भाजपा का 2 से 282 सीटों का सफर

आर.बी.एल. निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
भारत की आजादी के काफी समय बाद अस्तित्व में आई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मौजूदा समय में देश की सबसे मजबूत पार्टी बन गई है। भाजपा को शुरू में उत्तर भारत और ब्राह्मण-बनियों की पार्टी कहा गया था। लेकिन अब इस पार्टी ने धीरे-धीरे अपना दायरा समाज के सभी वर्गों एवं क्षेत्रों में बढ़ा लिया है। 1980 से अपने राजनीतिक सफर पर निकली इस पार्टी को पहली बार 2014 में स्पष्ट बहुमत मिला और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनी। भाजपा अकेले दम पर 282 सीटें जीतने में कामयाब हुई। भाजपा अब विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है।
भारत में लागू "एक देश, दो विधान, दो प्रधान" के विरोध में जन्मी भारतीय जनसंघ 
भाजपा की जड़ें भारतीय जनसंघ से निकली हैं। जनसंघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राजनीतिक इकाई थी। जनसंघ की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में की थी। जनसंघ की स्थापना से पूर्व डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल में केन्द्रीय उद्योग मंत्री थे। देश में लागू "एक देश, दो विधान", यानि जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला और शेष भारत का जवाहर लाल नेहरू, जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और शेष भारत का अलग, जम्मू-कश्मीर में बिना परमिट के प्रवेश निषेध था, जबकि भारत के किसी भी प्रान्त में चाहे जब आने-जाने की कोई पाबन्दी नहीं थी। डॉ मुख़र्जी ने प्रधानमंत्री नेहरू से जब इसका विरोध किया, नेहरू के यह कहने पर कि "नहीं वहाँ ऐसा ही होगा।" डॉ मुख़र्जी ने इसका घोर विरोध किया और संसद से त्यागपत्र देकर, दोनों प्रधानमंत्रियों नेहरू और शेख अब्दुल्ला, को इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए ललकारते हुए, बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर के लिए कूच किया। लेकिन जम्मू प्रवेश तक कोई समस्या नहीं हुई, परन्तु जैसे ही उन्होंने कश्मीर में प्रवेश किया, जम्मू-कश्मीर के प्रधानमन्त्री शेख अब्दुल्ला ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बंद कर मार दिया। डॉ मुखर्जी का ही बलिदान था कि जम्मू-कश्मीर से परमिट सिस्टम समाप्त कर शेख से प्रधानमंत्री पद छीन जेल में बंद कर दिया गया था। डॉ मुख़र्जी के इस बलिदान इतिहास को जनता से छुपाया गया। 
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भूली बिसरी यादें : इतिहास के धूमिल पृष्ठों से भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी...

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जम्‍मू एवं कश्‍मीर के पूर्व मुख्‍यमंत्री व नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला अक्‍सर 
जनसंघ ने हिन्दू रीति-नीति के अनुरूप भारत को नए सिरे से एकजुट करने पर जोर दिया। 1967 के करीब जनसंघ को हिन्दी पट्टी के राज्यों  में पकड़ बनने लगी। धीरे-धीरे जनसंघ को एक राजनीतिक पार्टी की जरूरत महसूस हुई, और अटल बिहारी वाजपेयी, पंडित दीन दयाल उपाध्याय, प्रेम डोगरा, प्रो बलराज मधोक, लाल कृष्ण आडवाणी,और डॉ मुरली मनोहर जोशी आदि ने जनसंघ को राजनीती के मैदान में   और आगे चलकर अटल बिहारी वाजपेयी ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। इसके बाद भाजपा हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर आगे बढ़ी। हिंदू मूल्यों के अनुरूप भारतीय संस्कृति को परिभाषित करने के लिए इस पर सांप्रदायिक पार्टी होने के आरोप लगे। भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाया। राम मंदिर के मुद्दे ने उसके लिए हिंदू वोटों के ध्रूवीकरण का काम किया और इसका राजनीतिक लाभ भी उसे मिला। राम मुद्दे पर अपनी चुनावी राजनीति को धार देने वाली भाजपा 1991 में लोकसभा की 117 सीटें जीतने में कामयाब रही और चार प्रदेशों में उसकी सरकारें बनीं। 
दिसंबर 1992 में भारतीय राजनीति को प्रभावित करने वाली एक बड़ी घटना हुई। छह दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिरा दिया। केंद्र में कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। बाबरी विध्वंस की घटना ने पूरे देश को सांप्रदायिक दंगे की आग में झोंक दिया। दो संप्रदायों के बीच हुई हिंसक झड़पों में करीब 1000 लोग मारे गए। साल 1996 के आम चुनावों में भाजपा केंद्र में सबसी बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाई लेकिन यह सरकार ज्यादा समय तक नहीं बल्कि 13 दिनों तक ही चल पाई। 
1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सरकार बनाई लेकिन एआईएडीएमके द्वारा अपना समर्थन वापस ले लेने पर वाजपेयी की सरकार 13 महीनों बाद गिर गई। लोकसभा में वाजपेयी विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने समान विचारधारा वाले दलों को साथ लेकर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में राजग गठबंधन को 294 सीटें मिलीं। वाजपेयी एक बार फिर देश के पीएम बने। इस बार उन्होंने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ कश्मीर मुद्दा सुलझाने का गंभीर प्रयास किया। अमन और शांति का पैगाम लेकर उन्होंने बस से लाहौर की यात्रा की। अपने पांच साल शासन के दौरान वाजपेयी ने आधुनिक भारत बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। 1998 में पोकरण में परमाणु परीक्षण, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की उपलब्धियों ने भारत को दुनिया में एक उभरती ताकत के रूप में प्रतिष्ठित किया। 
2004 के लोकसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की राजग की उम्मीदों को झटका लगा। वह दोबारा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। इस आम चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) को सफलता मिली। यही नहीं भाजपा का प्रदर्शन 2009 के आम चुनावों में भी निराशाजनक रहा। भाजपा 2009 में 116 सीटों पर सिमट गई। 2004 में उसे 137 सीटें मिली थीं। यूपीए के पिछले 10 वर्षों के शासन के दौरान उपजी सत्ता विरोधी लहर ने केंद्र में भाजपा की वापसी की जमीन तैयार की। नरेंद्र मोदी के आक्रामक चुनाव प्रचार के सामने विपक्ष टिक नहीं पाया। 2014 के आम चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत मिली। जबकि भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन 336 सीटें जीतने में सफल रहा। भाजपा अकेले अपने दम पर 282 सीटें जीतने में कामयाब हुई। मोदी लहर में विपक्ष के सारे समीकरण धरे के धरे रह गए।इस चुनाव में कांग्रेस को मात्र 44 सीटें मिलीं।  
नरेंद्र मोदी ने अपने पांच साल के शासन में नोटबंदी और जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए। भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और आर्थिक भगोड़ों को पकड़ने के लिए कानूनों को सख्त किया। अपनी योजनाओं के जरिए किसानों और मध्यमवर्ग को राहत दी। आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक का सहारा लिया। भाजपा अपनी सरकार की उपलब्धियों को लेकर एक बार फिर चुनावी मैदान में है। उसे उम्मीद है कि पांच साल के शासन के दौरान सरकार ने देश के विकास के लिए जो कदम उठाए उसका लाभ उसे मिलेगा। भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। 
हिन्दुओं को क्या मिला क्या नहीं मिला, वह नहीं समझ नहीं रहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुओं को वो सम्मान दिया, जिसे कुर्सी के भूखे नेताओं ने नहीं दिया और न ही देने का प्रयास किया। मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पूर्व हिन्दुओं को "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम से कलंकित किया जा रहा था, लेकिन मोदी ने उस कलंक को धो दिया।  

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