सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर कुछ महिलाएँ जो राजनीती कर रही हैं, वह निजामुद्दीन दरगाह के मुद्दे पर क्यों चुप हैं? क्या सबरीमाला मन्दिर में 16 वर्ष से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रतिबन्धित होने पर ही नारी उत्पीड़न नज़र आती है? यह हिन्दू धर्म पर प्रहार करने वाली महिलाएँ किन हिन्दू विरोधी ताकतों के हाथ खिलौना बन यह सब ड्रामा कर रही हैं। क्या इन महिलाओं को केवल हिन्दू धर्म में ही कमियाँ नज़र आती हैं? इन हिन्दू विरोधी महिलाओं को नहीं मालूम, कि अन्य धर्मों में कितनी अधिक कमियाँ हैं, जो प्रमाणित करता है कि ये महिलाएँ शोर-शराबा कर हिन्दू धर्म को विश्व में बदनाम कर, अपनी तिजोरिओं को भर, देश का सौहार्द ख़राब करने का प्रयास कर रही हैं। क्या सबरीमाला मन्दिर में एक आयु सीमा की महिलाओं के प्रवेश पर क्या मोदी सरकार के कार्यकाल में प्रतिबन्ध लगा है? लेकिन यही महिला हितैषी निजामुद्दीन दरगाह के गर्भ में महिलाओं के प्रवेश पर आँखे मूंदे हुए हैं, उन्हें डर है, ऐसा करने पर इस तथाकथित महिला हितैषी संगठन पर साम्प्रदायिक, आरएसएस और संघ से जुड़ा होने का आरोप न लग जाए। फिर चर्चा यह भी है कि किसी भी चर्च में 24 दिसम्बर की रात 10 बजे के बाद किसी भी गैर-ईसाई का प्रवेश वर्जित है,--यदि यह बात सही है उस पर सभी छद्दम धर्म-निरपेक्ष खामोश क्यों?
समस्त लोगों को, चाहे वह किसी भी धर्मं अथवा जाति से हों, इन महिलाओं की गतिविधियों से सतर्क रहना चाहिए।
राजधानी दिल्ली में स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के गर्भ गृह में महिलाओं की प्रवेश के अभी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
इसमें प्रवेश के लिए पुणे से लॉ की पढ़ाई करने वाली एक लड़की ने दायर की है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में दिसम्बर 10 को सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने केंद्र, आप सरकार और पुलिस से सोमवार से जवाब मांगा। केंद्र, दिल्ली सरकार और पुलिस के अलावा मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने ‘दरगाह’ के न्यास प्रबंधन को भी नोटिस जारी किया और उनसे 11 अप्रैल 2019 तक याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा।
अदालत कानून की तीन छात्राओं की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिन्होंने दावा किया कि दरगाह तक महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं है। वकील कमलेश कुमार मिश्रा के जरिए दायर याचिका में दावा किया गया है कि हजरत निजामुद्दीन की ‘दरगाह’ के बाहर एक नोटिस लगा है जिसमें अंग्रेजी तथा हिंदी में साफ तौर पर लिखा है कि महिलाओं को अंदर जाने की अनुमति नहीं है।
याचिकाकर्ता ने दावा किया गया है कि 27 नवंबर को जब वह निजामुद्दीन औलिया की दरगाह गई थी तब दरगाह के बाहर महिलाओं के प्रवेश पर निषेध का एक नोटिस टांग दिया गया था। आपको बता दें कि यह दरगाह प्रमुख सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की कब्र पर बनाई गई है। याचिका में केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस और मंदिर के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी करने और इस प्रवेश पर रोक को 'असंवैधानिक' घोषित करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि- 'निजामुद्दीन दरगाह की प्रवृति एक सार्वजनिक स्थान की है और लिंग के आधार पर किसी सार्वजनिक स्थान पर किसी के प्रवेश का निषेध भारत के संविधान के ढांचे के विपरीत है।'
मीडिया रिपोर्ट मुताबिक वकील कमलेश कुमार मिश्रा के माध्यम से दायर पीआईएल में दलील दी गई कि अधिकारियों या दिल्ली पुलिस से बार-बार जानकारी मांगने के बावजूद उन्हें किसी तरह का कोई जवाब नहीं मिला है।
याचिका में सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा है कि जब सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को इजाजत दे सकती है तो यहां क्यूं नहीं। इसमें अजमेर शरीफ दरगाह और हाजी अली दरगाह जैसे कई अन्य मंदिरों का भी उल्लेख किया गया है जो महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगाते हैं।
समस्त लोगों को, चाहे वह किसी भी धर्मं अथवा जाति से हों, इन महिलाओं की गतिविधियों से सतर्क रहना चाहिए।
राजधानी दिल्ली में स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के गर्भ गृह में महिलाओं की प्रवेश के अभी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
इसमें प्रवेश के लिए पुणे से लॉ की पढ़ाई करने वाली एक लड़की ने दायर की है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में दिसम्बर 10 को सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने केंद्र, आप सरकार और पुलिस से सोमवार से जवाब मांगा। केंद्र, दिल्ली सरकार और पुलिस के अलावा मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने ‘दरगाह’ के न्यास प्रबंधन को भी नोटिस जारी किया और उनसे 11 अप्रैल 2019 तक याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा।
अदालत कानून की तीन छात्राओं की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिन्होंने दावा किया कि दरगाह तक महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं है। वकील कमलेश कुमार मिश्रा के जरिए दायर याचिका में दावा किया गया है कि हजरत निजामुद्दीन की ‘दरगाह’ के बाहर एक नोटिस लगा है जिसमें अंग्रेजी तथा हिंदी में साफ तौर पर लिखा है कि महिलाओं को अंदर जाने की अनुमति नहीं है।
Plea seeking entry of women into the sanctum sanctorum of Nizamuddin Dargah: Delhi HC issues notice to Central govt, Delhi govt & the Dargah trust to respond to the plea. High Court also says that they are awaiting the #Sabarimala review verdict before further hearing the case.
मीडिया रिपोर्ट मुताबिक वकील कमलेश कुमार मिश्रा के माध्यम से दायर पीआईएल में दलील दी गई कि अधिकारियों या दिल्ली पुलिस से बार-बार जानकारी मांगने के बावजूद उन्हें किसी तरह का कोई जवाब नहीं मिला है।
याचिका में सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा है कि जब सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को इजाजत दे सकती है तो यहां क्यूं नहीं। इसमें अजमेर शरीफ दरगाह और हाजी अली दरगाह जैसे कई अन्य मंदिरों का भी उल्लेख किया गया है जो महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगाते हैं।
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