
इसके बाद से उसकी हालत बिगड़ने लगी और वो बेहोश हो गई। उसका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने उसे होश में रखने की पूरी कोशिश की, उसे फौरन वेंटिलेटर पर रखा गया लेकिन वो बच न सकी।
दिसम्बर 5 रात 9 बजे तक होश में रही
सफदरजंग अस्पताल के मेडिकल अफसर डॉ. सुनील गुप्ता ने बताया कि गुरुवार(दिसंबर 5) देर शाम पीड़िता लखनऊ से एयर एंबुलेंस के जरिए दिल्ली लाया गयी थी। अस्पताल पहुंचने पर तुरंत ही सात डॉक्टरों की टीम ने उसका इलाज शुरू कर दिया था। बर्न डिपार्टमेंट के हेड डॉ. शलभ की देखरेख में पीड़िता का इलाज चल रहा था। गुरुवार रात नौ बजे तक वो होश में रही. होश में रहने के दौरान वो बस एक ही लाइन बोली कि मैं बच तो जाउंगी, लेकिन दोषियों को छोड़ना नहीं।
अब प्रश्न यह है कि 'न्यायालय से लेकर सरकार मृतक पीड़िता की बात का संज्ञान लेकर आरोपियों को जल्द से जल्द उनकी उचित जगह पहुंचाएगी?'
पूरा मामला
बता दें कि पीड़ित युवती के साथ दिसंबर 2018 में रेप हुआ था। इस मामले में मार्च 2019 में मामला दर्ज किया गया था। गुरुवार तड़के वो उन्नाव से रायबरेली जाने के लिए घर से निकली थी। लेकिन रास्ते में मुख्य आरोपी शुभम त्रिवेदी समेत पांच आरोपी हथियारों के बल पर घसीट कर उसे पास के खेत में ले गए और उसके साथ मारपीट की और चाकू से हमला किया। इसके बाद पांचों ने मिट्टी का तेल छिड़क कर पीड़िता को जला दिया।पीड़िता रायबरेली में अपने वकील से मिलने के लिए ट्रेन पकड़ने जा रही थी जब ये घटना हुई।
बलात्कार अपराधियों को जमानत क्यों?
जिन अपराधियों ने उन्नाव की निर्भय को इस स्थिति में पहुँचाया, उन्हें कुछ ही दिन पूर्व जमानत मिली थी और उसका लाभ उठाते, उन्होंने ने गवाह को ही समाप्त करने को अंजाम देने में सफल हो गए। ऐसे में जमानत देने वाले जज से भी पूछा जाए कि 'आखिर किस आधार पर जमानत दी?' अब यह मुद्दा जरुरत से ज्यादा संगीन हो गया है। आखिर किन लोगों के दबाब में जमानत दी गयी?
कैंडल मार्च
हैदराबाद कांड के बाद से लगभग हर चैनल चर्चा करता दिखा। इन परिचर्चाओं में कई मुद्दे उभरकर आए। एक, कैंडल मार्च पर प्रश्न चिन्ह; दो, किस कारण निर्भय दोषी की दया याचिका को हैदराबाद कांड से पूर्व क्यों दबाए रही?; बलात्कार दोषियों द्वारा जुल्म कबूल करने उपरांत क्यों न्याय में इतना समय लगता है? चार, दया याचिका प्रावधान क्यों?
फिल्में, केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि समाज की पांचवीं आंख एवं आइना माना जाता है, बलात्कार मुद्दे पर कई फिल्में आयी, और सफल भी हुईं। लेकिन जनता से लेकर किसी नेता ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। क्योकि जब आपराधिक मानसिकता से ग्रस्त नेताओं को पार्टियां टिकट देकर चुनावी मैदान में उतरेंगी और चुनाव आयोग उस व्यक्ति को चुनाव लड़ने की अनुमति देगा, फिर कहाँ से देश अपराध मुक्त होगा, और कल्पना करना भी व्यर्थ है।
अवलोकन करें:


90 के दशक का नैना साहनी तंदूर कांड, मायावती गेस्ट हाउस कांड आदि अनेकों ऐसे कांड है, जिन्हे इतिहास भुला नहीं सकता। क्या हुआ अपराधियों का? राजनीतिक संरक्षण के चलते, उन पर मिट्टी डाल दबा दिया गया। दिल्ली में संतोष कोली और राशन कार्ड कांड आदि, यदि समय रहते राजनीती को ताक पर रख, इन आरोपियों को दण्डित किया जाता, आज स्थिति इतनी भयानक नहीं होती। लेकिन क्या बस विरोधी पक्ष को निशाना बनाना है और उनकी पार्टी के राज में जो हो रहा है, उस पर चुप्पी साध लो। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल पिछले पांच दिनों से धरने पर बैठी हैं, कारण बलात्कार घटनाएं विरोधी पार्टी के राज्यों में हो रही हैं, लेकिन दिल्ली में हो रही बलात्कार घटनाओं पर खामोश, क्यों? इन्ही नौटंकियों के कारण देश में अपराध काम होने का नाम नहीं ले रहे। क्योकि आज राजनीती जनसेवा नहीं व्यापार का रूप धारण कर चुकी है। जनता को इन कटु सच्चाइयों को समझना होगा।
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