आर.बी.एल. निगम, वरिष्ठ पत्रकार
पिछले एक/दो दशक से लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाली पत्रकारिता फिल्म पत्रकारिता की भांति 'पीली पत्रकारिता' बन गयी है। एक समय था जब पत्रकारिता समाज और सरकार को एक-दूसरे का आईना दिखाते थे, परन्तु अब पत्रकारिता नेताओं के इशारे पर काम कर, जनता को भ्रमजाल में फंसा वास्तविकता से दूर रख रही है। बस नेताओं की चाटुकारिता भरी खबरें प्रकाशित कर वाह-वाही लूटते ही पत्रकारों ने पत्रकारिता को भी कलंकित करने में संकोच नहीं किया।
अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द हिन्दू’ और उसकी डिप्लोमैटिक एडिटर सुहासिनी हैदर की पत्रकारिता जगजाहिर है। एक एजेंडे के तहत ‘द हिन्दू’ लगातार मोदी सरकार को निशाना बनाता रहा है। झूठे और मनगढ़ंत आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर मोदी सरकार के खिलाफ प्रोपेगैंडा करता रहा है। लेकिन हर बार उनका एजेंडा खारिज हो जाता है। एक बार फिर ‘द हिन्दू’ और सुहासिनी हैदर का झूठ सामने आया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की मौजूदा घरेलू नीतियों की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के कूटनीतिक प्रभाव में कमी आ रही है।
सुहासिनी हैदर ने ‘द हिन्दू’ में ‘The new worry of depleting diplomatic capital’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने कई ऐसे तथ्य दिए हैं, जो पूरी तरह से आधारहीन है और उनका इस्तेमाल एक खास एजेंडे के तहत किया गया है। तो चलिए आपको बताते हैं सुहासिनी के झूठों के बारे में….
डेमोक्रेट सांसदों के बारे में दी गलत जानकारी
सुहासिनी हैदर का कहना है कि सितंबर 2019 में अमेरिका के ह्यूस्टन में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में मौजूद दो दर्जन सांसदों में से केवल तीन सांसद ही डेमोक्रेटिक पार्टी से थे। हालांकि, सुहासिनी का यह दावा सच्चाई से बहुत दूर है। कार्यक्रम में तीन नहीं बल्कि 7 डेमोक्रेट सांसद ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में मौजूद थे।
डेमोक्रेटिक पार्टी के एक आठवें प्रतिनिधि, अल ग्रीन, ने विरोध जताने के कारण नहीं बल्कि अपने घरेलू राजनीतिक कारणों से कार्यक्रम में भाग नहीं ले सके। उन्होंने अपने आधिकारिक वेबसाइट पर इसके बारे में स्पष्ट तौर पर जानकारी भी दी।
समितियों के प्रस्तावों और प्रमिला जयपाल के बयान को बनाया आधार
अनुच्छेध 370 को हटाने और सीएए पारित करने के भारत के फैसले के खिलाफ अमेरिकी संसद की समितियों और प्रमिला जयपाल के बयान को आधार बनाकर सुहासिनी ने बताने की कोशिश की कि भारत और अमेरिका के रिश्ते खराब हुए हैं। तो यह बताना जरूरी है कि अमेरिकी संसद के सदन में जो भी प्रस्ताव लाए गए, उनमें से किसी को न तो राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए पेश किया गया और न ही अमेरिकी सरकार से कई आधिकारिक मंजूरी मिली थी। समितियों द्वारा पेश ऐसे प्रस्ताव सिर्फ सदन या सीनेट के रिकॉर्ड में बने रहते हैं और सदन की भावना को व्यक्त करते हैं।
कांग्रेस शासन में दिए गए बयानों की अनदेखी

मोदी सरकार द्वारा देश हित में लिए गए फैसले के खिलाफ कुछ आवाजे उठ रही है, लेकिन ऐसे बयान देना कोई नई बात नहीं है। भारत में 2004 से 2014 तक कांग्रेस का शासन रहा। इस दौरान अमेरिका में कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ भी कुछ इसी तरह के बयान देखने को मिले थे। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिले। इस दौरान ब्रुकिंग्स इंस्टट्यूट के प्रबंध निदेशक और क्लिंटन प्रशासन के पूर्व आर्थिक सलाहकार बिल एंथोलिस ने मनमोहन सिंह से कहा कि आप तो राजनीतिक रूप से कमजोर, समझौतावादी और निस्सहाय प्रधानमंत्री है। 2010 में अमेरिका ने भारत पर अमेरिकियों की नौकरियों को चुराने का आरोप लगाया था। उस दौरान मनमोहन सिंह ने उन आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की थी।
शेख हसीना के अनुरोध की अनदेखी
शेख हसीना सरकार में से कुछ लोगों ने बताया कि मोदी सरकार बांग्लादेश के अप्रवासियों में से एक खास वर्ग को नागरिकता देना चाहती है, जबकि दूसरों को “अवैध अप्रवासी” और “घुसपैठिए” मानती है। अप्रवासियों को सांप्रदायिक नजरिए से नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने सवाल किया कि अगर भारत धार्मिक रूप से सताए लोगों को राहत देना चाहता है, तो रोहिंग्या शरणार्थी मुद्दे पर मोदी सरकार ने शेख हसीना के बार-बार मदद की अपील के बावजूद ध्यान क्यों नहीं दिया ?
अमित शाह पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश
सुहासिनी हैदर ने लिखा है कि अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। यह काफी हस्यास्पद है। बता दें कि USCIRF ने ही सबसे पहले 2005 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वीजा प्रतिबंध की सिफारिश की थी। आज प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया भर में स्वीकृति और सम्मान मिल रहा है। और प्रधानमंत्री बनने पर मोदी को सबसे पहला निमन्त्रण अमेरिका से मिला था।
सबसे पहले तो USCIRF को भारत द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। इसलिए, USCIRF का बयान सिर्फ खाली बयानबाजी है। यह एक पक्षपाती संगठन है। सुहासिनी ने इस तथ्य को छिपाया कि इस संगठन ने कांग्रेस शासन के दौरान भी इस तरह के बयान दिए थे। ‘द हिंदू’ ने खुद अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि USCIRF ने कांग्रेस शासन के तहत 2009 में अल्पसंख्यकों के खिलाफ धार्मिक असहिष्णुता और हिंसा के लिए भारत को ‘निगरानी सूची’ में रखा था।
इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा जहाँ मुस्लिम तुष्टिकरण पुजारी देश के सम्मान से अधिक तुष्टिकरण को देकर, केवल मुस्लिम समाज को ही नहीं, बल्कि समस्त भारतीयों को मुँह में राम बगल में छुरी रख मुर्ख बना सत्ता हासिल करते रहे। इन नेताओं ने यह नहीं सोंचा कि इस वोटबैंक नीति से देश का कितना अहित कर रहे हैं।
60 के दशक का वह चर्चित गीत जो आज भी श्रोताओं को कानों को भाता है "रात भर का महमा है अँधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा" समस्त मोदी विरोधियों पर सटीक बैठता है। 70 वर्षों तक देश को मिथ्या धर्म-निरपेक्ष, समाजवाद और गंगा-यमुना तहजीब से मुर्ख बनाते रहे। यदि इनके कार्यों का गंभीरता से मंथन किया जाने पर स्पष्ट हो जाता है कि इन्हें इन बातों का भावार्थ तक नहीं मालूम। अगर मालूम होता, तो ये छद्दम धर्म-निरपेक्ष, समाजवादी और गंगा-यमुना तहजीब नारों पर अमल कर तुष्टिकरण को देश से बाहर फेंक चुके होते।
अवलोकन करें:-
इन झूठों के सहारे सुहासिनी हैदर ने पाठकों को गुमराह करने की कोशिश की है। साथ ही भारत के राजनयिक संबंधों को लेकर डर फैलाया कि मोदी सरकार भारत को कठिन परिस्थितियों में डाल रही है। इस तरह सुहासिनी हैदर ने पत्रकारिता की नैतिकता के खिलाफ काम किया है।
पिछले एक/दो दशक से लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाली पत्रकारिता फिल्म पत्रकारिता की भांति 'पीली पत्रकारिता' बन गयी है। एक समय था जब पत्रकारिता समाज और सरकार को एक-दूसरे का आईना दिखाते थे, परन्तु अब पत्रकारिता नेताओं के इशारे पर काम कर, जनता को भ्रमजाल में फंसा वास्तविकता से दूर रख रही है। बस नेताओं की चाटुकारिता भरी खबरें प्रकाशित कर वाह-वाही लूटते ही पत्रकारों ने पत्रकारिता को भी कलंकित करने में संकोच नहीं किया।
अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द हिन्दू’ और उसकी डिप्लोमैटिक एडिटर सुहासिनी हैदर की पत्रकारिता जगजाहिर है। एक एजेंडे के तहत ‘द हिन्दू’ लगातार मोदी सरकार को निशाना बनाता रहा है। झूठे और मनगढ़ंत आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर मोदी सरकार के खिलाफ प्रोपेगैंडा करता रहा है। लेकिन हर बार उनका एजेंडा खारिज हो जाता है। एक बार फिर ‘द हिन्दू’ और सुहासिनी हैदर का झूठ सामने आया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की मौजूदा घरेलू नीतियों की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के कूटनीतिक प्रभाव में कमी आ रही है।
सुहासिनी हैदर ने ‘द हिन्दू’ में ‘The new worry of depleting diplomatic capital’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने कई ऐसे तथ्य दिए हैं, जो पूरी तरह से आधारहीन है और उनका इस्तेमाल एक खास एजेंडे के तहत किया गया है। तो चलिए आपको बताते हैं सुहासिनी के झूठों के बारे में….
डेमोक्रेट सांसदों के बारे में दी गलत जानकारी
सुहासिनी हैदर का कहना है कि सितंबर 2019 में अमेरिका के ह्यूस्टन में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में मौजूद दो दर्जन सांसदों में से केवल तीन सांसद ही डेमोक्रेटिक पार्टी से थे। हालांकि, सुहासिनी का यह दावा सच्चाई से बहुत दूर है। कार्यक्रम में तीन नहीं बल्कि 7 डेमोक्रेट सांसद ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में मौजूद थे।
डेमोक्रेटिक पार्टी के एक आठवें प्रतिनिधि, अल ग्रीन, ने विरोध जताने के कारण नहीं बल्कि अपने घरेलू राजनीतिक कारणों से कार्यक्रम में भाग नहीं ले सके। उन्होंने अपने आधिकारिक वेबसाइट पर इसके बारे में स्पष्ट तौर पर जानकारी भी दी।
समितियों के प्रस्तावों और प्रमिला जयपाल के बयान को बनाया आधार
अनुच्छेध 370 को हटाने और सीएए पारित करने के भारत के फैसले के खिलाफ अमेरिकी संसद की समितियों और प्रमिला जयपाल के बयान को आधार बनाकर सुहासिनी ने बताने की कोशिश की कि भारत और अमेरिका के रिश्ते खराब हुए हैं। तो यह बताना जरूरी है कि अमेरिकी संसद के सदन में जो भी प्रस्ताव लाए गए, उनमें से किसी को न तो राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए पेश किया गया और न ही अमेरिकी सरकार से कई आधिकारिक मंजूरी मिली थी। समितियों द्वारा पेश ऐसे प्रस्ताव सिर्फ सदन या सीनेट के रिकॉर्ड में बने रहते हैं और सदन की भावना को व्यक्त करते हैं।
कांग्रेस शासन में दिए गए बयानों की अनदेखी


शेख हसीना के अनुरोध की अनदेखी
शेख हसीना सरकार में से कुछ लोगों ने बताया कि मोदी सरकार बांग्लादेश के अप्रवासियों में से एक खास वर्ग को नागरिकता देना चाहती है, जबकि दूसरों को “अवैध अप्रवासी” और “घुसपैठिए” मानती है। अप्रवासियों को सांप्रदायिक नजरिए से नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने सवाल किया कि अगर भारत धार्मिक रूप से सताए लोगों को राहत देना चाहता है, तो रोहिंग्या शरणार्थी मुद्दे पर मोदी सरकार ने शेख हसीना के बार-बार मदद की अपील के बावजूद ध्यान क्यों नहीं दिया ?

सुहासिनी हैदर ने लिखा है कि अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। यह काफी हस्यास्पद है। बता दें कि USCIRF ने ही सबसे पहले 2005 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वीजा प्रतिबंध की सिफारिश की थी। आज प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया भर में स्वीकृति और सम्मान मिल रहा है। और प्रधानमंत्री बनने पर मोदी को सबसे पहला निमन्त्रण अमेरिका से मिला था।
सबसे पहले तो USCIRF को भारत द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। इसलिए, USCIRF का बयान सिर्फ खाली बयानबाजी है। यह एक पक्षपाती संगठन है। सुहासिनी ने इस तथ्य को छिपाया कि इस संगठन ने कांग्रेस शासन के दौरान भी इस तरह के बयान दिए थे। ‘द हिंदू’ ने खुद अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि USCIRF ने कांग्रेस शासन के तहत 2009 में अल्पसंख्यकों के खिलाफ धार्मिक असहिष्णुता और हिंसा के लिए भारत को ‘निगरानी सूची’ में रखा था।
इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा जहाँ मुस्लिम तुष्टिकरण पुजारी देश के सम्मान से अधिक तुष्टिकरण को देकर, केवल मुस्लिम समाज को ही नहीं, बल्कि समस्त भारतीयों को मुँह में राम बगल में छुरी रख मुर्ख बना सत्ता हासिल करते रहे। इन नेताओं ने यह नहीं सोंचा कि इस वोटबैंक नीति से देश का कितना अहित कर रहे हैं।
60 के दशक का वह चर्चित गीत जो आज भी श्रोताओं को कानों को भाता है "रात भर का महमा है अँधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा" समस्त मोदी विरोधियों पर सटीक बैठता है। 70 वर्षों तक देश को मिथ्या धर्म-निरपेक्ष, समाजवाद और गंगा-यमुना तहजीब से मुर्ख बनाते रहे। यदि इनके कार्यों का गंभीरता से मंथन किया जाने पर स्पष्ट हो जाता है कि इन्हें इन बातों का भावार्थ तक नहीं मालूम। अगर मालूम होता, तो ये छद्दम धर्म-निरपेक्ष, समाजवादी और गंगा-यमुना तहजीब नारों पर अमल कर तुष्टिकरण को देश से बाहर फेंक चुके होते।
अवलोकन करें:-
इन झूठों के सहारे सुहासिनी हैदर ने पाठकों को गुमराह करने की कोशिश की है। साथ ही भारत के राजनयिक संबंधों को लेकर डर फैलाया कि मोदी सरकार भारत को कठिन परिस्थितियों में डाल रही है। इस तरह सुहासिनी हैदर ने पत्रकारिता की नैतिकता के खिलाफ काम किया है।
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