बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेड़ीवाला का नाम तो सुना ही होगा आपने जिसने 19 जनवरी, 2021 को 12 साल की बच्ची से यौन शोषण के अपराधी को यह कह कर बरी कर दिया था कि यदि बच्ची का उसने टॉप नहीं हटाया और न उसमें हाथ डाला बल्कि केवल स्तनों को दबाना Sexual Assault नहीं माना जा सकता क्योंकि Skin to Skin contact नहीं हुआ। 10 के बाद उसी जज ने एक और केस में 50 साल के आरोपी को उसके कृत्य को यौन शोषण न मान कर बरी कर दिया जबकि उस पर आरोप था कि उसने अपनी पैंट की जिप खोल कर 12 साल की लड़की का हाथ पकड़ा था।
सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर, 2022 के फैसले में पुष्पा गनेड़ीवाला का पहला फैसला खारिज कर दिया और कहा था कि शारीरिक संपर्क के लिए sexual intent को देखना और समझना जरूरी है और उसी से Sexual Assault को समझ सकते हैं। एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में दिशा निर्देश तय कर दिए।
“Sexual Assault occurs when a person is forced, coerced, or tricked into sexual acts against their will or without their consent which can be withdrawn even if given freely and voluntarily before and during any sexual activity” यह परिभाषा जानना जरूरी है लेख को आगे बढ़ाने से पहले।
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कुछ मामले दे रहा हूँ:-
19 मार्च, 2025 :- जस्टिस राम मनोहर मिश्रा, इलाहाबाद हाई कोर्ट।
“स्तनों को दबाना और लड़की के कपड़े उतारने की कोशिश करने से रेप की कोशिश साबित नहीं होती। ऐसा करना रेप की तैयारी करना है, रेप करना नहीं है”। यानी जज साहब चाहते हैं कि रेप होना ही चाहिए था;
25 मई, 2024 :- मेघालय हाई कोर्ट - जस्टिस बी भट्टाचार्य।
रेप के आरोपी को केवल इसलिए बरी कर दिया कि पीड़ित लड़की ने रेप के दौरान भागने की कोशिश नहीं की और उसने अपने को आरोपी के साथ सुरक्षित समझा और उसका बर्ताव एक anguished and horrified survivor का न होकर एक submissive and consensual person का था। अब बताइए क्या कोई रेप करने वाला क्या कभी किसी को भागने का मौका देगा?
5 फरवरी, 2024 :- बॉम्बे हाई कोर्ट -
“Merely Touching Penis to Private Part of Child Doesn’t Constitute Penetrative Sexual Assault” - मतलब साफ़ था कोर्ट का कि रेप होना जरूरी था तभी यौन शोषण माना जा सकता था;
13 जून, 2024 :- राजस्थान हाई कोर्ट -
एक 33 साल पुराने केस में हाई कोर्ट के जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा कि नाबालिग लड़की के inner wear उतारना और व्यक्ति का खुद नंग्न होना रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता।
फिर जज साहब बताएं ऐसा करने के पीछे आरोपी का मकसद क्या था?
ये सभी फैसले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आए हैं जो अपने आप में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है। वैसे सुप्रीम कोर्ट अपने आप में भी कम नहीं है। आपको याद होगा मध्यप्रदेश की एक 4 साल की बच्ची का रेप और हत्या करने वाले की फांसी की सजा सुप्रीम कोर्ट ने 20 वर्ष सजा में बदलते हुए कहा था “Every sinner has a future”.
अदालतों के निर्णय बच्चियों के लिए बहुत खतरनाक होते जा रहे हैं। दो कानूनों की धज्जियां तबियत से उड़ा रही हैं अदालतें, एक PMLA, 2002 की और दूसरा पोक्सो एक्ट की।
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