मौका है अभी सुप्रीम कोर्ट के सभी जज त्यागपत्र देकर चुनाव लड़ें, सरकार बना कर सरकार चलाएं; इस तरह सरकार का हर काम अपने हाथ में लेना ठीक नहीं

सुभाष चन्द्र

वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शायद ही कोई ऐसा कानून हो जिसे सरकार ने संसद से पारित करा कर लागू किया हो और उसे विपक्ष और प्रशांत भूषण समेत कुछ अन्य सरकार विरोधी तत्वों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती न दी हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी हर कानून की विवेचना करने की कोशिश की है चाहे वह तकनीकी रूप में उसके लिए सक्षम हो या न हो

सुप्रीम कोर्ट को संसद द्वारा पारित किए कानून में कानूनी कमियां निकालने का तो अधिकार है लेकिन उसे  कानून को खारिज/रद्द करने का अधिकार नहीं है क्योंकि कानून बनाना संसद का दायित्व है और एकाधिकार है। जो कानून बनाने का अधिकार रखता है, वही उसे बदलने और ख़त्म करने का अधिकार रखता है, अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट केवल संसद को कानून में कमियां बता सकता है जिन्हें संसद चाहे तो स्वीकार करे या न करे, यह उसके विवेक पर छोड़ देना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट इस तरह संसद के कानून को रद्द करने के लिए सक्षम नहीं है। NJAC कानून तो तो 5 जजों की पीठ वैसे भी रद्द करने का अधिकार नहीं रखती थी क्योंकि उसमे न्यायाधीश स्वयं Stakeholder/Interested Party थे। दूसरा कानून अभी कुछ दिन पहले Electoral Bonds पर सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया है और वह फैसला भी उचित नहीं था

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अब चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और 2023 के कानून को स्टे नहीं किया सुप्रीम कोर्ट ने लेकिन जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने प्रशांत भूषण की याचिका सुनते हुए एक तरह से कह दिया कि नियुक्ति गलत हुई हैं। पीठ ने कहा कि नियुक्ति का तरीका “पारदर्शी” नहीं है क्योंकि 200 प्रत्याशियों की जांच में केवल 2 घंटे लगे और 2 नियुक्ति के लिए केवल 6 नाम थे जबकि 10 होने चाहिए थे। और यह भी सवाल किया की नियुक्ति 15 मार्च को होनी थी वे 14 को कैसे हो गईं। सारी पारदर्शिता सरकार में चाहते हैं मीलॉर्ड लेकिन खुद सुप्रीम कोर्ट और जजों में पारदर्शिता का नामोनिशान नहीं मिलेगा। आप सरकार से कह रहे हैं कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कितने प्रत्याशी होने चाहिए लेकिन कोई यह नहीं जानता कि बॉम्बे और दिल्ली हाई कोर्ट में डेढ़ लाख से ज्यादा वकीलों में से “कॉलेजियम” 3 वकीलों को हाई कोर्ट के जज के लिए कैसे recommend कर देता है और एक अकेले सौरभ कृपाल को कैसे चुन कर सरकार को नाम भेज  दिया था। कॉलेजियम ने एक पोस्ट के लिए कितने वकीलों का Zone of Consideration बनाया और उसका फैसला कैसे किया

कल एक खबर थी कि तमिलनाडु में लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन भरने वालों में AIADMK के Aatral Ashok Kumar 583 करोड़ की संपत्ति के साथ सबसे अमीर प्रत्याशी हैं। क्या किसी को पता चला है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की कितनी संपत्ति है या नए नियुक्त होने वाले जज की कितनी संपत्ति होती है जबकि चुनाव लड़ने वाले हर प्रत्याशी को अपनी और अपने परिवार की संपत्ति घोषित करनी पड़ती है। आप जजों के लिए संपत्ति घोषित करना स्वैछिक है यानी “voluntary” है। आखिर क्यों ?

हाई कोर्ट के जजों के ट्रांसफर के लिए संबंधित हाई कोर्ट में उनकी Seniority का भी ध्यान रखना जरूरी होता है ऐसा सुप्रीम कोर्ट से RTI में ही बताया गया है मुझे लेकिन आपका कॉलेजियम किसी जज को भी जब मर्जी ट्रांसफर कर देता है। यह कैसी “पारदर्शिता है”?

अभी अदालत ने PIB की Fact Check Unit पर रोक लगा दी और लोकायुक्तों की चल रही नीति में अपने जी  दिशा निर्देश देना चाहते हैं

पारदर्शिता के लिए यह दोहरा रवैया उचित नहीं है। सरकार के हर काम को हाथ में लेना है तो सभी जज त्यागपत्र देकर चुनाव लड़ें और सरकार बनाएं

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