दागी जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने के लिए अदालत आदेश नहीं दे सकता- सीजेआई दीपक मिश्रा

दागी नेताओं पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, आरोप तय होने के बाद भी लड़ सकेंगे चुनावदागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि दागी विधायक, सांसद और नेता आरोप तय होने के बाद भी चुनाव सड़ सकेंगे। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की गई थी, गंभीर अपराधों में जिसमें सजा 5 साल से ज्यादा हो और अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। 
वेबसाइट पर डाली जाएं जानकारियां
दागी नेताओं के खिलाफ दायर की याचिका पर सुनवाई करते हुए सितम्बर 25 को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि किसी भी नेता के खिलाफ चार्टशीट के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि वह राजनेताओं को आपराधिक डाला अपनी वेबसाइट पर डालें, जिससे  इस बात की जानकारी प्राप्त की जा सके कि एक नेता कितने अपराध कर चुका है। 
संसद पर सौंपी कानून बनाने की जिम्मेदारी


Parliament must ensure that criminals must not come to politics. No bar on criminal antecedents of political leaders, it's Parliament to make laws: CJI while reading out verdict on PIL seeking to disqualify candidates contesting polls after court frames charges against them.
10:55 AM - Sep 25, 2018
राजनीति के आपराधिकरण को खतरनाक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संसद को इसके लिए कानून बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। कोर्ट ने कहा कि राजनीति में पारदर्शिता बड़ी चीज है, ऐसे में राजनेताओं को अपराध में संलिप्त होने से बचना चाहिए। 
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि संसद को ये सुनिश्चित करने की जरूरत है कि अपराधी, राजनीति में न आ सकें। अगर किसी उम्मीदवार का पिछला रिकॉर्ड आपराधिक है तो अदालत रोक नहीं लगा सकती है। इस संबंध में संसद को आगे आना होगा। 
पिछली सुनवाई में चुनाव आयोग ने इस मांग का समर्थन करते हुए कहा था कि हम 1997 में और लॉ कमीशन 1999 में जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव की सिफारिश कर चुके हैंलेकिन सरकार बदलाव नहीं करना चाहती.इससे पहले पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या चुनाव आयोग को ये शक्ति दी जा सकती है कि वो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनाव में उतारें तो उसे चुनाव चिन्ह देने से इंकार कर दे? केंद्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ये चुने हुए प्रतिनिधि ही तय कर सकते हैं। 
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि हम अपने आदेश में ये जोड़ सकते हैं कि अगर अपराधियों को चुनाव में प्रत्याशी बनाया गया तो उसे चुनाव चिन्ह ना जारी करें। केंद्र सरकार ने कहा था कि अगर ऐसा किया गया तो राजनीतिक दलों में विरोधी एक-दूसरे पर आपराधिक केस करेंगे संविधान पीठ ने कहा कि कोर्ट संसद के क्षेत्राधिकार में नहीं जा रहा. जब तक संसद कानून नहीं बनाती तब तक हम चुनाव आयोग को आदेश देंगे कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव चिह्न ना दे कोर्ट ने कहा था कि पार्टी को मान्यता देते वक्त चुनाव आयोग कहता है कि पार्टी को कितने वोट लेने होंगे। 
 संसद में जनप्रतिनिधि आम जनता की आवाज उठाते हैं। ये वो माननीय है जो देश के लिए कानून भी बनाते हैं। लेकिन फर्ज करें कि अगर आपकाा जनप्रतिनिधि दागी हो या उसके खिलाफ संगीन मामले चल रहे हों तो क्या उसे कानून बनाने का अधिकार मिलना चाहिए।
 संवैधानिक बेंच के सामने अहम सवाल ये है कि आपराधिक मामलों में आरोप तय होने के बाद क्या किसी शख्स के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जानी चाहिए या नहीं। इसके साथ ही एक सवाल ये भी है कि ट्रायल के किस चरण पर नेताओं को अयोग्य ठहराया जा सकता है। Twitter Ads info and privacy


मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में संवैधानिक बेंच ने कहा था कि संसद का काम ये है कि वो कानून बनाए। लेकिन किसी कानून की व्याख्या करना अदालत का काम है। अदालत अपनी लक्ष्मण रेखा को अच्छी तरह से समझता है। ये बात सच है कि अदालत का काम कानून बनाना नहीं है। लेकिन दागी नेताओं के केस पर तेजी से सुनवाई हो सकती है। 
याचिकाकर्ता का कहना है कि 2014 में संसद में 34 फीसद से ज्यादा ऐसे उम्मीदवार पहुंचे जिनके खिलाफ क्रिमिनल केस है। ऐसे में सवाल ये है कि जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज है क्या वो कानून बना सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने 8 मार्च 2016 को यह केस संवैधानिक बेंच के हवाले किया था।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ उस याचिका पर सुनवाई चल रही थी, जिसमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों में जिसमें सज़ा 5 साल से ज्यादा हो और अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था। इस मामले में अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं भी लंबित हैं। 

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