भाजपा के खिलाफ कांग्रेस और टीडीपी के बीच गठबंधन,राम मंदिर पर दोनों नेताओं ने साधी चुप्पी

टीडीपी मुखिया चंद्रबाबू नायडू और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच मुलाकात में आने वाले चुनावों की रूप रेखा तय हुई। मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने कहा कि टीडीपी और कांग्रेस का मुख्य लक्ष्य सांप्रदायिक ताकतों को हराना है और इसके लिए कांग्रेस और टीडीपी का एक होना जरूरी था। प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी और चंद्रबाबू नायडू ने करीब करीब सभी सवालों का जवाब देते नजर आए। लेकिन राम मंदिर के सवाल पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जवाब देने से बचते नजर आए।
क्या कहा चंद्रबाबू नायडू और राहुल गाँधी ने 
आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के सुप्रीमो एन चंद्रबाबू नायडू ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करने के लिए :

  1. हमारा मुख्य लक्ष्य देश को बीजेपी से बचाना है।
  2. हम सब मिलकर बीजेपी को हराएंगे।
  3. देश को बचाना ही मुख्य मुद्दा है। 
  4. करप्शन, राफेल को बनाएंगे मुख्य मुद्दा। 
  5. विशेष दर्जे की मांग का समर्थन
  6. राहुल गांधी ने मजबूती से राफेल का मुद्दा उठाया
      लोकतंत्र को बचाने के लिए राहुल गांधी के साथ मिलकर काम करेंगे। View image on Twitter





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We had a very good meeting, the gist was that we have to defend democracy and future of the country. So we are coming together to work, all opposition forces must unite: Rahul Gandhi after meeting AP CM N Chandrababu Naidu






We are coming together, to save the nation. We have to forget the past, now it is a democratic compulsion to unite. All opposition needs to be one: N Chandrababu Naidu after meeting Rahul Gandhi
अखिल भारतीय गठबंधन बनाने के अपने प्रयास के तहत नवम्बर 1 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला से भी भेंट की थी। मानसून सत्र के दौरान टीडीपी ने अपने घोर विरोधी वाईएसआर कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर केंद्र सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन दिया था। गौरतलब है कि तेलंगाना में दिसबंर 2019 में चुनाव होने वाले हैं।
भाजपा को हराने के लिए गैर-भाजपाइयों का एकजुट होना सिद्ध करता है, जब तक इन्हे सत्ता के सातों सुख मिलते रहे, भाजपा में किसी को साम्प्रदायिकता नहीं दिखी और जहाँ भाजपा ने जिसे भी जरा सा छुआ, उसे भाजपा में साम्प्रदायिकता नज़र आने लगती है। 
1977 में तत्कालीन इन्दिरा गाँधी द्वारा इमरजेंसी लगाने पर समस्त गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने तत्कालीन जनसंघ को जनता पार्टी में मिलाकर चुनाव में इन्दिरा गाँधी सरकार को धराशाही किया, परन्तु संघ-विरोधी जहर ने जनता पार्टी को ही अपने हाथों से धराशाही कर सत्ता वापस इन्दिरा गाँधी यानि कांग्रेस के हाथ सौंप दी। उसके बाद राज्यों में होने वाले चुनावों में यदाकदा भाजपा से समझौता करते रहे। वाजपेयी सरकार में गोधरा कांड होने पर, तुष्टिकरण के चलते, सच्चाई से मुँह फेर, तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध खूब प्रचार करते रहे और जब मोदी लहर में अपना अस्तित्व बचाने, उसी मोदी की गोदी में जा समाए। 
अयोध्या में राममन्दिर मुद्दे पर दोनों क्यों चुप्पी साधे हुए हैं? जिस तरह ये सब भाजपा के विरुद्ध लामबन्द हो रहे हैं, उसी तरह अगर अयोध्या मुद्दे पर कोर्ट को गुमराह करवाने के विरुद्ध हुए होते, ना जाने कबका अयोध्या में राममन्दिर बन गया होता। कहते तो अपने आपको हिन्दू हैं, लेकिन हैं, सभी तुष्टिकरण और मुग़ल शासन के गुलाम। यदि नहीं, क्यों नहीं, मोदी-योगी सरकार और सुप्रीम कोर्ट के सामने धरने और प्रदर्शन कर खुदाई में मिले अवशेषों को छुपाने वालों को आजीवन कारावास या किसी अन्य कठोरतम सजा के लिए आन्दोलन करते। क्योकि यह हिन्दुओं के राममन्दिर के विरुद्ध षड्यंत्र नहीं, बल्कि भारत के इतिहास के खिलाफ घोर अन्याय है। सिर्फ अपनी कुर्सी की खातिर? 
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हाथ से संविधान लिखते प्रेम बिहारी नारायण रायजादा, कायस्थ आर.बी.एल. निगम, वरिष्ठ पत्रकार क्या है संविधान का औचित्य ? .....

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अयोध्या राम मंदिर मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई जनवरी पहले हफ्ते तक के लिए टलने 
तेलुगु देशम का कांग्रेस से हाथ मिलाना डर है, कांग्रेस की भाँति तेलुगु देशम का अस्तित्व ही संकट में न पड़ जाए। भाजपा के विरुद्ध किलेबन्दी देख, ऐसा लगता है, कि गैर-भाजपाइयों को देश नहीं, बल्कि अपनी दुकान को बनाये रखने की समस्या है।   

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