केशवानंद भारती केस का फैसला 7:6 से April 24, 1973 को सुनाया गया था। इस फैसले में कहा गया था कि संविधान की मूल संरचना में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। जिन 7 जजों ने इसके पक्ष में फैसला दिया था उनके नाम थे।
चीफ जस्टिस एस एम सिकरी/जस्टिस जे एम शेलात/जस्टिस के एस हेगड़े/जस्टिस ए एन ग्रोवर/जस्टिस एच आर खन्ना/जस्टिस ए के मुखर्जी/जस्टिस पी जगनमोहन रेड्डी।
जिन 6 जजों ने विपक्ष में फैसला दिया था उनके नाम थे - लेखक
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जस्टिस ए एन रे/जस्टिस डी जी पालेकर/जस्टिस के के मैथयू /जस्टिस एम एच बेग/जस्टिस एस एन द्विवेदी और जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़।
अब सवाल यह उठता है कि जब 6-6 जज पक्ष और विपक्ष में थे तो केवल एक जज के विचार से सारा केस एक तरफ़ा कैसे हो सकता है। जिन 6 जजों ने विपक्ष में फैसला दिया उनके मत की कोई वैल्यू नहीं थी क्या? अगर फैसला 10:3 या 11:2 से या 12:1 से होता तब तो यह फैसला जायज हो सकता था और इसलिए इस फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है।
आपको याद होगा नोटबंदी के मामले में सरकार के पक्ष में फैसला 4:1 से हुआ था और केवल जस्टिस नागरत्ना ने सरकार के कदम को गलत कहा था लेकिन तमाम विपक्ष बस उनके ही फैसले को सही मानते हुआ छातियां पीट रहा था। फिर 13 जजों की बेंच में एक जज को सारा श्रेय कैसे दिया जा सकता है।
पुनर्विचार की जरूरत इसलिए भी है कि इंदिरा गांधी ने 1976 में ही संविधान के Preamble को बदल कर संविधान की मूल संरचना में “secular Socialist Republic” जोड़ दिया।
दूसरा मामला अजीज़ बाशा का 1967 का अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के minority character का था जिसमें सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से AMU का minority character मानने से मना कर दिया था। उस संविधान पीठ के सदस्य थे -
चीफ जस्टिस के एन वांचू /जस्टिस आर एस बछावत/जस्टिस वी रामास्वामी/जस्टिस जी के मित्तर और जस्टिस के एस हेगड़े।
उस फैसले को डी वाई चंद्रचूड़ की 7 जजों की बेंच ने 8 नवंबर, 2024 को पलट दिया लेकिन AMU को minority status देने के लिए एक कमेटी के सुपुर्द कर दिया। यह फैसला 4:3 से हुआ। 1967 के फैसले को पलटने वाले 4 जज थे, चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़; जस्टिस संजीव खन्ना; जे बी परदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा। जिन 3 जजों ने 1967 के फैसले को कायम रखते हुए Dissenting Judgement दिया, वो थे जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा।
अब सही मायने में देखा जाए तो 1967 का 5 जजों की संविधान पीठ के फैसले ने चंद्रचूड़ समेत केवल 4 जजों ने पलट दिया। तकनीकी तौर पर वकील लोग कहेंगे कि 7 जजों की बेंच का फैसला बहुमत का फैसला है लेकिन सत्य तो फिर भी यही है कि केवल 4 जजों ने पिछले फैसले को पलट दिया।
इस विचार से यह मामला और केशवानंद भारती मामला फिर से खोलने की जरूरत है जिससे सही न्याय हो सके।
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