आंदोलनों में हिंसा एवं सुरक्षा हेतु प्रभावशाली उपाय !

(सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे (वर्ष २०१८)
ऐसा माना जा रहा है कि, नागरिकता सुधार कानून २०१९ देश की स्वतंत्रता के पश्‍चात पारित किया गया एक महत्त्वपूर्ण कानून है। प्रमुखता से पडोस के इस्लामी देशों में रह रहे अल्पसंख्यक हिन्दुओं की रक्षा के लिए यह कानून बनाया जाना, यह इस दिशा में एक मील का पत्थर प्रमाणित होता है ! ऐसे समय में कुछ विश्‍वविद्यालयों के धर्मांध छात्र, तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी, वामपंथी राजनीतिक दल, ‘टुकडे-टुकडे गैंग, शहरी नक्षलवादी आदि समूह मुसलमानों के तुष्टीकरण के एक भाग के रूप में कहिए अथवा हिन्दुओं के विरोध के रूप में कहिए; इस कानून का विरोध कर रहे हैं ! अनेक शहरों में ये लोग कानून को हाथ में लेकर आगजनी, पथराव जैसी घटनाएं करवा रहे हैं !
नागरिकता सुधार कानून के विरोध में देहली के सीलमपुर क्षेत्र में १७ दिसंबर को पुलिसकर्मियोंपर पथराव करती हुई हिंसक भीड (साभार : समाचारसंस्था रॉईटर्स)
इसी पार्श्वभूमि पर (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन ने वर्ष २०१७ में ही ऐसे हिंसक आंदोलनों को रोकने हेतु कौनसे प्रभावशाली कदम उठाने चाहिए, इसका दिशादर्शन करनेवाला लेख लिखा था, उसे हम साभार प्रकाशित कर रहे हैं, जो आज की स्थिति में अत्यंत उपयुक्त है !
1. पुलिस बल को अधिक सक्षम बनाना आवश्यक 
राज्यकर्ताओं का सबसे प्रमुख कर्तव्य होता है सामान्य जनता की रक्षा करना ! उसके लिए कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस बल को अधिक सक्षम बनाने की आवश्यकता है। पिछले कुछ महिनों से महाराष्ट्र एवं संपूर्ण देशभर में ही हिंसा की घटनाएं बढी हैं। इस हिंसा में सर्वाधिक बली चढते हैं सामान्य लोग, ज्येष्ठ नागरिक, महिलाएं और छोटे बच्चे ! ये लोग हिंसा के स्थान पर फंस जाते हैं और हिंसाचारियों की मारपीट अथवा आगजनी पर बलि चढते हैं ! कामकाज के लिए बाहर निकले हुए लोगों को अकस्मात उछली हिंसा पर बलि चढना पडता है; भले वह हिंसा कोरेगांव-भीमा की हो, संभाजीनगर की हो, दूध आंदोलन हो, किसान आंदोलन हो अथवा हाल ही की मराठा आरक्षण आंदोलन में हुई हिंसा हो ! इस आंदोलन में करोडों रुपए की हानि हुई है। सरकारी संपत्ति, राज्य परिवहन विभाग की बसें, निजी वाहन और निजी संपत्ति को बडी हानि पहुंची है। सरकारी बसें निर्धन एवं सामान्य यात्रियों के लिए यातायात का महत्त्वपूर्ण साधन है। उसके कारण बसों को हानि पहुंचाने का सर्वाधिक प्रभाव सामान्य लोगों पर पडता है। उससे बस से यात्रा करनेवाले छात्रों की हानि होती है। रोजीरोटी कमानेवालों को काम नहीं मिलता और बीमार लोग चिकित्सालय पहुंच नहीं पाते। यात्रा के लिए गांव से बाहर निकले लोगों के लिए सडकें बंद हो जाती हैं। राज्य की महत्त्वपूर्ण सडकें बंद होने से अर्थव्यवस्था को बहुत बडी हानि पहुंचती है।
2. सामान्य नागरिक ही हिंसा के बलि
गुजरात में पटेल एवं पाटीदारों का आंदोलन, हरियाणा का जाट आंदोलन और राजस्थान में गुज्जरों का आंदोलन हुआ। वहां हुई हिंसा में सामान्य नागरिक मारे गए और अनेक लोग घायल हुए। इनमें सार्वजनिक संपत्ति की बहुत हानि हुई और वहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई, साथ ही महंगाई बढी। हिंसक आंदोलनों को आतंकवाद ही माना जाना चाहिए। देश के किसी समुदाय के साथ अन्याय हो रहा हो, तो उस अन्याय को प्रत्युत्तर के रूप में हिंसा करना उसका उपाय नहीं है ! भारतीय कानून हिंसा का समर्थन नहीं करता। कोई समुदाय अथवा संस्था को सरकार से अपनी मांगें पूर्ण कर लेनी हो, तो उसे कानूनी चौकट में ही करनी होगी। ऐसे बंद अथवा हिंसा के कारण देश को हानि ही पहुंचती है !
3. हिंसा को दी जानेवाली अनुचित प्रसिद्धि 

चुनाव के समय हिंसा और आंदोलनों की मात्रा बढने की संभावना होती है। ऐसी हिंसा को रोक कर सामान्य लोगों की रक्षा की जानी चाहिए। पिछले कुछ समय में हुई हिंसा के लिए अनेक संस्था-संगठन और राजनीतिक दल उत्तरदायी हैं। दूरचित्रवाणी, प्रसारमाध्यम, सामाजिक जालस्थल और समाचार संस्थाएं इस प्रकार की हिंसक आंदोलनों को बिनाकारण अत्यधिक प्रसिद्धि देते हैं। एक ही दृश्य और छायाचित्र निरंतर दिखाए जाते हैं। ऐसी घटनाओं का वृत्तांकन संक्षेप में न कर उन्हें निरंतररूप से दिखा दिखा कर आग में घी डालने का काम क्यों किया जाता है ? हिंसा से संबंधित समाचारों को प्रथम पृष्ठ से निकाल कर अंतिम पृष्ठ पर प्रकाशित किया जाना चाहिए ! 

4.वोट की राजनीति के लिए हिंसा 
राज्यकर्ता और पुलिस बल में इस प्रकार की हिंसा का सामना करने का सामर्थ्य होना ही चाहिए ! मतों की राजनीति के लिए कौन हिंसा करवा रहा है, यह ज्ञात होते हुए भी उसे रोकने के प्रयास नहीं किए जाते। ऐसे हिंसक आंदोलनों के संदर्भ में एक लक्ष्मणरेखा होनी चाहिए। जब लक्ष्मणरेखा पार की जाती है, तब आंदोलनकारी सार्वजनिक और निजी संपत्ति को हानि पहुंचाते हैं। तब उन्हें रोकना पुलिस बल और प्रशासन इन सभी का कार्य है; परंतु मतों की राजनीति को लेकर ये सभी इस ओर आँखे मूँद लेते हैं !
5. सुरक्षा की व्यापकता
5.अ. सामान्य लोगों की सुरक्षा एवं पुलिस बल : आंदोलनकारी इकट्ठा होते हैं और तब हिंसा को नियंत्रित करने पर मर्यादाएं आती हैं। जहां हिंसा होती है, वहां पुलिस बल एवं सुरक्षा बलों की संख्या को बढाने की आवश्यकता है, उससे सडक पर आने-जानेवाले लोगों की सुरक्षा संभव होगी। वीआईपी सुरक्षा की परंपरा को न्यून कर अधिक से अधिक पुलिसकर्मियों को सामान्य लोगों की रक्षा हेतु सडक पर उतारना होगा। पुलिस बल के पास अनेक व्यवस्थापकीय कार्य होते हैं। क्या, उससे पुलिस बल को मुक्त किया जा सकता है ?, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।
5.आ. पुलिसकर्मियों की संख्या बढाना आवश्यक : आज महाराष्ट्र में २.५ से ३ लाख तक निवृत्त पुलिसकर्मी हैं। उनमें से ५० से ६० सहस्र पुलिस अधिकारियों ने अपने सेवाकाल में अच्छा काम किया था और जो आज भी शारिरीक और मानसिकदृष्टि से सक्षम हैं, उन्हें कुछ अवधि के लिए पुलिस बल में क्यों नहीं लाया जा सकता ? अर्थात पुनः पुलिस बल में काम करने की उनमें इच्छा होनी चाहिए। राज्य में हॉकगार्डस् की संख्या बढा कर उन्हें कामकाज और विशेष श्रेणी का संरक्षण दिया जा सकता है। प्रशिक्षित पुलिसकर्मी सडक पर हो रही हिंसा का सामना करने के लिए उतर सकते हैं। हम सेवानिवृत्त अनुभवी पुलिसकर्मियों का उपयोग क्यों नहीं कर सकते ?
5. इ. हिंसा की दृष्टि से गुप्तचार विभाग का योगदान महत्त्वपूर्ण ! : हिंसा के संदर्भ गुप्त जानकारी मिलना महत्त्वपूर्ण है ! उसके लिए गुप्तचर विभाग की शक्ति और क्षमता को बढाने की आवश्यकता है। उसके लिए सेवानिवृत्त सक्षम अधिकारियों का पुनः एक बार उपयोग किया जा सकता है। आज जम्मू-कश्मीर, ईशान्य भारत और अन्य स्थानों पर अनेक गुप्तचर संस्थाएं काम करती हैं। उनमें गुप्तचर विभाग, ‘रिसर्च एन्ड एनॅलिसिस विंग’ अर्थात ‘रॉ’, सैन्य गुप्तचर विभाग, राजस्व, आयकर जैसे विभागों के गुप्तचर विभाग कार्यरत रहते हैं। इन सभी विभागों ने हर महिने में एकत्रित होकर गुप्त जानकारी का आदानप्रदान करना चाहिए। पुलिस अधिकारियों ने गुप्तचर संस्थाओं को जो जानकारी चाहिए, उस संदर्भ में कार्य करने को कहना चाहिए। हिंसक आंदोलन की अग्रिम जानकारी लेनी चाहिए। उसके लिए जिला और राज्यस्तर पर सभी गुप्तचर विभागों की बैठक होना आवश्यक है। मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, पुलिस महानिदेशक, जिला मंत्री आदि ने ऐसी बैठकें लेनी चाहिए। ‘टेक्निकल इंटेलिजन्स’ के द्वारा संभावित दंगाईयों पर इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से दृष्टि रखना संभव है। ऐसे सभी उपायों के कारण जहां कहीं गडबडी होने की आशंका होती है, तो उसकी जानकारी पहले ही मिलेगी और उससे हिंसा को रोका जा सकेगा !
5. ई. अर्धसैनिक बल एवं सैन्य बल को नियुक्त करें ! : राज्य में सीआरपीएफ और बीएस्एफ् के प्रशिक्षण केंद्र हैं। साथ ही आवश्यकता पडने पर हमें गृहमंत्रालय की ओर से अर्धसैनिक बलों की नियुक्ति मिलेगी; इसलिए राज्य के आरक्षित राज्य पुलिस बल के साथ ही अर्धसैनिक बलों की सहायता लेकर हिंसा को तुरंत रोकना चाहिए। संपूर्ण राज्य में हिंसा की तीव्रता बढने से पुलिसकर्मियों की संख्या न्यून पडती है।
5.उ. हिंसा को अधिक भडकने की प्रतीक्षा ना करते हुए उसे नियंत्रित करने हेतु कार्रवाई करनी चाहिए ! : आज राज्य में मुंबई, पुणे, भुसावळ, संभाजीनगर, नासिक जैसे स्थानोंपर सेना के अनेक कैन्टोन्मेंट हैं। हिंसा ने उग्ररूप धारण करने पर सेना का उपयोग किया जा सकता है। कानून-व्यवस्था को बनाए रखने हेतु देश में अनेक बार सेना का उपयोग किया गया है। जाट और गुज्जर आंदोलनों के समय हरियाणा और राजस्थान में पुलिस बल हिंसा को नहीं रोक पाया, तब सेना को बुला लिया गया। इसलिए हिंसा को अधिक भडकने की प्रतीक्षा न करते हुए उसे नियंत्रित करने हेतु कार्रवाई की जानी चाहिए।
5.ऊ. आधुनिक तकनीक को उपलब्ध कराना आवश्यक ! : पुलिस बल को दंगाईयोंपर नियंत्रण प्राप्त करने हेतु आधुनिक तकनीक उपलब्ध करा देना आवश्यक है। जम्मू-कश्मीर पुलिस बल इस तकनीक का उपयोग कर रहा है। इससे पुलिस बल दंगाईयों पर नियंत्रण प्राप्त कर सकता है। इससे आंसूगैस के बिना भी पुलिस बल दंगाईयों पर नियंत्रण स्थापित कर सकेगा !
5.ए. आंदोलनकारियों में भय उत्पन्न होना आवश्यक ! : न्यायालयों ने आंदोलनकारी संगठनों को आंदोलन से हुई हानि की भरपाई कराना अनिवार्य बनाना चाहिए। ऐसा करने से भविष्य में होनेवाली हिंसा और हानि को टालने में सहायता मिलेगी। आंदोलनकारियों के विरोध में प्रविष्ट अभियोगों की सुनवाई शीघ्रगति न्यायालयों में चला कर आंदोलनकारियों को दंडित किया जाना चाहिए, जिससे उनमें कानून का भय उत्पन्न होगा। इसमें सामाजिक प्रसार माध्यम और अन्य प्रसार माध्यमों ने आंदोलन का वार्तांकन करते समय उसमें हुई हिंसा को महत्त्व न देकर वार्तांकन करना चाहिए। हिंसक आंदोलनों के लिए अनेक संस्था-संगठन आर्थिक सहायता करते हैं। उनके विरोध में भी कार्रवाई होनी चाहिए। जिस प्रकार राष्ट्रीय गुप्तचर संस्था ने हुरियत कॉन्फरन्स पर आर्थिक नाकाबंदी लगाई, उसी प्रकार इन आंदोलनकारियों पर भी आर्थिक नाकाबंदी लगानी चाहिए !
6.हिंसाचार के सन्दर्भ में स्थानीय लोगों का दायित्व 
स्थानीय नागरिकों को गुप्त जानकारी देने हेतु एक टोल फ्री दूरभाष क्रमांक उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे सामान्य नागरिक उनके पास की जानकारी को तीव्रगति से पुलिस बल तक पहुंचा सकेंगें। ऐसी जानकारी देनेवालों के नाम गुप्त रखने चाहिए। भ्रमणभाष पर हिंसक घटनाओं का चित्रीकरण कर उसे पुलिस प्रशासन को भेजना चाहिए, जिससे हिंसक आंदोलनकारियों को पकडना सरल होगा। हिंसक आंदोलनकारी आंदोलन के लिए विविध पद्धतियां अपनाते हैं। उसके लिए सामान्य लोगों को भी पुलिस बल के कान और आंख बनना होगा; और इसी लिए हिंसक आंदोलनों को रोकने हेतु सर्वसमावेशी उपायों की आवश्यकता है !                                                                                                                                  स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

No comments: