राजस्थान से लेकर झारखण्ड क्यों हुए भाजपा मुक्त ?

पत्थलगड़ी, खूँटी
पत्थलगड़ी वाले क्षेत्रों में CM रघुबर दास के ख़िलाफ़ गुस्से
को साधने के लिए भाजपा ने अर्जुन मुंडा को लगाया था
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
कई बार अपने इसी ब्लॉग पर भाजपा के स्थानीय स्तर के नेताओं की कार्यशैली के विषय में लिखता रहा हूँ, जिसे भाजपा समर्थक भाजपा विरोधी मान दरकिनार करते रहे, परन्तु मन्थन करने का साहस नहीं किया। स्थानीय नेतृत्व अपने कार्य पर कम मोदी-अमित-योगी के कन्धों पर सवार है। 
फिर जिस पार्टी की सदस्यता करोड़ों में हो, वही पार्टी राज्यों से अपनी सरकारें गँवा दे, इस मुद्दे पर भी शीर्ष नेतृत्व को चिंतन करना होगा। "हर हर मोदी, घर घर मोदी" लोकसभा चुनावों में अच्छे लगते हैं, स्थानीय चुनावों में नहीं। क्योकि लोकसभा चुनावों में बोलता है मोदी का काम। 
गुटबाज़ी इतनी जबरदस्ती है कि भाजपा उम्मीदवार बिक जाते हैं और हारने उपरांत अपने व्हाट्सअप पर मोदी के विरुद्ध और विरोधी पार्टी को वोट देने का प्रचार किया, क्या दिल्ली प्रदेश और ज़िले ने क्या कार्यवाही की? 
हरियाणा में तो दुष्यंत चौटाला ने भाजपा की लाज रख ली, लेकिन पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद अब झारखण्ड भी भाजपा के हाथ से गया। ऐसा आभास होता है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व वास्तविकता यानि धरातल पर स्थानीय नेताओं के कार्यकलापों पर लेशमात्र भी ध्यान नहीं दे रहा है। अगर भाजपा शीर्ष नेतृत्व 2015 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से ऑंखें नहीं खोली। मनोनीत मुख्यमंत्री किरण बेदी के विरुद्ध जनता में उपजे रोष को शीर्ष नेतृत्व समझ नहीं पाया। 
स्थानीय मुद्दों पर ध्यान नहीं 
भाजपा शीर्ष नेतृत्व स्थानीय चुनावों को भी लोकसभा के समान्तर मान मैदान में उतरता है। यदि किसी कारणवश आज लोकसभा चुनाव होते हैं, भाजपा 300+ ही रहेगी, क्योकि लोकसभा में जनता नरेन्द्र मोदी के नाम और काम पर वोट देती है, जबकि विधानसभा और नगर निगम चुनाव स्थानीय मुद्दों पर होते हैं, केन्द्रीय उपलब्धियों पर नहीं। अनुच्छेद 370, आतंकवादियों पर कठोर प्रहार, अयोध्या में राममन्दिर और अब नागरिकता कानून आदि और केन्द्र स्तर पर जो देशहित में फैसले होंगे, उनका लाभ लोकसभा में मिलेगा, स्थानीय चुनावों में नहीं। स्थानीय नेताओं द्वारा व्हाट्सअप पर डाली जाने वाली फोटो से शीर्ष नेतृत्व को भ्रमित किया जाता है। एक बार निर्वाचित हो गया, तिजोरी भरो, और अगला चुनाव हार गए तो क्या हुआ, पेंशन तो मिलती ही रहेगी, क्यों और किसके लिए करे काम? 
विचारणीय बात यह है कि जब भी चुनाव आते हैं, महंगाई मुंह फाडे खड़ी हो जाती है, जमाखोर प्याज, दालें जमा कर लेते हैं, केन्द्र सरकार मतदान के बाद ही हरकत में आती है, क्यों? जब प्याज 150 रूपए मिलेगी, क्यों कोई केंद्र शासित पार्टी को वोट देगा? इतनी सर्दी के मौसम में 10/15 रूपए बिकने वाला आलू, साग 10 रूपए बिकने वाला, जब 30 और 40 रूपए बिकेगा कौन भाजपा को वोट देगा? आज बाजार में कोई भी सब्ज़ी 40 रूपए किलो से कम नहीं। दालों के भाव न ही पूछो तो अच्छा है। यहाँ स्थानीय चुनावों में आती है केंद्र की भूमिका। 
आज़ादी के समय जनता को सब्जबाग दिखाए जाते थे कि आज़ाद भारत में दूध की नदियां बहेंगी, 1 पैसे सेर बिकने वाला दूध आज 50 रूपए लीटर हो गया है, यह नहीं भूलना चाहिए कि सेर लीटर से अधिक होता है। इन जन समस्याओं पर राज्य और केंद्र सरकारें आंखें मींचे बैठी है। खाद्य पदार्थों से शुद्धता नाम की चीज तो कहीं लुप्त हो चुकी है, पता नहीं खाद्य मंत्रालय क्या कर रहा है?   
 BJP छीन लेगी आदिवासियों की ज़मीनें: पत्थलगड़ी में ‘डर’
झारखण्ड को जानने-समझने वाले लोगों ने पत्थलगड़ी का नाम ज़रूर सुना होगा। आदिवासियों के इस मूवमेंट को कुछ मिशनरियों व कट्टरवादियों का समर्थन मिला, जिससे इसे सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई का एक प्रतीक बना दिया गया। लेकिन मोदी के कंधे पर सवार स्थानीय नेता इस जहर को निकालने एवं हो रहे दुष्प्रचार का खंडन कर पाए। जबकि आदिवासियों में भाजपा से कहीं अधिक काम संघ का है। उसके बावजूद इस दुष्प्रचार को प्रभावहीन करने में स्थानीय नेतृत्व पूर्णरूप से असफल रहा। अपने काम तो सुधारों, मोदी के पास क्या जादू की झड़ी है? 
दिल्ली में बैठे कुछ नेताओं को तो बहुत से बहुत 20 सीटों की आशा थी। क्योकि स्थानीय स्तर पर हो रही 
हालाँकि, आज स्थिति सामान्य है लेकिन फिर भी खूँटी और गुमला जैसे जिलों में चुनाव के दौरान स्थिति काफ़ी तनावपूर्ण रही। एक समय यह आंदोलन लोहरदगा, राँची और सिमडेगा तक फैल गया था। नक्सलियों के उभार के बाद ये हिंसक हो गया था और मिशनरियों के साथ के कारण ग़ैर-क़ानूनी रूप से इसके तहत ‘स्वतंत्र सरकार’ स्थापित करने का प्रयास किया गया था – अर्थात, सामानांतर सरकार।
नक्सल समर्थित इस मूवमेंट वाले इलाक़ों में मुख्यमंत्री रघुबर दास के ख़िलाफ़ ख़ूब दुष्प्रचार अभियान चलाया गया। लोगों के बीच अफवाह फैलाई गई कि भाजपा आदिवासी विरोधी है, इसीलिए उसने 2014 में जीतने के बाद एक गैर-आदिवासी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया। क्या नक्सलियों की ये साज़िश कामयाब रही? इसके लिए खूँटी लोकसभा क्षेत्र में आने वाले 6 विधानसभा क्षेत्रों के ट्रेंड देखिए क्योंकि पत्थलगड़ी मूवमेंट का एक तरह से यही गढ़ रहा है:
खरसावाँ: (2014: झामुमो) अब- झामुमो
तमाड़: (2014:आजसू) अब- झामुमो
तोरपा: (2014: झामुमो) अब- भाजपा
खूँटी: (2014: भाजपा) अब- भाजपा
कोलेबिरा: (2018: कॉन्ग्रेस) अब- कॉन्ग्रेस
सिमडेगा: (2014: भाजपा) अब- कॉन्ग्रेस

इस चुनाव से पहले खूँटी की 2 सीटें भाजपा व 2 सीटें कॉन्ग्रेस के पास थीं। अब 4 सीटें कॉन्ग्रेस व झामुमो के पास हैं। इससे पहले कि आपके मन में सवाल उठे, बता दें कि आदिवासियों द्वारा शिलालेख पर अपने पूवजों व बलिदानियों के नाम लिखने की परंपरा है, जो पत्थलगड़ी कहलाई। आदिवासियों के बीच डर बैठाया गया है कि सरकार उनकी ज़मीन छीन लेगी, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। खूँटी में विपक्षियों ने रघुवर दास पर उनकी रैली में चप्पल-जूते भी फेंके थे।
पत्थलगड़ी मूवमेंट को देखते हुए ही हिंसा रोकने हेतु चुनाव के दौरान इन क्षेत्रों में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई थी। चुनाव के दौरान गाँव-गाँव तक में सुरक्षा व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त रखी गई थी। हिंसा फैलाने वाले उपद्रवियों के ख़िलाफ़ सैंकड़ों मामले दर्ज हैं, जो चुनाव का मुद्दा भी बनी। इस संबंध में कुल 19 मामलों में 172 नामजद आरोपित हैं। भाजपा के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार का एक मुद्दा यह भी रहा। हालाँकि, भाजपा ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के जरिए इन इलाक़ों को साधने का प्रयास भी किया। पूरे आंदोलन के दौरान मुंडा ने इसके विरोध में कुछ नहीं बोला। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा खूँटी से ही सांसद हैं, ऐसे में उनके गढ़ में भाजपा के लिए स्थिति कैसी रही, यह परिणाम से पता चल जाता है।
मुख्यमंत्री रघुबर दास के ख़िलाफ़ गुस्सा क्यों था? ये इसीलिए, क्योंकि उनकी सरकार ने 2016 के अंत में एक संशोधन क़ानून पास किया था, जिसके तहत ट्राइबल क्षेत्रों की ज़मीन का भी विकास कार्यों के लिए अधिग्रहण किया जाना था। पत्थलगड़ी हिंसा के आरोपित और विकास के लिए आदिवासियों का जमीन अधिग्रहण- इन दो फैक्टरों को मिला दें और झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन का बयान देखें… तो इस क्षेत्र की राजनीति साफ हो जाएगी। शिबू सोरेन ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि उनकी सरकार बनते ही पत्थलगड़ी हिंसा के आरोपितों पर से सभी केस हटा लिए जाएँगे। और फिर खूँटी का महत्व इसीलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहाँ से चुनाव प्रचार किया था।

No comments: