रायपुर में संत आशाराम बापू ने भी सोनिया गाँधी को "सोनिया मैडम भारत छोडो" कह कर जोरदार लताड़ा। स्वामी रामदेव, आशाराम बापू के हमलो से कांग्रेसी तिलमिला उठे है, और साधू संतो को राजनीती में दखल नहीं देना चाहिए, ये उनका काम नहीं है आदि आदि अनर्गल बाते कह रहे है। क्या कारण था बाबा रामदेव को रामलीला मैदान से महिला वस्त्रों में भागना पड़ा था? किसके इशारे पर मध्य रात्रि में बिजली गुल करके बाबा रामदेव के साथ किसी अनहोनी घटना को अन्जाम देने का इरादा था? क्यों 7 नवंबर,1966 में गो-हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए प्रदर्शन कर रहे साधु-संतों के खून से पार्लियामेंट स्ट्रीट लहू-लुहान करवाई गयी थी? क्यों दीपावली के शुभ अवसर पर श्रद्धेय शंकराचार्य को गिरफ्तार किया गया था? क्यों निर्दोष स्वामी असीमानन्द, साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित को जेल में डाला गया था? सत्ता या राजनैतिक दलो से जुड़े इन तर्कवीरो को शायद इतिहास का ज्ञान नहीं है भारतीय इतिहास में कल्याणकारी व्यवस्था को स्थापित करने में साधू-समाज की भूमिका न केवल वैचारिक अपितु योद्धा की भी रही है।
इतिहास गवाह है जब भी असुरी शक्तियों ने उत्पात मचाया है, जनता के धन को खाया है, अत्याचार किये है, दमन चक्र चलाया है, तब-तब कोई न कोई साधू संत परशुराम की तरह फरसा ले कर मानव कल्याण के लिए आगे आया है। इतिहास पर नजर दौडाए तो स्वामी दयानंद के शिष्य श्रद्धानंद का अंग्रेजी हुकूमत से टकराना साधू-धर्म के साथ-साथ देश-धर्म के लिए मर-मिटने का यदि मानक उदाहरण है तो स्वामी विवेकानंद का 'दरिद्रनारायण' की स्थापनार्थ किया गया कर्म, साधू-धर्म का पालन करते हुए देश-धर्म का निर्वाह और शोषित-दलित वर्ग को जागृत करने का अनूठा प्रयास था। स्वामी विवेकनद जी व्यक्तित्व,विचारो और क्रांतिकारी दर्शन का प्रभाव सुभाषचंद्र बोस के रूप में दिखाई देता है, जिन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य में आंखिरी किल ठोकी। चार्वाक,अगस्त्य मुनि, गुरु गोरखनाथ, कबीर, ईसा मसीह, गौतम बुद्ध ने साधुकर्म के साथ-साथ देश-धर्म और मानव-धर्म का भी पालन किया। अवलोकन करें:--
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