आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
बॉलीवुड स्टार अजय देवगन और सैफ अली खान की फिल्म 'तानाजी : द अनसंग वॉरियर' (Tanhaji: The Unsung Warrior) बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कमाई कर रही है। इसमें अजय और सैफ के किरदार को लोग काफी पसंद कर रहे हैं। इस बीच सैफ ने 'तानाजी' पर इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगाया और खतरनाक बताया।साथ ही देश को लेकर भी ऐसी बात कह दी है कि वह ट्रोल हो गए हैं।
तानाजी फिल्म में उदय भान सिंह का नेगेटिव किरदार निभाकर दर्शकों की वाहवाही लूटने वाले सैफ अली खान ने रविवार (जनवरी 19, 2019) को दिए एक इंटरव्यू में कई मुद्दों पर बात की। उन्होंने अधिकांश दर्शकों की प्रतिक्रिया से उलट जाकर इस साक्षात्कार में अपनी ही फिल्म को लेकर कहा कि जो फिल्म में दर्शाया गया, वो इतिहास नहीं है। उन्होंने कहा, “इतिहास क्या है, मैं इसे जानता हूँ लेकिन अगर कोई कहे कि फिल्म में जो दिखाया गया है वह इतिहास है तो मैं इसे नहीं मानता।”
इसी इंटरव्यू में सैफ ने कहा कि 'तानाजी' में जो दिखाया गया है, वह इतिहास का हिस्सा नहीं है। ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ गलत है। मेरा रोल काफी दिलचस्प था. कुछ वजहों से मैं स्टैंड नहीं ले पाया। हो सकता है कि अगली बार मैं ऐसा न करूं। इतिहास क्या है, मुझे बखूबी पता है। फिल्म की व्यावसायिक सफलता के लिए इतिहास की गलत व्याख्या की गई। उन्होंने एक बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि कबीर खान ने कहा था कि वह खराब अभिनय और ढीली स्क्रिप्ट बर्दाश्त कर लेंगे, लेकिन राजनीतिक नैरेटिव में व्यावसायिक सफलता के लिए इतिहास के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की छूट बर्दाश्त नहीं करेंगे।
अल्प-ज्ञान या कट्टरपंथी सोंच के शिकार सैफ
सैफ अली द्वारा 'तानाजी' के इतिहास पर विवाद खड़ा करने से आभास होता है कि शायद इन्हें भारत के वास्तविक इतिहास का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं या फिर कट्टरपंथी सोंच के शिकार हैं? यदि उनको इतिहास का ज्ञान था तो इतिहास से छेड़छाड़ होने पर उसी समय संगीतकार नौशाद साहब की तरह विरोध क्यों नहीं किया? उनके खड़े विवाद पर याद आता 60 के दशक में निर्माता-निर्देशक के.आसिफ द्वारा निर्मित "मुग़ल-ए-आज़म" के दौरान संगीतकार नौशाद और आसिफ के बीच हुए मन-मुटाओ की। दरअसल, फिल्म में शीश महल दृश्य को फिल्माने एवं महंगी फिल्म होने पर आसिफ के शरीर का बाल-बाल कर्जे में डूब गया था। और फिल्म को सफल बनाने के लिए उन्होंने फिल्म के अंत को सुखद क्या फिल्मा दिया, नौशाद साहब उड़द के आटे की तरह इतना बिफर गए कि गुस्से में आकर, आसिफ को यहाँ तक बोल दिया था कि "मेरा संगीत इस्तेमाल करना है करो, लेकिन फिल्म क्रेडिट में मेरा नाम किसी भी कीमत पर मत देना। तुमने कर्जे से छुटकारा पाने के लिए तवारीख में दखलदराजी की है, जिसे मै बर्दाश्त नहीं कर सकता।" इस पर आसिफ ने नौशाद से कहा, "नौशाद साहब यह तवारीख नहीं है, यह तो इम्तिआज़ अली के ड्रामा पर आधारित फिल्म है।
अनारकली कौन थी?
नौशाद साहब आसिफ की बात से संतुष्ट नहीं हुए, बरहाल उन्होंने जब वास्तविक इतिहास का अध्ययन किया, तब ज्ञात हुआ कि 'अनारकली नाम की मुग़ल दरबार में कोई चीज ही नहीं थी, और न ही अकबर या सलीम ने किसी को अनारकली नाम का ख़िताब दिया था। इस विषय पर 80 के दशक में स्वतन्त्र पत्रकारिता करते अंग्रेजी में शीर्षक "Was Anarkali a myth", जिसे मेरे संपादक प्रो वेद प्रकाश भाटिया तक ने प्रकाशित करने से साफ इंकार जरूर किया, लेकिन इस विषय को उजागर होने का मार्ग दिखा दिया। शायद ही कोई राष्ट्रीय समाचार-पत्र होगा, जिसे लेख न दिया हो, दुर्भाग्यवश किसी ने प्रकाशित नहीं किया। अंत में मुंबई से प्रकाशित फिल्म साप्ताहिक 'Screen' को प्रेषित किया। Screen ने भी लगभग दो महीने बाद लगभग आधा पृष्ठ पर प्रकाशित किया। Screen में प्रकाशित होने से, प्रो भाटिया इतने प्रसन्न हुए कि प्रूफ रीडर से उप-संपादक की पदोन्नति करने का दबाव बनाना शुरू कर दी। अंत में सफल भी हुए। बरहाल, हार कहाँ मानने थे, दो सप्ताह Screen में प्रकाशन का इंतज़ार कर, उसी लेख को हिंदी में शीर्षक "अनारकली कौन थी" के नाम से लिख उस समय के समस्त समाचार-पत्र/पत्रिकाओं को प्रेषित किया। दिल्ली के वीर अर्जुन और पंजाब केसरी के अतिरिक्त किसी नामी पत्र ने प्रकाशित करने का साहस नहीं किया, शायद उनको डर वास्तविकता का बोध करवाने पर सरकार कोई डंडा न चला दे। इस लेख को अपनी पुस्तक "भारतीय फिल्मोद्योग--एक विवेचन" में भी सम्मिलित किया।
बरहाल, इस लेख के दिल्ली से बाहर प्रकाशित होने वाली हर पत्र-पत्रिका ने खूब छापना कि फिल्म लेखन में एक चर्चित नाम बन गया था। कहने का अभिप्राय यह है कि भारत के इतिहास में अनेकों ऐसे शूरवीर शासक हुए हैं, जिन्होंने मुगलों को लोहे के चने चबवा दिए थे, लेकिन उन्हें जयचन्दों की गद्दारी के कारण पराजय का मुंह देखना पड़ा था और कांग्रेस और वामपंथियों की जुगलजोड़ी कथित इतिहासकारों ने उन्हें धूमिल कर मुग़ल आतताइयों को महान बताकर कर बहुत ही निंदनीय काम किया है।
क्या है अनारकली का सच
एक बार ड्रामाकार इम्तियाज़ अली किसी मइयत के साथ लाहौर के कब्रिस्तान गया था, जहाँ उसने मृतिका की कब्र पर लगे पत्थर पर पढ़ा, "मेरी हिन्दुस्तान की अनारकली बनने की तमन्ना थी", बस इतनी सी बात अली ने मुग़ल सल्तनत को आधार बनाकर ड्रामा लिख दिया और बॉलीवुड ने वास्तविक मान आज़ादी के बाद फिल्में बनाकर तिजोरियां भरनी शुरू कर दीं। और मूर्ख जनता ने इसे ऐतिहासिक सच मान लिया।
सैफ मियां को कुछ बोलने से पहले वास्तविकता को जानना था, सैफ को डर है कि जिस तरह फिल्म में औरंगज़ेब की क्रूरता को दर्शाया है, कट्टरपंथी कोई फतवा न दे दें।
एक यूजर यामिनी चतुर्वेदी ने लिखा- जब ब्रिटिश के आने तक इंडिया का कॉन्सेप्ट ही नहीं था तो उन्होंने 'ईस्ट इंडिया कंपनी' का नाम किसके नाम पर रखा था। कोई पूछे सैफ से.एक ने लिखा कि मुझे संदेह है कि उन्होंने कौन-से इतिहास की किताबें पढ़ी हैं। एक ने लिखा बॉलीवुड में सैफ समेत ऐसे बहुत से स्टार्स हैं, जिन्हें कोई जानकारी नहीं है, लेकिन कैमरे के सामने ज्ञान देने में वह सबसे आगे हैं।
अपने इस इंटरव्यू में सैफ ने यह भी कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले इंडिया का कोई कॉन्सेप्ट नहीं था। जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी काफी आलोचना हो रही है। लोग फिल्म की रिलीज से पहले हुए उनके साक्षात्कार की वीडियो शेयर कर रहे हैं और दोनों बयानों में फर्क़ दिखाकर उनकी मंशा पर सवाल उठा रहे हैं।
इस साक्षात्कार में सैफ ने देश के मौजूदा हालातों पर भी अपने विचार स्पष्ट किए और कहा कि फिलहाल देश में जो माहौल है, उसे देखकर उन्हें दुख होता है। उन्होंने कहा, “देश के लोग जो रवैया अपना रहे हैं वह गलत है। ये रवैया हमें भाईचारे के रास्ते से दूर कर रहा है।”
अनुपमा चोपड़ा को दिए इंटरव्यू में सैफ ने सीएए/एनआरसी पर हो रहे विरोध पर कहा कि जिस तरह से देश आगे बढ़ रहा है उससे ये तो साफ है कि देश में सेक्युलरिज्म का नामो निशान मिट जाएगा। उनके अनुसार, “देश के मौजूदा हालात देखकर लगता है कि हम सेक्युलरिज्म से दूर जा रहे हैं और मुझे कोई भी इसके लिए लड़ता दिखाई नहीं दे रहा है।”
उन्होंने कहा कि बतौर एक्टर उनके लिए कोई भी स्टैंड लेना सही नहीं है क्योंकि इससे उनकी फिल्में बैन हो सकती है और बिजनेस पर असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि इसलिए फिल्म इंडस्ट्री के लोग अपने बिजनेस और अपने परिवार को खतरे में नहीं डालना चाहते और कोई भी पॉलिटिकल कॉमेंट करने से बचते हैं।
अभी तक जहाँ सोशल मीडिया पर इस फिल्म को बिना किसी छेड़छाड़ के पेश किए जाने के लिए सराहा जा रहा था, वहीं अनुपमा चोपड़ा से हुई बातचीत में सैफ के बयान ने उन्हें आलोचनाओं का केंद्र बना दिया है।
फिल्म इंडस्ट्री तान्हाजी जैसी फिल्में क्यों बना रही है, इसके बारे में बात करते हुए सैफ ने इस इंटरव्यू में कहा, “यही चलता है और इसलिए यह आइडिया चल पड़ा है। मैं वास्तव में ऐसी फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा होना पसंद करूँगा जो एक स्टैंड ले, जो लोगों को बताए कि इतिहास क्या है, ना कि निश्चित प्रकार की सोच के साथ इससे छेड़छाड़ करे। लेकिन लोग कहते हैं कि यह चलता है। यह एक आइडिया है जो चल निकला है, लेकिन यह वास्तव में खतरनाक है।”
बॉलीवुड स्टार अजय देवगन और सैफ अली खान की फिल्म 'तानाजी : द अनसंग वॉरियर' (Tanhaji: The Unsung Warrior) बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कमाई कर रही है। इसमें अजय और सैफ के किरदार को लोग काफी पसंद कर रहे हैं। इस बीच सैफ ने 'तानाजी' पर इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगाया और खतरनाक बताया।साथ ही देश को लेकर भी ऐसी बात कह दी है कि वह ट्रोल हो गए हैं।
तानाजी फिल्म में उदय भान सिंह का नेगेटिव किरदार निभाकर दर्शकों की वाहवाही लूटने वाले सैफ अली खान ने रविवार (जनवरी 19, 2019) को दिए एक इंटरव्यू में कई मुद्दों पर बात की। उन्होंने अधिकांश दर्शकों की प्रतिक्रिया से उलट जाकर इस साक्षात्कार में अपनी ही फिल्म को लेकर कहा कि जो फिल्म में दर्शाया गया, वो इतिहास नहीं है। उन्होंने कहा, “इतिहास क्या है, मैं इसे जानता हूँ लेकिन अगर कोई कहे कि फिल्म में जो दिखाया गया है वह इतिहास है तो मैं इसे नहीं मानता।”
इसी इंटरव्यू में सैफ ने कहा कि 'तानाजी' में जो दिखाया गया है, वह इतिहास का हिस्सा नहीं है। ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ गलत है। मेरा रोल काफी दिलचस्प था. कुछ वजहों से मैं स्टैंड नहीं ले पाया। हो सकता है कि अगली बार मैं ऐसा न करूं। इतिहास क्या है, मुझे बखूबी पता है। फिल्म की व्यावसायिक सफलता के लिए इतिहास की गलत व्याख्या की गई। उन्होंने एक बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि कबीर खान ने कहा था कि वह खराब अभिनय और ढीली स्क्रिप्ट बर्दाश्त कर लेंगे, लेकिन राजनीतिक नैरेटिव में व्यावसायिक सफलता के लिए इतिहास के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की छूट बर्दाश्त नहीं करेंगे।
अल्प-ज्ञान या कट्टरपंथी सोंच के शिकार सैफ
सैफ अली द्वारा 'तानाजी' के इतिहास पर विवाद खड़ा करने से आभास होता है कि शायद इन्हें भारत के वास्तविक इतिहास का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं या फिर कट्टरपंथी सोंच के शिकार हैं? यदि उनको इतिहास का ज्ञान था तो इतिहास से छेड़छाड़ होने पर उसी समय संगीतकार नौशाद साहब की तरह विरोध क्यों नहीं किया? उनके खड़े विवाद पर याद आता 60 के दशक में निर्माता-निर्देशक के.आसिफ द्वारा निर्मित "मुग़ल-ए-आज़म" के दौरान संगीतकार नौशाद और आसिफ के बीच हुए मन-मुटाओ की। दरअसल, फिल्म में शीश महल दृश्य को फिल्माने एवं महंगी फिल्म होने पर आसिफ के शरीर का बाल-बाल कर्जे में डूब गया था। और फिल्म को सफल बनाने के लिए उन्होंने फिल्म के अंत को सुखद क्या फिल्मा दिया, नौशाद साहब उड़द के आटे की तरह इतना बिफर गए कि गुस्से में आकर, आसिफ को यहाँ तक बोल दिया था कि "मेरा संगीत इस्तेमाल करना है करो, लेकिन फिल्म क्रेडिट में मेरा नाम किसी भी कीमत पर मत देना। तुमने कर्जे से छुटकारा पाने के लिए तवारीख में दखलदराजी की है, जिसे मै बर्दाश्त नहीं कर सकता।" इस पर आसिफ ने नौशाद से कहा, "नौशाद साहब यह तवारीख नहीं है, यह तो इम्तिआज़ अली के ड्रामा पर आधारित फिल्म है।
नौशाद साहब आसिफ की बात से संतुष्ट नहीं हुए, बरहाल उन्होंने जब वास्तविक इतिहास का अध्ययन किया, तब ज्ञात हुआ कि 'अनारकली नाम की मुग़ल दरबार में कोई चीज ही नहीं थी, और न ही अकबर या सलीम ने किसी को अनारकली नाम का ख़िताब दिया था। इस विषय पर 80 के दशक में स्वतन्त्र पत्रकारिता करते अंग्रेजी में शीर्षक "Was Anarkali a myth", जिसे मेरे संपादक प्रो वेद प्रकाश भाटिया तक ने प्रकाशित करने से साफ इंकार जरूर किया, लेकिन इस विषय को उजागर होने का मार्ग दिखा दिया। शायद ही कोई राष्ट्रीय समाचार-पत्र होगा, जिसे लेख न दिया हो, दुर्भाग्यवश किसी ने प्रकाशित नहीं किया। अंत में मुंबई से प्रकाशित फिल्म साप्ताहिक 'Screen' को प्रेषित किया। Screen ने भी लगभग दो महीने बाद लगभग आधा पृष्ठ पर प्रकाशित किया। Screen में प्रकाशित होने से, प्रो भाटिया इतने प्रसन्न हुए कि प्रूफ रीडर से उप-संपादक की पदोन्नति करने का दबाव बनाना शुरू कर दी। अंत में सफल भी हुए। बरहाल, हार कहाँ मानने थे, दो सप्ताह Screen में प्रकाशन का इंतज़ार कर, उसी लेख को हिंदी में शीर्षक "अनारकली कौन थी" के नाम से लिख उस समय के समस्त समाचार-पत्र/पत्रिकाओं को प्रेषित किया। दिल्ली के वीर अर्जुन और पंजाब केसरी के अतिरिक्त किसी नामी पत्र ने प्रकाशित करने का साहस नहीं किया, शायद उनको डर वास्तविकता का बोध करवाने पर सरकार कोई डंडा न चला दे। इस लेख को अपनी पुस्तक "भारतीय फिल्मोद्योग--एक विवेचन" में भी सम्मिलित किया।
बरहाल, इस लेख के दिल्ली से बाहर प्रकाशित होने वाली हर पत्र-पत्रिका ने खूब छापना कि फिल्म लेखन में एक चर्चित नाम बन गया था। कहने का अभिप्राय यह है कि भारत के इतिहास में अनेकों ऐसे शूरवीर शासक हुए हैं, जिन्होंने मुगलों को लोहे के चने चबवा दिए थे, लेकिन उन्हें जयचन्दों की गद्दारी के कारण पराजय का मुंह देखना पड़ा था और कांग्रेस और वामपंथियों की जुगलजोड़ी कथित इतिहासकारों ने उन्हें धूमिल कर मुग़ल आतताइयों को महान बताकर कर बहुत ही निंदनीय काम किया है।
क्या है अनारकली का सच
एक बार ड्रामाकार इम्तियाज़ अली किसी मइयत के साथ लाहौर के कब्रिस्तान गया था, जहाँ उसने मृतिका की कब्र पर लगे पत्थर पर पढ़ा, "मेरी हिन्दुस्तान की अनारकली बनने की तमन्ना थी", बस इतनी सी बात अली ने मुग़ल सल्तनत को आधार बनाकर ड्रामा लिख दिया और बॉलीवुड ने वास्तविक मान आज़ादी के बाद फिल्में बनाकर तिजोरियां भरनी शुरू कर दीं। और मूर्ख जनता ने इसे ऐतिहासिक सच मान लिया।
सैफ मियां को कुछ बोलने से पहले वास्तविकता को जानना था, सैफ को डर है कि जिस तरह फिल्म में औरंगज़ेब की क्रूरता को दर्शाया है, कट्टरपंथी कोई फतवा न दे दें।
एक यूजर यामिनी चतुर्वेदी ने लिखा- जब ब्रिटिश के आने तक इंडिया का कॉन्सेप्ट ही नहीं था तो उन्होंने 'ईस्ट इंडिया कंपनी' का नाम किसके नाम पर रखा था। कोई पूछे सैफ से.एक ने लिखा कि मुझे संदेह है कि उन्होंने कौन-से इतिहास की किताबें पढ़ी हैं। एक ने लिखा बॉलीवुड में सैफ समेत ऐसे बहुत से स्टार्स हैं, जिन्हें कोई जानकारी नहीं है, लेकिन कैमरे के सामने ज्ञान देने में वह सबसे आगे हैं।
अपने इस इंटरव्यू में सैफ ने यह भी कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले इंडिया का कोई कॉन्सेप्ट नहीं था। जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी काफी आलोचना हो रही है। लोग फिल्म की रिलीज से पहले हुए उनके साक्षात्कार की वीडियो शेयर कर रहे हैं और दोनों बयानों में फर्क़ दिखाकर उनकी मंशा पर सवाल उठा रहे हैं।
Unlike Dumbo Deepika, #SaifAliKhan waited for #Tanhaji to become a hit before revealing his ugly face— Archie (@archu243) January 19, 2020
Another radical izlamist exposes his bigotry
Taimur Ali Khan ke abba se yehi umeed thi 😖pic.twitter.com/eweImKene1
Bollywood ‘history buff’ #SaifAliKhan claims “there was no concept of ‘India’ until the British came.”— Tarek Fatah (@TarekFatah) January 19, 2020
Yeah right. French East India Company was about China & Vasco D’Gama went to Fiji.
Last time he invoked he invoked ‘history’ he named his son ‘Timur’
pic.twitter.com/pyZXERUQy0
Saif Ali Khan says- "There was no concept of India till the British came"— True Indology (@TIinExile) January 19, 2020
Is that why his family, which ruled Bhopal, begged Jinnah to include their entire kingdom in Pakistan in 1947 ?
Is that why his great grandfather, the Nawab of Bhopal, called Hindus "untrustworthy"? https://t.co/3dxcVQI8oe
“There was no concept of India till British came”— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) January 19, 2020
When your student gives a duffer answer but teacher gives full marks. No wonder this stupid Film Critic refused to review #TheTashkentFiles and now is unhappy with the success of @ajaydevgn’s #Tanhaji pic.twitter.com/QmoYh2lQfK
“There was no concept of India till British came”— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) January 19, 2020
When your student gives a duffer answer but teacher gives full marks. No wonder this stupid Film Critic refused to review #TheTashkentFiles and now is unhappy with the success of @ajaydevgn’s #Tanhaji pic.twitter.com/QmoYh2lQfK
इस साक्षात्कार में सैफ ने देश के मौजूदा हालातों पर भी अपने विचार स्पष्ट किए और कहा कि फिलहाल देश में जो माहौल है, उसे देखकर उन्हें दुख होता है। उन्होंने कहा, “देश के लोग जो रवैया अपना रहे हैं वह गलत है। ये रवैया हमें भाईचारे के रास्ते से दूर कर रहा है।”
अनुपमा चोपड़ा को दिए इंटरव्यू में सैफ ने सीएए/एनआरसी पर हो रहे विरोध पर कहा कि जिस तरह से देश आगे बढ़ रहा है उससे ये तो साफ है कि देश में सेक्युलरिज्म का नामो निशान मिट जाएगा। उनके अनुसार, “देश के मौजूदा हालात देखकर लगता है कि हम सेक्युलरिज्म से दूर जा रहे हैं और मुझे कोई भी इसके लिए लड़ता दिखाई नहीं दे रहा है।”
उन्होंने कहा कि बतौर एक्टर उनके लिए कोई भी स्टैंड लेना सही नहीं है क्योंकि इससे उनकी फिल्में बैन हो सकती है और बिजनेस पर असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि इसलिए फिल्म इंडस्ट्री के लोग अपने बिजनेस और अपने परिवार को खतरे में नहीं डालना चाहते और कोई भी पॉलिटिकल कॉमेंट करने से बचते हैं।
अभी तक जहाँ सोशल मीडिया पर इस फिल्म को बिना किसी छेड़छाड़ के पेश किए जाने के लिए सराहा जा रहा था, वहीं अनुपमा चोपड़ा से हुई बातचीत में सैफ के बयान ने उन्हें आलोचनाओं का केंद्र बना दिया है।
फिल्म इंडस्ट्री तान्हाजी जैसी फिल्में क्यों बना रही है, इसके बारे में बात करते हुए सैफ ने इस इंटरव्यू में कहा, “यही चलता है और इसलिए यह आइडिया चल पड़ा है। मैं वास्तव में ऐसी फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा होना पसंद करूँगा जो एक स्टैंड ले, जो लोगों को बताए कि इतिहास क्या है, ना कि निश्चित प्रकार की सोच के साथ इससे छेड़छाड़ करे। लेकिन लोग कहते हैं कि यह चलता है। यह एक आइडिया है जो चल निकला है, लेकिन यह वास्तव में खतरनाक है।”
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