केजरीवाल केवल नटवरलाल और मक्कार- ए-आज़म ही नहीं है बल्कि यह व्यक्ति तो “शैतान-ए-आज़म” भी है। इमामों को पूज रहा था 11 साल से इसको अब दिखाई दे रहा है कि इसके वोट बैंक “रोहिंग्या” पर हथौड़ा चल रहा है और उनके फर्जी वोट पकडे जा रहे हैं, इमाम भी “नाराजगी” दिखा रहे हैं (लेकिन उनके साथ इसका हलाला हो जाएगा) और इसलिए मंदिरों और गुरुद्वारों के पुजारियों और ग्रंथियों को लपेट रहा है।
हिन्दू पुजारियों और ग्रंथियों की याद आने का असली कारण है कांग्रेस का आक्रामक होना। कांग्रेस का आक्रामक होने से केजरीवाल को डर सता रहा है कि कांग्रेस मेरी मस्जिद के नीचे मन्दिर खोज रही है। कांग्रेस को भी इस बात की चिंता नहीं कि तिकोनी लड़ाई में बीजेपी सरकार बना ले, बल्कि केजरीवाल को ख़त्म करना है। दिल्ली से केजरीवाल सरकार जाते ही पंजाब सरकार पर घोर घने काले बादल छा जायेंगे।
ये वही केजरीवाल है जो कल तक हिन्दुओं को दरकिनार कर मुस्लिम संगठनों को कहता था कि 'मेरा साथ देते रहो, वक़्फ़ बोर्ड को मालामाल कर दूंगा'। 17 महीनों से इमामों को वेतन न मिलने पर उनके विरोध का मुस्लिम समाज पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। मुसलमान ही पूछ रहा है कि 17 महीनों तक क्यों खामोश रहे? अंदरखाने मुसलमान भी मानता है कि सरकार से जो मुफ्त में मिले लेने से पीछे मत उठो, नहीं मिलने पर victim card खेलने का मौका भी मत चूको। CAA विरोध में हिन्दू विरोधी दंगा करने वाले केजरीवाल की पार्टी थी।
केजरीवाल जी याद रखो कि जिस तेजी से तुम्हारी पार्टी चमकी है उतनी ही तेजी से पतन की ओर की जा रही है। जनता भी तुम्हारे ढोंगों को अच्छी तरह से समझने लगी है, तुम्हारी कोई फ्री की रेवड़ी काम नहीं आने वाली। तुमने पराकाष्ठा की हर सीमा को तोड़ दिया।
लेखक चर्चित YouTuber |
ये एक तरफ हिन्दुओं के पीछे वोट के लिए भागने का नाटक कर रहा है और दूसरी तरफ याद कीजिए जो CAA पर उसने पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के लिए क्या कहा था? केजरीवाल ने उन्हें अपराधी और बलात्कारी कहा था। अब कोई बड़ी बात नहीं, ये उनके पास भी चला जाए कुछ भीख लेकर क्योंकि इस बार उन्होंने भी वोट देना है।
आज इमाम रो रहे हैं कि उन्हें 17 महीने से सैलरी नहीं मिली जबकि 10 साल तो मुफ्त में पगार लेकर डकार भी नहीं मारी। लेकिन ये इमामों को चुप होने के लिए पिछले दरवाजे से पैसा दे देगा जिससे उनका वोट कहीं और न जाए।
अपनी हालत के लिए काफी हद तक जनता भी जिम्मेदार होती है। महिलाओं लाइन लगा कर खड़ी हो गई 2100 रुपए के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के लिए, उन्हें याद नहीं आया कि फ्री Bus Ride देकर केजरीवाल ने महिलाओं को पानी के टैंकरों के सामने एक एक बाल्टी पानी के लिए लाइन में लगवा दिया, और गली गली में शराब के ठेके खोल दिए।
यह याद नहीं आया कि इस मक्कार-ए-आज़म/“शैतान-ए-आज़म” ने पंजाब में महिलाओं को 3 साल पहले 1000 रुपए महीने देने का वादा किया था लेकिन दिल्ली की महिलाओं ने लाइन में खड़े होते हुए यह नहीं सोचा कि पंजाब की महिलाओं को इसने देहला नहीं दिया। फिर भी महिलाएं इसके छलावे में आती हैं तो कल रोना ही पड़ेगा।
जब इमामों की सैलरी 18000 रुपए और मुअज़्ज़िनों की 16000 तय की थी तब यह कहा था कि ऐसी 185 मस्जिद थी जो वक्फ बोर्ड के अंतर्गत थी। इसके अलावा वक्फ बोर्ड के अंतर्गत न आने वाली मस्जिदों के इमामों और मुअज़्ज़िनों को 14000 और 12000 रुपए सैलरी तय की थी। वक्फ के अंतर्गत न आने वाली मस्जिद कितनी थी यह पता नहीं लेकिन करदाता का पैसा तबियत से लुटाया केजरीवाल ने।
सवाल यह पैदा होता है कि इमामों को सैलरी वक्फ बोर्ड क्यों नहीं देता जबकि उसके पास तो बेशुमार पैसा है।
सबसे बड़ी बेवकूफी तो सुप्रीम कोर्ट ने की थी 1993 में जब उसने इमामों को सरकार से सैलरी देने का फैसला दे दिया। मैं पहले से कहता रहा हूं कि देश की 80% समस्याओं के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है। मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि अपने फैसले पर पुनर्विचार कीजिए क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है।
CIC ने दिल्ली सरकार से भी 2022 में इमामों की सैलरी के बारे में जवाब मांगा था, उसका पता नहीं क्या हुआ? लेकिन ऐसा नहीं है हर राज्य सरकार इमामों को सैलरी दे रही है क्योंकि 2011 में कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री के पास गया था और मांग की थी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करो।
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