कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख की विश्वसनीयता कितनी है कि इसे इस बात से समझा सकता है कि तालिबान भी उसकी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहा है। कश्मीर की स्थिति की तुलना अफगानिस्तान से करने पर तालिबान ने पाकिस्तान को फटकार लगाई है। तालिबान ने कहा है कि अफगानिस्तान को कश्मीर से जोड़ने का कोई मतलब नहीं है और भारत एवं पाकिस्तान को क्षेत्र में शांति कायम करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। तालिबान का कहना है कि कश्मीर पर ताजा फैसले के बाद भारत एवं पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव को अफगानिस्तान के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के भारत सरकार के फैसले के बाद पाकिस्तानी सेना ने कहा है कि वह कश्मीर के लिए किसी भी हद तक जाएगी। जबकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी कह चुके हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव का असर अफगानिस्तान में जारी शांति प्रक्रिया पर पड़ेगा। इस बीच तालिबान के प्रवक्ता जबीबुल्लाह मुजाहिद ने कहा, 'कुछ लोग कश्मीर मुद्दे को अफगानिस्तान के साथ जोड़ रहे हैं लेकिन इससे स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा क्योंकि यह मसला अफगानिस्तान से जुड़ा हुआ नहीं है और न ही अफगानिस्तान को दो देशों के बीच की नूरा-कुश्ती में लाना चाहिए।'
अगस्त 8 को जारी अपने बयान में तालिबान ने भारत और पाकिस्तान दोनों से अपील की कि वे क्षेत्र में 'हिंसा एवं जटिलताओं' को बढ़ाने वाले कदम न उठाएं। इसके पहले पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र में पीएमएल-एन के नेता शाहबाज शरीफ ने कश्मीर और अफगानिस्तान के बीच समानता बताते हुए कहा, 'यह किस तरह की डील है कि काबुल में अफगानिस्तान के लोग शांति के बीच रहें और कश्मीर में खून-खराबा हो।' प्रवक्ता ने कहा, 'युद्ध और लड़ाई से हमें बुरे अनुभव हुए हैं, इसलिए हम क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान के लिए तार्किक रास्ते अपनाने एवं शांति की अपील करते हैं।'
दरअसल, पाकिस्तान अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और वहां से अमेरिका को निकलने में उसकी मदद कर रहा है। पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीर मसले का समाधान करने के लिए अमेरिका भारत पर दबाव बनाए। इसलिए उसने कश्मीर के बहाने तालिबान कार्ड भी खेला है लेकिन अमेरिका उसके झांसे में नहीं आया है। अमेरिका को पता है कि तालिबान को नियंत्रित करने में पाकिस्तान की भूमिका अहम है। पाकिस्तान वर्षों तक तालिबान के नेताओं को संरक्षण एवं इस गुट को फंडिंग और प्रशिक्षण देता रहा है। तालिबान से इस करीबी के चलते ही अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान को जगह मिली है।
अवलोकन करें:-
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने और उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद पाकिस्तान बौखला गया है। उसने इस मसले को संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की बात कही है। पाकिस्तान ने यहां तक कि कश्मीर मुद्दे को अफगानिस्तान शांति प्रकिया से जोड़ दिया लेकिन तालिबान का यह बयान पाकिस्तान के दबाव बनाने की रणनीति को बेअसर और उसे आईना दिखाने वाला है। तालिबान ने साफ कर दिया है कि कश्मीर को अफगानिस्तान से नहीं जोड़ा जा सकता। तालिबान ने एक तरीके से पाकिस्तान को फटकार लगाई है।
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के भारत सरकार के फैसले के बाद पाकिस्तानी सेना ने कहा है कि वह कश्मीर के लिए किसी भी हद तक जाएगी। जबकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी कह चुके हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव का असर अफगानिस्तान में जारी शांति प्रक्रिया पर पड़ेगा। इस बीच तालिबान के प्रवक्ता जबीबुल्लाह मुजाहिद ने कहा, 'कुछ लोग कश्मीर मुद्दे को अफगानिस्तान के साथ जोड़ रहे हैं लेकिन इससे स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा क्योंकि यह मसला अफगानिस्तान से जुड़ा हुआ नहीं है और न ही अफगानिस्तान को दो देशों के बीच की नूरा-कुश्ती में लाना चाहिए।'
अगस्त 8 को जारी अपने बयान में तालिबान ने भारत और पाकिस्तान दोनों से अपील की कि वे क्षेत्र में 'हिंसा एवं जटिलताओं' को बढ़ाने वाले कदम न उठाएं। इसके पहले पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र में पीएमएल-एन के नेता शाहबाज शरीफ ने कश्मीर और अफगानिस्तान के बीच समानता बताते हुए कहा, 'यह किस तरह की डील है कि काबुल में अफगानिस्तान के लोग शांति के बीच रहें और कश्मीर में खून-खराबा हो।' प्रवक्ता ने कहा, 'युद्ध और लड़ाई से हमें बुरे अनुभव हुए हैं, इसलिए हम क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान के लिए तार्किक रास्ते अपनाने एवं शांति की अपील करते हैं।'
दरअसल, पाकिस्तान अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और वहां से अमेरिका को निकलने में उसकी मदद कर रहा है। पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीर मसले का समाधान करने के लिए अमेरिका भारत पर दबाव बनाए। इसलिए उसने कश्मीर के बहाने तालिबान कार्ड भी खेला है लेकिन अमेरिका उसके झांसे में नहीं आया है। अमेरिका को पता है कि तालिबान को नियंत्रित करने में पाकिस्तान की भूमिका अहम है। पाकिस्तान वर्षों तक तालिबान के नेताओं को संरक्षण एवं इस गुट को फंडिंग और प्रशिक्षण देता रहा है। तालिबान से इस करीबी के चलते ही अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान को जगह मिली है।
अवलोकन करें:-
No comments:
Post a Comment