खय्याम: जिनके संगीत ने दिलों तक पहुंचाया सुकून

मोहम्मद जहूर उर्फ खय्याम: एक ऐसे फनकार, जिनके संगीत ने दिलों तक पहुंचाया सुकून
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ फिल्म समीक्षक 
बॉलीवुड में मशहूर संगीतकार खय्याम नहीं रहे. वह 92 साल के थे. मुंबई के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांसें लीं. खय्याम कई दिनों से बीमार थे. उनके निधन से उनके प्रशसंकों और बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गई.
खय्याम ऐसे संगीतकार थे, जिनकी मधुरता में कभी कमी नहीं आई. फिल्म ‘उमराव जान’ और ‘कभी-कभी’ जैसी बेमिसाल फिल्मों का संगीत देने वाले खय्याम इन्हीं संगीतकारों में से एक थे. मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी, जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में खय्याम के नाम से जाने गए, कई दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे. उनके फेफड़ों में संक्रमण था. इस कारण उन्हें मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वह गहन चिकित्सा कक्ष (ICU) में थे.
यह बाबा चिश्ती की संगत में संगीत सीखने का ही असर था, जो बाद में चलकर खय्याम साहब की फिल्मों में हमें सुनने को मिला. चाहे वह ‘कभी-कभी’ फिल्म के गाने हों या फिर ‘उमराव जान’ या ‘बाजार’ के गाने हों, खय्याम का संगीत लोगों के सिर चढ़कर नहीं, बल्कि उनके दिलों में उतरकर सुकून पहुंचाता है. कुछ साल पहले बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में खय्याम साहब ने बताया था कि बचपन में छुप-छुपकर फिल्में देखने की ललक ने उनमें इस इंडस्ट्री के प्रति लगाव पैदा किया था. खय्याम के बचपन के दिनों में हिंदी सिनेमा का संगीत शास्त्रीय रागों और धुनों पर आधारित हुआ करता था, सो खय्याम का संगीत भी इसी संस्कार में ढला. बाद में जब वे बाकायदा फिल्म ‘शोला और शबनम’ से फिल्म जगत के संगीतकार के रूप में जाने-पहचाने गए, तो लोगों को इस बेमिसाल फनकार की काबिलियत का अंदाजा हुआ.
खय्याम साहब को हिंदी सिनेमा में 1982 में आई मुजफ्फर अली की फिल्म ‘उमराव जान’ के संगीत के लिए ज्यादा पहचाना जाता है. इस फिल्म के गाने हैं भी इतने ही कमाल. बीबीसी को दिए साक्षात्कार में खय्याम ने कहा था कि कमाल अमरोही की फिल्म ‘पाकीजा’ का संगीत गुलाम मोहम्मद ने दिया था. उर्दू बैकग्राउंड की इसी तर्ज की फिल्म ‘उमराव जान’ के लिए जब मुजफ्फर अली ने खय्याम साहब से कहा, तो एकबारगी उनके मन में डर बैठ गया कि लोग गुलाम मोहम्मद से उनकी तुलना करेंगे. लेकिन जब फिल्म ‘उमराव जान’ रिलीज हुई और इसके गानों ने तहलका मचाना शुरू किया, तब खय्याम के दिल से यह डर जाता रहा. आज इस फिल्म को खय्याम साहब के संगीत और दिग्गज एक्ट्रेस रेखा के करियर का माइल-स्टोन माना जाता है.
खय्याम को फिल्म ‘त्रिशूल’, ‘नूरी’ तथा ‘शोला और शबनम’ जैसी फिल्मों में शानदार संगीत के लिए जाना जाता है. उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया. अविभाजित हिंदुस्तान के पंजाब के नवांशहर (अब पाकिस्तान) में 18 फरवरी 1927 को जन्मे खय्याम, बचपन से ही संगीत के अनुरागी थे.

खय्याम ने आखिरी खत, आहिस्ता आहिस्ता, बाजार, बेपनाह, उमराव जान, कभी कभी, फुटपाथ, दिल आखिर दिल है और रजिया सुल्तान जैसी कई मशहूर बॉलीवुड फिल्मों में संगीत दिया. उन्होंने लता मंगेशकर और आशा भोंसले से लेकर मोहम्मद रफी और किशोर कुमार तक जैसे महान गायकों के साथ काम किया. जानिए एक्टर बनने का सपना लेकर घर से भागे और मुंबई पहुंचे खय्याम कैसे मशहूर संगीतकार बन गए.

यही कारण था कि वे घर-परिवार से दूर बॉम्बे आ गए और फिल्म जगत में अपने करियर की शुरुआत की.
 

बीबीसी को एक बार दिए इंटरव्यू में खय्याम ने बताया था कि वैसे तो वे बॉलीवुड में एक्टर बनने आए थे लेकिन यहां आकर उनकी दिलचस्पी संगीत में बढ़ गई. उन्होंने पहली बार फिल्म हीर राझा में संगीत दिया. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसके बाद फिल्म बीवी के गाने अकेले में वो घबराते तो होंगे से उन्हें पहचान मिली. इस गाने को खय्याम ने डायरेक्ट किया था और मोहम्मद रफी ने इसमें आवाज दी थी. 60 और 70 के दशक में खय्याम ने कई फिल्मों में हिट म्यूजिक दिया. इसमें आखिरी खत, फुटपाथ, कभी-कभी, शोला और शबनम शामिल थीं.


मोहम्मद जहूर खय्याम को 1981 में फिल्म उमराव जान के संगीत के लिए नेशनल अवार्ड मिला. इसके बाद 1982 मे फिल्मफेयर अवार्ड से नवाजा गया. इसके बाद 2010 में उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला और 2011 में खय्याम को संगीत की दुनिया में अभूतपूर्व योगदान के लिए पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा गया.
6 साल पहले खय्याम के बेटे का देहांत हो गया था. तभी से वे दुनिया से कटे-कटे से रह रहे थे. उन्हें अपने बेटे के जाने का बहुत दुख हुआ. अवसाद में रहने के कारण वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. पिछले कुछ दिनों से वे मुंबई के सुजय अस्पताल में भर्ती थे वहां गंभीर हालत में उनका इलाज जारी था. उन्होंने सोमवार शाम आखिरी सांस ली और इस दुनिया को अलविदा कह गए.

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