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आम आदमी पार्टी की सरकार का दावा रहा है कि उसने शिक्षा के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं |
साउथ दिल्ली में 32% ऐसे स्कूल हैं, जहाँ अगर आग लग जाए तो बड़ा ख़तरा हो सकता है क्योंकि इनके पास इस आग के ख़तरे ने निपटने के लिए इंतजाम हैं ही नहीं। साउथ वेस्ट दिल्ली के 31% और वेस्ट दिल्ली के 42% स्कूलों के पास फायर एनओसी नहीं है। सेन्ट्रल दिल्ली की तो स्थिति और भी दयनीय है, जहाँ लगभग आधे (48%) स्कूल बिना फायर एनओसी लिए संचालित किए जा रहे हैं। इसी तरह वेस्ट दिल्ली के 29% और ईस्ट दिल्ली के 30% स्कूलों के पास फायर एनओसी नहीं है।
इतना ही नहीं, सेंट्रल दिल्ली में कुछ नगर निगम स्कूलों की बिल्डिंग वर्षों पुरानी है, जिस कारण जिन स्कूलों में कुछ वर्ष पूर्व तक दो शिफ्टों में 400/500 बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे, वर्तमान में वहां उल्लू ही बोल रहे हैं। लेकिन चुनाव मतदान होता है, और कुछ निजी कार्यक्रम। निजी कार्यक्रमों में खर्च होने वाली बिजली का भुगतान नगर निगम को करना पड़ता है।
कई स्थानों पर तो छोटे-छोटे कमरों को और पार्किंग के लिए बनी जगहों पर प्ले स्कूल खुले हुए हैं, जो अत्यन्त चिन्ता का विषय है। आखिर इन जगहों पर स्कूल की इजाजत कौन देता है? क्या नेताओं के कहने या पार्टी पदाधिकारी के मकानों में ये स्कूल चल रहे हैं?
आपको सूरत के एक कोचिंग सेंटर में लगी आग वाली ख़बर तो याद ही होगी। मई 2019 के अंतिम सप्ताह में हुई इस त्रासद घटना में 22 छात्रों की मौत हो गई थी। संस्थान के संचालक को गिरफ़्तार किया गया था और बिल्डर भाग खड़ा हुआ था। उसके बाद शिक्षा संस्थानों में आग से बचने के लिए उचित इंतजाम होने की बहस छिड़ गई थी। दिल्ली में जिस तरह के हालात हैं, अगर इन्हें संभालने के लिए किसी अनहोनी का इंतजार किया गया तो वह मासूम छात्रों की जान के साथ खिलवाड़ होगा।
फायर एनओसी तभी दी जाती है जब स्कूल कुछ तय मानकों पर खरे उतरें, इसके लिए बिल्डिंग में ऊपर जाने के लिए 1.5 मीटर से लम्बी सीढ़ी होनी चाहिए। अगर 45 से ज्यादा क्लास हैं तो सभी में 2 दरवाजे होने ही होने चाहिए। 300 स्क्वायर मीटर में आग बुझाने के उपकरणों की व्यवस्था होनी चाहिए। 5 हजार लीटर की टंकी और स्मोक मैनेजमेंट सिस्टम की व्यवस्था भी होनी चाहिए। बिजली के तार फायर प्रूफ होने चाहिए और एग्जिट किधर है, ये साफ़-साफ़ लिखा होना चाहिए।
कई स्कूल फायर एनओसी को रिन्यू नहीं कराते। असल में जब स्कूल छोटा होता है तो वे फायर एनओसी ले लेते हैं लेकिन जैसे ही उनका स्ट्रक्चर बढ़ता जाता है, फायर एनओसी लेने के लिए मानक भी कठिन हो जाते हैं और इसीलिए वे लापरवाही बरतते हैं। दिल्ली सरकार ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही, यह एक बड़ा सवाल है।
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