बसन्त पंचमी : भारतीय संस्कृति का वैलेंटाइन डे


आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
पिछले लगभग एक दशक से अधिक समय से हम भारतीयों पर पश्चिमी सभ्यता इतनी अधिक प्रभावित कर गयी है कि हिन्दू संस्कृति मात्र नाम को ही रह गयी थी। जिसे देखो वैलेंटाइन डे, फादर्स डे, मदर्स डे, फ्रेंडशिप डे, ब्रदर्स डे, फ्लावर्स डे आदि मनाने में व्यस्त रहते हैं। अब मूर्खों को कौन समझाए कि हिन्दू अथवा भारतीय संस्कृति हमें उज्जवल भविष्य और उन्नति का मार्ग-दर्शन करती है। होली, दीपावली, बसन्त, श्राद्ध, नवरात्रे, दशहरा आने वाले मौसम का संकेत देते हैं। समाज को सन्देश देते हैं, जिसे जानने का हम लेशमात्र भी प्रयत्न नहीं करते। बस एक दिन फादर्स, मदर्स और ब्रदर्स डे आदि मनाने में हज़ारों रूपए फूंक देते हैं। उसके बाद कौन किस की माँ, बाप या भाई। यही कारण है आज देश में ओल्ड ऐज होम और वृद्ध आश्रम खुल रहे हैं और गुरुकुल का स्थान साधु-संतों के आश्रमों ने ले लिया है। 
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हिन्दुओं में रक्षा बन्धन और भाई दूज क्या है इनका अर्थ? यह नहीं बहन ने टीका कर भाई के हाथ कलावा, राखी बांध दी और भाई ने कुछ रूपए अथवा कोई उपहार बहन को दे दिए, बस हो गया त्यौहार। ये बहन जो अपने भाई के हाथ में कलावा और राखी बांधती है, यह इस बात को दर्शाता है कि बहन अपने इष्ट देवता से अपने भाई को हर संकट से बचाने की प्रार्थना करती है। भाई के हाथ  कलावा अथवा राखी कोई प्रदर्शनी नहीं, बल्कि यह कलावा अथवा राखी बांधने के साथ अपने भाई की इन्द्रियों को भी बांधती है ताकि उसका भाई किसी कुसंगत से दूर रहकर माता-पिता का नाम रोशन करे। जबकि पश्चिमी सभ्यता में मनाये जाने वाला brother अथवा sister day मात्र एक छलावा है।    
इसी भाँति अब कुछ दिनों उपरान्त वैलेंटाइन डे आएगा, देखना कितने युवा और युवतियाँ पार्कों में मस्ती करते नज़र आएंगे, जबकि भारतीय संस्कृति में बसन्त का त्यौहार क्यों होता है, और क्या सन्देश देता है, पश्चिमी सभ्यता के आगे सब भूल गए। वैलेंटाइन डे होता एक केवल दिन, जबकि बसंत ऋतु से ठंठ कम होने के कारण जो मीठी-मीठी ठंठ होती है, शरीर के हर अंग को प्रफुल्लित करती है और यह लगभग एक मास तक प्रभावी होता है। अब स्वयं सोंचिए वैलेंटाइन डे अच्छा है या भारतीय संस्कृति का बसन्त ?  
हिन्दू संस्कृति को अगर देखें हमारे इतने तीज-त्यौहार हैं और तीज-त्यौहार का अपना महत्व है। विश्व में कोई ऐसा त्यौहार ऐसा नहीं है, जो अपने आगमन पर मौसम और जनजीवन में आते बदलाव को सूचित करता हो।
बसंत पंचमी को वसंत ऋतु के आगमन के उपलक्ष्‍य के तौर पर भी मनाया जाता है। इस दिन से सुहाना मौसम माहौल को रूमानी बना देता है। इसकी वजह वसंत और कामदेव की दोस्‍ती मानी जाती है।
यही वजह है कि वसंत पंचमी वाले द‍िन कामदेव और रति की खास पूजा की जाती है। बता दें क‍ि शास्‍त्रों में कामदेव को प्रेम का देवता माना गया है। वसंत पंचमी की तर्ज पर दुनिया के अन्य देशों में भी वसंतोत्सव से मिलता-जुलता उत्सव मनाया जाता है। वेलेंटाइंस डे भी इसी की एक कड़ी है। वहीं माना जाता है क‍ि शिव रात्रि को विवाह से पहले इसी दिन भगवान शंकर का तिलकोत्सव हुआ था।
कामदेव की ऋतु वसंत 
यह ऋतु कामदेव की ऋतु है। मान्यता है कि कामदेव इस दिन से मौसम को मादकता से भर देते हैं। इस दौरान मनुष्यों के शरीर में भी कई तरह के बदलाव होते हैं। इन कारणों से इस दिन को कई जगहों पर खास कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा के साथ भी मनाया जाता है और नए खुशनुमा प्यार भरे मौसम का स्वागत किया जाता है।
कैसे करें कामदेव का पूजन 
पुराण समुच्चय के अनुसार वसंत पंचमी के अवसर पर रति और कामदेव पूजन गृहस्थ सुख में चार चांद लगाने वाला होता है। बसंतपंचमी को उत्तम वेदी पर वस्त्र बिछाकर अक्षतों का कमल दल बनाएं। उसके अग्र भाग में गणेश जी और पिछले भाग में वसंत स्थापित करें। फिर सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें। इसके बाद पीछे वाले पुंज में रति और कामदेव का पूजन शुरू करें। पहले उन पर अबीर और फूल डालकर वसंत सदृश बनाएं।
इसके बाद इस मंत्र का जाप करें- 
शुभा रतिः प्रकर्तव्या वसंतोज्ज्वलभूषणा। 
नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता।। 
वीणावादनशीला च मदकर्पूरचर्चिता। 
कामदेवस्तु कर्तव्यो रूपेणाप्रतिमो भुवि। 
अष्टबाहुः स कर्तव्यः शङ्खपद्मविभूषणः।। 
चापबाणकरश्चैव मदादञ्चितलोचनः। 
रतिः प्रीतिस्तथा शक्तिर्मदशक्ति-स्तथोज्ज्वला।। 
चतस्रस्तस्य कर्तव्याः पत्न्यो रूपमनोहराः। चत्वारश्च करास्तस्य कार्या भार्यास्तनोपगाः। केतुश्च मकरः कार्यः पञ्चबाणमुखो महान। 
इसके बाद कामदेव और रति को विविध प्रकार के फल, फूल और पत्रादि समर्पित करें। 
ऐसे रखा जाता है कामदेव को प्रसन्‍न करने का व्रत 
मान्यता है कि मदनोत्सव पर रति व कामदेव की उपासना पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी होती है। इसी दिन पाप नाश और स्वर्ग की कामना से एक और अनुष्ठान शुरू किया जा सकता है। मन्दारषष्ठी नामक यह व्रत तीन दिवसीय होता है। 
भविष्योत्तर पुराण के अनुसार माघ शुक्ल पंचमी को संपूर्ण कामना का त्याग कर दें। षष्ठी को स्नानादि के बाद ब्राह्मण से अनुमति लेकर दिन भर व्रत रखें और रात्रि में मंदार के पुष्प (आक) का भक्षण कर उपवास करे। सप्तमी सुबह में स्नान व ब्रह्मण पूजन कर मंदार फूल से अष्टदल कमल बनाकर स्वर्णनिर्मित सूर्यनारायण की मूर्ति की स्थापना कर पूजन करें। बाद में उस मूर्ति को किसी ब्राह्मण को दे दें। पुराण के अनुसार इससे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्ग में जाता है।

ये हैं सरस्‍वती पूजा के मंत्र

बसंत पंचमी को हिंदू धर्म में खासा महत्‍व द‍िया गया है। इस द‍िन विद्या की देवी माने जाने वाली सरस्‍वती मां का पूजन किया जाता है। छात्रों और कलाकारों के लिए ये पूजा आवश्‍यक मानी जाती है। 
कुछ प्रदेशों में इस दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना पढ़ना सिखाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह पंचमी तिथि को मनाया जाता है। जिस दिन पंचमी तिथि सूर्योदय और दोपहर के बीच व्यापत रहती है उस दिन को सरस्वती पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसीलिए कुछ वर्षों से वसंत पंचमी चतुर्थी तिथि को पड़ जाती है।
बसंत पंचमी पर करें इन मंत्रों का जाप 
बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की वंदना और विधि विधान से पूजा करने का बेहद महत्व है। देवी सरस्वती को बुद्धि, ज्ञान, गायन, संगीत, कला और वाणी का पोषक माना जाता है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन इनकी पूजा करने से देवी की कृपा हमेशा मनुष्य पर रहती है और वो अपने गुणों के बल पर सफलता और उन्नति प्राप्त करता है। इस दिन कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिन्हें करना आपको हमेशा सफलता दिलाता है।
बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा के साथ सरस्वती चालीसा पढ़ना और कुछ मंत्रों का जाप आपकी बुद्धि प्रखर करता है। अपनी सुविधानुसार आप ये मंत्र 11, 21 या 108 बार जाप कर सकते हैं।
मां सरस्वती पूजा पर ये सभी मंत्र या इनमें किसी भी एक मंत्र का जाप करें:
1. सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने
विद्यारूपा विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते॥
2. या देवी सर्वभूतेषू, मां सरस्वती रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
3. ऐं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां।
सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।।
4. एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र
ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।
5. वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ।।
6. सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।
7. प्रथम भारती नाम, द्वितीय च सरस्वती
तृतीय शारदा देवी, चतुर्थ हंसवाहिनी
पंचमम् जगतीख्याता, षष्ठम् वागीश्वरी तथा
सप्तमम् कुमुदीप्रोक्ता, अष्ठमम् ब्रह्मचारिणी
नवम् बुद्धिमाता च दशमम् वरदायिनी
एकादशम् चंद्रकांतिदाशां भुवनेशवरी
द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेनर:
जिह्वाग्रे वसते नित्यमं
ब्रह्मरूपा सरस्वती सरस्वती महाभागे
विद्येकमललोचने विद्यारूपा विशालाक्षि
विद्या देहि नमोस्तुते”
8. स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए - 
जेहि पर कृपा करहिं जन जानि।
कवि उर अजिर नचावहिं वानी॥
मोरि सुधारहिं सो सब भांति।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाति॥
9. गुरु गृह पढ़न गए रघुराई।
अलप काल विद्या सब पाई॥
ये करें दान 
विद्या और ज्ञान वृद्धि के लिए इस दिन गरीब बच्चों को किताबें और कॉपियां, कलम जैसी पढ़ाई के लिए उपयोगी चीजें बांटना भी अच्छा माना जाता है।
क्या ना करें
गुरु और माता-पिता हमेशा ही पूजनीय होते हैं, लेकिन इस दिन विशेषकर इनका अपमान ना करें। किताबें-कॉपियां ना बेचें या किसी गरीब का मजाक ना उड़ाएं।

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