राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए बच्चों का इस्तेमाल करते अरविन्द केजरीवाल, दिल्ली मुख्यमंत्री

अरविंद केजरीवाल
फिर से बच्चों का इस्तेमाल कर रहे केजरीवाल (फोटो साभार: ANI)
दिल्ली की हवा गुणवत्ता इंडेक्स ‘बेहद गंभीर’ श्रेणी में पहुॅंच गया है। सर्दियों के साथ ही दिल्ली का गैस चेंबर में बदल जाना रूटीन जैसा हो गया है। लेकिन, यहॉं रहने वाले लोगों की मजबूरी दोहरी है। दमघोंटू हवा में सॉंस लेने को मजबूर लोगों के लिए दिल्ली की आप सरकार की राजनीति घुटन बढ़ाने वाली है।
हवा की गुणवत्ता बेहद खराब होने के साथ सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने नवम्बर 1 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जन स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की। पॉंच नवंबर तक सभी प्रकार के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी। दिल्ली सरकार ने भी प्रदूषण की वजह से राजधानी के सभी स्कूलों को पॉंच नवंबर तक बंद कर दिया है। ऐसा बीते साल भी हुआ था। लेकिन, पिछली सर्दी से इस सर्दी के बीच जो चीज नहीं हुआ, वह है प्रदूषण रोकने के लिए जिन कदमों को उठाने की घोषणा आप सरकार की ओर से हुई थी उस पर अमल नहीं किया गया।
हरियाणा, पंजाब और दिल्ली से सटे राज्यों में पराली का जलना एवं दीपावली पर आतिशबाज़ी का छोड़ना कोई नई बात नहीं। लेकिन अब कुछ ही वर्षों से पराली और दीपावली पर आतिशबाज़ी से हो रहे प्रदुषण को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। लगभग एक दशक से अधिक पूर्व तक श्राद्ध समाप्त होते ही हम अपने युवा दिनों में आतिशबाज़ी छोड़ते थे,और दीपावली के दिन समस्त मौहल्ला और पास में जितने भी हिन्दू मौहल्ला थे, सारी रात आतिशबाज़ी होती थी, कोई प्रदुषण नहीं था। लेकिन जब से हिन्दू-विरोधियों ने हिन्दू त्यौहारों का विरोध शुरू किया है, तब से कुछ ज्यादा ही शोर मच रहा है। पहले इतनी प्रश्न यह है कि क्या कारण है कि कुछ वर्षों से प्रदुषण हो रहा है, आखिर कौन है इसका जिम्मेदार?



दिल्ली के मुख्यमंत्री पहले दिन से ही प्रदूषण का ठीकरा दीवाली की आतिशबाजी और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने पर फोड़ने की फिराक में लगे थे। हद तो यह है कि अपने इस राजनीतिक पैंतरे में अब उन्होंने दिल्ली के स्कूली बच्चों को भी शामिल कर लिया है। नवम्बर 1 को केजरीवाल ने स्कूली बच्चों से कहा कि पंजाब और हरियाणा में जल रही पराली के कारण प्रदूषण हो रहा है। उन्होंने बच्चों से कहा, “कृप्या कैप्टन अंकल और खट्टर अंकल को पत्र लिखें और कहें कि कृप्या हमारी सेहत का ध्यान रखें।”
कहॉं तो दिल्ली सरकार के जिम्मे हवा की गुणवत्ता को सुधारना था ताकि बच्चे अपने फेफड़े में जहर न भरें। लेकिन, उलटे उनका राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा है। वैसा यह पहला मौका नहीं है जब केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए बच्चों का इस्तेमाल किया है। इस साल की शुरुआत में स्कूली बच्चों और उनके अभिभावकों को संबोधित करते हुए उन्होंने मोदी को वोट नहीं देने की अपील की थी। उन्होंने कहा था, “यदि आप अपने बच्चों से प्यार करते हैं, तो उन लोगों के लिए वोट करें जो आपके बच्चों के लिए काम कर रहे हैं। और यदि आप अपने बच्चों से प्यार नहीं करते हैं, तो मोदीजी को वोट दें।” केजरीवाल की ‘बच्चा पॉलिटिक्स’ सियासत में उनकी एंट्री से ही शुरू हो गई थी। उन्होंने अपने बच्चों की कसम खाई थी कि न कॉन्ग्रेस को समर्थन देंगे और ना उससे लेंगे। लेकिन, 2013 में उन्होंने कॉन्ग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। इस बार भी लोकसभा चुनाव से पहले कॉन्ग्रेस के साथ वे गठबंधन को लेकर कितने सक्रिय थे यह सबने देखा।
दिलचस्प यह भी है कि बीते साल जब दिल्ली की हवा बिगड़ गई थी तब केजरीवाल परिवार के साथ प्राइवेट ट्रिप पर दुबई चले गए थे। इस बार, ऐसे माहौल में भी वे टिके हुए हैं, क्योंकि चुनाव बस चौखट पर ही हैं। यही कारण है कि पराली पर उनके बयान को खारिज करते हुए पंजाब के मंत्री एसएस धर्मसोत ने कहा, “केजरीवाल की बात छोड़िए। जब वे पंजाब में प्रचार कर रहे थे तो कहा था कि एक बूॅंद पानी बाहर नहीं जाने देंगे। दो घंटे बाद हरियाणा में कहा कि पानी पर दोनों राज्यों का हक है। आखिर में दिल्ली में कहते हैं कि पानी पर सबका हक।”
केजरीवाल की इस सियासत को हर कोई बखूबी समझने लगा है। इसलिए, जितनी तेजी से वे चढ़े, उतनी ही तेजी से आप का प्रदर्शन गिर रहा है। पर असल सवाल यह है कि सियासत के फेर में कितना गिरेंगे
केजरीवाल?

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