जब कांग्रेस के कार्यकाल में संविधान और लोकतन्त्र की धज्जियाँ उड़ाई गयीं

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
आज वर्तमान मोदी सरकार के कार्यकलापों पर हर कोई ऊँगली उठा रहा है, उठानी भी चाहिए। लेकिन जिनके घर शीशे के हों, दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। वैसे देश की जनता की याददाश्त भी बहुत कमजोर ज्ञात पड़ती है। पिछली सरकारों के कार्यकलापों को बिल्कुल भूल जाते हैं। भारत में जिसकी लाठी उसकी ही भैंस वाली निति चलती रही है। लोकतंत्र का जितना गला देश की पहली सरकार से लेकर पिछली यूपीए सरकार तक घोंटा गया है, शायद ही कभी ऐसा हो। हो अभी रहा है, लेकिन उतना नहीं जितना मोदी सरकार से पूर्व। 
क्या कभी लगभग 6000 से अधिक वोट से जीते घोषित उम्मीदवार को पराजित घोषित करने का समाचार सुना? लेकिन यह हुआ देश में हुए पहले चुनाव में। जब उत्तर प्रदेश के रामपुर से हिन्दू महासभा के विशन सेठ ने कांग्रेस के उम्मीदवार मौलाना आज़ाद को हरा दिया था, और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे गोविन्द बल्लब पंत। जवाहरलाल से अपने लाडले मौलाना आज़ाद की हार बर्दाश्त नहीं होने पर पंत को किसी भी तरह आज़ाद को पार्लियामेंट पहुँचाने को कहा, पंत के कहने पर कलेक्टर ने सेठ को उनके विजयी जुलुस से उठा, मतगणना स्थल पर विजयी उम्मीदवार की खुली आँखों के सामने की उनके बक्से की वोटें आज़ाद की पेटी में मिलाकर विजयी उम्मीदवार को लगभग 3000 वोटों से पराजित और मौलाना आज़ाद को विजयी घोषित कर नेहरू को खुश कर, लोकतंत्र की निर्मम हत्या कर दी गयी। 
1973 में इंदिरा गाँधी ने न्यायमूर्ति A.N.Ray को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में बैठा दिया वो भी तब जब उनसे वरिष्ठ न्यायधीशों की लिस्ट जैसे न्यायमूर्ति JM Shelat, KS Hedge और AN Grover सामने थी। 
अंततः हुआ यह कि नाराज़गी के रूप में इन तीनों ही न्यायधीशों ने इस्तीफा दे दिया। 
इसके बाद कांग्रेस ने पार्लियामेंट में जवाब दिया...यह सरकार का काम है कि किसे मुख्य न्यायधीश रखें और किसको नहीं और हम उसी को बिठाएंगे जो हमारी विचारधारा के पास हो'
और आज वही लोग न्यायाधीशों की आज़ादी की बात करते है। 
1975 में न्यायाधीश जगमोहन सिंह को एक फैसला सुनाना था फैसला था राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी के चुनावी भ्रष्टाचार के मामले का...उनको फ़ोन आता है जिसमें कहा जाता है, 'अगर तुमने इंदिरा गाँधी के ख़िलाफ़ फैसला सुनाया,तो अपनी पत्नी से कह देना इस साल करवा चौथ का व्रत न रखे'। 
जिसका न्यायमूर्ति सिंह ने आराम से जवाब देते हुए कहा 'किस्मत से मेरी पत्नी का देहांत दो महीने पहले ही हो चुका है'। 
इसके बाद न्यायमूर्ति सिंह ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया जो आज भी मिसाल के रूप में जाना जाता है। 
इसने कांग्रेस सरकार की चूलें हिला दी और इसी से बचने के लिए इंदिरा गाँधी और कांग्रेस द्वारा 'इमरजेंसी' जनता पर थोप दी गयी...देश को नहीं,इंदिरा गाँधी को बचाना था। 
1976 में A.N. Ray ने इंदिरा गाँधी द्वारा खुद पर किये गए एहसान का बदला चुकाया। 
शिवकांत शुक्ला बनाम ADM जबलपुर के केस में...उनके द्वारा बैठाई गयी पीठ ने उनके सभी मौलिक अधिकारों को खत्म कर दिया...उस पूरी पीठ में मात्र एक बहादुर न्यायाधीश थें जिनका नाम था न्यायमूर्ति HR खन्ना जिन्होंने अपने साथी मुख्य न्यायधीश को कहा कि 'क्या आप खुद को आईने में आँख मिलाकर देख सकते हैं?'
इस पीठ में न्यायाधीश AN Ray, HR Khanna, MH Beg, YV Chandrachud और PN Bhagwati शामिल थें!
यह सब मुख्य न्यायाधीशों की लिस्ट में आये सिर्फ एक न्यायधीश को छोड़ के जिनका नाम था न्यायधीश HR Khanna जी!
खन्ना जी को इंदिरा गाँधी की सरकार ने दण्डित किया और अनुभव तथा वरिष्ठता में उनसे नीचे बैठे न्यायधीश MH Beg को देश का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया !
यह था भारत के लोकतंत्र का हाल कांग्रेस के राज में?
यही न्यायाधीश MH Beg रिटायरमेंट के बाद नेशनल हेराल्ड के डायरेक्टर बना दिये गए!
यह नेशनल हेराल्ड अखबार वही अखबार है जिसके घोटाले में आज सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ज़मानत पर छूटे हुए हैं!
यह पूरी तरह से कांग्रेस का अखबार था और एक प्रकार से कांग्रेस के मुखपत्र की तरह काम करता था!
आश्चर्यजनक रूप से न्यायाधीश बेग ने अपॉइंटमेंट स्वीकार कर लिया!
राहुल गाँधी का 'संविधान को खतरा' वाले सवाल पर  उनके मुँह पर यह जानकारियां मारी जानी चाहिए और उनसे पूछना चाहिए कि क्या इस प्रकार से ही बचाना चाहते हो लोकतंत्र को?
बात यहीं खत्म नहीं हुई बल्कि 1980 में इंदिरा गाँधी सरकार में वापस आयी और इसी MH Beg को अल्पसंख्यक कमीशन का चैयरमैन नियुक्त कर दिया गया!
वह इस पद पर 1988 तक रहे। 
और उनको 'पद्म विभूषण' से राजीव गाँधी की सरकार द्वारा सम्मानित भी किया गया था!
1962 में न्यायाधीश बेहरुल इस्लाम का एक और नया केस सामने आया जो आपको जानना अति आवश्यक है!
श्रीमान इस्लाम कांग्रेस के राज्य सभा के MP थें 1962 के दौरान ही और उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था...हार गए थे!
वो दोबारा 1968 में राज्य सभा के MP बनाये गए...कांग्रेस की ही तरफ से(सीधी सी बात है)
उन्होंने 1972 में राज्य सभा से इस्तीफा दे दिया और उनको गुवाहाटी हाई कोर्ट का न्यायाधीश बना दिया गया...1980 में वो सेवानिवृत्त हो गए। 
परंतु जब इंदिरा गाँधी 1980 में दोबारा वापस आयी तो इन्हीं श्रीमान इस्लाम को 'न्यायाधीश बेहरुल इस्लाम' की उपाधि वापस दी गयी और सीधे सुप्रीम कोर्ट का न्यायधीश बना दिया गया। 
गुवाहाटी हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के नो महीने बाद का यह मामला है भाई साहब?
इंदिरा गांधी पूरी तरह से यह चाहती थी कि सभी न्यायालयों पर उनका 'कंट्रोल' हो?
उस समय इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी और कांग्रेस पर लगे आरोपों की सुनवाई विभिन्न न्यायालयों में हो रही थी। 
वो इंदिरा गाँधी के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुए और साफ तौर पर कांग्रेस के लिए भी। 
न्यायाधीश' इस्लाम ने एक महीने बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया और फिर एक बार असम के बारपेटा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। 
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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार गाँधी परिवार अपने आपको देश का बहुत बड़ा हितैषी और 

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार चुनावी दंगल में आरोप-प्रत्यारोप लगाना कोई नई बात नहीं। 
लोकतंत्र का इससे बड़ा मज़ाक क्या होगा?
जिस चुनाव में वो खड़े होने वाले थे उस साल चुनाव नहीं हो पाए अतः उनको एकबार फिर से कांग्रेस की तरफ से राज्य सभा का MP बना दिया गया। 
लोकतंत्र के लिए जिस प्रकार से कांग्रेस आज छाती पीट रही है, उसी ने लोकतंत्र का गला सबसे ज़्यादा बार घोंटा है...सबूत उपर से दिए है। 

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