जनसेवा के नाम पर लूटपाट करने आए छद्दम नेताओं में होती घबराहट

आर.बी.एल. निगम,वरिष्ठ पत्रकार 
आम चुनाव 2019 में मिली हार के बाद कांग्रेस में मंथन का दौर जारी है। इस चुनाव में वो कौन सा शख्स है जिसकी वजह से पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस से कुछ ही समय पूर्व जुड़े अल्पेश ठाकोर ने सनसनीखेज दावा किया है। अल्पेश ठाकोर ने कहा कि जिस उम्मीद के साथ वो कांग्रेस के साथ जुड़े थे ऐसा लग रहा है कि वो जनता के साथ साथ खुद से भी न्याय नहीं कर रहे थे। 
हकीकत यह है कि जिन लोगों ने राजनीती को जनसेवा के नाम पर मात्र एक व्यवसाय रूपी राजनीती में पदापर्ण कर रहे थे अथवा हैं, उनकी दुकानें बंद होना निश्चित है, चाहे वह किसी भी पार्टी रूपी दुकान में सम्मिलित हुए हैं। आज पार्टियों से अधिक जनता सजग हो रही है। लोकसभा चुनाव में जनता ने केवल प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर राष्ट्रहित में वोट दिया है। मोदी विरोधी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ते रहे मोदी से सबूत मांगते रहे। यदि मोदी विरोधियों ने सबूत मांगने की बजाए मोदी के साथ खड़े होते, भाजपा को इतना प्रचंड बहुमत नहीं मिलता। बहुत जल्दी मोदी से जनता की यह मांग "निर्वाचित सदस्यों की पेंशन बंद हो" मुखरित होने वाली है। जनसेवकों को पेंशन क्यों? पेंशन बंद होने से हर माह करोड़ों की बचत होगी, जो देश निर्माण एवं विकास में काम आएगा। 
Alpesh Thakor: It was our decision & the voice of my conscience that we don't want to be here. We want to work for our people & the poor with help of the govt...Wait and watch, more than 15 MLAs are leaving Congress, everyone is distressed. More than half of the MLAs are upset.
11:48 AM - May 28, 2019   
अल्पेश ठाकोर ने मई 27 को गुजरात के डिप्टी सीएम नितिन पटेल से मुलाकात की थी। उस मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि वो बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। लेकिन अल्पेश ठाकोर ने कहा कि वो अपने इलाके में पानी की समस्या को लेकर मिले थे। ये बात अलग है कि आज उन्होंने बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि इंतजार करिए और देखिये कि आगे क्या होता है। कांग्रेस के 15 से ज्यादा विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं. हर कोई मुश्किल में है। सच तो ये है कि आधा से अधिक विधायक अपसेट हैं।
अल्पेश ठाकोर ने कहा कि वो अपने लोगों के लिए काम करना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें लगता है कि सरकार के साथ मिलकर गरीब प्रजा के लिए कुछ बेहतर काम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ लोगों की उम्मीदें टिकी हुई थीं। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व कंफ्यूज्ड है उसका असर गुजरात में भी दिखाई दे रहा है।
बिहार में लालू यादव की आरजेडी परिणामों के बाद टूटने के कगार पर है। 
पंजाब ने बचाई कांग्रेस की लाज 
captain amrinder singhजबकि पंजाब मतदान आते-आते 1984 सिख दंगा सैम पित्रोदा ने यह कहकर "जो हुआ सो हुआ" कह कर गरमा दिया था, ऐसे वातावरण में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने बहुत ही संयम से चुनाव लड़ कांग्रेस की लाज बचाने में सफल हुए। लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत में पंजाब अकेला ऐसा राज्य साबित हुआ जहां नतीजे कांग्रेस के लिए सुखद रहे। यहां दो बार मुख्यमंत्री रह चुके अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से आठ पर जीत दिलाई।भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वंशवाद-विरोधी अभियान को ठेंगा दिखाते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री की पत्नी प्रेनीत कौर पटियाला से चौथी बार सांसद चुनीं गईं। प्रेनीत कौर ने अपने करीबी प्रतिद्वंद्वी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) - भाजपा के संयुक्त प्रत्याशी सुरजीत सिंह रखरा को 1,62,718 मतों से हराया।
हालांकि अमरिंदर सिह ने बताया कि वे राज्य के शहरी क्षेत्रों में पार्टी के प्रदर्शन से खुश नहीं हैं। उन्होंने बिना बात घुमाए शहरी निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का विभाग बदलने की सिफारिश की जिससे विकास परियोजनाओं को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके।मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब में शहरी वोट कांग्रेस की मजबूती है लेकिन विकास कार्य पूरा करने में सिद्धू की असफलता के कारण पार्टी पर प्रभाव पड़ा। उन्होंने कहा कि पार्टी ने इस बार ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया है।
चुनावों से पहले उन्होंने अपने मंत्रियों और विधायकों से स्पष्ट रूप से पार्टी उम्मीदवारों के लिए काम करने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था कि इसमें विफल रहने पर उनके कैबिनेट पर भी असर पर सकता है।राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के एजेंडे का मुकाबला करने के लिए अपनी सैन्य पृष्ठभूमि का उपयोग किया और यह सफल रहा क्योंकि उनके साथी फौजी उनके संदेश से जुड़ गए।
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 साध्वी को जबरदस्ती आतंकवाद का आरोप स्वीकार करवाने के लिए जिस तरह उन्हें और अन्य बेकसूरों को प्रताड़ित किया गया था, काश ऐसी प्रताड़ना किसी मुस्लिम के साथ हुई होती, #metoo#intolerance#not in my name, #mob lynching, #award vapsi आदि आदि जितने भी गैंग हैं, सबके सब सडकों पर आकर हेमंत करकरे के विरुद्ध प्रदर्शन कर उनको ऐसा निर्दयी निर्देश करने वालो को फांसी की माँग कर रहे होते। आधी रात को अदालतें खुलवा दी जाती। परन्तु, अफ़सोस, यह प्रताड़ना किसी मुस्लिम के साथ नहीं बल्कि एक हिन्दू के साथ हुई। आतंकवादियों को खूब बिरयानी खिलाई जाती थी, और बेकसूरों को बेल्टों से पिटाई और भूखा रखा जाता था?
काश! आज हेमंत जीवित होते, बताते प्रताड़ित करवाने वालों के नाम 

हिन्दू धर्म तो मृतात्माओं का सम्मान करने को कहता है। रावण की मृत्यु के बाद भगवान श्री राम ने उन्हें बाकायदा प्रणाम किया था और लक्ष्मण समेत दूसरों को भी उन्हें प्रणाम करने को कहा था, क्योंकि हिन्दू धर्म मृतकों का इसी तरह सम्मान करना सिखाता है। उसके बावजूद एक साध्वी एक मृतक को कलंकित कर रही है, क्यों? बल्कि चुनाव उपरान्त साध्वी प्रज्ञा को हेमंत करकरे की फाइल खुलवाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों को मजबूर करना चाहिए। करकरे एक अफसर थे और उन्हें आदेशों को पालन करना था, जिस कारण वह बलि का बकरा बन गए और उनको आदेश देने वाले मालपुए खा रहे हैं। काश! आज हेमंत करकरे जीवित होते। राजनीति में भूचाल नहीं बवंडर आ गया होता, जब "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम पर बेकसूरों को प्रताड़ित करवाने वालों के नाम बोलते। वोट बैंक की राजनीति में देश की संस्कृति से खिलवाड़ किया गया और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी छूट गए।

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार क्या कोई देश की जनता को समझा सकता है कि आखिर भारतीय जनता पार्टी द्वारा यह जो राष्ट्रभक...
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भाजपा-शिअद सरकार के दौरान साल 2015 में बेहबल कलां और कोटकपुरा गोलीबारी के मृतकों की याद में स्मृति स्थल बनाने का उनका वादा भी भाजपा-शिअद के लिए नकारात्मक साबित हुआ।एक राजनीतिक विश्लेषक ने आईएएनएस से कहा, "मतपरिणाम स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि मतदाता शिअद-भाजपा सरकार के दौरान 2015 में हुई घटना को भूल चुके हैं जिससे सिख समुदाय की भावनाएं आहत हुई थीं।"उनके 1984 दंगों के मुद्दों की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के कारण उन्हें वोटों के ध्रुवीकरण का सामना करने मदद मिली

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