपने लिए एक विशाल कुर्सी बनाने का आदेश दिया है। उसने कृष्ण जन्मभूमि पर ईदगाह बनाने का भी आदेश दिया है ”
शुक्र है उपरोक्त कथन विदेशियों ने लिखे। अगर ये सब किसी हिन्दू ने लिखा होता तो उसे भी किवंदती कहकर रानी पद्मावती की तरह नकार दिया जाता। यहाँ विदेशी और मुसलमानों के लेखो का उदाहरण इसीलिए उल्लेख किया जा रहा है, क्योंकि हिन्दू के द्वारा लिखे गए इतिहास को तो हमारे देश के सेकुलरिस्ट मानते ही नहीं।
औरंगजेब को उसके इस दुष्कर्म की सजा मिली। मंदिर तुडवाने के बाद वह कभी सुखी नहीं रह सका और अपने दक्षिण के अभियान से जिन्दा नहीं लौट सका। केवल उसके बेटे ही उसके विरुद्ध नहीं खड़े हुए बल्कि वे ईदगाह की भी रक्षा नहीं कर सके। और आख़िरकार आगरा और मथुरा पर मराठा साम्राज्य का अधिकार हो गया।
ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भी इसे अधिकार मुक्त ही माना।
सन 1815 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कटरा केशवदेव के 13.39 एकड़ के हिस्से की नीलामी की घोषणा की। जिसे काशी नरेश पत्निमल ने खरीद लिया। इस खरीदी हुई जमीन पर राजा पत्निमल एक भव्य कृष्ण मंदिर बनाना चाहते थे।
किन्तु मुसलमानों ने इसका यह कह कर विरोध किया कि नीलामी केवल कटरा केशवदेव के लिए थी ईदगाह के लिए नहीं।
कानूनी मामले
सन 1878 में मुसलमानों ने पहली बार एक मुकदमा दर्ज कराया। मुसलमानों ने दावा किया की कटरा केशवदेव ईदगाह की सम्पति है और ईदगाह का निर्माण औरंगजेब ने कराया था इसलिए इस पर मुसलमानों का अधिकार है। इसके लिए मथुरा से प्रमाण मांगे गए। तात्कालिक मथुरा कलेक्टर मिस्टर टेलर ने मुसलमानों के दावे को ख़ारिज करते हुए कहा की यह क्षेत्र मराठो के समय से स्वतंत्र है। जो की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भी स्वीकार किया। जिसे सन 1815 में काशी नरेश पत्निमल ने नीलामी में खरीद लिया। उन्होंने अपने आदेश में आगे जोड़ते हुए कहा की राजा पत्निमल ही कटरा केशवदेव, ईदगाह और आस पास के अन्य निर्माणों के मालिक है।
दूसरी बार यही मुकदमा मथुरा के न्यायधीश एंथोनी की अदालत में अहमद शाह बनाम गोपी ई पि सी धारा 447/352 के रूप में दाखिल हुआ। अहमद शाह ने आरोप लगाया कि ईदगाह का चोकीदार गोपी कटरा केशवदेव के पश्चिमी हिस्से में एक सड़क का निर्माण करा रहा है। जबकि यह हिस्सा ईदगाह की संपत्ति है। अहमद शाह ने चोकीदार गोपी को सड़क बनाने से रोक दिया। इस मुक़दमे का निर्णय सुनाते हुए न्यायधीश ने कहा की सड़क एवं विवादित जमीन पत्निमल परिवार की संपत्ति है। तथा अहमद शाह द्वारा लगाये गए आरोप झूठे है।
तीसरा मुकदमा सन 1920 में आगरा जिला न्यायलय में दाखिल किया गया। इस मुक़दमे में मथुरा के न्यायधीश हूपर के निर्णय को चुनोती दी गयी थी। (अपील संख्या २३६ (१९२१) एंव २७६(१९२०))। इस मुक़दमे का निर्णय सुनाते हुए पुनः न्यायलय ने आदेश दिया की विवादित जमीन ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा राजा पत्निमल को बेचीं गयी थी जिसका भुगतान भी वो 1140 रूपये के रूप में कर चुके है।इसलिए विवादित जमीन पर ईदगाह का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि ईदगाह खुद राजा पत्निमल की संपत्ति है।
पुरे क्षेत्र पर हिन्दू अधिकारों की घोषणा
सन 1928 में मुसलमानों ने ईदगाह की मरम्मत की कोशिश की। जिसके कारण फिर यह मुकदमा अदालत में चला गया। पुनः न्यायधीश बिशन नारायण तनखा ने फैसला सुनाते हुए कहा की कटरा केशवदेव राजा पत्निमल के उत्तराधिकारियो की संपत्ति है। मुसलमानों का इस पर कोई अधिकार नहीं है इसलिए ईदगाह की मरम्मत को रोका जाता है।
सन 1944 में महामना मदन मोहन मालवीय जी की प्रेरणा से श्री जुगल किशोर बिरला जी ने समस्त क्षेत्र 13,400 रुपए में खरीद लिया और हनुमान प्रसाद पोतदार, भिकामल अतरिया एवं मालवीय जी के साथ मिल कर एक ट्रस्ट बनाया।
सन 1946 में मुकदमा फिर अदालत में गया। इस बार भी अदालत ने कटरा केशवदेव पर राजा पत्निमल के वंशजो का अधिकार बताया जो अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की संपत्ति है। क्योकि इसे राजा पत्निमल के वंशजो ने इस ट्रस्ट तो बेच दिया था।
और अंतिम बार 1960 में पुनः न्यायालय ने आदेश देते हुआ कहा कि :
“मथुरा नगर पालिका के बही खातो तथा दूसरे सबूतों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि कटरा केशवदेव जिसमे ईदगाह भी शामिल है का लैंड टैक्स श्रीकृष्ण जन्मभूमि संस्था द्वारा ही दिया जाता है। इससे यह साबित होता है की विवादित जमीन पर केवल इसी ट्रस्ट का अधिकार है”। इस तरह एक बार नहीं पुरे छ: बार अदालतों ने मथुरा पर हिन्दुओ का अधिकार स्वीकार किया। ये है मथुरा की सच्चाई, क्या इस देश के तथाकथित सेकुलरिस्ट अदालत का निर्णय लागु करेंगे। नहीं कभी नहीं कराएँगे। क्योकि मथुरा में अगर मंदिर निर्माण हो गया तो ये फिर मुसलमानों के पास वोटो की भीख मांगने कैसे जायेंगे।
ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि जनवरी 1670 में रमजान के महीने में औरंगजेब ने मथुरा के एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था। इस मंदिर का नाम केशव राय मंदिर था, जिसे ओरछा के राजा बीर सिंह बुंदेला ने उस दौर में 33 लाख रुपए में बनवाया था।
इतिहासकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल ने कटरा केशवदेव को ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि माना है। विभिन्न अध्ययनों और साक्ष्यों के आधार पर मथुरा के राजनीतिक संग्रहालय के दूसरे कृष्णदत्त वाजपेयी ने भी स्वीकारा कि कटरा केशवदेव ही कृष्ण की असली जन्मभूमि है।
इतिहासकारों के अनुसार, सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए इस भव्य मंदिर पर महमूद गजनवी ने सन 1017 में आक्रमण कर इसे लूटने के बाद तोड़ दिया था।
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