
सुभाष चंद्र बोस की प्रपौत्री और अखिल भारत हिन्दू महासभा की नेता राजश्री चौधरी ने अपने समर्थकों के साथ महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की पूजा की है। समाचार एजेंसी एएनआई की ओर से जारी किए गए वीडियो में राजश्री चौधरी अपने समर्थकों के साथ नाथूराम गोडसे की आरती उतारती दिख रही हैं। जो इस बात को सिद्ध करता है कि जितने भी वास्तविक स्वतन्त्रता सेनानी या उनके परिवार गोडसे को गाँधी से महान देशभक्त मानता है और मानता रहेगा। ये वीडियो मध्य प्रदेश के ग्वालियर का है। इस वीडियो में राजश्री चौधरी के साथ भगवा टोपी लगाए कई लोग दिख रहे हैं।
वीडियो में एक स्थान पर नाथूराम गोडसे और झांसी की रानी की तस्वीर लगी हुई है। यहां पर लगभग दर्जन भर लोग गोडसे की तारीफ में आरती गा रहे हैं।
कांग्रेस ने पेश की गलत छवि
राजश्री चौधरी ने कहा है कि नाथूराम अखिल भारत हिन्दू महासभा के केंद्रीय नेता हैं और वे हमारे दिलों में बसते हैं। राजश्री चौधरी ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने उन्हें बदनाम कर दिया है। उन्होंने कहा कि एक ऐसा वक्त आएगा, जब लोगों को सही इतिहास पता चलेगा।
इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस ने अपनी सत्ता का दुरूपयोग करते नाथूराम गोडसे की गलत छवि जनता के सम्मुख प्रस्तुत की। क्या कारण था कि गाँधी का पोस्टमॉर्टेम तक नहीं करवाया गया? वो कौन-सी परिस्थितियां थी, जिन्होंने कोर्ट में दर्ज 150 बयानों के सार्वजनिक होने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, जबकि गोडसे ने अपने बयान माइक पर पढ़ कर जज के सुपुर्द किये थे? यदि समय रहते गोडसे के बयान सार्वजनिक हो गए होते, भारत में कोई गोडसे को इतना अपमानित दृष्टि से नहीं देखता, विपरीत इसके गाँधी को ही अपमानित दृष्टि से देखते।
केवल तुष्टिकरण पुजारी ही नाथू राम गोडसे से अधिक महात्मा गाँधी को महान बता रहे हैं। किसी भी गाँधी भक्त में नाथू राम गोडसे के 150 बयान घर-घर वितरित करने का साहस नहीं। और किसी भी पार्टी से कल्पना करना भी व्यर्थ है, क्योकि जो घर-घर अपना घोषणा-पत्र तक तो वितरित नहीं कर सकते, गोडसे के बयान क्या वितरित करेंगे। आज हर पार्टी गाँधी की आड़ में तुष्टिकरण कर रही है। और जनता इन्हे अपना आदर्श मान रही है।
संसद का करेंगे घेराव
राजश्री चौधरी ने कहा कि हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता पर ग्वालियर में झूठी एफआईआर दर्ज कराई गई है, इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर इस एफआईआर को वापस नहीं लिया गया तो वे लोग संसद का घेराव करेंगे।
हिन्दू महासभा के सदस्यों ने ग्वालियर में नाथूराम गोडसे का 70 बलिदान दिवस मनाया था। इस बावत हिन्दू महासभा के सदस्य पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी। राजश्री चौधरी ने एफआईआर को गलत करार दिया है और इसे वापस लेने की मांग की है।
वीडियो में एक स्थान पर नाथूराम गोडसे और झांसी की रानी की तस्वीर लगी हुई है। यहां पर लगभग दर्जन भर लोग गोडसे की तारीफ में आरती गा रहे हैं।
कांग्रेस ने पेश की गलत छवि
राजश्री चौधरी ने कहा है कि नाथूराम अखिल भारत हिन्दू महासभा के केंद्रीय नेता हैं और वे हमारे दिलों में बसते हैं। राजश्री चौधरी ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने उन्हें बदनाम कर दिया है। उन्होंने कहा कि एक ऐसा वक्त आएगा, जब लोगों को सही इतिहास पता चलेगा।
इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस ने अपनी सत्ता का दुरूपयोग करते नाथूराम गोडसे की गलत छवि जनता के सम्मुख प्रस्तुत की। क्या कारण था कि गाँधी का पोस्टमॉर्टेम तक नहीं करवाया गया? वो कौन-सी परिस्थितियां थी, जिन्होंने कोर्ट में दर्ज 150 बयानों के सार्वजनिक होने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, जबकि गोडसे ने अपने बयान माइक पर पढ़ कर जज के सुपुर्द किये थे? यदि समय रहते गोडसे के बयान सार्वजनिक हो गए होते, भारत में कोई गोडसे को इतना अपमानित दृष्टि से नहीं देखता, विपरीत इसके गाँधी को ही अपमानित दृष्टि से देखते।
केवल तुष्टिकरण पुजारी ही नाथू राम गोडसे से अधिक महात्मा गाँधी को महान बता रहे हैं। किसी भी गाँधी भक्त में नाथू राम गोडसे के 150 बयान घर-घर वितरित करने का साहस नहीं। और किसी भी पार्टी से कल्पना करना भी व्यर्थ है, क्योकि जो घर-घर अपना घोषणा-पत्र तक तो वितरित नहीं कर सकते, गोडसे के बयान क्या वितरित करेंगे। आज हर पार्टी गाँधी की आड़ में तुष्टिकरण कर रही है। और जनता इन्हे अपना आदर्श मान रही है।
संसद का करेंगे घेराव
राजश्री चौधरी ने कहा कि हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता पर ग्वालियर में झूठी एफआईआर दर्ज कराई गई है, इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर इस एफआईआर को वापस नहीं लिया गया तो वे लोग संसद का घेराव करेंगे।
हिन्दू महासभा के सदस्यों ने ग्वालियर में नाथूराम गोडसे का 70 बलिदान दिवस मनाया था। इस बावत हिन्दू महासभा के सदस्य पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी। राजश्री चौधरी ने एफआईआर को गलत करार दिया है और इसे वापस लेने की मांग की है।
किसी व्यक्ति का भारत देश की नब्ज पर हाथ रख कर बोलना कांग्रेस की दृष्टि में सांप्रदायिकता रही है, और यह संस्कार कांग्रेस को गांधीजी जैसे नेताओं से मिला है। यदि आप इस देश के विभाजन का कारण धर्मांतरण से मर्मान्तरण और मर्मान्तरण से राष्ट्रान्तरण की सहज प्रक्रिया को मानेंगे तो आप कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं की दृष्टि में सांप्रदायिक हैं। यदि आप हिन्दू समाज के लोगों को धर्मांतरित कर अपने संख्याबल को बढ़ाकर इस देश को फिर विभाजन की ओर ले जाने वाले लोगों का विरोध करेंगे और फिर बरगलाकर या बहकाकर धर्मांतरित किए गए अपने वैदिक हिन्दू भाइयों को अपने साथ लाकर जोड़ने का प्रयास करोगे तो भी आप इन लोगों की दृष्टि में सांप्रदायिक होंगे और न केवल सांप्रदायिक होंगे बल्कि उन्मादी भी होंगे, उग्रवादी भी होंगे।
कुल मिलाकर कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं की सोच रही है कि अपराध और अत्याचार को चुप रह कर सहन करते रहो, जख्म खाते रहो और गर्दन कटवाते रहो। यदि इन सबके विरुद्ध आपने कुछ बोला तो गलती आपकी ही होगी न कि उन लोगों की जो अत्याचार कर रहे हैं या अपराध कर रहे हैं। अत्याचारी चाहे लाख 'औरंगजेब' पैदा कर ले पर आप कोई 'महाराणा प्रताप या शिवाजी' पैदा नहीं करोगे।
स्वामी श्रद्धानंद इस देश की विभाजनकारी शक्तियों की सूक्ष्मता से समीक्षा कर रहे थे और उसका ऐसा प्रबंध कर रहे थे कि भविष्य में इस देश को तोड़ने वाली शक्तियां पैदा ही ना हों तो उन्हें एक अत्याचारी ने धोखे से मार दिया। स्वामी जी एक देश, एक देव, एक धर्म, एक धर्म ग्रंथ के समर्थक थे। इसी सिद्धांत ने इस सनातन राष्ट्र को प्राचीन काल में 'एक' बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के समय गांधीजी कांग्रेस के 1926 के गोहाटी अधिवेशन में भाग ले रहे थे। जब उन्हें स्वामीजी की हत्या का समाचार मिला तो गांधीजी ने कहा-‘‘ऐसा तो होना ही था। अब आप शायद समझ गये होंगे कि किस कारण मैंने अब्दुल रशीद ( स्वामी जी के हत्यारे ) को भाई कहा है और मैं पुनः उसे भाई कहता हूँ। मैं तो उसे स्वामीजी का हत्या का दोषी नहीं मानता। वास्तव में दोषी तो वे हैं जिन्होंने एक-दूसरे के विरुद्ध घृणा फैलायी।’’
गांधी ने स्वामीजी की हत्या के बाद एक मंच से कहा था कि ‘राशिद मेरा भाई है और मैं बार बार यह कहूंगा। हत्या के लिए मैं उसे दोषी नहीं ठहराता। दोषी वह लोग हैं जो एक दूसरे के खिलाफ नफरत फैलाते हैं। उसकी कोई गलती नहीं है और न ही उसे दोषी ठहराकर किसी का भला होगा।’ यदि किसी की वकालत स्वयं गांधी कर रहे हों तो कौन सा कानून आरोपी को सजा देता ? गांधीजी के प्रयासों से राशिद को छोड़ दिया गया।
इतना ही नहीं गांधी जी ने अपने भाषण में आगे कहा, -- " मैं इसलिए स्वामी जी की मृत्यु पर शोक नहीं मना सकता.… हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए । मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूँ।"
उन्होंने आगे कहा कि “समाज सुधारक को तो ऐसी कीमत चुकानी ही पड़ती है , स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या में कुछ भी अनुपयुक्त नहीं है। “अब्दुल रशीद के धार्मिक उन्माद को दोषी न मानते हुये गांधीजी ने कहा कि “…ये हम पढ़े, अध-पढ़े लोग हैं , जिन्होंने अब्दुल रशीद को उन्मादी बनाया । स्वामी जी की हत्या के पश्चात हमें आशा है कि उनका खून हमारे दोष को धो सकेगा, हृदय को निर्मल करेगा और मानव परिवार के इन दो शक्तिशाली विभाजन को मजबूत कर सकेगा.“ (यंग इण्डिया, दिसम्बर 30, 1926).
ऐसे शब्द न कहकर यदि गांधीजी देश में धर्मांतरण के खेल के माध्यम से अपना संख्याबल बढ़ाकर देश को विभाजन की ओर ले जाने वाली शक्तियों का विरोध करते और भविष्य में देश का किसी भी प्रकार से विभाजन न् हो इस काम में लगे स्वामी श्रद्धानंद जी के बलिदान को बलिदान मानते तो गांधी जी का व्यक्तित्व सचमुच महान होता। समय पर सच को सच न कहने और झूठ का महिमामंडन या समर्थन या तुष्टीकरण करने की उनकी प्रवृत्ति देश के लिए घातक रही।
गांधी जी और कांग्रेस स्वामी श्रद्धानंद जी के हत्यारे को भाई और देशभक्त मानें तो यह एक अलग बात है और गोडसे को इस देश का निवासी भी मान लिया जाए तो यह दूसरी बात है , क्या अजब मान्यताएं हैं?
कुल मिलाकर कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं की सोच रही है कि अपराध और अत्याचार को चुप रह कर सहन करते रहो, जख्म खाते रहो और गर्दन कटवाते रहो। यदि इन सबके विरुद्ध आपने कुछ बोला तो गलती आपकी ही होगी न कि उन लोगों की जो अत्याचार कर रहे हैं या अपराध कर रहे हैं। अत्याचारी चाहे लाख 'औरंगजेब' पैदा कर ले पर आप कोई 'महाराणा प्रताप या शिवाजी' पैदा नहीं करोगे।
स्वामी श्रद्धानंद इस देश की विभाजनकारी शक्तियों की सूक्ष्मता से समीक्षा कर रहे थे और उसका ऐसा प्रबंध कर रहे थे कि भविष्य में इस देश को तोड़ने वाली शक्तियां पैदा ही ना हों तो उन्हें एक अत्याचारी ने धोखे से मार दिया। स्वामी जी एक देश, एक देव, एक धर्म, एक धर्म ग्रंथ के समर्थक थे। इसी सिद्धांत ने इस सनातन राष्ट्र को प्राचीन काल में 'एक' बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के समय गांधीजी कांग्रेस के 1926 के गोहाटी अधिवेशन में भाग ले रहे थे। जब उन्हें स्वामीजी की हत्या का समाचार मिला तो गांधीजी ने कहा-‘‘ऐसा तो होना ही था। अब आप शायद समझ गये होंगे कि किस कारण मैंने अब्दुल रशीद ( स्वामी जी के हत्यारे ) को भाई कहा है और मैं पुनः उसे भाई कहता हूँ। मैं तो उसे स्वामीजी का हत्या का दोषी नहीं मानता। वास्तव में दोषी तो वे हैं जिन्होंने एक-दूसरे के विरुद्ध घृणा फैलायी।’’
गांधी ने स्वामीजी की हत्या के बाद एक मंच से कहा था कि ‘राशिद मेरा भाई है और मैं बार बार यह कहूंगा। हत्या के लिए मैं उसे दोषी नहीं ठहराता। दोषी वह लोग हैं जो एक दूसरे के खिलाफ नफरत फैलाते हैं। उसकी कोई गलती नहीं है और न ही उसे दोषी ठहराकर किसी का भला होगा।’ यदि किसी की वकालत स्वयं गांधी कर रहे हों तो कौन सा कानून आरोपी को सजा देता ? गांधीजी के प्रयासों से राशिद को छोड़ दिया गया।
इतना ही नहीं गांधी जी ने अपने भाषण में आगे कहा, -- " मैं इसलिए स्वामी जी की मृत्यु पर शोक नहीं मना सकता.… हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए । मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूँ।"
उन्होंने आगे कहा कि “समाज सुधारक को तो ऐसी कीमत चुकानी ही पड़ती है , स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या में कुछ भी अनुपयुक्त नहीं है। “अब्दुल रशीद के धार्मिक उन्माद को दोषी न मानते हुये गांधीजी ने कहा कि “…ये हम पढ़े, अध-पढ़े लोग हैं , जिन्होंने अब्दुल रशीद को उन्मादी बनाया । स्वामी जी की हत्या के पश्चात हमें आशा है कि उनका खून हमारे दोष को धो सकेगा, हृदय को निर्मल करेगा और मानव परिवार के इन दो शक्तिशाली विभाजन को मजबूत कर सकेगा.“ (यंग इण्डिया, दिसम्बर 30, 1926).
ऐसे शब्द न कहकर यदि गांधीजी देश में धर्मांतरण के खेल के माध्यम से अपना संख्याबल बढ़ाकर देश को विभाजन की ओर ले जाने वाली शक्तियों का विरोध करते और भविष्य में देश का किसी भी प्रकार से विभाजन न् हो इस काम में लगे स्वामी श्रद्धानंद जी के बलिदान को बलिदान मानते तो गांधी जी का व्यक्तित्व सचमुच महान होता। समय पर सच को सच न कहने और झूठ का महिमामंडन या समर्थन या तुष्टीकरण करने की उनकी प्रवृत्ति देश के लिए घातक रही।
गांधी जी और कांग्रेस स्वामी श्रद्धानंद जी के हत्यारे को भाई और देशभक्त मानें तो यह एक अलग बात है और गोडसे को इस देश का निवासी भी मान लिया जाए तो यह दूसरी बात है , क्या अजब मान्यताएं हैं?
पाकिस्तान से दिल्ली की तरफ जो रेलगाड़िया आ रही थी, उनमे हिन्दू इस प्रकार बैठे थे जैसे माल की बोरिया एक के ऊपर एक रची जाती हैं। अन्दर ज्यादातर मरे हुए ही थे, गला कटे हुएl रेलगाड़ी के छप्पर पर बहुत से लोग बैठे हुए थे, डिब्बों के अन्दर सिर्फ सांस लेने भर की जगह बाकी थीl बैलगाड़िया ट्रक्स हिन्दुओं से भरे हुए थे, रेलगाड़ियों पर लिखा हुआ था,"आज़ादी का तोहफा" रेलगाड़ी में जो लाशें भरी हुई थी उनकी हालत कुछ ऐसी थी की उनको उठाना मुश्किल था, दिल्ली पुलिस को फावड़ें में उन लाशों को भरकर उठाना पड़ाl ट्रक में भरकर किसी निर्जन स्थान पर ले जाकर, उन पर पेट्रोल के फवारे मारकर उन लाशों को जलाना पड़ा इतनी विकट हालत थी उन मृतदेहों की... भयानक बदबू......
सियालकोट से खबरे आ रही थी की वहां से हिन्दुओं को निकाला जा रहा हैं, उनके घर, उनकी खेती, पैसा-अडका, सोना-चाँदी, बर्तन सब मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिए थेl मुस्लिम लीग ने सिवाय कपड़ों के कुछ भी ले जाने पर रोक लगा दी थी। किसी भी गाडी पर हल्ला करके हाथ को लगे उतनी महिलाओं-बच्चियों को भगाया गया। बलात्कार किये बिना एक भी हिन्दू स्त्री वहां से वापस नहीं आ सकती थी ... बलात्कार किये बिना.....?
जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आई वो अपनी वैद्यकीय जांच करवाने से डर रही थी....
हम पर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं हमें भी पता नहीं हैं...उनके सारे शारीर पर चाकुओं के घाव थे।
"आज़ादी का तोहफा"
जिन स्थानों से लोगों ने जाने से मना कर दिया, उन स्थानों पर हिन्दू स्त्रियों की नग्न यात्राएं (धिंड) निकाली गयीं, बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं और उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गयाl
1947 के बाद दिल्ली में 400000 हिन्दू निर्वासित आये, और इन हिन्दुओं को जिस हाल में यहाँ आना पड़ा था, उसके बावजूद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने ही चाहिए ऐसा महात्मा का आग्रह था... क्योकि एक तिहाई भारत के तुकडे हुए हैं तो भारत के खजाने का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान को मिलना चाहिए थाl
विधि मंडल ने विरोध किया, पैसा नहीं देगे....और फिर बिरला भवन के पटांगन में महात्मा जी अनशन पर बैठ गए.....पैसे दो नहीं तो मैं मर जाउगा....
एक तरफ अपने मुहँ से ये कहने वाले महात्मा जी, की हिंसा उनको पसंद नहीं हैं l दूसरी तरफ जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए... क्या यह हिंसा नहीं थी ..अहिंसक आतंकवाद की आड़ में
एक तरफ अपने मुहँ से ये कहने वाले महात्मा जी, की हिंसा उनको पसंद नहीं हैं l दूसरी तरफ जो हिंसा कर रहे थे उनके लिए अनशन पर बैठ गए... क्या यह हिंसा नहीं थी ..अहिंसक आतंकवाद की आड़ में
दिल्ली में हिन्दू निर्वासितों के रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी, इससे ज्यादा बुरी बात ये थी की दिल्ली में खाली पड़ी मस्जिदों में हिन्दुओं ने शरण ली तब बिरला भवन से महात्मा जी ने भाषण में कहा की दिल्ली पुलिस को मेरा आदेश हैं मस्जिद जैसी चीजों पर हिन्दुओं का कोई ताबा नहीं रहना चाहिए। निर्वासितों को बाहर निकालकर मस्जिदे खाली करे.. क्योंकि महात्मा जी की दृष्टी में जान सिर्फ मुसलमानों में थी हिन्दुओं में नहीं...जनवरी की कडकडाती ठंडी में हिन्दू महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों को हाथ पकड़कर पुलिस ने मस्जिद के बाहर निकाला, गटर के किनारे रहो लेकिन छत के निचे नहीं l क्योकि...तुम हिन्दू हो..
4000000 हिन्दू भारत में आये थे, ये सोचकर की ये भारत हमारा हैं....ये सब निर्वासित गांधीजी से मिलाने बिरला भवन जाते थे तब गांधीजी माइक पर से कहते थे क्यों आये यहाँ अपने घर जायदाद बेचकर, वहीँ पर अहिंसात्मक प्रतिकार करके क्यों नहीं रहे ?
यही अपराध हुआ तुमसे अभी भी वही वापस जाओ.. और ये महात्मा किस आशा पर पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपये देने निकले थे ?
कैसा होगा वो मोहनदास करमचन्द गाजी उर्फ़ गंधासुर ... कितना महान ...?
जिसने बिना तलवार उठाये ... 35 लाख हिन्दुओं का नरसंहार करवाया ; 2 करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं का इस्लाम में धर्मांतरण हुआ और उसके बाद यह संख्या 10 करोड़ भी पहुंचीl
10 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को खरीदा बेचा गयाl
20 लाख से ज्यादा हिन्दू नारियों को जबरन तरह तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाओं के बाद मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया।
ऐसे बहुत से प्रश्न, वास्तविकताएं और सत्य तथा तथ्य हैं जो की 1947 के समकालीन लोगों ने अपनी आने वाली पीढ़ियों से छुपाये, हिन्दू कहते हैं की जो हो गया उसे भूल जाओ, नए कल की शुरुआत करो।
परन्तु इस्लाम के लिए तो कोई कल नहीं .. कोई आज नहीं ...वहां तो दार-उल-हर्ब को दार-उल-इस्लाम में बदलने का ही लक्ष्य है पल.. प्रति पल विभाजन के बाद एक और विभाजन का षड्यंत्र ...
आपने बहुत से देशों में से नए देशों का निर्माण देखा होगा, U S S R टूटने के बाद बहुत से नए देश बने, जैसे ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान आदि ... परन्तु यह सब देश जो बने वो एक परिभाषित अविभाजित सीमा के अंदर बने l और जब भारत का विभाजन हुआ .. तो क्या कारण थे की पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान बनाए गए...क्यों नही एक ही पाकिस्तान बनाया गया? या तो पश्चिम में बना लेते या फिर पूर्व में l
परन्तु ऐसा नही हुआ .... यहाँ पर उल्लेखनीय है की मोहनदास करमचन्द ने तो यहाँ तक कहा था की पूरा पंजाब पाकिस्तान में जाना चाहिए, बहुत कम लोगों को ज्ञात है की 1947 के समय में पंजाब की सीमा दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र तक होती थी ...यानी की पाकिस्तान का बोर्डर दिल्ली के साथ होना तय था ...मोहनदास करमचन्द के अनुसार l
नवम्बर 1968 में पंजाब में से दो नये राज्यों का उदय हुआ .. हिमाचल प्रदेश और हरियाणा l
पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र पाने के बाद भी जिन्ना और मुस्लिम लीग चैन से नहीं बैठे ...उन्होंने फिर से मांग की हमको पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं l
1. पानी के रास्ते बहुत लम्बा सफर हो जाता है क्योंकि श्री लंका के रस्ते से घूम कर जाना पड़ता है l
2. और हवाई जहाज से यात्राएं करने में अभी पाकिस्तान के मुसलमान सक्षम नही हैं l इसलिए .... कुछ मांगें रखी गयीं 1. इसलिए हमको भारत के बीचो बीच एक Corridor बना कर दिया जाए....जो लाहोर से ढाका तक जाता हो ... (NH - 1)
3. जो दिल्ली के पास से जाता हो ...
4. जिसकी चौड़ाई कम से कम 10 मील की हो ... (10 Miles = 16 KM)
5. इस पूरे Corridor में केवल मुस्लिम लोग ही रहेंगे l
30 जनवरी को गांधी वध यदि न होता, तो तत्कालीन परिस्थितियों में बच्चा बच्चा यह जानता था की यदि मोहनदास करमचन्द 3 फरवरी, 1948 को पाकिस्तान पहुँच गया तो इस मांग को भी मान लिया जायेगा l
तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तो मोहनदास करमचन्द किसी की बात सुनने की स्थिति में था न ही समझने में ...और समय भी नहीं था जिसके कारण हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी को गांधी वध जैसा अत्यधिक साहसी और शौर्यतापूर्ण निर्णय लेना पडा l
1. पानी के रास्ते बहुत लम्बा सफर हो जाता है क्योंकि श्री लंका के रस्ते से घूम कर जाना पड़ता है l
2. और हवाई जहाज से यात्राएं करने में अभी पाकिस्तान के मुसलमान सक्षम नही हैं l इसलिए .... कुछ मांगें रखी गयीं 1. इसलिए हमको भारत के बीचो बीच एक Corridor बना कर दिया जाए....जो लाहोर से ढाका तक जाता हो ... (NH - 1)
3. जो दिल्ली के पास से जाता हो ...
4. जिसकी चौड़ाई कम से कम 10 मील की हो ... (10 Miles = 16 KM)
5. इस पूरे Corridor में केवल मुस्लिम लोग ही रहेंगे l
30 जनवरी को गांधी वध यदि न होता, तो तत्कालीन परिस्थितियों में बच्चा बच्चा यह जानता था की यदि मोहनदास करमचन्द 3 फरवरी, 1948 को पाकिस्तान पहुँच गया तो इस मांग को भी मान लिया जायेगा l
तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तो मोहनदास करमचन्द किसी की बात सुनने की स्थिति में था न ही समझने में ...और समय भी नहीं था जिसके कारण हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी को गांधी वध जैसा अत्यधिक साहसी और शौर्यतापूर्ण निर्णय लेना पडा l


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