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फिर से बच्चों का इस्तेमाल कर रहे केजरीवाल (फोटो साभार: ANI) |
हवा की गुणवत्ता बेहद खराब होने के साथ सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने नवम्बर 1 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जन स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की। पॉंच नवंबर तक सभी प्रकार के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी। दिल्ली सरकार ने भी प्रदूषण की वजह से राजधानी के सभी स्कूलों को पॉंच नवंबर तक बंद कर दिया है। ऐसा बीते साल भी हुआ था। लेकिन, पिछली सर्दी से इस सर्दी के बीच जो चीज नहीं हुआ, वह है प्रदूषण रोकने के लिए जिन कदमों को उठाने की घोषणा आप सरकार की ओर से हुई थी उस पर अमल नहीं किया गया।
हरियाणा, पंजाब और दिल्ली से सटे राज्यों में पराली का जलना एवं दीपावली पर आतिशबाज़ी का छोड़ना कोई नई बात नहीं। लेकिन अब कुछ ही वर्षों से पराली और दीपावली पर आतिशबाज़ी से हो रहे प्रदुषण को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। लगभग एक दशक से अधिक पूर्व तक श्राद्ध समाप्त होते ही हम अपने युवा दिनों में आतिशबाज़ी छोड़ते थे,और दीपावली के दिन समस्त मौहल्ला और पास में जितने भी हिन्दू मौहल्ला थे, सारी रात आतिशबाज़ी होती थी, कोई प्रदुषण नहीं था। लेकिन जब से हिन्दू-विरोधियों ने हिन्दू त्यौहारों का विरोध शुरू किया है, तब से कुछ ज्यादा ही शोर मच रहा है। पहले इतनी प्रश्न यह है कि क्या कारण है कि कुछ वर्षों से प्रदुषण हो रहा है, आखिर कौन है इसका जिम्मेदार?
Delhi CM: Pollution level has deteriorated in Delhi due to smoke from stubble burning in adjoining states, whose number has doubled this year. People are facing difficulty in breathing, & to provide relief, we're distributing 2 masks to each student in private & govt schools. https://t.co/A5Em3t0vd2 pic.twitter.com/zXEqQoWZvU— ANI (@ANI) November 1, 2019
अनिल विज का केजरीवाल पर पलटवार, कहा-दिल्ली में होने वाले प्रदूषण के कारण दिल्ली में ही खोजें https://t.co/HNV986ttBu— ANIL VIJ MINISTER HARYANA (@anilvijminister) October 31, 2019
Punjab Minister SS Dharamsot on Delhi CM tweet on stubble burning: Kejriwal ki baat chhodiye yaar.When campaigning in Punjab,he said won't let a drop of water go out of Punjab,after 2 hours in Haryana said water belongs to Haryana&Punjab.Finally in Delhi said water belongs to all pic.twitter.com/Yyyw4xcIXK— ANI (@ANI) November 1, 2019
दिल्ली के मुख्यमंत्री पहले दिन से ही प्रदूषण का ठीकरा दीवाली की आतिशबाजी और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने पर फोड़ने की फिराक में लगे थे। हद तो यह है कि अपने इस राजनीतिक पैंतरे में अब उन्होंने दिल्ली के स्कूली बच्चों को भी शामिल कर लिया है। नवम्बर 1 को केजरीवाल ने स्कूली बच्चों से कहा कि पंजाब और हरियाणा में जल रही पराली के कारण प्रदूषण हो रहा है। उन्होंने बच्चों से कहा, “कृप्या कैप्टन अंकल और खट्टर अंकल को पत्र लिखें और कहें कि कृप्या हमारी सेहत का ध्यान रखें।”
कहॉं तो दिल्ली सरकार के जिम्मे हवा की गुणवत्ता को सुधारना था ताकि बच्चे अपने फेफड़े में जहर न भरें। लेकिन, उलटे उनका राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा है। वैसा यह पहला मौका नहीं है जब केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए बच्चों का इस्तेमाल किया है। इस साल की शुरुआत में स्कूली बच्चों और उनके अभिभावकों को संबोधित करते हुए उन्होंने मोदी को वोट नहीं देने की अपील की थी। उन्होंने कहा था, “यदि आप अपने बच्चों से प्यार करते हैं, तो उन लोगों के लिए वोट करें जो आपके बच्चों के लिए काम कर रहे हैं। और यदि आप अपने बच्चों से प्यार नहीं करते हैं, तो मोदीजी को वोट दें।” केजरीवाल की ‘बच्चा पॉलिटिक्स’ सियासत में उनकी एंट्री से ही शुरू हो गई थी। उन्होंने अपने बच्चों की कसम खाई थी कि न कॉन्ग्रेस को समर्थन देंगे और ना उससे लेंगे। लेकिन, 2013 में उन्होंने कॉन्ग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। इस बार भी लोकसभा चुनाव से पहले कॉन्ग्रेस के साथ वे गठबंधन को लेकर कितने सक्रिय थे यह सबने देखा।
दिलचस्प यह भी है कि बीते साल जब दिल्ली की हवा बिगड़ गई थी तब केजरीवाल परिवार के साथ प्राइवेट ट्रिप पर दुबई चले गए थे। इस बार, ऐसे माहौल में भी वे टिके हुए हैं, क्योंकि चुनाव बस चौखट पर ही हैं। यही कारण है कि पराली पर उनके बयान को खारिज करते हुए पंजाब के मंत्री एसएस धर्मसोत ने कहा, “केजरीवाल की बात छोड़िए। जब वे पंजाब में प्रचार कर रहे थे तो कहा था कि एक बूॅंद पानी बाहर नहीं जाने देंगे। दो घंटे बाद हरियाणा में कहा कि पानी पर दोनों राज्यों का हक है। आखिर में दिल्ली में कहते हैं कि पानी पर सबका हक।”
केजरीवाल की इस सियासत को हर कोई बखूबी समझने लगा है। इसलिए, जितनी तेजी से वे चढ़े, उतनी ही तेजी से आप का प्रदर्शन गिर रहा है। पर असल सवाल यह है कि सियासत के फेर में कितना गिरेंगे
केजरीवाल?
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