सुभाष चन्द्र
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस धर्मेंद्र शर्मा ने 28 मई को गोविंदपुरी दिल्ली की अतिक्रमण से बनी झुग्गी झोपड़ियों के ध्वस्तीकरण पर रोक लगाने और उनके पुनर्वास की मांग को खारिज करते हुए कहा कि -
“सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण हटाने के लिए पुनर्वास की मांग उचित नहीं है। अतिक्रमणकारियों के पास पुनर्वास की मांग करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। यदि ऐसी अनुमति दी जाती है तो सार्वजनिक परियोजनाओं में गैर जरूरी बाधा उत्पन्न होंगी। अतिक्रमण ने न केवल राष्ट्रीय राजधानी की सुंदरता को प्रभावित किया है बल्कि यह बाढ़ और जल भराव जैसी समस्याओं का भी कारण बन गया है”।
बात बहुत कायदे की कही है जस्टिस शर्मा ने लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इस विषय पर न्यायपालिका को एकमत होना चाहिए। सार्वजनिक भूमि कहें, सरकारी भूमि कहें या रेलवे की जमीन कहें, एक ही बात है जिन पर कब्ज़ा होना आम बात है। किसी भी रेलवे लाइन के आजु बाजू में आपको झुग्गी बस्तियां मिल जाएंगी। मस्जिद मिलेंगी, मंदिर भी मिलेंगे और मदरसे मिलेंगे जिनमे चोरी की बिजली और अन्य सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। सार्वजनिक पार्कों में मजार बन जाती हैं, नमाज पढ़ी जाती हैं।लेखक
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एक बात जिस पर कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए कि हटाई गयी झुग्गी या अतिक्रमण के बाद दोबारा उन जगहों पर ये होने पर राज्य सरकार और पुलिस को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। दूसरे, PM Awas Yojna में मिले घरों में कोई किरायेदार नहीं होने का भी नियम बनाया जाना चाहिए। अगर कोई किरायेदार मिले तुरंत बिना किसी देरी के मकान खाली करवाकर जरूरतमंद को दिया जाए।
लेकिन अलग अलग समय पर अदालतें Different Opinion देते हुई दिखाई देती हैं :
-पिछले वर्ष लखनऊ के अकबरनगर में सरकारी जमीन (कुकरैल वाटर चैनल के किनारे पर) 1200 घर बना कर पूरी कॉलोनी बनाई हुई थी, वहां 101 commercial Office भी थे। उस अवैध कॉलोनी के सभी नाले जिसमे कॉलोनी के लोगो मल मूत्र भी होता था गोमती नदी में गिरते थे।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस खन्ना और दीपांकर दत्ता ने बस्ती हटाने के आदेश तो दिए लेकिन उसके बदले उन्हें घर देने के लिए भी कहा क्योंकि A Roof over your head, a shelter is a basic right.
उसके बाद 19 जून को कॉलोनी के घर गिराए गए और residents को PM Awas Yojna में घर दिए गए।
उसके पहले फरवरी में हल्द्वानी के रेलवे ट्रैक से लगे मुस्लिम बहुल इलाके बनफूलपुरा में अवैध बस्तियों को हटाने के हाई कोर्ट के आदेश को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी और 7 फरवरी को सुनवाई तय की लेकिन 8 फरवरी को दंगा भड़क गया। तब भी जस्टिस संजय किशन कॉल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ में जस्टिस कॉल ने कहा
“There needs to be clarity on whether complete land vests in Railways or what land belongs to the state ..... 50,000 people cannot be evicted overnight - There is a human angle to the problem, these are people, something will have to be worked out”.
भूमि रेलवे की है या राज्य की है, इस पर विचार क्यों करें क्योंकि वह हथियाई हुई भूमि उन 50000 लोगों की तो नहीं है, फिर क्या उन्हें उस भूमि पर कब्ज़ा करने का अधिकार मिल गया?
दंगो का मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक करोड़ों की दौलत का मालिक है जिसके पास नैनीताल, हल्द्वानी, फरीदाबाद, गुजरात, मुंबई, चंडीगढ़ और भोपाल सहित कई जगह अरबों की संपत्ति है।
सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में कई जगह अवैध अधिग्रहण को हटाने से पहले वैकल्पिक घर देने के आदेश दिए हैं। दूसरी तरफ हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि भारत में रहने का अधिकार केवल भारतीयों को है और भारत कोई धर्मशाला नहीं है। फिर अवैध घुसपैठ करने वालों को Right to Shelter कैसे दिया जा सकता है क्योंकि वे जहां भी रह रहे हैं, वह उनकी अपनी भूमि तो हो नहीं सकती।
एक निर्णय सुप्रीम कोर्ट का और था कि अवैध निर्माण ध्वस्त करने से पहले 15 दिन का नोटिस देना जरूरी है और इसी को आधार बना कर जामिया नगर के लोग भी हाई कोर्ट जाने की बजाय सीधा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए और सुप्रीम कोर्ट उस पर सुनवाई के लिए भी तैयार हो गया।
एक बार सीधा फैसला होना चाहिए। अवैध निर्माण गिराना है या नहीं और क्या अवैध घुसपैठियों को भी रहने के लिए घर देना अनिवार्य है?
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