सरकार के दखल से पड़ता है असर
विरल ने कहा कि सरकार के केंद्रीय बैंक के कामकाज में ज्यादा दखल देने से उसकी स्वायत्ता प्रभावित हो रही है। केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार से थोड़ा दूरी बनाकर रखना चाहती है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। सरकार की तरफ से बैंक के कामकाज में सीधा हस्तक्षेप किया जा रहा है, जो कि घातक हो सकता है।
बाजार हो सकता है नाराज
अगर सरकार केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करेगी तो उसे जल्दी या बाद में आर्थिक बाजारों की नाराजगी का शिकार होना पड़ेगा। सरकारें केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करेंगी तो उन्हें बाजारों से निराशा ही हाथ लगेगी। उन्होंने कहा कि इसके बाद सरकार को पछतावा होगा कि एक महत्वपूर्ण संस्था को कमतर आंका गया। आरबीआई का काम सरकार को अप्रिय लेकिन क्रूर ईमानदार सच्चाई बताने का है और वो सरकार का एक ऐसा मित्र है, जो अर्थव्यवस्था के बारे में सचेत करता रहता है।
कर्ज माफ करना खतरनाक
विरल ने कहा कि सरकारों की तरफ से लोन को माफ करना काफी खतरनाक है। इससे बैंकों को लंबे समय में काफी नुकसान होगा। अगर सरकारें लोन माफ करती रहीं तो फिर बैंकों के लिए ऐसे हालत में काम करना मुश्किल हो जाएगा।
नवंबर में प्रणाली में 40,000 करोड़ डालेगा आरबीआई
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अक्टूबर 26 को कहा कि त्योहारों के फंड की मांग को पूरा करने के उद्देश्य से वह नवंबर में प्रणाली में 40,000 करोड़ रुपये डालेगा। इसके लिए वह सरकारी प्रतिभूतियों की खरीदारी करेगा। ओपन मार्केट ऑपरेशन्स (ओएमओ) के माध्यम से अक्तूबर महीने के लिए केंद्रीय बैंक ने पहले ही 36,000 करोड़ रुपये प्रणाली में डाल दिया है। केंद्रीय बैंक ने एक विज्ञप्ति में कहा कि स्थायी तरलता के एक आकलन के आधार पर आरबीआई ने नवंबर 2018 के लिए 400 अरब रुपये की राशि जुटाने के लिए ओएमओ के तहत सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद का निर्णय लिया है।
सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद के लिए नीलामी की तारीख की घोषणा जल्द ही की जाएगी। आरबीआई ने आगे कहा कि ओएमओ के तहत बताई गई राशि सिर्फ सूचक है, साथ ही तरलता व बाजार के हालात के मुताबिक आरबीआई इस राशि में बदलाव कर सकता है। आरबीआई ने पहले कहा था कि 2018-19 की दूसरी छमाही में प्रणाली की तरलता घाटे में चली जाएगी और तरलता की उत्पन्न होती स्थिति के आधार पर अस्थायी और स्थायी तरतला प्रबंध के माध्यम को चुना जाएगा।
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