26/11 के बाद ही मिट जाता बालाकोट, लेकिन मनमोहन सरकार ने नहीं दी थी इजाजत

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
संजय बरुआ द्वारा लिखित पुस्तक "Accidental Prime Minister" वास्तव में डॉ मनमोहन सिंह ने चरितार्थ कर दिया। क्योकि वह इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री जरूर थे, लेकिन किसी निर्णय को लेने की इजाजत नहीं थी। चाहे वह सरकार की नीतियों को किर्याविन्त करने की बात हो अथवा राष्ट्रहित में किसी निर्णय को लेने की। आज जो इच्छाशक्ति वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में है, डॉ सिंह में भी कम नहीं थी। दुर्भाग्य से उन्हें किसी दबाव में आकर अपनी राजनैतिक शक्ति का गला घोंटना पड़ा। अन्यथा, जिन नीतियों लागू कर, मोदी ने दृढ शक्ति को दर्शाया, वैसा डॉ सिंह नहीं कर पाए। 
विपरीत इसके पाकिस्तान के विरुद्ध किसी सख्त कार्यवाही को अंजाम देने की बजाए "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" का नाम देकर भारत सहित विश्व को भ्रमित करने में व्यस्त रहे। आखिर वह क्या कारण थे कि तत्कालीन यूपीए वर्तमान मोदी सरकार की भाँति पाकिस्तान पर नकेल नहीं डाल पायी? तत्कालीन सरकार ने देशहित की बजाए तुष्टिकरण को ही सर्वोपरि मान लगभग हर आतंकी हमले में आतंकियों को संरक्षण देती रही। यदि पिछली सरकारें आतंकवाद पर प्रहार करती कश्मीर में आतंकवादी और पत्थरबाजों को कभी का ठिकाने लगा दिया होता। 
फिर कंधार को सब रो रहे हैं, लेकिन भूतपूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद के कार्यकाल में उनकी पुत्री डॉ रुबैया के तथाकथित अपहरण की आड़ में छोड़े गए हुर्रियत नेताओं की रिहाई के बारे में किसी की आवाज़ नहीं निकलती। यदि उस समय इन हुर्रियत नेताओं को रिहा करने के लिए तथाकथित डॉ रुबिया अपहरण ड्रामा नहीं खेला होता, कश्मीर में न आतंकवाद पनपता और न ही हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा पर देशहित में खर्च होने वाले करोड़ों रूपए बर्बाद होते। और न ही कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर निकाला जाता।   
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट के जिस आतंकी शिविर पर कहर बरपाया था, उसका नामोनिशान 10 साल पहले ही मिट सकता था। मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले के बाद ही भारतीय सेना के तीनों अंगों ने मिलकर पाकिस्तान को सबक सिखाने की व्यापक योजना भी बना ली थी, जिसमें बालाकोट को लड़ाकू विमान से उड़ाना भी शामिल था। लेकिन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने सेना को इस कार्रवाई की इजाजत ही नहीं दी थी।
सेना के उच्च पदस्थ सूत्रों ने अमर उजाला को बताया कि पुलवामा के बाद करीब दस साल पहले बनी तकरीबन यही योजना नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा एनडीए सरकार के सामने रखी गई थी, जिसे पूरा करने की इजाजत देकर मोदी सरकार ने आतंक के खिलाफ लड़ाई का नया मापदंड तैयार कर दिया है। सेना की खुफिया इकाई के मुताबिक, दस साल पहले मुंबई हमले के समय भी बालाकोट का आतंकी ठिकाना पाकिस्तानी एजेंसियों की सरपरस्ती में पूरी तरह सक्रिय था। 
हालांकि मुंबई हमले में लश्कर-ए-ताइबा का हाथ था और बालाकोट का यह ठिकाना जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा है। लेकिन सेना ने उस समय पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए बनाई व्यापक योजना के तहत उसकी सरपरस्ती वाले सभी आतंकी संगठनों के खिलाफ एक साथ मोर्चा खोलने का निर्णय लिया था। इस योजना को परवान चढ़ाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) एमके नारायणन के साथ तीनों तत्कालीन सेना प्रमुखों की कई बैठकें भी हुईं। 
इन बैठकों में हमले का अंतिम खाका भी तैयार कर लिया गया था। लेकिन उस दौरान भारत और अमेरिका के बीच परवान चढ़ रही ऐतिहासिक सिविल परमाणु करार की कवायद आड़े आ गई। तत्काीन यूपीए सरकार ने देश को ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलंबी बनाने के मकसद से अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ यह कवायद शुरू की थी। अमेरिका ने भी भारत को परमाणु ईंधन व तकनीक मुहैया कराने के लिए अपनी संसद में कई बिलों में संशोधन किया था। 
संभवत: अमेरिका ने ही भारत को इस कूटनीतिक प्रगति के दौरान युद्ध से दूर रहने की सलाह दी थी। इसी वजह से लंबी मंत्रणा के बाद तत्कालीन सरकार ने कूटनीतिक नजरिया अपनाकर बड़ी सैन्य कार्रवाई से हाथ खींच लिए थे और पाकिस्तान को दूसरे तरीके से घेरे में लेने का निर्णय लिया था।
पाक को पोल खुलने का डर, 9 दिन में तीसरी बार मीडिया को बालाकोट जाने से रोका

पाकिस्तान बालाकोट में भारतीय वायुसेना की एयर स्ट्राइक के सच को दुनिया से छिपाने की कोशिश में लगा है। इसके चलते पाकिस्तान के सुरक्षा अधिकारी मीडिया को उस पहाड़ी पर जाने से रोक रहे हैं, जहां भारतीय वायुसेना ने हमला किया था। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की टीम को इलाके में आम जनता से तो मिलने दिया गया, लेकिन बृहस्पतिवार को 9 दिन में तीसरी बार पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने सुरक्षा का बहाना बनाकर उन्हें घटनास्थल तक जाने से रोक दिया। 
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मीडिया टीम को मदरसे से करीब 100 मीटर नीचे ही रोक दिया गया है। लेकिन वहां से कुछ भी नहीं दिख पा रहा। दरअसल, जिन इमारतों में भारतीय वायुसेना ने मिसाइलें दागीं थीं, वे पेड़ों से घिरी हैं। बता दें कि पहले पाकिस्तान सरकार ने कहा था कि वह अंतरराष्ट्रीय मीडिया को एयर स्ट्राइक की जगह पर ले जाकर भारतीय दावों का झूठ दिखाएगी। हालांकि बाद में मीडिया को ले जाने की बात टाल दी गई थी।

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