निशिकांत दुबे के सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस पर दिए बयान के लिए अवमानना की कार्रवाई शुरू करने के लिए वक़्फ़ केस का वकील अनस तनवीर उछल कर सुप्रीम कोर्ट जस्टिस बीआर गवई और अगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने पहुँच गया। जजों ने कहा कि आप अटॉर्नी जनरल से अनुमति लीजिये।
तो अनस तनवीर ने AG से अनुमति मांगी है और एक अन्य वकील नरेंद्र मिश्रा ने चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों से दुबे पर contempt केस चलाने के लिए अनुरोध किया है।
मैं अटॉर्नी जनरल को याद दिला दूं कि उन्होंने 14 सितम्बर 2022 को youtuber अजीत भारती के खिलाफ भी Contempt केस चलाने के लिए कहा था। उसके बाद भारती के खिलाफ उसी मामले में दूसरी बार भी अनुमति दी थी। लेकिन ढाई साल बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जिसका मतलब यह निकलता है कि AG की बात की भी सुप्रीम कोर्ट की नज़रो में कोई वैल्यू नहीं है। लेखक
चर्चित YouTuber
अजीत भारती के खिलाफ कार्रवाई न होने का मतलब साफ़ था कि वह कोर्ट में बहुत कुछ ऐसा कह सकता था जो जजों को सुनना कठिन होता। कुणाल कामरा की अवमानना का केस भी गोल हो गया।
निशिकांत दुबे के बयान का मतलब अदालत की अवमानना नहीं कहा जा सकता। उसने देश की वर्तमान स्थिति का आकलन करते हुए जनभावनाओं को उजागर किया जिसे सुप्रीम कोर्ट जानकर भी अनजान बना रहता है। अपने चैम्बर की खिड़कियों से बाहर झाँक कर कान लगा कर सुने कि जनता उनके बारे में क्या सोचती और कहती है।
Urban Naxal गिरोह को 2018 में राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच के एक जज चंद्रचूड़ के शब्द आज सुप्रीम कोर्ट को याद करने चाहिए। 29 अगस्त, 2018 को चंद्रचूड़ ने कहा था।
“Dissent is the safety valve of democracy. If dissent is not allowed, then the pressure cooker may burst,”
फिर 15 फरवरी 2020 को एक समारोह में चंद्रचूड़ ने कहा था - “Suppression of intellect is the suppression of the conscience or the nation”.
आप अब निशिकांत दुबे पर मुकदमा दायर कर उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को क्यों कुचल देना चाहते हैं। Urban Naxals को देश के विरोध में काम करने और प्रधानमंत्री की हत्या तक षड़यंत्र रचने को आप “dissent” कहना चाहते हैं, उसे सही मानते है और यह भी कहते हैं कि dissent को दबाया तो प्रेशर कुकर फट जायेगा।
अब निशिकांत दुबे की आवाज़ दबाने से प्रेशर कुकर कैसे नहीं फटेगा? सुप्रीम कोर्ट को याद रहना चाहिए कि जनमानस में आपकी विश्वसनीयता ख़त्म हो चुकी है खासकर जस्टिस यशवंत वर्मा के प्रकरण के बाद।
एक बात और याद दिलाना चाहता हूं कि 27 और 29 अक्टूबर, 2020 को चीफ जस्टिस के खिलाफ प्रशांत भूषण ने दो आपत्तिजनक ट्वीट किए थें लेकिन आपने उसे सजा दी, मात्र एक रुपया जुर्माना। वह कोई न्याय नहीं था बल्कि न्याय के साथ एक घिनौना मजाक था।
प्रशांत भूषण के पिता शांतिभूषण ने 16 में से 8 पूर्व चीफ जस्टिस को भ्रष्टाचार में लिप्त कहा था। उसका कुछ नहीं हुआ। उसके बाद 2009 में प्रशांत भूषण ने हलफनामा देकर तत्कालीन CJIs रंगनाथ मिश्रा, के एन सिंह, ए एम अहमदी, एमएम पुंछी, डॉ ए एस आनंद और वाई के सभरवाल भ्रष्टाचार के सबूत दिए थे। तब भी contempt case चला था लेकिन उसे भी दबा दिया गया।
लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यदि आपके खिलाफ जा रही है तो उसे सहना सीखिए अन्यथा सम्पूर्ण न्यायपालिका के मुंह पर कालिख का रंग और गाढ़ा हो जाएगा। किस किस को रोकेंगे जनाब, हर व्यक्ति आपका विरोध करता दिखाई देगा? वकील इसलिए नहीं बोलते क्योंकि उन्हें आप ब्लैकलिस्ट कर सकते हैं जिससे वो कोई जीत ही न सके।
अब “सत्यमेव जयते” की जगह “झूठमेव जयते” लिखना पड़ेगा सुप्रीम कोर्ट में ?
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