
मैसूर के टी नरसीपुरा में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “खबरदार, अगर संविधान को बदलने की कोई कोशिश की गई तो देश में खून-खराबा हो जाएगा।”
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया आंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण करने पहुॅंचे थे। उन्होंने कहा कि आंबेडकर केवल दलितों के लिए नहीं लड़े। वे उन लोगों के साथ भी खड़े हुए जिनका शोषण किया गया था। जातिवाद के कारण समुचित अवसरों से वंचित सभी समुदायों को न्याय दिलाने के लिए आंबेडकर ने ईमानदारी से प्रयास किया।
उल्लेखनीय है कि 2018 में राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान भी सिद्धारमैया ने इसी तरह की टिप्पणी करते हुए कहा था कि अगर भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने संविधान को बदलने की कोशिश की, तो ‘देश में खून-खराबा होगा।’ इस तरह की टिप्पणी कर लोगों को उकसाते वक्त सिद्धरमैया शायद यह भूल जाते हैं कि संविधान में कई बार बदलाव और संशोधन किए गए हैं। इनमें से कई सारे विवादास्पद संवैधानिक संशोधनों के लिए उनकी खुद की पार्टी जिम्मेदार है। इसमें 1972 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के जमाने में किया गया 42वां संवैधानिक संशोधन भी शामिल है, जो ‘मिनी संविधान’ के नाम से कुख्यात है।
सिद्धारमैया को यह भी ज्ञात होना चाहिए कि डॉ आंबेडकर ने यदि आरक्षण माँगा था, तो अपने ही जीवनकाल में उसका दुरूपयोग होता देख, तुरन्त समाप्त करने को कहा था, जिसे आज तक वोट के भूखे नेताओं ने समाप्त करने का साहस नहीं दिखाया, क्या यही यही आंबेडकर प्यार है? शर्म आनी चाहिए। इसी ढोंगी हरकतों के कारण चुनावों में NOTA बिना किसी प्रचार के वोट प्राप्त कर रहा है।
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