इन्दिरा गाँधी : न्यायालय के आदेश को ठेंगा दिखा आपातकाल घोषित कर बेकसूरों को जेलों में भरा था

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                                                                              चित्र साभार  : जनसत्ता 
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
आज कांग्रेस और कांग्रेस समर्थक पार्टियाँ वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लोकतंत्र का गला घोटने, तानाशाही आदि का आरोप लगा कर जनता को भ्रमित किया जा रहा है, लेकिन ये सभी पार्टियाँ भूल रही हैं कि इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री रहते किस तरह से तानाशाही रवैया अपनाते, न्यायालय, मीडिया और हिन्दुओं पर कितने अत्याचार किये थे। जब चुनाव में धांधली के आरोप में सोशलिस्ट नेता राजनारायण(जनता पार्टी राज में स्वास्थ्य केन्द्रीय मंत्री रहे) ने कोर्ट में पराजित किया और कोर्ट ने आदेश में इंदिरा गाँधी को पदमुक्त किया था, परन्तु इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल घोषित कर विरोधियों को आधी रात से जेलों में भरना शुरू कर दिया था। आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी एवं अन्य नेता और इनके समर्थक किस मुँह से मोदी पर तानाशाह का आरोप लगा रहे हैं। बल्कि इस मुद्दे पर मीडिया को भी निर्भीकता से इन मुद्दों को उठाना चाहिए। विशेषकर, रामनाथ गोयनका पुरस्कार लेने पत्रकारों को। रामनाथ गोयनका ने आपातकाल में तानाशाह प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी का मुकाबला किया था। 7 नवम्बर 1966 को गौ-हत्या का विरोध कर रहे निहत्थे साधु-सन्तों पर गोली चलवाकर दिल्ली में पार्लियामेंट स्ट्रीट बेगुनाहों के खून से लाल करवाने वाली तत्कालीन तानाशाह इंदिरा गाँधी ही थी।       
इंदिरा प्रियदर्शनी गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में हुआ। इंदिरा साल 1966 से 77 और 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वह जवाहरलाल नेहरू की एक मात्र संतान थीं। इंदिरा ने शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल)(स्मरण हो, इनके चाल-चलन के कारण रविन्द्र नाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन से निकाल दिया था।) और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई की और 1938 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुईं। उन्होंने 1960 में कांग्रेस पार्टी के नेता फिरोज गांधी से निकाह किया। इंदिरा गांधी के दो बच्चे हुए राजीव गांधी और संजय गांधी। इंदिरा गांधी की राजनीति में दिलचस्पी शुरुआत से ही रही। वह बचपन से अपने पिता के साथ राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थीं और यात्राएं करती थीं।
1947 में कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आते ही इंदिरा की सक्रिय राजनीति में शुरुआत हो गई। वह 1955 में कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की सदस्य बन गईं। वह पहली बार 1964 में राज्यसभा की सदस्य बनीं। जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने। शास्त्री की सरकार में उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का विभाग दिया गया।
कांग्रेस का विभाजन 
1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष और प्रधानमंत्री बनाया गया। प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा की राजनीतिक चुनौतियों का दौर शुरू हो गया। इंदिरा के नेतृत्व को मोरारजी देसाई और पार्टी के पुराने नेताओं से चुनौती मिलती रही। राजनीति में देसाई के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए इंदिरा को उन्हें उप प्रधानमंत्री तक बनाना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। इंदिरा राजनीतिक चुनौतियों से घबराई नहीं और उन्होंने न्यू कांग्रेस पार्टी के नाम से नए राजनीतिक दल का गठन किया। साल 1971 के आम चुनाव में इंदिरा ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया। साल 1971 इंदिरा गांधी के लिए बेहम कामयाब रहा। उन्होंने में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश बनवा था। इस फैसले ने उनकी छवि आयरन लेडी के रूप में गढ़ी। उन्होंने सबसे पहले बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान ) को एक सरकार के रूप में मान्यता दी।
न्यायालय के आदेश को ठेंगा दिखा आपातकाल घोषित 
1975 में चुनाव में धांधली  करने का दोषी पाए जाने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के खिलाफ अपना फैसला सुनाया। कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया। हालांकि उन्होंने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया था। इंदिरा गांधी ने हाईकोर्ट का फैसला मानने से इंकार कर दिया था और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी थी। संजय गांधी भी नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता चली जाए। वहीं जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में पूरा विपक्ष एकजुट होकर इंदिरा के सामने खड़ा हो गया था। पूरे देश में इंदिरा के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। सरकार विपक्ष के आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार ने कड़े रुख अपनाया।  अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव समेत विपक्ष के तमाम नेता जेल में बंद कर दिया था। संजय ने भी खूब मनमानी की। इस मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली। राजनीतिक सत्ता अपने हाथ से फिसलते देख उन्होंने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इस दौरान विरोधी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाई गई। आपातकाल के दौरान सरकार ने जनसँख्या को नियन्त्रित करने के उद्देश्य से नसबंदी का दुरूपयोग किया गया। यहाँ तक की भिखारियों, रिक्शा चालक एवं झल्ली ढोने वालों तक की पकड़-पकड़ कर जबरदस्ती नसबंदी कर दी गयी थी। अध्यापक और सरकारी कर्मचारियों को अपनी वार्षिक वेतन वृद्धि और पदोन्नति लेने की लिए कम से कम दो नसबन्दी के केस लाने के लिए मजबूर किया गया था, और ऐसा न करने पर उनका सुदूर इलाकों में ट्रांसफर कर दिया जाता था। 
फिल्मों एवं गीतों पर पाबन्दी 
चर्चित गायक किशोर कुमार द्वारा किसी कार्यक्रम में फ्री में गीत गाने के कारण, फिल्मों और रेडियो पर उनके गानों पर पाबन्दी लगा दी गयी थी। फिल्म "रोटी,कपडा और मकान" के चर्चित गीत "हाय महँगाई तू कहाँ से आयी...", फिल्में "किस्सा कुर्सी का", "आंधी" आदि फिल्मों पर पाबन्दी लगा दी गयी थी।  
समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं पर Censorship 
Related imageआपातकाल के वक्त देश का चौथा स्तंभ माने जाने वाला मीडिया का भी खूब उत्पीड़न किया गया था। अखबारों पर सेंसेस बैठा दिया गया था। सेंसरशिप के अलावा अखबारों और सामाचार एजेंसियों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने नया कानून बनाया । जिसके बाद देशभर में आपत्तिजनक सामाग्री पर रोक लगा दी गई। कानून के बारे में बोलते हुए कहा था कि इसके जरिए संपादकों की स्वतंत्रता की समस्या का हल हो जाएगा। सरकार ने उस वक्त चारों सामाचार एजेंसियों  पीटीआई, यूएनआई, हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती को खत्म करके उन्हें ‘समाचार’ नामक एजेंसी में तबदील कर दिया था।
आपातकाल में बिना सरकार की इजाजत के बिना कोई प्रकाशित नहीं कर सकता था। प्रमाण के लिए उस समय के Indian Express को देखा जा सकता है। सरकार के विरुद्ध समाचार को सेंसर कर दिया जाता था, संघ समर्थित कई पत्र/पत्रिकाओं जैसे Motherland(अंग्रेजी दैनिक), Organiser और पाञ्चजन्य आदि पर ऐसा अंकुश लगाया गया कि तत्कालीन अत्याचारों के चलते प्रकाशन असम्भव था। 
भाईयों और बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है। ये शब्द थे उस दौर की सबसे ताकतवर महिला और त्तकालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के।  25 जून 1975 में आधी रात को देशभर में  आपातकाल की घोषणा की गई थी। ये आपातकाल 21 मार्च 1977 तक रहा। ये देश के इतिहास का वो काला अध्याय है जिससे याद कर आज भी लोगों की आंखे नम हो जाती है। कहा जाता है कि आपातकाल लागू होने के बाद लोगों से उनके अधिकार छीन लिए गए थे। 
लोगों के पास नहीं रहे थे अधिकार 
इमरजेंसी के दौरान भारत एक जेल में तबदील हो गया था। नागरिकों के सारे मौलिक अधिकार भी छीन लिए गए थे। नागरिकों के अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था कि आपातकाल के दौरान नागरिकों को अधिकारों के हनन हुआ था। 
वकीलों और जजो को भी नहीं बख्शा गया 
इस दौरान नागरिकों के साथ भी खूब दुर्व्यवहार किया। नागरिकों के अधिकारों की रक्षा  करने वालें वकीलों को भी बख्शा नहीं गया और खासकर बार काउंसिल के अध्यक्ष राम जेठमलानी को। उन्हें सबक सिखाने के लिए संसद के कानून द्वारा अटॉर्नी जनरल को इसका अध्यक्ष बना दिया गया बाकी जिन भी 42 जजों ने नजरबंदियों के मुकदमों में न्यायसंगत दिए या देने की कोशिश की उन सभी का तबादला कर दिया गया।  
1977 में जनता ने कांग्रेस को सत्ता से हटाया 
कांग्रेस पार्टी को आपातकाल का नतीजा 1977 के आम चुनावों में भुगतना पड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा और देश में पहली बार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। यह देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी।
1978 की शुरुआत में इंदिरा ने कांग्रेस (आई) पार्टी बनाई। अक्टूबर 1977 से दिसंबर 1978 के बीच कुछ समय के लिए वह जेल में भी रहीं। इन झटकों के बावजूद वह 1978 में लोकसभा सीट जीत गईं और उनकी पार्टी एक बार फिर से जनता में अपनी पकड़ बनाने लगी। 1980 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो उनकी पार्टी कांग्रेस (आई) बहुमत से जीतकर सत्ता में आई। इंदिरा के पीएम बनने के बाद उनके बेटे संजय गांधी उनके राजनीतिक सलाहकार बने। इसके बाद इंदिरा और संजय के खिलाफ सभी मुकदमों को वापस ले लिया गया। 1980 में संजय गांधी की एक विमान हादसे में मौत हो गई। संजय की मौत के बाद इंदिरा ने अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में राजीव गांधी को तैयार करना शुरू किया।
अवलोकन करें:-
इस खण्‍ड में लिखा गया है कि इंदिरा ‘बिस्‍तर में बेहद अच्‍छी थीं’ औरं सेक्‍स में ‘वह फ्रेंच महिलाओं और केरल नायर महिलाओं का मिश्रण थीं।’ किताब में यह भी दावा किया गया है कि वह लेखक (मथाई) से गर्भवती हो गई थीं और गर्भपात कराना पड़ा। कई अपुष्‍ट ऑनलाइन वर्जन में इंदिरा के हवाले से कहा गया कि इंदिरा गाँधी ने एक बार कहा था कि वो किसी हिन्दू के साथ अफेयर तो कर सकती है, लेकिन किसी हिन्दू के साथ शादी नहीं कर सकती।’
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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार जब हम पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की बात करते हैं, तो कई कांग्रेसी कहते हैं कि वह ....


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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार क्या कांग्रेसी हिन्दू गो मांस की इस तरह दावत के लिए 
नब्बे दशक की शुरुआत में इंदिरा गांधी को पंजाब में बढ़ते अलगाववाद का सामना करना पड़ा। जरनैल सिंह भिंडरवाला पंजाब से अलग खालिस्तान की मांग कर रहा था। उसने अपनी इस मांग के लिए हिंसा का रास्ता चुना था। 1982 में भिंडरावाले अपने गुट के सदस्यों के साथ हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) पर कब्जा कर लिया। 1984 में इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने के लिए सेना को आदेश दिया। सेना स्वर्ण मंदिर में दाखिल हुई और भिंडरावाला को उसके साथियों के साथ मार गिराया। सेना की इस कार्रवाई से सिख समुदाय में असंतोष एवं नाराजगी फैली और इसके पांच महीने बाद इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बने। राजीव 1989 तक देश के पीएम रहे।

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