नेहरू ने देश को धोखा दिया--चंद्रकुमार बोस

'हिटलर ने नहीं, जवाहरलाल नेहरू ने दिया देश को धोखा'
बंगाल भारतीय जनता पार्टी  नेता चंद्रकुमार बोस ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर तीखा हमला करते हुए कहा कि उन्‍होंने देश को धोखा दिया। क्रांतिकारी नेताजी सुभाषचंद्र बोस के पोते चंद्रकुमार बोस ने यह गंभीर आरोप नेहरू पर लगाया। इस क्रम में उन्‍होंने नेहरू की तुलना जर्मन तानाशाह हिटलर से की और कहा कि उसने कभी देश को धोखा नहीं दिया। उन्‍होंने हिटलर को 'राष्‍ट्रवादी' बताया, जिसकी मंशा 'बस यूरोप पर विजय' की थी।
भाजपा नेता ने नेहरू पर वार करते हुए ट्विटर पर लिखा, 'हिटलर एक राष्‍ट्रवादी था, जिसका मकसद बस यूरोप विजय था, लेकिन उसने कभी देश को धोखा नहीं दिया। वहीं, नेहरू ताज तो चाहते थे, लेकिन लड़कर नहीं, बल्कि अंग्रेजों की चाटुकारिता कर। संक्षेप में कहें तो नेहरू ने देश को धोखा दिया।' अपने इस ट्वीट पर विवाद बढ़ने के बाद चंद्रकुमार ने सफाई दी और कहा कि उनका उद्देश्‍य बस इतना था कि हिटलर नेहरू की तरह धोखेबाज नहीं था।


Well Hitler was a nationalist who's intention was to conquer Europe- but he never betrayed his nation. Nehru wanted to sit on the throne without fighting- but sucking up to the British. In short Nehru betrayed his nation .
उन्‍होंने एक अन्‍य ट्वीट में कहा, 'मैं हिटलर का समर्थन नहीं कर रहा हूं। निश्चित तौर पर वह तानाशाह था, लेकिन नेहरू की तरह धोखेबाज नहीं था, जो देशभक्ति की आड़ में दरअसल, अंग्रेजों के चाटुकार थे। अंग्रेजों ने यहां 200 साल तक राज किया और इस दौरान हजारों लाखों लोगों को मार डाल डाला और यातनाएं दी, लेकिन नेहरू उनके साथ गलबहियां करते रहे।'


I'm not supporting Hitler-of course he was a devil- but he was not fraudulent like Nehru - who in the guise of being a nationalist was actually a British lackey.TheBritish tortured&killed millions of Indians over a period of 200 years-but wined&dined with them!

चंद्रकुमार बोस पश्चिम बंगाल में 2016 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान ममता बनर्जी के खिलाफ भवानीपुर सीट से उमीदवार थे। इस चुनाव में वह हालांकि हार गए थे, पर उन्‍होंने बंगाल की राजनीति में बने रहने की बात कही थी।
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इसमें कोई दो राय नहीं, कि नेहरू द्वारा ब्रिटिश सरकार की चाटुकारिता करने के ही कारण भारत को आज़ादी मिलने में देरी हुई थी। लेकिन देश को पढ़ाया गया कि जवाहरलाल और महात्मा गाँधी के संघर्ष के कारण ही भारत स्वतन्त्र हो पाया और आज़ादी के वास्तविक स्वतन्त्रता सेनानियों के बलिदानों को दरकिनार कर दिया गया। 
जबकि जालिआंवाला बाग़ कांड के दोषी जनरल डायर को उधम सिंह द्वारा ब्रिटेन में जाकर मारने पर महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार को कहा था कि "एक....की वजह से हमारे रिश्तों पर फर्क नहीं पड़ना चाहिए।" दूसरे, जयपुर में ब्रिटिश पुलिस की गोली का शिकार हुए शहीद जतिन दास को जब श्रद्धांजलि देने के लिए गाँधी (क्योकि उन दिनों गाँधी जयपुर में ही थे) को कहा गया, गाँधी ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। इतना ही नहीं, भगत सिंह और साथियों को एक दिन पहले, वो भी शाम के समय, फाँसी दी गयी, क्योकि गाँधी ने ब्रिटिश सरकार से कहा था "कांग्रेस का 30 मार्च को लाहौर में अधिवेशन होना है और भगत सिंह का जो करना है, जल्दी करो, ताकि अधिवेशन ठीकठाक चलता रहे।" गाँधी ने जितने भी धरने और प्रदर्शन किए, केवल क्रांतिकारियों द्वारा जब भी कोई सख्त कार्यवाही होती, जनता का ध्यान वहां से हटाने के लिए किए जाते थे।नाथूराम गोडसे ने स्पष्ट रूप से कोर्ट अपने       
मालवीय लाये थे मर्सी पेटिशन, गांधी-नेहरू ने साइन से कर दिया इंकार, भगत सिंह को हो गयी फांसी
गांधी और नेहरू के साथ साथ काँग्रेस पार्टी से हमारे नफरत के कई कारण है और उसमे से ये एक प्रमुख है। हाँ ये सच जरुर है की बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के संस्थापक मदनमोहन मालवीय जी ने 14 फरवरी 1931 को लार्ड इरविन के सामने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी रोकने के लिए मर्सी पिटिशन फ़ाइल की थी ताकि भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी न दी जाये, कुछ सजा कम की जाये
लार्ड इरविन ने कहा की चूँकि आप कांग्रेस के पूर्व अध्य्क्ष है इसलिए आपको इस पिटिशन के साथ मोहनदास गाँधी के साथ जवाहर लाल नेहरु सहित कांग्रेस के कम से कम 20 सदस्यों का पत्र होना चाहिए
लेकिन गाँधी और नेहरु ने भगत सिंह की मर्सी पिटिशन पर चुप्पी साध ली और अपनी सहमती नही दी, और नेहरू के मना करने पर अन्य कांग्रेसी नेताओं ने भी अपने पत्र नहीं दिए
ब्रिटेन में रिटायर होने के बाद लार्ड इरविन ने लन्दन में कहा था, “यदि गाँधी या नेहरु एक बार भी भगत सिंह के फांसी पर अपील करते तो हम उनकी फांसी रद्द कर देते लेकिन पता नही क्यों मुझे ऐसा महसूस हुआ की गाँधी और नेहरु को भगत सिंह को फांसी देने की अग्रेजो से भी ज्यादा जल्दी थी”
फाँसी देने से पहले लाहौर जेल के जेलर ने गाँधी को पत्र लिखकर पुछा था अगर इन तीन लड़कों को फाँसी दी जाती है तो देश में कोई बवाल तो नहीं होगा। गाँधी ने उस पत्र का लिखित जवाब दिया के आप अपना कार्य करें कुछ नहीं होगा।
प्रो. कपिल कुमार की किताब से गाँधी और लार्ड इरविन के बीच समझौता के समय इरविन इतना आश्चर्य में था की गाँधी और नेहरु दोनों में से किसी ने भी भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को छोड़ने की कोई चर्चा तक नही की ।
इरविन अपने दोस्तों से कहता था की “हम ये मानकर चल रहे थे की गाँधी और नेहरु भगत सिंह की रिहाई के लिए अड़ जायेंगे और हम उनकी ये मांग मान लेते”. भगत सिंह को फांसी देने के लिए जितनी दिलचस्बी अंग्रेज नहीं दिखा रहे थे, उस से अधिक गाँधी और नेहरू भगत सिंह को फांसी पर चढ़ा देना चाहते थे क्योंकि भगत सिंह दिन प्रतिदिन भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहे थे और गाँधी नेहरू इसी से चिंतित थे, और चाहते थे की भगत सिंह को जल्द फांसी हो, लार्ड इरविन ने ये बात स्वयं कही। 
अब भी कोई भारतीय हमसे ये कहे की गाँधी और नेहरू महान थे, तो हमे उस भारतीय पर शर्म आती है, क्योंकि वो भी इस देश पर बोझ है और इन गाँधी नेहरू के वंशजो ने तो किताबों तक में भगत सिंह को “आतंकवादी” बता दिया। 

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