हाथरस मामले में पुलिस के साथ भिड़ती पत्रकार (फोटो साभार: ABP माँझा)
लगभग 3 दशक पूर्व तक देश में शुद्ध राजनीति होती थी, लेकिन आज पार्टी, धर्म, मजहब और जाति देख सियासत होने से राजनीति लुप्त हो चुकी है। मिथ्या आश्वासनों से जनता को भ्रमित किया जा रहा है। जनता को जातियों में बांट सियासत करने वाले किस आधार पर राष्ट्रीय एकता की बात कर रहे हैं?
हाथरस मामले में पत्रकार या पीड़ित परिवार के ‘ऑडियो’ को लीक क्यों किया गया। पहले तो आप यह तय कीजिए कि आपको मतलब किस बात से है? पत्रकार/पीड़ित के फोन रिकॉर्ड होने से, या इस बात से कि वहाँ दंगा न फैले, पीड़ित परिवार को न्याय मिले? इस ऑडियो के लीक होने से कौन सी सामाजिक अशांति फैली या पीड़िता को न्याय मिलने पर आँच आ गई? अपराध ऑडियो लीक होना नहीं है, अपराध किसी भी व्यक्ति को मीडिया द्वारा अपने हिसाब के जवाब देने या वीडियो बनवाने के लिए कोचिंग देना है कि ऐसा करने से न्याय मिल जाएगा तुमको।
भिन्न-भिन्न स्रोतों से आ रही खबरों से हम बखूबी जानते हैं कि सामाजिक शांति भंग करने के उद्देश्य से गिद्धों का एक झुंड उस एक ‘ट्रिगर’ प्वाइंट की प्रतीक्षा में बैठा है, जो लोगों में असंतोष भर दे। पहले ही कई फेक न्यूज चलाए जा चुके हैं कि आरोपित संदीप का पिता योगी का सहयोगी और जानकार है। ऐसे में एक प्रशासनिक असावधानी बहुत बड़ी भूल बन सकती है। हाथरस मामले में लीक हुए ऑडियो में पत्रकार को पीड़ित परिवार से मनपंसद बयान दिलवाने की कोशिश करते हुए सुना जा सकता है।
वो वीडियो न्याय दिलाने के लिए नहीं, टीआरपी के लिए होता है। न्याय वीडियो से कैसे मिलेगा? कोर्ट में इंडिया टुडे के वीडियो दिखाए जाएँगे? फिर तो वीडियो कई घूम रहे हैं, उसके आधार पर न्याय कर दो! पत्रकार का काम रिपोर्ट करना होता है। जो है, वो दिखाओ, जो नहीं है, उसके संभावित कारण तार्किक तरीके से बताओ। जो जटिल बात है उसको सरल बनाकर समझाओ।
पत्रकार का काम है जो वीडियो मिले उसकी विवेचना करना, न कि मनपसंद वीडियो बनवा लेना। फोन कर के आप जानकारी लेते हैं, न कि कस्टम-मेड इन्फ़ॉर्मेशन तैयार करके भेजते हैं ताकि आपके चैनल का फायदा हो। पत्रकार जब ऐसा करते हैं, तो कम से कम उसी ऑडियो में ये तो न क्लेम करें कि ‘मैं तुम्हारी बहन हूँ, मैं न्याय दिलवाऊँगी’। पत्रकार को यह कहना चाहिए कि ‘तुम जो वीडियो दोगे, उससे हमारा चैनल चमक जाएगा, तुम्हारी बहन को न्याय मिलेगा कि नहीं, ये नहीं पता।’
हाथरस की बेटी के दर्द का सौदा
ऑडियो में सुना जा सकता है कि पीड़ित परिवार पर मुआवजे की रकम ना लेने का दबाव बनाया जा रहा है। बातचीत में किसी भी तरह का समझौता ना करने का निर्देश दिया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि हाथरस की बेटी के दर्द का सौदा करने वाले कौन लोग हैं?
कांग्रेस किसी भी हद तक गिरने को तैयार
ऑडियो से कांग्रेस पूरी तरह बेनकाब हो गई है। राजनीति चमकाने के लिए कांग्रेस पीड़ित परिवार को मोहरा बना रही है। इस मामले में स्थिति की गंभीरता को समझने के बावजूद कांग्रेस एकदम से आक्रामक हो गई है। पार्टी नेता राहुल गांधी पीड़ित परिवार से मिलने पर अड़े हैं। इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस सियासी फायदा उठाने के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार है।
पीड़ित परिवार से फ़ोन पर कहा गया किसी क़ीमत पर समझौता मत करना...
— Amit Malviya (@amitmalviya) October 2, 2020
राहुल, प्रियंका आएँगे...
25 लाख की जगह 50 लाख मुआवज़ा लेना... वरना फ़ैसला ना होने देना...
नेता फ़ैसला करने से कर रहा माना...
Who are these people, other than Aaj Tak journalist, tutoring victim’s family? pic.twitter.com/wkkueruUy2
दिल को दहलाने व मन को विचलित कर देने वाली यह तस्वीर राजस्थान के ज़िला टोंक तहसील निवाई की है।
— कृष्ण कुमार गुड्डू सिंह (सावरकर) (@krishna94539696) October 3, 2020
जहाँ १३ वर्षीया पायल जैन की उसी तहसील के रिज़वान अन्सारी ने बलात्कार करने के बाद उसे ज़िन्दा जला दिया।@priyankagandhi आप चुप क्यो है ?#राजस्थान_सरकार व "मीडिया" सबके सब चुप क्यू है? pic.twitter.com/lpqyNJoTtS
हाथरस से BJP सांसद राजवीर सिंह दिलेर कह रहे हैं- पीड़िता के परिवार को 25 लाख रुपए दे दिए, अब सब मामला निपट गया।
— PIOUS (@Apv_Goofy) October 3, 2020
कितना घिनोना चेहरा है, भाजपा के नेताओ का सुनिए।pic.twitter.com/RTKiXPTlJ3
पूरे जमाने को पता चल गया #TanushreePandey #FakeGandhi pic.twitter.com/QRaabppNyf
— Aman kumar mishra (@Amankumramishra) October 2, 2020
— कौशल सिंह राजपूत (@kaushalksr) October 3, 2020
पत्रकार की बातचीत यह होनी चाहिए कि ‘तुम्हारे पास जो भी जानकारी है, वो हमें दो ताकि हम उसे पब्लिक में रखें और वहाँ से प्रशासन पर एक दबाव बनेगा’। आप पीड़ित को दिलासा दीजिए, दिलासा देते-देते एक्सप्लॉइट मत कीजिए। एक और बात चल रही है कि नार्को/पॉलीग्राफ़ टेस्ट ‘स्वेच्छा’ से दिए जाते हैं, सरकार किसी को मजबूर नहीं कर सकती। ये तो सही बात है, कानून भी यही कहता है।
लेकिन, जिस व्यक्ति को न्याय की दरकार है, वो तो किसी भी हद तक जाएगा, कुछ भी करेगा ताकि वो परिवार और समाज की नजरों में सम्मानित बना रहे। परिवार के लोग पॉलीग्राफ़ न लें और चार आरोपित ले लें, तो आप ही बताइए कि नजारा कैसा होगा? चार में से तीन आरोपित जिनके नाम बाद में जोड़े गए, अगर वो टेस्ट में पास हो गए, तब पीड़ित परिवार क्या करेगा? फिर आप बताइए कि सत्य को सामने लाने की कोशिश कौन सा पक्ष करता दिखेगा?
Actually Section 5(2) of The Indian Telegraph Act, 1885 deals with this issue and has listed various reasons for which and competent authorities who can sanction what is known as “wire tapping”. In case of state Govt, the competent authority is the Home Secy of the state. pic.twitter.com/pDS0xoe6IM
— Alok Bhatt (@alok_bhatt) October 3, 2020
The law has built in safeguards like Home Secy of the state can order tapping only in matters dealing with national security and sovereignty or to maintain public order or for preventing incitement of commision of an offence. https://t.co/KqhsCwFzC6 https://t.co/bTOMobc423 pic.twitter.com/NaiGehnGkg
— Alok Bhatt (@alok_bhatt) October 3, 2020
.@TanushreePande is not new to resorting to tutoring-was caught on camera doing same at JNU during CAA protests -check quoted tweet. Given her trackrecord, she has certain motivations that she fulfil in the garb of journalism. Given nature of case, she is threat to public order! https://t.co/134FvYk4jd
— Alok Bhatt (@alok_bhatt) October 3, 2020
@TanushreePande को
— Sanjeevani (@puchi2413) October 3, 2020
दंगे फसाद करवाने,
और जांच प्रभावित करने में
आरोपी/सहआरोपी बनाया जाए
ये गिद्ध नहीं तो बाज नहीं आएंगे
इनका मानना है-
नेगेटिव पब्लिसिटी भी पब्लिसिटी ही है
इन्हें दंडित किया जाना चाहिए।
भले न्यायपालिका जो निर्णय ले।#हाथरस_का_सच #गिद्ध_गहलौत_घायल_बेटियाँ
As if 3 fake Gandhis were not enough. 🙄 https://t.co/0K27Hh17ds
— Ranvir Shorey (@RanvirShorey) October 2, 2020
जब एक अपराध, पारिवारिक और ग्रामीण स्तर से उठ कर राष्ट्रीय बन जाता है, तब उसके हर पहलू पर हर व्यक्ति की नजर होती है। जब अपने पिता की बेटी, ‘हाथरस की बेटी’ और ‘भारत की बेटी’ बन जाती है, तब हर व्यक्ति चाहता है सत्य अपने मूल स्वरूप में आए, ‘चाहे जो भी करना पड़े’। अभी हर उस व्यक्ति की नजर इस बात पर होगी कि पीड़ित परिवार अगर गैंगरेप की बात को सही मानता है, तो वो टेस्ट देने से पीछे क्यों हटेगा?
अभी उनके हर एक मूवमेंट पर लोगों के सवाल होंगे कि अगर किसी की बहन मार दी गई है, कथित तौर पर गैंगरेप हुआ है, तो फिर परिवार उसी सत्य को दोहराने से क्यों हिचक रहा है? ये लॉजिक देना कि ‘वो पहले ही बहुत ह्यूमिलिएट (अपमानित) हो चुके हैं, नार्को टेस्ट और भी परेशान करेगा उनको’, ये कुतर्क है, जिसका उस संदर्भ में कोई मायने नहीं रह जाता, जबकि आप पल-पल की खबर वीडियो और न्यूज बाइट के रूप में हर चैनल पर देने की कोशिश कर रहे हैं।
अवलोकन करें:-
ये भी अगर न्याय पाने के लिए जद्दोजहद है, तो पॉलीग्राफ़ भी उसी तरफ एक कदम है। संवेदनहीनता यह नहीं है कि ‘न्यायिक प्रक्रिया में जो भी संभव है, वो किया जाए ताकि सत्य सामने आए’। संवेदनहीनता यह है कि आप काम अपने चैनल और ‘अपनी’ खबर के लिए कर रही हैं, और रंग-रोगन ‘मैं तुम्हारी बहन हूँ, न्याय दिलाऊँगी’ वाला कर रही हैं! पत्रकारिता न्याय दिलवाने में सहायक हो सकती है, कई मामले में हुई भी है, लेकिन सत्य को ‘मैनुफ़ैक्चर’ करवाने वाली पत्रकारिता न्याय नहीं दिलाती, संभव है कि उसके कारण अन्याय ही हो जाए। इसलिए आप जो पढ़ते, सुनते, देखते, लिखते और बोलते हैं, उस पर थोड़ा ध्यान दीजिए।
क्या साजिश की पटकथा कांग्रेस ने लिखी है ?
ऑडियो क्लिप के सामने आने के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या साजिश की पटकथा कांग्रेस ने लिखी है ? क्या हंगामे की पटकथा कांग्रेस ने ही लिखी थी? क्या हंगामा सोच समझ कर किया गया, क्या कांग्रेस की सियासत इतनी नीचे गिर चुकी है? और अगर ऐसा नहीं है तो फिर वो कौन है जो पीड़ित के परिवार को निर्देशित कर रहा है। वो कौन है जो पीड़ित परिवार को सिर्फ प्रियंका और राहुल गांधी से ही बात करने को कह रहा है?
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