आज हर समाज आधुनिकता के दौर में जी रहा है, लेकिन फतवों की नगरी दारुल उलूम देवबंद से एक बार फिर अजीबो-गरीब फतवा जारी हुआ। इस फतवे में निकाह की तारीख लाल रंग के खत पर लिखने को नाजायज करार दिया है। साथ ही दुल्हन को मामा की गोद में उठा कर डोली में बैठाने की विदाई रस्म को भी गलत बताया गया है। दारुल उलूम देवबंद के फतवा विभाग से एक युवक ने लिखित में तीन सवाल किए थे। इसमें युवक ने निकाह की तारीख मे लाल स्याही, महिलाओं के पैरों में बीछुए और छल्ले पहनने के साथ दुल्हन की विदाई मामा के गोद में उठाकर डोली में बिठाने के बारे मे पूछा था।
किसी के धर्म में हस्तक्षेप करना गलत बात है। परन्तु समय परिवर्तन के साथ फतवा देने वालों को फतवे और अपनी गरिमा पर विचार करना चाहिए। जहाँ तक पैरों में बिछुए पहनने की बात है, वर्तमान पीढ़ी की अधिकतर महिलाएं पैरों में बिछुए पहनती है। बिन्दी लगाती हैं। घर से निकलती ओढ़नी या बुर्का डालकर, जो इलाके से बाहर आते ही, थैले में चला जाता है। और ये आज नया नहीं है, इसे तो अपने कॉलेज दिनों से ही देख रहा हूँ। इसका मतलब तो यही निकल सकता है, कि क्षेत्र में इस्लामिक तरीका और क्षेत्र से बाहर आते ही, आधुनिक या यूँ कहा जाये कि दूसरे समाज के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने में ही अपना हित देखती हैं। फिर ऐसी स्थिति में उनके ऐसे दकियानूसी फतवे कितनी महिलाएं मानेगी? नाख़ून मत काटो, नेल पोलिश मत लगाओ, आज के बदलते परिवेश में फतवा देने वालों को जरूर मनन करना चाहिए।
इसके जवाब में दारुल उलूम की खंडपीठ ने विचार विमर्श करते हुए ये फतवा जारी किया है। देवबंदी उलेमा मुफ्ती हय्यान कासमी ने बताया कि ये सभी रस्में गैर इस्लाम धर्म की हैं। इसलिए निकाह की तारीख लाल रंग के खत पर लिख कर भेजना गलत है। लाल रंग खतरे का प्रतीक माना जाता है, इसलिए निकाह जैसे पाक मौके पर लाल खत भेजना इस्लाम में नाजायज बताया गया है। वहीं दुल्हन को मामा की गोद में उठाकर डोली में बिठाना भी गैर इस्लामिक है, जिसके चलते मुसलमानों को गैर इस्लामिक रस्मों से बचना चाहिए। साथ ही महिलाओं के पैरों में बिछूए पहनना वैवाहिक जीवन की पहचान है।
देवबंदी उलेमाओं ने इन रस्मों को गैर इस्लामिक बताते हुए छोड़ देने की नसीहत दी है। इतना ही नहीं गैर इस्लामिक रस्मों को करने और उन रस्मों में शामिल होने पर भी एतराज जताते हुए उन्होंने इस्लामिक दायरे में ब्याह शादी करने हिदायत दी है।
किसी के धर्म में हस्तक्षेप करना गलत बात है। परन्तु समय परिवर्तन के साथ फतवा देने वालों को फतवे और अपनी गरिमा पर विचार करना चाहिए। जहाँ तक पैरों में बिछुए पहनने की बात है, वर्तमान पीढ़ी की अधिकतर महिलाएं पैरों में बिछुए पहनती है। बिन्दी लगाती हैं। घर से निकलती ओढ़नी या बुर्का डालकर, जो इलाके से बाहर आते ही, थैले में चला जाता है। और ये आज नया नहीं है, इसे तो अपने कॉलेज दिनों से ही देख रहा हूँ। इसका मतलब तो यही निकल सकता है, कि क्षेत्र में इस्लामिक तरीका और क्षेत्र से बाहर आते ही, आधुनिक या यूँ कहा जाये कि दूसरे समाज के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने में ही अपना हित देखती हैं। फिर ऐसी स्थिति में उनके ऐसे दकियानूसी फतवे कितनी महिलाएं मानेगी? नाख़ून मत काटो, नेल पोलिश मत लगाओ, आज के बदलते परिवेश में फतवा देने वालों को जरूर मनन करना चाहिए।
इसके जवाब में दारुल उलूम की खंडपीठ ने विचार विमर्श करते हुए ये फतवा जारी किया है। देवबंदी उलेमा मुफ्ती हय्यान कासमी ने बताया कि ये सभी रस्में गैर इस्लाम धर्म की हैं। इसलिए निकाह की तारीख लाल रंग के खत पर लिख कर भेजना गलत है। लाल रंग खतरे का प्रतीक माना जाता है, इसलिए निकाह जैसे पाक मौके पर लाल खत भेजना इस्लाम में नाजायज बताया गया है। वहीं दुल्हन को मामा की गोद में उठाकर डोली में बिठाना भी गैर इस्लामिक है, जिसके चलते मुसलमानों को गैर इस्लामिक रस्मों से बचना चाहिए। साथ ही महिलाओं के पैरों में बिछूए पहनना वैवाहिक जीवन की पहचान है।
देवबंदी उलेमाओं ने इन रस्मों को गैर इस्लामिक बताते हुए छोड़ देने की नसीहत दी है। इतना ही नहीं गैर इस्लामिक रस्मों को करने और उन रस्मों में शामिल होने पर भी एतराज जताते हुए उन्होंने इस्लामिक दायरे में ब्याह शादी करने हिदायत दी है।
महिलाओं का नेल पॉलिस लगाना भी इस्लाम में हराम
इससे पहले दारुल उलूम देवबंद ने एक महिला के खिलाफ केवल इसलिए फतवा जारी कर दिया है, क्योंकि उसने अपने नाखून पर नेल पॉलिस लगाए थे. फतवा में कहा गया है कि महिलाओं के लिए नाखून काटना और नाखून पर नेल पॉलिस लगाना इस्लाम के खिलाफ है। दारुल उलूम के मुफ्ती इशरार गौरा ने कहा है कि इस्लाम में महिलाएं नाखून पर मेहंदी लगा सकती हैं, नेल पॉलिश गैर इस्लामिक है। दारुल उलूम इससे पहले भी महिलाओं से जुड़ी कई आदतों के खिलाफ फतवा जारी कर चुका है।
अवलोकन करें:--
पिछले साल 21 अक्टूबर को दारुल उलूम देवबंद ने फतवा जारी कर कहा था कि सोशल मीडिया पर मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं की फोटो अपलोड करना नाजायज है। दारूम उलूम देवबंद से एक शख्स ने यह सवाल किया था कि क्या फेसबुक, व्हाट्सअप एवं सोशल मीडिया पर अपनी (पुरुष) या महिलाओं की फोटो अपलोड करना जायज है। इसके जबाव में फतवा जारी करके यह कहा है कि मुस्लिम महिलाओं एवं पुरुषों को अपनी या परिवार के फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करना जायज नहीं है, क्योंकि इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता।
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