सुप्रीम कोर्ट तुरन्त संज्ञान ले ; आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला; जजों का कोई अपना नहीं मरता, इसलिए ऐसे फैसले आते हैं; 189 लोगों की हत्या किसने की? हाई कोर्ट जवाब दे।

सुभाष चन्द्र

आज(21 जुलाई 2025) जो बॉम्बे हाई कोर्ट ने 19 साल बाद मुंबई ट्रेन धमाकों के 12 आतंकियों को बरी करने का फैसला दिया दिया है, वह आतंकवाद को खुलेआम बढ़ावा देने का प्रयास है। अब ऐसे हमले करने वालों के हौसले और बढ़ेंगे वो तो केंद्र सरकार की सतर्कता की वजह से पिछले 11 वर्ष से आतंकी हमले नहीं हो रहे वरना तो कांग्रेस राज में तो बम धमाके आए दिन होते थे

बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस अनिल किशोर और जस्टिस श्याम चांडक ने अभियोजन पक्ष को मामले को शक से परे साबित करने में विफल बताते हुए सभी 12 अभियुक्तों को बरी कर दिया जिनमे 5 को फांसी की सजा और 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी ट्रायल कोर्ट ने 2015 में

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वर्ष 2006, 11 जुलाई को मुंबई ट्रेनों में 7 सिलसिलेयर धमाके हुए थे जिनमें 189 लोग मारे गए थे और 824 घायल हुए थे अक्टूबर, 2015 में स्पेशल कोर्ट ने 5 अभियुक्तों को मौत की सजा सुनाई थी उसमें शामिल थे कमाल अंसारी, मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान इन सभी को बम लगाने का दोषी ठहराया गया था कमाल अंसारी की जेल में ही 2021 में मौत हो गई

जिन 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई, वे थे तनवीर अहमद अंसारी, मोहम्मद मजीद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और जमीर अहमद लतीफफुर रहमान शेख

आपराधिक मुकदमों में अधिकांश में ट्रायल कोर्ट के फैसले हाई कोर्ट पलट देते हैं सवाल यह उठता है कि सारा ट्रायल निचली अदालत में हुआ, गवाह और साक्ष्य वहां पेश किये गए तो फिर क्या ट्रायल कोर्ट का जज क्या पागल था जिसने अभियोजन पक्ष के तथ्यों को सही मानकर निर्णय सुना कर क्या कोई मजाक किया था? क्या हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किए गए सभी तथ्यों को इतनी बारीकी से परख लिया और कह दिया कि अभियोजन पक्ष शक से परे मामले को साबित करने में विफल हो गया?

इसका मतलब तो यह हुआ कि सुनवाई/ट्रायल जो ट्रायल कोर्ट में होता है, वह सब बेकार है ट्रायल कोर्ट ने समझा कि ब्लास्ट हुए और लोग मारे गए लेकिन हाई कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया एक दो को संदेह का लाभ देकर हाई कोर्ट बरी करता तब भी फैसला कुछ समझ में आता लेकिन सभी अभियुक्तों को बरी करने का मतलब तो यह हुआ कि हाई कोर्ट के अनुसार बम धमाके हुए ही नहीं और 189 लोग अपने आप मारे गए और 824 घायल भी खुद हो गए इस प्रश्न का उत्तर हाई कोर्ट के जजों को देना चाहिए कि इतने लोग कैसे मरे और कैसे घायल हुए?

सुप्रीम कोर्ट को इस फैसले के खिलाफ स्वत संज्ञान लेकर, इसे स्टे कर देना चाहिए स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर Raja Thakare ने कहा है कि हमारा केस मजबूत है और ट्रायल कोर्ट के फैसले को ऐसे ख़ारिज नहीं किया जा सकता और 5 की फांसी की सजा पर मुहर लगनी चाहिए एक स्थानीय व्यक्ति और एक पाकिस्तानी ने बम लगाए थे

इस निर्णय ने सभी बरी हुए अभियुक्तों को अब खुली छूट दे दी कि जाओ और फिर से जहां मर्जी बम धमाके करो हाई कोर्ट ने “ईमानदारी” का सर्टिफिकेट जो दे दिया। दोबारा कहीं धमाके करेंगे तो फिर 20 साल में फैसला आएगा

ऐसे निर्लज्जता पूर्ण फैसले आने का एक ही कारण है कि जजों के अपने कभी बम धमाकों और आतंकी हमलों में नहीं मरते इस केस में अभियुक्तों को हर तरह की कानूनी सहायता जमीयत उलेमा ए हिंद ने दी थी जैसे अन्य आतंकी हमलों के गुनहगारों को देता है  और बचा कर निकल ले गया जमीयतकोई बड़ी बात नहीं कोई मोटा चढ़ावा देकर सबको बरी कराया हो

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